Meera Ramnivas

Abstract

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Meera Ramnivas

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एहसास

एहसास

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दादा ! ओ दादा ! कहाँ हो ? मैं शहर से आ गया।छुट्टी है दो दिन की ।पोते की आवाज सुनकर दादा खुशी में अपनी उम्र भूल बच्चे की तरह दोड़ पड़ते हैं ।पोता दौड़ कर गले से लिपट जाता है । दादा और पोता गले मिल रहे हैं ।खुशी के अश्रु आंखों से बह रहे हैं । "दादा मैं आप के लिए खाना लाया हूँ" पोते ने दादा से कहा।बहू ने आज टिफिन दिया है दादा ने पूछा।"नहीं मैं खुद रसोई घर से लाया हूँ। माँ ने आज मेरे लिए मेरी पसंद की चीजें पकाई हैं ।वही सब लाया हूँ" ।आओ साथ बैठकर खाते हैं ।फिर आराम से ढ़ेर सारी बातें करेंगे ।पोता दादा से आग्रह करते हुए बोला।आज समय से पहले ही राहुल टिफिन लेकर पहुँच गया है ।रमेश कुमार घर के लिए निकल ही रहे थे , कि पोता टिफिन लेकर आ गया।

    "बहू से पूछे बिना चोरी से लाया है पुत्र "।दादा फिर बोले।"अपने ही घर में कैसी चोरी ? आप का हक बनता है"। पोते ने दादा का हाथ थाम कर कहा ।हक! वो सब तो मैं बहुत पहले तुम्हारे पिता को दे चुका हूँ पुत्र।और उन्होंने आप के साथ क्या किया ?अपने ही घर में पराया कर दिया।दादा आजकल घर से थोड़ी दूर स्थित बाड़े में बने कमरे में रहने लगे हैं। पापा ने उनके रूम में अपना दफ्तर खोल लिया है।क्यों कि घर मुख्य सड़क पर स्थित है क्लाइंट को आने जाने में कोई असुविधा नहीं होती । दादा भी बेटे की खुशी के लिए चले गए। जब मैं छोटा था, दादा ने गाय पाली हुई थी । यहाँ दादा की गाय रहा करती थी।एक कमरे में ग्वाला रहा करता था ।रविवार की सुबह और बाकी दिन शाम को मैं यहाँ दादा के साथ आया करता था ।दादा जैसे ही दफ्तर से लौटते मैं उन्हें गाय के पास चलने को कहता,  दादी, दादा और मैं यहाँ आते ।गाय को चारा खिलाते, बछड़े के साथ खेलते,

ग्वाला दूध निकालता और दूध लेकर घर आ जाते। नीम के पेड़ के नीचे खाट बिछी रहती थी ।उस पर थोड़ी देर बैठते।सावन में दादा नीम की ड़ाली पर झूला ड़लवाते थे।मैं अपने दोस्तों संग क्रिकेट भी यहीं खेलता था ।अब गाय नहीं है ।नीम का पेड़ पहले की तरह ही खड़ा है,वाड़े की शोभा बढ़ा रहा है।

    दादा सुबह शाम खाना खाने घर आते हैं ।माँ जो भी खिलाती हैं,दादा बिना किसी शिकवा शिकायत खा कर चले आते हैं ।या फिर कोई मेहमान आये तब घर आते हैं । पहले मैं दादा के साथ वक्त गुजारा करता था।जब से शहर पढ़ने गया हूँ दादा अकेले हो गए हैं । माँ से बातें कर नहीं सकते ।माँ दादा से पर्दा करती हैं । पिताजी अपने काम में व्यस्त रहते हैं ,साथ बैठने हेतु समय ही नहीं निकालते कि घड़ी दो घड़ी दादा के साथ बैठें बातें करें ।खाली समय में अपने बिजनेस के सिलसिले में दोस्तों से मिलने चले जाते हैं ।

