आखिरी बार
आखिरी बार
आखिरी बार मैने उससे किस दिन बात किया था फोन पर सही से याद नहीं मुझे...।
फिर भी इतना तो याद हैं ही कि मैंने उससे तीन साल पहले आखिरी बार बात किया होगा..।
बहुत दिनों के बाद...
कॉल लगाया था गायत्री देवी के पास मैंने..!
मन तो पहले बहुत बार बोल चुका था मेरा -
एक बार कॉल तो लगा।
लेकिन मैं अपने मन की बात को सुनकर कई बार अनसुना कर दिया करता...
और फिर...
अनसुलझे मन से
एक बार उसका नम्बर को देख लिया करता ...!
उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर व्हाट्सएप्प की डीपी के ऊपर देखकर दिल में तसल्ली हो जाती...!
फिर अपने मन को समझा देता करता - क्या जरूरी है, उसको पास कॉल करने का... जो कभी मेरे पास एक मैसेज तक नहीं करती।
नम्बर तो सिर्फ हम दोनों ने यूं ही एक-दूसरे के अपने-अपने मोबाईल फोन में रखे हुए थे। शायद एक पुराने वादे को पुरा करने के लिए, जो कभी हम दोनों ने एक-दूसरे से किया था।
वो जब शहर से पहली बार गांव आयी थी न, अपनी शादी के बाद...
तब हम दोनों ने एक-दूसरे का नम्बर लिए - दिए थे।
परंतु चार-पांच महिने में एकाध बार ही शायद कभी-कभार बातचीत हुई होगी हम दोनों में।
जब भी मन खिन्न होता...
या किसी कारण से मन परेशान होता..
तो दिल के शकुन के लिए... डरते - डरते फोन लगा दिया करता था.. .
वो भी ऑफिस जाते वक्त।
आज भी याद है...
पहली बार फोन मैंने ही लगाया था, और आखिरी बार भी मैंने ही कॉल किया था गायत्री देवी के पास।
गायत्री...?
कभी मेरी और सिर्फ मेरी हुआ करती थी।
लेकिन आज किसी और को होकर दो बच्चों की माँ बनी हुई है।
क्या-क्या न वादे किए थे हम दोनों ने एक दूसरे से।
लेकिन सब वादे समय के साथ-साथ अतीत के कब्र में दफन होता चला गया!
लेकिन मुझको अभी भी नहीं लगता कि वो सबकुछ भूल गई होगी।
भूल कैसे जाएगी, क्योंकि उसने न भूलने की कसम जो खाई थी।
"नहीं भूल पाऊंगी आपको!"
-अपनी आँखों में आँसू समेटे हुए जब वो बोली थी... उस समय हम दोनों की आखिरी मुलाकात थी।
वो उस दिन अपने कॉलेज से भागकर आयी थी मुझसे मिलने के लिए ..।
ये बात उस समय की है... जिस समय न उसकी शादी हुई थी और नहीं मेरी।
ऐसे भी हम दोनों कन्फर्म थे...
सिर्फ किसी तरह प्रेम को ही निर्वहण कर लो..शादी करना हम दोनों के वश में नही है।
ऐसे ऐसी बात नहीं थी कि मैं चाह जाता तो उसको भगाकर न ले जाता...
मैं आराम से उसे ले जाता...।
परंतु नहीं...
मैं अपनी खुशी के लिए गायत्री के परिवार को बर्बाद करना उचित नहीं समझता था उस समय।
अतः मैंने बोला, "गायत्री आज के बाद हम दोनों अलग - अलग रहकर भी एक-दूसरे के दिलों में जिंदा तो रहेंगे न?"
तब उसने अपनी सफेद दुपट्टा के किनारी से, आँखों में छलक आयें आँसुओं को संभालने के लिए पोंछते हुए बोली थी,"हाँ! आपसे मैं उतना ही प्रेम करती रहूंगी हमेशा___जिन्दगी भर __जितना की आज कर रही हूँ___मजबूरियां मुझे अलग तो कर सकती है आपसे, लेकिन दिल से आपकी तस्वीर और आपकी यादें को कौन मिटा सकता है!"
