Niranjan Kumar Munna

Fantasy

4.5  

Niranjan Kumar Munna

Fantasy

हकीकत

हकीकत

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400


भाग - 1
⚫⚫

"हर इंसान की एक सिक्रेट स्टोरी होती है बाबू भाई... और जैसे प्रत्येक इंसान की होती है न... वैसी मेरी भी है, लेकिन उसमें ठोड़ी पेंच हैं...।"

"कैसी पेंच है बे ?"
-बाबू भाई ने मुस्कुराते हुए मुझसे बोला था।

और बाबू भाई को बोलते ही मैं हँसते हुए बोल पड़ा था, - "जानकर क्या करोगे बाबू भाई। इधर से सुनोगे और जाकर उधर किसी के कान में मेरी ही कहानी को रस भर - भरकर फूंक दोगे । "


" अबे बांगड़ू, 
जब तेरे को मेरे ऊपर भरोसा ही नहीं है तो फिर ये राग क्यों अलाप रहे हो आईं...! एक तो आज सुबह से ही मालकिन मेरे दिमाग को भुर्ता बना कर  छोड़ रखा  है और ऊपर से हो की तू  अपनी लेकर बैठो हो... अरे बाबा जिसकी अपनी फटी होती है न, वो दूसरों की सिलते नहीं चलते समझा की नाहीं । "

"समझ गया बाबू भाई। "

" क्या समझा ? बता। "

" यही की जिसकी अपनी फटी होती है न, वो दूसरों को नहीं सिला करते । "

" हाँ, ई हुई न बात । तू बड़ा समझदार ठहरा रे__ बड़ी जल्द समझ गया रे मेरे मुंना। "

और फिर बाबू भाई के मुंह से अपना प्यारा सा नाम  सुनकर खुश होते हुए, बाबू भाई के पास से उठकर, सीधा गली से होते हुए, मैं सड़क की ओर  चलता  बना।

आज पहली बार बाबू भाई ने मुझसे बड़े दुलार से बात की  थी ....। 

वरना जब कुछ बोला नहीं. कि उसके पहले ही शब्द रूपी तीर - कमान लेकर मेरे सामने  वो हाजिर हो  जाया करते थे।

लेकिन आज तो कमाल हो गया था! 
बाबू भाई का मिजाज एकदम से बदला - बदला सा लग रहा था।

हमेशा बात - बात में तीर - कमान हो जाने वाले बाबू भाई को इस प्रकार बदला - बदला देखकर मैं हैरान भी था...! 

और साथ में परेशान भी...।

सड़क पर कुछ कदम ही चला था मैं, कि एक ताजा खबर मेरे कानों में उड़ती हुई आ पड़ी... ।

रामबाबू की छोटकी किसी के साथ भाग गई थी...। 

"लो कर लो बात... घोर कलियुग है घोर... मैं बोलती ही थी कि लाजो की चाल-चलन खराब लगती है, परंतु कोई मेरी  सुने तब न...।" पैनावाली मौसी हाथ चमकाते हुए किसी और से बोले जा रही थी। 


क्रमशः जारी।
(एक नई कहानी, नये कलेवर के साथ। जरूर पढ़े "ये कैसी मोहब्बत !") 


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