जख्म

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कहानी - तू ही तू

भाग-२

सौम्या के जाने के बाद हर्षकुमार अपनी पुरानी हवेली को अच्छी तरह से देखने के लिए, नजरें दौड़ने लगे।

हवेली अपनी वही पुरानी अंदाज में खड़ा - खड़ा जवानी की गाथा सुना रही थी। चारो ओर से पुराने हो चुके कॉटेदार तार से घेराबंदी किया हुआ हवेली, हर्षकुमार के लिए एकलौता वो पहचान था जो पुरखों की शान की कहानी कह रही थी।

कभी इस हवेली में, हर्षकुमार के पिताजी का बच्चपन गुजरा था। और आज वही हवेली बिरान पड़ी हुई है।

एक गहरी सॉस लेते हुए हर्षकुमार सोचने लगे -

"हमारी जिन्दगी भी गजब होती है। कब किस ओर पलटेगी कोई नही जानता। काश आने वाला कल को जानने के लिए कोई मशीन होता तो कितना अच्छा होता। साइंस कहॉ से कहॉ पहुंच गया लेकिन.... ।"

-"कोई है.... ? "

किसी महिला की आवाज सुन हर्षकुमार चौक कर बाहर की ओर चल पड़े। क्योंकि हवेली के बाहर से ही किसी अनजान महिला की आवाज़ आई थी।

-" कोई अंदर है ! "

-" क्या बात है चाची... ? "

-" तू हर्ष है बबुआ ? "

-" हॉ चाची ! मैं ही हर्ष हूँ। क्या बात है ?"

-" तोहार के लिए एक संदेशा है। बगल के गॉव से , एक छोरी ने भेजवाई है।"

-"कौन छोरी चाची, कैसी संदेशा... ?"

महिला की उम्र ढलान पर थी। उसने अपनी कपकपाती हाथों से एक कागज की पुरिया हर्षकुमार की ओर बढ़ाते हुए बोली-

-"इस फोनवा वाली दुनिया में भी चिठ्ठी - पाती चल रही है। एक हमार जमाना थी बबुआ की मन की बात को इजहार करे खातिर प्रेम पाती लिखने पड़ती थी। बाप रे वो भी देने में कई-कई मांह के टाइम लग जावत था। हिम्मत ही नही होवत की अपन वाला छोरा को प्रेमपाती दी। लेकिन आजकल की छोरी तो कमाल करती है। प्रेम के इजहार करने के लिए तो हजारों तरीकें अपना लेती है...। "

ही. ही... ही की हॅसी उस अधेड़ महिला की पोपला मुख से फूट पड़ी।

प्यार भी गजब होती है न ! जब भी याद आती है, आपको ह्रदय में एक गुदगुदी सी होने लगती है । पुरे शरीर में एक सिहरन सी होने लगती है। सच कहा जाय तो दिल के धड़कन अपने प्यार को याद कर या प्रेमी को देखकर जोर - जोर से लात मारने लगती है।

-"इस पाती में क्या लिखी है बबुआ... ?"

-"अभी नही पढ़ा हूँ चाची, देखता हूँ क्या लिखी है इस खत में.. ?"

महिला ने अपनी चेहरे पर सफेद मुस्कान लाती हुई बोली - "देख बबुआ, पाती का है का न है होकरा से कौनो लेना देना नही, लेकिन हमरी नाम ऐ सब ममला न आवेके चाही। काहें की बाबू हमारी गरीब की किस्मत बड़ी लचार चीज होवत है। कही। हमरी नाम आ गइल तो... ? "

-" डरो नही चाची ऐसा कुछ भी नही होगा ये मेरा वादा है।"

-"ठीक है तो अब मैं चलती हूँ, राम राम जी ! "

-" राम- राम चाची !"

महिला इतना बोल कर आंगे की रास्ता पर चल दी। एक ऐसी रास्ता जिसका पता तो सिर्फ वो महिला ही जानती थी। हर्षकुमार को अब अपनी जीवन की रास्ता तलाश करना था, जिसपर चलने के लिए वो शहर से अपनें गॉव आया था। वो रास्ता कभी कंटक से भरा होगा तो कभी आग की अंगार से।

हर्षकुमार हवेली के सामने खड़ा वट वृक्ष की ओर बढ़ चलें। हाथेली में दबा वो कागज की पुड़िया कोई सजीवनी से कम नही थी।

आगे बढ़कर वो कागज की पुड़िया, कपकपाती हाथों से खोलते हुए, चारों ओर चोर नजरों से अपने परिवेश को देख भी रहें थे। कही कोई मुझपर नजर तो नही रख रहा है।

जब दिल में चोर हो तो आप बङे सचेत हो जातें हैं। और जहाँ तक प्रेम संबंध की बात है तो उसकी बात ही नही पुछें। हम जीस समाज में रहतें आ रहें हैं न, उस समाज के लिए सबसे बड़ा अपराध है।

हर्षकुमार पत्र खोलते हुए, एक सरसरी नजर पत्र पर डालें। ह्रदय की गति अपनी उफान पर थी। आज पहली बार संध्या की हाथों से व्यक्त उस भावना को शब्दों में ढाला गया था, जिसको हर्षकुमार को कई दिनों से इंतजार था।

पत्र में संध्या लिखी थी -

"Dearest,

this letter is the first letter of my life. I want to meet you. I do not have the words to write my feelings. Away from the village this evening, near the old ruins. I will wait for you If you really love me then you will definitely meet at seven o'clock.....

