Niranjan Kumar Munna

Classics

4  

Niranjan Kumar Munna

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दिलेरी

दिलेरी

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झिंगा की पत्नी रमा बहुत दिनों के बाद शहर से गॉव आयी थी। करोना महामारी में सारे फैक्ट्रियों में तालाबंदी के कारण रोजी - रोजगार खत्म हो गई, तब वह शहर में रहकर क्या करती। सरकार के तमाम घोषणा के बाबजूद भी, उसे वहॉ भुखों मरने की बारी आ गई थी। भुख से मरने से तो अच्छा था किकिसी प्रकार गॉव चला जाय। गॉव भी पहुंचना इतना आसान नहीं था। सारे गाड़ी - घोड़े बंद हो गयें थें। सिर्फ समान ले जाने वाली गाड़ियां चल रहीं थी।

फिर भी मरता सो क्या नहीं करता। वो अपने गॉव जानें के लिए तैयार हो गई थी।

 शहर छोड़कर वो इस तरह अपने गॉव चली, जिस तरह देश के आजादी के समय, देश का दो टुकड़े होने पर, झुंड के झुंड लोग भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत भागे चले आते थें। कोई सवारी नहीं। भूखे पेट कंधे पर बची - खुची गृहस्थी लादे लोग पलायन कर रहें थें। 

उसी प्रकार झिंगा और रमा भी अपने गॉव चलें। 

जब वो चली तो सिर्फ दो जनें थी, परंतु आगे बढ़ने पर उसके जैसे हालात से मारे और लोग भी थें, जो अपने गॉव जाने के लिए जैसे - तैसे बोरिया-बिस्तर लेकर शहर से बाहर निकल आयें थें।

 दिन - रात चलते।

 कहीं गाँव - गेरावं मिल जाता तो भोजन का कुछ जुगाड़ हो जाता। सड़क पर चलते ट्रकवाला कभी-कभी मदद कर देता। 

तो कहीं - कहीं स्वयंसेवक भी मदद करने के लिए तैयार खड़े रहते। परंतु वो मदद नाकाफी था।

रात में सड़क किनारे रैनबसेरा बनाने वाले जन समूह में बहुत से लोग अपनी - अपनी, आप बीती सुनाते। वहॉ पर लगभग प्रत्येक इंसान हलात का मारा था। कोई भला अपना गॉव, अपना घर क्यों छोड़ना चाहेगा। अधिकतर लोग बेकारी और बेरोजगारी के मारे हुए थें। परिवार सुरसा के मुंह की तरह नीत - प्रतिदिन बढ़ते ही जा रही थी, उस हिसाब से गॉव में रोजगार नहीं थें, जिसके वजह से लोग अपने गॉव - घर छोड़कर शहर की ओर भागे।

लेकिन झिंगा और रमा की कहानी हीं कुछ ओर थी। आज भी वो दिन याद कर रमा सिहर उठती है। बरसात का दिन था। झिंगा गॉव के एक बड़े किसान के यहॉ काम करके, किसी प्रकार अपना घर - गृहस्थी चला रहा था। घर में झिंगा का एक वृद्ध मॉ थी। पिता कई वर्ष पूर्व ही स्वर्गलोक सिधार गयें थें। किसान का नाम भटकन महतो था। महतो जी के यहॉ, झिंगा से पहले, झिंगा के पिता सोमर काम किया करता था। जबतक सोमर की जिंदगी रही तब - तक वह भटकन महतो का बंधुआ मजदूर बना रहा। और उसके बाद झिंगा। 

रमा नई - नई झिंगा के ब्याहता बनकर आयी थी। गेंहूंआ रंग, गोल चेहरा, उठी पतली सी नॉक और हिरण की तरह चंचल नैन, झिंगा को पागल बनाने के लिए काफी था। 

झिंगा अपनी बीवी को छोड़कर जल्दी खेतों पर काम करने नहीं जाना चाहता था। देर होने पर या समय पर न आने पर महतो खुब गरजता झिंगा पर, - "नालायक! हरामखोर! तेरी बीवी जब से आयी है, तब से तू काम पर ध्यान नहीं देता। एक तेरा बाप था तेरा सोमर, न घर का चिंता और नहीं बीवी की। रात - दिन मेहनत करता था बेचारा और एक तू हो।" 

झिंगा, महतो के बात पर हॅसता और काम पर लग जाता। लेकिन काम में ध्यान कम लगा पाता। काम करते-करते कुछ न कुछ गलती कर हीं देता था।जितना वह गलती करता महतो उतना ही हल्ला करता। 

लेकिन एक दिन तो गजब हो गया। वो दिन बरसात का था। चारो ओर खेतों में पानी ही पानी थी। 

