सोलमेट की अणु
सोलमेट की अणु
⚫⚫
शाम होतें ही गाँव के कुछ लोग जल्दी - जल्दी से अपना काम निपटाने में लगे हुए दिखाई दे रहें हैं।
जिनको यज्ञ में जाना है वो तैयारी में लगे हुए हैं। रात्रि में दस बजने के बाद जिनको - जिनको वापस लौटने की इच्छा होगी, वो वापस लौट आयेंगे।
परंतु जिनको नहीं लौटना, वो वहीं रह लेंगे।
मुनू ने जाने के उद्देश्य से बोला, "मैं भी जा रहा हूं, लेकिन रात में वापस नहीं आ पाऊंगा।"
"क्यों ??
मैं भी तो चल रही हूँ।"
-मुनू को बोलते ही मुनू की माँ ने बोली ।
"ठीक है चलिए।"
इतना बोलकर मुनू छत पर चला गया।
उसके हाथ में मोबाइल फोन था। वह सुबह से अभी तक किसी का भी मैसेज का जवाब नहीं दिया था।
जैसे ही ऑनलाइन हुआ। सबसे ज्यादा मैसेज चित्रा की दिखाई दे रही थी।
चित्रा सुबह से लेकर शाम तक में लगभग आधा दर्जन मैसेज भेज चूकि है ।
अतः मुनू ने न चाहते हुए भी उसका मैसेज का प्रत्युत्तर देना नहीं भूला।
बस उसने सिर्फ इतना ही मैसेज में लिखा, "सॉरी!! मैं सुबह से व्यस्त था, अतः अभी मैसेज का जवाब दे रहा हूं। फिलहाल मैं अपने घरवालों के साथ यज्ञ में जा रहा हूं।"
फिर कुछ ही सेकेंडस में चित्रा ने भी मैसेज की रिप्लाई कर दी,
"ओके सर __हम भी वहीं पर मिलतें हैं। समस्त परिवार यज्ञ में ही उपस्थित हैं।"
मुनू ने चिंत्रा का मैसेज पढ़कर कोई भी जवाब नहीं दिया।
बस वह चुपचाप अपने कक्ष की ओर चलता बना।
कक्ष में अपने हर एक समान को वो बहुत ही सलीके से सजा कर रखते हुए आया था।
अब उसके लिए ये सब समान और कुछ किताबें जो कक्ष में मौजूद थे, उसका कोई विशेष महत्व नहीं दिखाई दे रहा था। फिर भी वह चाहता था कि उसकी हर एक वस्तु इसी प्रकार से यथावत उसके कक्ष में ही बना रहे।।
उसने आगे बढ़कर एक बड़ा सा लकड़ी की अलमारी को खोला।
और एक पुरानी एल्बम को निकाल कर देखने लगा।
उसमें उसकी कईं यादें बिखरे पड़े थे , जिसे खाली समय में वह देख लिया करता था।
ऊफ!!
यादें भी कुछ अजीब सी होती है न ?
किसी समय में जिन लोगों के कारण कभी मन को पीड़ा ही पीड़ा मिला था...
आज उनकी तस्वीर देखकर कुछ अजीब सी महसूस होने लगती है।
ये तस्वीर..??
ये तस्वीर...
हाई स्कूल के समय की है।
मुनू के साथ कई सहपाठी मैदान में खड़े हैं। पहली पंक्ति में गुरूजन बैंठे हैं। उसके बाद लड़कियों का एक दल बेंच लगाकर बैठी हुई है।
फिर उसके ठीक पीछे हम लड़के खड़े हैं।
ये देखो आराधना मेरे आगे बैठीं हुई है। कैसी लग रही है।
यह वही आराधना है न, जो आत्महत्या कर ली थी।
ट्यूशन जाते वक्त वो अक्सर गली में खड़ी रहती थी। मेरी ओर टकटकी लगाकर देखती , फिर कुछ ही मिनटों के बाद चली जाती।
परंतु जब स्कूल आती और मैं उससे बोलने की कोशिश करती तो मुंह फेरकर चलती बनती।
उस समय मेरे लिए लड़कियों की मनोवृत्ति समझ से परे की बात थी। मुझको नहीं पता था कि वो ऐसा क्यों किया करती है ?