Everything is fine here except that I miss you so badly. I love you.. You are the greatest thing that happened to my life.. ".

Your ever

Sandhya

पत्र पढ़ते ही हर्षकुमार को स्थिती देखने लायक थी। वो पागलों की भॉती कभी हॅस रहें थें तो कभी रो रहें थे। जीवन में हम कभी न कभी किसी को जरूर चाहते हैं। चाहना किसी को गलत बात नही है। गलत तो तब हो जाता है, जब आप अपनी ही चाहत को उस अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं, जहॉ से सिर्फ बर्बादी के सिवा आपको कुछ भी नही प्राप्त होता। क्या यह जरूरी है कि जिसे हम प्रेम करे या चाहें उसके जीवन से खेलना शुरू कर दें।

सुर्यास्त हो चुका है। हर्षकुमार का दिल में आज एक बैचनी सा है। ऎसी बात नही थी कि हर्षकुमार के जीवन में आज किसी लड़की का आगमन प्रथमबार हुआ हो। इससे पूर्व प्रियाशर्मा, हर्षकुमार के जीवन में आई और जीवन की रेखा ही बदल कर चली गई। जो भी आपको जीवन में आतें हैं, वो आपको प्रभावित करने की कोशिश जरूरत करते हैं। अगर आपको जीवन में अच्छी बदलाव हुआ तो समझ लीजिए, वो ईश्वर के द्वारा भेजा गया आपको जीवन के लिए एक फरिश्ता था, जो हवा के झोंके की तरह आपको जीवन में आते हैं और आपको सबकुछ बदलकर चले जाते हैं।

आज वो खंडहर जो वर्षों पूर्व एक आलिशान महल हुआ करता था। चारो ओर उच्ची - उच्ची दिवारें जो कभी महल की सुरक्षा की दृष्टि में रखते हुए बनायें गयें होगें, आज महल की सुरक्षा करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। चारदीवारी के बाद सिर्फ एक विरान सा खंडहर जो अतित और वर्तमान की गाथा गाती नजर आ रहे हैं।

हर्षकुमार को पहुंचते-पहुंचते रात्री की आगमन हो चली थी। वृक्ष से लपटी लता हवा की झोंके से रह-रह कर हील रहें है। मानो कह रही है, मैं तमाम उम्र इसी तरह तुमसे लिपटी रहुंगी।

हर्षकुमार आंगे बढ़ने ही वाले थे तभी मोबाइल फोन की घंटी बज उठी-

"हॅलो !"

-I am Somya... ।"

-" हॉ बोलो सौम्या, सब ठीक है न ? "

-" नही, आप कहॉ हैं ! "

सौम्या की आवाज में एक डर झलक रही थी।

-" आप हैं कहॉ ?"

-" पुरानी खंडहर के पास... ! "

-" मरना है क्या, वहॉ से भागने की कोशिश कीजिए आपकी जान की खतरा है.... ! "

-" क्या... ?"

बात पूरी भी नही हुई, उससे पहले किसी ने हर्षकुमार के माथे पर जोरदार वार किया। हर्षकुमार को संभलने का भी मौका नही दिया। हमला करने वाला ने।

हर्षकुमार के आँखों के सामने जुगनू उड़ने लगे। कभी एक स्टीक भी न पिटाने वाले हर्षकुमार का शरीर जोरदार प्रहार को सहने में असमर्थ था।

हर्षकुमार कुछ भी समझ पाते तभी दो-तीन प्रहार और हुआ। वो लड़खड़ाते हुए जमीन पर गीरें।

जिन्दगी भी गजब अबुझ पहेली है। हम दूसरों को तो हमेशा जीवन के रहस्य को समझाया करतें हैं, परंतु हम अपनी ही जीवन का रहस्य नही समझ पातें। हर्षकुमार बीना जॉच - पड़ताल कियें ही उस पत्र पर भरोसा कर लियें। कभी तो हमें किसी चीज़ की वास्तविकता को जॉच कर लेना चाहिए, वर्णा हमें उम्र भर पछताने के अलावा कुछ भी हासिल नही होती ।

जब हर्षकुमार को होस आया तब एक कम प्रकाश वाले बड़े सा कमरा में खुद को पाया। समाने कुर्सी पर बैठी संध्या मुस्कुराहट चहरे पर लाते हुए बोली,

-"मिस्टर प्रोफेसर कहो कैसी तबियत है, पता है तू कहॉ है।"

हर्षकुमार को कॉटों तो खुन नही वाली स्थिति थी। सामने सिर्फ संध्या ही नही थी बल्कि जय और प्रोफेसर पांडे भी थे। जय के हाथ में रिवाल्वर साफ दिखाई दें रहा था।

संध्या ने जय की ओर देखते हुए बोली, - "इसको खंभा में बांधों, हॉ लेकिन जरा संभल कर। मैं अपनी आशिक को इतनी आसानी से मरने नही दुंगी, क्यों मेरे मजनूं !"