धान की रोपाई चल रही थी। आज रमा भी महतो के खेत पर आई थी। चारो ओर बगुले ही बगुले दिखाई दे रहें थें, लेकिन झिंगा कहीं नजर नहीं आ रहा था। 

कुछ समय पहले महतो खेत पर आया था। उसने इधर-उधर देखा और चुपचाप चला गया। 

रमा, पहले महतो के बारे में बहुत कुछ सुनी थी, लेकिन वो नजदीक से नहीं देखी थी। लम्बा कद- काठी का अधेड़ था महतो। गोल चेहरे पर कड़ी - कड़ी मुछे रखा हुआ था। सर पर साफा बांधता था और हाथ में लाठ लिए चलता था।

आज महतो के खेत में और भी धान रोपने के लिए महिलाएं आयी हुई थी। उसमे एक महिला जो रमा के उम्र की ही थी, बोली - "क्यों री तू झिंगा के ब्याहता है न?" 

तब रमा ने अपनी सर हॉ में हिलाती हुई, उसको उत्तर दी थी। 

"मेरी नाम लाजो है और तेरी नाम।" - उसने रमा से पुनः बोली थी। 

"रमा।" - बस रमा इतना ही बोली और झिंगा के राह देखने लगी। 

दिन के दो पहर होने वाली थी। आकाश में मेध रह - रहकर गर्जना करती तो रमा के शरीर में सिहरन होने लगती। चारों और मेढक की टर्र - टर्र से वातावरण गूंज रही थी, लेकिन झिंगा को अभी तक कोई खबर नहीं था। 

"अरे, झिंगा की लुगाई ।" - सामने महतो खड़ा था। 

"जी, जी मालिक!" - माथे पर अपनी साड़ी की पल्लू को रखते हुए रमा बोली। 

"अरे तेरा झिंगा आज कहॉ गायब है, वो लौंडा नाके दम किये रखा है, पता नहीं कहाँ गायब है।" - महतो गुस्से में फूँक मारते हुए बोला। 

"मालिक वो नवलखा के साथ जा रहा था पुरब की ओर।" - लाजो ने लगभग रमा की ओर देखते हुए बोली थी। 

"क्या, नवलखा के साथ। ससुरी वो तो एक नंबर का जुआरी है। "-महतो अपनी लाठी पटकते हुए बोला। 

" आज आयें झिंगा, तो उसको टांगे तोड़े देता हूं। अब बहुत हो गया।" 

रमा कुछ नहीं बोल पाई थी महतो के बात सुन। वो क्या बोलती कुछ समझ में तो उसे नहीं आ रही थी। झिंगा कभी भी जुआ नहीं खेलता, तो फिर वह नवलखा के साथ क्यों गया? यह बात वो समझ नहीं पा रहीं थी। 

"ओ री झिंगा की लुगाई तू खाना - बाना खाकर आयी है कि न री? "- महतो ठोड़ी नर्म आवाज में बोला। 

"नहीं खाना खाई तो जा मेरे हवेली पर। वहाँ से पहले खाना खा कर तू आ। भूखे भजन न होत गोपाला और यहॉ तो रोपन करने हैं तेरे को।" - महतो इतना बोलने के उपरांत अपने आम की वाग की तरफ चल दिया। 

 रमा का शरीर में अब आग सुलग रही थी। झिंगा क्या पागल हो गया है, जो जुआ खेलने गया है। वो चुपचाप खेत से बाहर निकल आई और अपने घर की ओर चल दी। 

रास्ते भर वो सोचती जा रही थी। मेरा बापू क्या अंधा था, जो उसे झिंगा जैसा लड़का मिला। ऐसा क्या जरुरी था, मेरी शादी का। मैं कहीं भागी ठोड़ी ही जा रही थी कि बापू की पगड़ी उछल जाती। जल्दी - जल्दी में शादी कर दी और जल्द हीं में गौना कर दी। मतिमारी गई थी बापू को। 

 यही सोचते - सोचते रमा घर पहुंच गयी। घर की हालत खराब थी। झिंगा की मॉ की तबीयत खराब चल रही थी। बुढ़ापे में मिट्टी कितनी पलीद हो जाती है, उसी को पता है जो बुढ़ापे के झेलता है। 

वह अपनी सास से बोली, - "माई कुछ खाना खाई की नहीं?" 

झिंगा की मॉ खासते हुए बोल पड़ी थी, - "महतो बाबू की बेटी दो रोटी भेजी थी। एक खा ली है और एक!" 