   "दादा खाना खाकर घर चलते हैं ।मैं लेने आया हूँ ।जब तक मैं शहर में हूँ आप भी वहीं रहेंगे" ।पोते ने आग्रह पूर्वक कहा ।दादा टाल न सके।दोनों बतियाते हुए घर की तरफ निकल पड़ते हैं। बाबू जी बरामदे में बैठे हैं ।मुझे देखते ही गरजते हैं ।क्यों बे नालायक बिना मिले भाग गया ।अपने पिता के पास बैठने की फुर्सत नहीं है तुझे ।कितनी कमी खलती है तेरी।काश! पिता की पीड़ा तू जान पाता।

  " मैं सब जानता हूँ पिता की पीड़ा क्या होती है ।किंतु एक व्यक्ति जब अपने पिता का अच्छा बेटा नहीं बन सकता है तो किसी का अच्छा पिता कैसे बन सकता है।आप भी तो दादा के बेटे हो। दादा को भी तो आप की कमी खलती है । आप को उनका दर्द दिखाई नहीं देता । कितना बैठते हैं आप उनके साथ "।अब तू इतना बड़ा हो गया है। अपने पिता से जुबान लड़ाने लगा है ।पुत्र अपने पिता से ऐसे बात नहीं करते। दादा ने पोते को प्यार से समझाते हुए कहा । मैं सच ही तो कह रहा हूँ । पोता अपने पिता के मुखातिब हो कर बोला । "दादा को घर बुला लें वरना अगली दफा से मैं भी घर नहीं आऊंगा ।यदि आ भी गया तो दादा से मिल कर वापस लौट जाऊंगा"। 

"आपने उनके कमरे को दफ़्तर बना दिया ।मजबूरन उन्हें घर से जाना पड़ा। और हां आप का यही रवैया रहा तो मैं जल्द ही इस घर में अपना हक मांगना चाहूँगा। इस घर का आधा हिस्सा लेना चाहूँगा। जिसमें मैं और दादा रह सकें।जो पेंशन राशि दादा आप को देते हैं। उसे मैं अपने पढाई खर्च के लिए लूंगा । घर का खर्च चलाने के लिए जरूरत पड़ी तो ट्यूशन करूंगा। और फिर आप को भी तो बुढ़ापा आने वाला है ।आप ने कभी सोचा है "।

    इतना कहकर पोता दादा का हाथ पकड़ अपने कमरे में चला जाता है ।रात भर बहू बेटे का विचार मंथन चलता रहता है ।"बेटा ठीक ही तो कह रहा है,हमने पिताजी को अकेले कर दिया है ।आप अपना दफ्तर बाड़े में शिफ्ट कर लें । पिताजी का कमरा उन्हें लौटा दें।बेटे को हम क्या संस्कार दे रहे हैं ।मैंने आप को पहले भी कहा था ।लेकिन आप ने मेरी एक ना सुनी।कमसकम बेटे की तो सुन लीजिये।पिताजी का इस उम्र में हमारे साथ रहना जरूरी है।"

 हां तुम ठीक ही कहती हो।मैं धंघे में इतना मशगूल हो गया कि पिताजी के अकेलेपन का एहसास न हुआ।मुझे । मैं कैसे न समझ सका बाबूजी का दर्द । बेटे से दूर रह कर कोई पिता कभी खुश नहीं रह सकता। मैं कल ही पिता का सामान लिए आता हूँ।अगली सुबह दादा का निवास फिर से अपने घर में हो जाता है।  

  आज आप मेरे अच्छे पिता बने हैं पोता बोला। और अच्छा बेटा भी पिता बोले।दादा, पिता,पोता तीनों मुस्कुरा रहे हैं ।दादा ने बेटे व पोते दोनों को गले लगा लिया ।खुशी से बहू की आँखें नम हो जाती हैं ।परिवार पूर्ण हो जाता है। घर हर्ष उल्लास से भर जाता है।


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