लेकिन, एक दिन वह फांसी के फंदा लगाकर अपनी जीवन लीला को ही खत्म कर ली तब समझ में आया किसी लड़का से उसको अफेयर था।
और जब घर में परिवारवालों को पता चला तो उसने स्वयं को ही खत्म कर ली।
मासूम चेहरे के अंदर इतनी मुर्खता भी भरी होती है क्या..??
मुनू उस तस्वीर को देखने के उपरांत आगे बढ़ चला।
ये देखो...
ये तस्वीर कॉलेज के समय की नजर आ रही है ।
मुनू साइकिल लिए कॉलेज के मुख्य द्वार पर खड़ा है। वह इंटरमीडिएट के समय का तस्वीर है। दुबला - पतला काया के ऊपर सफेद रंग का पतलून और सिंदूरी रंग का टी-शर्ट में वह एक हाथ से साइकिल का हैंडल पकड़े हुए नजर आ रहा है।
उस तस्वीर को देखने के बाद यादों का सिलसिला फिर कहाँ रूकनेवाली थी।
एल्बम का हर एक पृष्ठ में अलग - अलग तस्वीरें सुशोभित होते हुए नजर आ रहे थे।
परंतु एकाएक मुनू की आँखें एक ऐसी तस्वीर पर जा अटकी जिसे देखकर मुनू का ह्रदय दुःख से भरा गया।
उस तस्वीर में एक लड़की मुस्कुराती हुई नजर आ रही थी।
वह मुनू के साथ एक बाइक के सामने खड़ी थी।
मुनू ने उस तस्वीर को देखने के कुछ क्षण के उपरांत एक ठंडी आह लेते हुए बोल पड़ा,
"राधिका!!"
यानिकी वो तस्वीर राधिका की थी।
मुनू एल्बम लिए हुए कुर्सी पर बैठ गया।।
और उसी के साथ उसके चेहरे पर घोर निराशा की छाया दिखाई देने लगी ।
उसका चेहरा बता रहा था कि उसके अंतर्मन में कोई पुरानी जख्म है, जिसे राधिका की तस्वीर ने कुरेदकर एक बार पुनः जिन्दा कर दिया था ।
ऐसे भी पास्ट से पीछा छूट पाना संभव नहीं होता। ये जिन्दगी हमेशा भूत और वर्तमान के बीच लटकती रहती है।
राधिका वो लड़की थी जो वास्तव में मुनू के कॉलेज में नहीं पढ़ाई करती थी। लेकिन कभी-कभी मुनू के साथ मुनू के कॉलेज में चली जाती थी ।
जिस दिन वो कॉलेज जाती, उस दिन मुनू क्लास नहीं कर पाता था।
ऐसे भी वो मुनू की शिष्या हुआ करती थी।
गर्लस कॉलेज की छात्रा थी, और दो साल जूनियर थी।
फिर भी मुनू को वो मन ही मन पसंद करती थी।
ऐसे भी बोला जाता है न, कब किससे प्रेम हो जाय कोई नहीं जानता। प्रेम में उम्र भी कोई मायने नहीं रखती ।
परंतु इस बात से दोनों बेखबर थे कि जिसे दोनों प्रेम समझ रहे थे वो किसी भी रूप में प्रेम था ही नहीं।
दोनों एक - दूसरे से प्रभावित होकर एक - दूसरे के नजदीक आते चले गयें थे।
राधिका के लिए एक तरह से मुनू नशा के समान हो गया था। खाते-पीते, सोते-जागते हर समय राधिका मुनू के ही बारे में सोचती रहती।
वह मुनू को हमेशा संग चाहती थी।
जब मुनू उसको पढ़ाने आया करता तो पढ़ाई कम और बातें ज्यादा करती।
जिससे मुनू को कभी - कभी गुस्सा आने लगता।
ऐसी बात नहीं थी कि मुनू राधिका के मनोभावों को समझ नहीं पाता था, परंतु वो चाहकर भी राधिका को कुछ ज्यादा बोल नहीं पाता। उसकी हरकतें पर सिर्फ मुस्कुराकर रह जाता।
एक दिन राधिका ने पढ़ाई करते-करते बोली, "आप बहुत अच्छे हैं।"
जिसपर मुनू बोल पड़ा, "मुझे पता है कि मैं अच्छा हूँ। चुपचाप अपना काम करो।"
"काम ही तो कर रहीं हूँ।"
-वो इतना बोलकर मुनू की ओर देखी...
और फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी।
सच में उसकी हँसी में मुनू के लिए एक जादू भरा संदेश के सिवा कुछ भी नहीं था।
