अगर तुम साथ हो ।
अगर तुम साथ हो ।
"अच्छा ये सब डेटा तुम्हें कहाँ से मिला?" रीता का ये सवाल चिर परिचित था और मुझे इसकी आदत हो चुकी थी ।
फिर वही बात , इस लड़की को आम खाने हैं लेकिन ये भी जानना है कि कहा से आये, किससे लिये । मैं कई बार देख चुका हूँ कि इसे सवाल करने की बहुत आदत है और अगर खुद करो तो आखिर में एक पक्का जवाब होता है, "छोड़ो, कोई और बात करते हैं।"
मैं भी छोड़ देने में ही भला समझता हूँ, फिर बेकार की नाराजगी, जिद और चुप्पी ।तो अच्छा यही है कि जिन बातों को करने से सहजता अनुभव हो , वही की जाय । कुल मिलाकर जिंदगी में सहजता रह भी कितनी गई होगी उसके ।
"तुम्हें पता है , मुझे लोगों का दिल दुखाना अच्छा नही लगता, पर फिर भी शायद जाने अनजाने दुखा ही देती हूँ । "उसने कहकर अपने उड़ते हुए बालो को चेहरे से हटाया और सर के पीछे जूड़े में दोनों हाथों से खोस दिया । प्लास्टिक का कैचर भी अच्छी तरह से लगा दिया । बीच पर हवा तेज थी । हवा में पानी की सीली सीली नमी महसूस हो रही थी । सामने रेत पर फुटबॉल खेलता हुआ बच्चा भाग कर हमारी तरफ आया और फुटबॉल उठा कर चलने से पहले हमें देखकर मुस्कुरा दिया ।
"देखा तुमने, बस जिंदगी कभी कभार ऐसे ही पास आती है और मुस्कुरा कर चली जाती है ।"
"अरे तो उसके दोबारा लौट आने की उम्मीद भी तो होती है कि पास आएगी तो फिर ऐसे ही खुशी की एक फुहार तुम्हारे मन में छोड़ जाएगी ।"
हम सीधे अस्पताल से यहाँ आ गए थे, मतलब मैं ले आया था । आई वी एफ ट्रीटमेंट करवाते आज दो साल हो गए थे । पर हर बार निराशा हाथ लगी । डॉक्टर ने हम दोनों के टेस्ट किये थे । उसके गर्भाशय में ट्यूब्स ब्लाक थी जिस वजह से दिक्कत आ रही थी । इस मामले में आस पड़ोस, रिश्तेदार और उससे उत्पन्न खुद की मानसिकता का इतना प्रेशर था कि जैसे जैसे शादी के बाद का वक्त बढ़ रहा था , प्रेशर भी बढ़ रहा था ।
रीता इतनी परेशान रहने लगी थी कि एक बार उसने मुझे यह भी कह दिया "अगर तुम डिवोर्स लेना चाहो तो मुझे कोई परेशानी नहीं है, मैं समझ सकती हूँ कि तुम इकलौते बेटे हो और तुम्हें भी बहुत ऑकवर्ड फील होता होगा ।"
मैं हतप्रभ था । सोचा की निराशा में आदमी कितने सवाल और उनके जवाबों को खुद ही गढ़ने लगता है ।
"यार, तुम ये सब क्या कह रही हो, कोशिश कर रहे हैं, कुछ न भी हुआ तो बच्चा अडॉप्ट कर लेंगे । मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिए, ये सब मत कहा करो और यकीन रखा करो ।
उसका दिमाग हर समय परेशानी से उलझा किसी न किसी तरह जल्दी से उसका हल ढूंढ लेना चाहता है । और रीता तो कम्पनी के उन बेस्ट वर्कर्स में से है जिसने कितनी मार्केटिंग स्ट्रैटिजी बना कर कम्पनी में एक रुतबा हासिल किया है । कम्पनी में हम दोनों का कम्पीटिशन कब प्यार में बदल गया और फिर लिव इन मे रहते हुए हम शादी के बन्धन में बंध कर और ज्यादा नजदीक हो जाने की निश्चितता से भर गए ।
