हकीकत
हकीकत
मेरे सामने के बेंच पर बैठी हुई नताशा ने मुझसे सवाल किया, - "आपको बिहेवियर समझ में मुझको नहीं आती विनय बाबू...। कभी कुछ तो कभी कुछ बोलने लगते हो। कभी आप बोलतें हो कि प्रेम करना कोई गलत नहीं है, और कभी प्रेम के नाम पर ही आप चिढ़ना शुरू कर देते हो...। मुझको यह समझ में नहीं आती की एक ही इंसान का दो चरित्र कैसे हो सकता है?"
" तू नहीं समझ पाओगी नताशा..। "-मैंने बात बदलने के उद्देश्य से बोला था। क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि कोई भी लड़की मेरी जिन्दगी में पुनः आने का प्रयास करे...। मैं नहीं चाहता था कि किसी लड़की के प्रेम में मैं दूबारा पड़ जाऊँ। सच बोलूँ तो मुझे प्रेम जैसे शब्दों से कोई घृणा नहीं थी , बल्कि प्रेम शब्द से मैं अंदर ही अंदर डरने लगा था।
नताशा दो वर्ष पहलें ही आयी थी। और उन दो वर्षों के अंदर ही अंदर मेरी अच्छी जानपहचान हो गई थी उससे । वह मेरे ही साथ आॅफिस में काम किया करती थी। अच्छी टाइपिस्ट थी, साथ में बकवास करने में माहिर भी थी वह । हो सकता है, यह मेरी नजरिया हो कि उसे मैं एक बकवास टाइप की महिला ही मानता था।
कभी-कभी हम दोनों ऑफिस के काम से बाहर भी जा चुके थें। वह कुछ मॉडर्न ख्यालतों वाली महिला थी। जिसके कारण ऑफिस में काम करनेवाले अधिकतर लोग उसे पसंद किया करतें थें।
ऐसी बात नहीं थी कि मुझको नताशा से कोई नफरत था। नहीं - नहीं, मैं उससे नफरत क्यों करूंगा, लेकिन हाँ मेरी नजरों में उसकी अहमियत एक आम इंसानो जैसा ही था। एक ऐसा इंसान जो दिखावा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
नताशा सभी से घुल-मिल कर बातें किया करती थी, और वह मुझसे भी प्रेम पुर्वक हीं व्यवहार करती। लेकिन मैं था कि उसके प्रेमपूर्वक व्यवहार का प्रत्युत्तर में व्यंग्यात्मक शब्द बाण ही चलातें, जिसके कारण वह कभी-कभी कुछ दिनों तक बोलना मुझसे बंद कर देती...।
नताशा का ड्राइवर हरीश मेहता, मेरा ही पड़ोस में रहनेवाला एक अजीब तरह का इंसान था। वह जब भी मिलता, बातें करना शुरू कर देता। खासकर नताशा के बारे में। पता नहीं उस इंसान को इस महिला में क्या दिखाई देता था। अरे यार ड्राइवर हो तो ड्राइवर बनकर रहो न, यह फालतू को ड्यूटी क्यों कर रहे हो। नताशा मैंडम क्या करती है आॅफिस में क्या नहीं, ये सब देखने का ठेका मैं थोड़ी कोई ले रखा था।
लेकिन एक दिन पता किया तो पता चला कि नताशा शादीशुदा होते हुए भी, किसी और से प्रेम करती है। प्रेम की बात क्या करें, पुरी तरह से उस पुरूष की पत्नी जैसा हीं हैं। कुछ सेकेंड के लिए मुझको आश्चर्य हुआ, परंतु अगले ही पल सोचा, मैं कौन सा गंगाजल का धोया हुआ हूँ।
सच पूछो तो उस दिन से नताशा को देखकर यही लगता था कि मैं भी तो नताशा जैसा ही बनने जा रहा था न...?
एक शादीशुदा इंसान होकर किसी और से संबंध....!?
मेरी कहानी में और नताशा की कहानी में कोई विशेष फर्क नहीं थी । बस अंतर यह था कि नताशा एक औरत थी, और मैं एक पुरूष था। लेकिन अपेक्षा तो दोनों की अपनी जिंदगी से एक ही जैसा थी... । शादीशुदा होतें हुए भी अफेयर में रहना।
लेकिन मैं...?
अब अफेयर वाली जिंदगी को छोड़ कर अलग राह पर चल दिया था, और नताशा थी कि उसको पकड़ कर रखे हुई थी। आखिर वो करती भी तो क्या करती...?