बुढ़िया पुनः खासने लगी थी। 

ये जिन्दगी भी गजब होती है। खाने के घर में लाले पड़े हैं और वो ।आखिर वो। 

सोचने के लिए रमा के पास शब्द नहीं मिल रहें थे। उसका सर भी दर्द करने लगी थी। वह सास के पास से उठी और अपनी कोठरी की तरफ़ चल दी। 

उसकी पैर अब लड़खड़ाने लगी थी। 

वो चुपचाप जाकर खाट पर लेट गयी और रोने लगी। रोते-रोते कब रमा की अॉख लग गई पता नहीं। 

निंद तब खुली जब गली में उसे शोर सुनाई दी। वो उठी और गली की ओर भागी। सामने पुलिस खड़ी थी और साथ में झिंगा भी था।

 झिंगा के हाथ में हथकड़ी देख रमा अंदर से दहल गई। वो कुछ बोल पाती तभी गॉव का चौकीदार बोल पड़ा, - "तोहार मर्द जुआ खेलते समय फौजदारी किया है। नवलखा के साथ मारपीट किया है इसलिए इसे पुलिस पकड़ कर थाने ले जा रही है। और हॉ, वो नवलखा कहॉ गया , उसको तो टांगे तुड़कर रख देंगे। सबको जुआरी बनाकर छोड़ देगा, इस गॉव में।" 

अब तो रमा क्या करती। जो गुस्सा उसे झिंगा पर थी, एक मिनट में फुर्र हो गई । झिंगा के सर शर्म से धरती में गड़ा जा रहा था। पुलिस झिंगा को लेकर आगे बढ़ चली, तब झिंगा पीछे पलटकर बड़ी ही कातर नजरों से रमा को देखी, जैसे वो अंतिम मिलन हो। 

रमा का ह्रदय दो टूक होकर उस समय रह गई थी।

वह फौरन घर में भागी और सास के पास जाकर बोली, - "माई! हे माई हमर झिं झिं झिंगू के पुलिस पकड़ के ले गइल ।"

रमा रोती जा रही थी और सारी बात बोलती जा रही थी। सारी बातें सुनकर बुढिया बोल पड़ी, - " तू री हवेली जा, रो मत। बड़े महतो के पास जा सब ठीक होगा! तू जा न री।" 

उसके बाद बुढिया खासने लगी। 

रमा आव न देखी ताव, वो सीधे हवेली की तरफ भागी। रात्री होने ही वाली थी। पुरा हवेली बिजली की रोशनी से जगमगा रही थी। बड़े महतो भी बुढ़े हो चले थे। 

रमा गिरते - परते बड़े महतो के पास पहुंची । वहां पर पहले से हीं भटकन महतो मौजूद थें। रमा को देखते ही बोले, - " का बात है री!" 

"जी मालिक, वो वो झिंगू के पुलिस।" - रमा बोलती जा रही थी और रोती जा रही थी। 

सारी बातें सुनने के बाद बड़े महतो, भटकन महतो के तरफ देखें और कुछ इशारा किये। 

"जी हो जायेगा।" - बोलकर भटकन महतो तीर की तरह हवेली से बाहर निकले। 

"जा बेटी तोहार मर्द घर पहुंच जावत। अरे रोती काहे को है। तोहार झिंगा के पिता के बहुत उपकार है इस हवेली पर। हम सब समुचा परिवार भी मिलकर तोहार ससुर के कर्ज ना उतार पायी समझी। जा तू जा और हॉ बुढ़ी जोहरा के बोल दिह, किहू चिंता ना करी। उसने हवेली का नमक का लाज रखी है तो जबतक मैं जिंदा हूँ तबतक जोहरा के न दिक्कत होई। जा तू जा। "

" मालिक मै समझ न पायी! "- रमा बोली। 

" वक्त का इंतजार करअ, एक दिन सब समझ में आ जाई।

रमा झूककर बड़े महतो को पैर छुई और हवेली से बाहर निकल गयी। रात नौ बजते - बजते झिंगा को लेकर भटकन महतो, रमा के घर पहुंच गया। 

झिंगा सही - सलामत था। 

" मालिक, तोहार उपकार को न भूल पाइम। "-रमा हाथ जोड़ते हुए, भटकन महतो से बोली। 

" अरी कैसन उपकार ? हम तोहार कुल के कर्ज उतारली हे। ई जो शरीर ह न हेकरा में जोहरा के खुन दैड़ रहल है। जब हमार माई के, हमरी जन्म देते समय ही मौत हो गईल हल, तब तोहार सास यानी की झिंगा की महतारी जोहरा की छाती के दूध पीकर हीं हम बड़ा होली हे, 

और हॉ सुन झिंगा के लुगाई। 

जा कल सुबह दोनों जना हवेली पर आ जै है। "-इतना बोलने के बाद भटकन महतो वहॉ से चला गया। 