मगर शादी के बाद जिंदगी में सिर्फ जॉब, मस्ती, प्यार और घूमना फिरना नही होता ये हमे तब पता चला जबह कायदे से घर मे रहने लगे । वो घर जो केवल दो लोगों से नही बल्कि घर के सभी सदस्यों से जुड़ा होता है । फिल्मी हीरो हेरोइन वाली लव स्टोरी अब सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों के ऐन बीच में आ गई थी । यहाँ मसले व्यक्तिगत नहीं सार्वजनिक होते हैं । खैर घर मे सभी लोग बहुत कोऑपरेटिव थे, उन्हें इस बात का गर्व था कि हम एक अच्छे स्टेटस और कम्पनी से जुड़े हुए हैं और भविष्य तथा वर्तमान की सभी सुविधाओं के बीच जी रहे है । पर आखिरकार सामाजिक सुविधाएं क्या पारिवारिक सुविधाओं का पूरी तरह बदल हो सकती हैं ।
अब जिंदगी आई वी एफ, तमाम दवाओं, डॉक्टरों और इलाज की किस्मों, पारिवारिक वहमों , ज्योतिषियों और न जाने किन किन खुराफातों में पड़कर हमारे पढ़े लिखे, आधुनिक दिमागों को कसमसाने लगी थी ।
गनीमत ये रही कि मल्टी नेशनल कम्पनी में काम करते हुए हम दोनों ने छोटे शहर से बड़े शहर में शिफ्टिंग करवा ली । अब ले देकर फोन बचा था जिस पर कोई न कोई रिश्तेदार अपनी आदत के मुताबिक हमदर्दी जताते या उसका दिखावा करके जैसे सब कुछ जान लेने की कोशिश करता । जैसे वो हमारे भरे हुए किसी जख्म को कुरेदना चाहता, जैसे उसे हमारे स्टेटस से जो जलन थी उसकी प्रतिपूर्ति वो ऐसे सवालों से करता जो रीता को परेशान करते । जैसे उन्हें मालूम था कि रीता को परेशान करने का मतलब है, पूरे घर को, माहौल को परेशान करने का आसान तरीका । इससे शायद उन लोगों को अपनी किसी मानसिक या आर्थिक विपन्नता से मुक्ति मिलती हो ।
हम दोनों की शुरू से एक आदत बड़ी कामन है कि हम किसी को ज्यादा सवाल नही करते, मसलन आपकी बेटी कैसी है? उसकी शादी हो गई कि नहीं? कितनी उम्र हो गई है अब? कितनी तनख्वाह मिलती है? घर में बिना बच्चे के सूना सूना तो लगता होगा? ..ब्लॉ ब्लॉ ।
सोचने वाली बात है कि जो अपनी आदत नहीं बदल सकते, उनके लिए आप क्यों अपना मूड खराब करें, ऐसा क्या है जो हमें पल में बहुत कमजोर महसूस करवा देता है ?
"नहीं रीता, मैं खुद आज पता करके आया हूँ अपने जान पहचान के कुछ लोगों से कि इस काम में थोड़ा वक्त लग जाता है पर नब्बे प्रतिशत केस सफल ही रहे हैं ।"
"मतलब दस प्रतिशत का माईनस भी है ।"
"यार हम लोग तो मार्केटिंग जॉब में हैं, अब मैं तुम्हें ये थोड़े समझाऊँगा कि लोग ज्यादा में विश्वास रखते हैं, कम को तो कोई देखता ही नहीं। और मैं कह रहा हूँ कि हमारे पास सब ऑप्शन हैं, आई वी एफ न सही तो अडॉप्शन सही । सबसे बड़ी बात ये है कि हम साथ रहे । मुझे तुम्हारे साथ ही बुढ्ढा होना है, बस । "
कहकर मैंने रीता का हाथ पकड़कर चूम लिया । उसने अपना सर मेरे कंधे से टिका दिया ।
एक बार फिर सामने खेलते बच्चे का फुटबॉल हमारे नजदीक आया तो रीता फुटबाल उठाकर बच्चे की तरफ चल पड़ी । अब वो दोनों साथ साथ खेल रहे थे ।
मैं मुस्कुरा रहा था ।