प्रोफेसर पांडे और जय दोनो हर्षकुमार की ओर बढ़े। सामने आतें ही पांडे ने जोरदार लात जमाते हुए बोला, - "क्यों खुद को कृष्ण समझता था न। बहुत इमानदारी का पाठ तुने पढाया विद्यार्थियों को। बे ! ऐ दुनिया में तुम जैसे गदहों की वजह से हमलोग जैसे कमिने इंसान को जीना दुर्लभ होते जा रहा है। तू बड़ा दानविर कर्ण बनता है न। तुझें नाम कमाने का शौक लगा हुआ है न। आज बताता हूँ की दानविर कर्ण को भी शकुनी ने किस प्रकार ग्रसित किया था। "

जय ने ताली बजाते हुए बोलने लगा, -" क्यों गुरूदेव, आपको तो पता ही होगा, नही ! तो कोई बात नही। ओ हो ! पता तो होनी ही चाहिए आप जो इतने महान साहित्य के शिक्षक जो ठहरें। रही साहित्य तो उसको भी जैसी कई तैसी। आप तो भाई मनोविज्ञान भी जानते हैं। खैर छोड़िए... सिधे मैं मुद्दे पर आता हूँ, कर्ण का मौत अर्जुन ने नही पांचाली ने लिखी थी। पांचाली के मतलब जानतें हैं न, जिसके पॉच पति थे.... ।"

एक जबरदस्त हॅसी पुरे खंडरनूमा कमरें में ठहाके के साथ गुंज उठी।

संध्या, जय और पांडे की ओर एक कटिली मुस्कान बिखरते हुए बोली, -" तू नही जानता हर्षकुमार मैं कितनों की जिन्दगी तबाह किया अपने प्रेमजाल में फंसा कर और रही बात तेरी तो तेरे जैसे ऐरे गैरे नथू खैरे मेरे जीवन में हजारों आयेंगे और जायेंगे। और हॉ रही बात सौम्या की तो वह तो यूं ही बीना मारे मर जायेगी बेचारी, क्योंकि उसे सच्चे प्यार का पाने की भूत जो सवार है। तेरे मौत की सदमा वो बेचारी कैसे बर्दाश्त कर पायेगी। "

जय की ओर मुखातिब होते हुए सौम्या पुनः बोली. -" क्यों जय डार्लिंग मैने सत्य कहा न। "

पांडे बोल पड़ा, -" अब इसे खत्म कर दो संध्या, मैं अपने दुश्मनों को ज्यादा देर तक जिंदा रहने का मौका नही देतें। और हॉ मेरे काम करने के लिए तेरा इनाम बैंक के तेरी खाते में इंतजार कर रहा है। पॉच लाख...... ।"

बस फिर क्या था, जय के हाथ से रिवाल्वर लेकर संध्या ने एक कटिली मुस्कान बिखेरती हुई ताबड़तोड़ फायर झोंक दिया। पुरा खंडहर गोली की आवाज से एक बार फिर दहल उठा। रात्रि में जो पंछी खंडर में फैले झुरमुट में दिन भर के थका - मांदा आराम कर रहें थे वो भी गोली की आवाज़ सुन सन्नाटे में आ गयें। आज एक मनुष्य अपनी इमानदारी और भोले पन के कारण अपनी जिंदगी को मौत में बदल लिया था। क्या पता था हर्षकुमार को जिसे वो अपना सबकुछ मान बैठे थे, आज वही सब कुछ छीन लेगा।

रात्रि को आठ बजने वाली है। पुलिस की जीप सायरन बजाते हुए तेजी से खंडहर की ओर चली जा रही है। उस जीप पर सौम्या और सौम्या के माता-पिता भी बैठे हुए है।

आज सौम्या और हर्षकुमार को ऐसा जख्म मिला है, जो कभी नही भर पायेगा। आज संसार तो लगभग उजड़ सा ही गया है। सौम्या ठीक ही कहती थी, - "प्यार उससे कभी न करों जिसे तेरा दिल करता है।प्रेम हमेशा उससे करो जो तुझसे प्रेम करता है । नही तो एक दिन वही प्रेम तेरे लिए जहर बन जायेगी।"

आज संध्या हर्षकुमार के लिए जहर ही तो बनकर डसी। जिस डंस का कोई इलाज ही नही है।

जल्द ही आ रही इसकी तीसरा भाग -

"सौम्या"

नोट- आप " जख्म" कहनी पढ़ने से पहले, कहानी -" तूं ही तू " अवश्य पढें। सौम्या, संध्या. जय, पांडे और हर्षकुमार की अभी शेष कहानी बाकी है। जो अगले अंक में प्रकाशित होगी।


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