नताशा ने उसके लिए सबकुछ बर्दाश्त की थी, जिससे शादी के पहले से ही वो प्रेम किया करती थी । शादी से छः महीने बाद ही माँ बन जाना नताशा के लिए एक श्राप जैसा था। नताशा को उस व्यक्ति से शादी नहीं हो पाई थी, जिससे कि वह प्रेम किया करती थी। बल्कि एक ऐसे इंसान से शादी हो गई थी, जिसको वो अपनी शादी से पूर्व कभी देखा भी नहीं था ।
शादी के समय से ही नताशा को पता था कि मेरे गर्भ में किसी और का रक्त पल रहा है. परंतु वह उसको खत्म न करके एक बेटी के रूप में जन्म दी.... । आज नताशा की वह बेटी अपना ननिहाल में ही रहती है, कभी बाप का घर नहीं आयी।
क्योंकि पिता ने उस लड़की को अपना संतान होने से साफ मना कर दिया था।
नताशा अब दो लोगों के बीच में पिसी जा रही थी, जिसके कारण उसको मन में तरह-तरह के सवाल उत्पन्न होतें रहतें थें।और जब भी मैं फुर्सत में रहता, तब नताशा अपने मन में चलने वाले सवाल को समाधान पाने के लिए मुझसे अपने सवाल को पूछ बैठती।
"नहीं, प्रेम करना गलत नहीं है लेकिन एक शादी-शुदा इंसान को किसी और से प्रेम करना गलत है।" - मैने नताशा को हकीकत समझाने के नजरिए से बोला था।
"परंतु जिससे मैं शादी से पूर्व से प्रेम करती आ रहीं हूँ...?"
"क्या वो भी आपसे प्रेम करता है नताशा ?"
"हाँ क्यों नहीं करता, करता है। इसीलिए तो वह मुझको अपनी पत्नी से कम नहीं मानतें.. ।"
" क्या कभी आपने अपने पति के बारे में सोची हो नताशा, जिसको तुमने हमेशा से अंधेरे में रख छोड़ा है...? अगर तुम्हारे पति तुमको रहते किसी और से संबंध रखतें तो क्या तुम पसंद करती? "
मेरे प्रश्न का नताशा के पास कोई उत्तर नहीं था। इसलिए उसने बात बदलतें हुए बोली, -" हाँ, वो भी स्वतंत्र हैं, वो किसी के साथ भी जा सकते हैं। "
" यह तो गलत है न नताशा...? सब तुम्हारे जैसे नहीं न होतें... तुम्हारे पति तुम्हारे जैसा नहीं है? "
" फिर भी वो मेरे बॉयफ्रेंड जैसा भी तो नहीं न है? "
" अच्छा ये तो बताओ - गाड़ी का ड्राइवर किसके कहने पर रखी हो? अपना पति राजेश को कहने पर, या वो जो हैं, क्या नाम बताती थी उसको..? "
" जय ।"जय, नताशा का प्रेमी का नाम था।
" हाँ तो जय को कहने पर?"
" जय को कहने पर ही मैंने ड्राइवर को रखी हूँ । यहाँ तक की यह आॅफिस भी मैंने उसी को कहने पर ज्वाइन की हूँ। "
" क्या तुमको पुरा भरोसा है की जय तुमसे प्रेम करता है? "
" हाँ पूरा भरोसा है। "
" तो उसने तुमसे विवाह क्यों नहीं किया...? क्या वो तेरे लिए अपनी पत्नी को छोड़ सकता है? "
-इस सवाल का नताशा के पास कोई जवाब नहीं था।
लेकिन मेरे पास जवाब था। हकीकत कुछ और हीं था। जय को प्रेम होता नताशा से तो किसी भी हाल में शादी से पहले वह नताशा से शारीरिक संबंध नहीं बनाता। अगर शारीरिक संबंध बना भी लिया था, तो वह शादी जरूर कर लेता..., लेकिन नहीं, उसे तो नताशा का जिस्म की जरूरत थी।
आगे मैं नताशा से कुछ और सवाल कर पता, नताशा के पर्स में रखा हुआ मोबाइल फोन बज उठा। नताशा ने मुझको चुपचाप रहने का इशारा करते हुए बोल पड़ी, - "हलौ जय...।"
नताशा ने इतना बोला ही था कि उधर से एक भारी मर्दाना वाली आवाज फोन पर गूंज उठी थी, - "तुम्हारे साथ कौन है नताशा..?"
जय को किसी ने खबर कर दिया था कि मैं नताशा के साथ में था। और नताशा फोन पर हीं झूठ पर झूठ बोलती जा रहीं थी कि मेरे साथ कोई नहीं है। बस मैं अकेली ही आईं हूँ ...। विश्वास तो करो... तुमको क्यों लगता रहता है कि मैं किसी और मर्द के साथ में हूँ...।