सुबह हवेली के अंदर दलान पर बड़े महतो कुर्सी पर बैठे, हाथ में तुलसी माला लिए कुछ बुदबुदा रहें थें। रमा और झिंगा को आतें ही बोल पड़े, -" झिंगा तू शहर जावेगा ? जा तू दिल्ली चला जा। पैसा का चिंता न किया कर, मैं तोहरा के सारा बंदोबस्त किये देता हूं 

और हॉ, जोहरा का चिंता तू छोड़ दें, ये हवेली उसका भी भार उठा लेगा। अरे पुरी जवानी इस हवेली के लिए जोहरा खत्म कर दी , तो इस अवस्था में अब हमरी बारी है, उसकी सेवा करने खातिर न ।"

ठोड़ा रूकने के बाद पुनः बड़े महतो बोलना शुरू कर देते हैं, - 

" बहुत हम सब जोहरा के समझावे की कोशिश करनी हल कि इहे हवेली के एक कोना में रहलो, लेकिन वो बोली नही- मालिक नहीं, हमरी कुटिया ही काफी है, लेकिन अब छोड़अ इन बातन के और तू इस गॉव से जा। 

और हां, रमा बिटिया के कुछ समय के लिए मायके छोड़ आ। "

"लेकिन मालिक हमरा के मुआफी दे द, हमरा से बड़ी भूल होगइल मालिक, हम बहक गइल हली। अब जुआ कभी न खेलम! "-झिंगा दोनों हाथ जोड़कर बड़े महतो के सामने बोल पड़ा था। 

" अरे, तोहरा के मॉफी मांगे के कोई जरुरत नहीं ह। अब ई दुनिया पैसा का ह। कब तक पॉच किलो पर जिंदगी कटी बोलअ 

उं बोल न ।

 ऐसे भी तोहरा से खेत में काम न होवत है तो शहर में चला जा। वहां हमार जान पहचान के लोग हथन। चौकीदारी का काम मिल जायत तोहरा के। यहॉ माई के लिए चिंता न करअ, तू जा ।"

बड़े महतो ने झिंगा के समझाते हुए बोले थें। झिंगा उसको दूसरे दिन ही शहर चला आया और बड़े महतो के आशिर्वाद से चौकीदार का अच्छा काम भी लग गया था, लेकिन ये करोना के भय से हम गॉव की ओर चल दियें। क्योंकि कोई भी शहर में रहना नहीं चाह रहा था। मकान मलिक का किराया से लेकर राशन तक बोझ उठाना संभव नहीं था। ऐसे भी कम्पनी बंद हो गई थी तो दूसरा काम भी नहीं मिलता। 

इन बातों में खोई हुई रमा की तंद्रा तब भंग हुई, जब एक ट्रक ड्राइवर झिंगा और रमा को खोजतें - खोजतें पहुंचा। 

"अरे तू नवलखा, यहॉ कैसे!" - झिंगा ने नवलखा से लिपटते हुए बोला। 

"मत पुछो यार भटकन मालिक का ट्रक चला रहा हूँ। मुझे मोबाइल फोन पर खबर मिली थी कि तू दिल्ली से आपून को गॉव आने के लिए पैदल हीं चल दिया है, तो गाड़ी इस ओर मोड़ दी। रास्ते भर तुझें ढूंढता आ रहा हूँ। जहॉ भी लोगों की भीड़ आराम करते देखा वहां गाड़ी रोक पहले तुझे ढूंढा। मालिक का आदेश था, तुम दोनों को लाने का।"-नवलखा हॅसते हुए बोला। 

" मालिक को कैसे पता चला और तू ये खड़ी हिन्दी कब से बोलने लगा बे। "-झिंगा खुशी से चहकते हुए बोला। 

" सब भटकन मालिक का दया है यार। तू तो सात साल से गॉव आया हीं नही। हमारा गाँव बहुत बदल गया है। भटकन मालिक मुखिया बन गयें हैं। और हॉ, तुम्हारे लिए अच्छा घर भी बनवाया है, वो जो सरकारी योजना है न, जिसके तहद घर बनता है, उसी से।

और हॉ, चाची की मुर्ति भी लगी है वहॉ पर। और एक बात और, गॉव में स्वरोजगार भी आ गया है। बहुत से लोग उससे जुड़े हुए हैं। बिजली - पानी, शौचालय सब है हमारी गॉव में। बहुत अच्छा विद्यालय भी खुल गई है। "

और हॉ, मालिक तुझे टीवी पर ठोड़ा सा देखें थें, जब मजदूरों को शहर छोड़कर भागने वाली समाचार आ रही थी!" - नवलखा हॅसते हुए बोला। 

तभी उधर से रमा बोल पड़ी, -" क्यों जुआरी बाबू शादी-ब्याह हुई की नहीं। "

इस बात पर सभी हँसने लगें। 


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