बोलते - बोलते गायत्री सुबक-सुबक कर रोने लगी थी उस दिन।
तब मैंने अपनी आँसू को छुपाने का असफल प्रयास करते हुए बोल पड़ा था," घर लौट जाओ __लेट हो रही है___ऐसे तेरे घर के सारे लोग तेरे ऊपर नजर रखे हुए हैं कि कहीं कोई गलत कदम न उठा लो तुम।"
तब उसने बोली थी," नहीं ऐसी बात नहीं है___जब कुछ करना ही होगा तो..!"
इतना बोलकर वो आगे कुछ भी नहीं बोल पाई थी...
बस नीचे सड़क की ओर लगातार देखे जा रही थी।
सड़क के किनारे लगे वृक्ष के नीचे हम दोनों आखिरी बार आमने-सामने खड़े होकर बाते कर रहे थे...
एक-दूसरे को बस यूं ही दिल की तसल्ली देने के लिए।
जबकि सच्चाई दोनों को पता था कि मैं आज ही शाम को शहर को रहमेशा - हमेशा के लिए छोड़ कर चला जाऊंगा...
और शायद वापस कभी नहीं लौटूंगा...
अगर कभी वापस लौटा भी तो...
न मैं पहले वाला इंसान रहूंगा और नहीं गायत्री पहले वाली लड़की रहेगी।
सच में कुछ ऐसा ही हुआ।
न कभी वो मेरी जिन्दगी में उसके बाद आने की जरूरत की थी और न मैं उसकी जिन्दगी में किसी प्रकार से दस्तक देने की हिमाकत की थी।
परंतु वो मुझको से मिलना जरूर चाहती थी।
वो मुझसे बातें करना जरूर चाहती थी।
ऐसे भी वह बोला करती थी कि दुनिया कुछ भी कह ले, लेकिन पहली मोहब्बत को भूला पाना मेरे लिए इतना आसान नहीं होगा।
हम दोनों की जिंदगी का इंजन अलग - अलग पटरी पर अपनी-अपनी बाॅगी के साथ दौड़ लगाने में व्यस्त हो गई थी।
फिर भी कभी-कभी वो याद आ ही जाती थी।
और उसकी यादें मन में एक अलग तरह का तूफान जगाने के लिए काफी होता था।
लेकिन..
एक दिन उसकी यादें इस तरह से आनी शुरू हुई की उस दिन किसी भी काम में मन नहीं लग पा रहा था मेरा।
बहुत मुश्किल हो रही थी काम करना मेरे लिए।
दिन तो किसी प्रकार से कट गया था .!
परंतु शाम होते ही बेचैनी सी होने लगी थी मुझे।
ऑफिस की जरूरी काम खत्म करने के उपरांत मैंने चपरासी को बोला, "जरा पानी लाइएगा।"
और चपरासी कुछ ही सेकेंड में पानी लेकर हाजिर हो गया था।
वह आते ही बोल पड़ा, "साहेब जी एक बुरी खबर आ रही है अभी - अभी।"
"कौन सी खबर ?"
"कुछ देर पहले राजधानी के मोनिका मॉल में आतंकियों ने हमला किया है___बहुत से लोगों को मारे जाने की ख़बर है।"
"क्या !"
-मेरे मुंह से एकाएक शब्द फूट पड़ा।
मैंने फौरन कुर्सी से उठा..
और उस कमरे की तरफ दौड़ पड़ा , जिस कमरे में टीवी लगी हुई थी।
टीवी स्क्रीन के ऊपर न्यूज तैर रहें थे...
घटना उसी शहर की थी, जिस शहर में गायत्री अपने परिवार के साथ रहा करती थी।
मैंने तुरंत गायत्री का मोबाईल नम्बर पर फोन लगाया... लेकिन फोन पर सिर्फ सन्नाटा के सिवा कुछ भी नहीं था!
शहर का नेटवर्क काम नहीं कर रहा था...।
मैं धड़कते हुए दिल से टीवी स्क्रीन पर दौड़ने वाले नाम को पढ़ने की कोशिश कर रहा था...
जिसमें एक नाम गायत्री देवी का भी था !

