सौम्या (भाग-३)
सौम्या (भाग-३)
गाँव से दूर शहर के अस्पताल में रोगी से ज्यादा, भोगी की भीड़ लगी रहती है। यहां आने पर ज्ञात होता है कि संसार में सिर्फ मैं ही दुःखी नहीं हूं, हमारे जैसे बहुत से लोग हैं, जो संसार में दुःखी नजर आते हैं। प्रत्येक का अपना - अपना मर्ज है। सभी अपने -अपने दर्द में ही परेशान नजर आ रहे हैं।
आई. सी. यू. से बाहर निकाल कर हर्षकुमार को जेनरल वार्ड में लाया गया है। तीन माह का समय कैसे निकल गया, हर्षकुमार को पता भी नहीं चला। पता कैसे चल पाता! हर्षकुमार तो कई दिनों से जीवन और मौत से जुझ रहे थे। आज कहीं जा कर कुछ-कुछ चलने और बैठने लायेक हुये हैं।
सौम्या कई दिनों से हर्षकुमार के साथ रह रही है। न रात्री में ठीक से सो पाती है और नहीं दिन में आराम कर पाती है। सौम्या ही नहीं उसके माता-पिता भी रात-दिन हर्षकुमार को देखरेख में लगे हुए हैं। आज दुनिया के नजर में सौम्या और उसके परिवार भले पराया हैं, लेकिन अपनों से ज्यादा स्नेह और त्याग दिखा रहे हैं।
कई वर्ष पहले हर्षकुमार के पिता एक हादसे में गुजर गये और माँ विछिप्त अवस्था में मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती हैं। दुनिया में क्या हो रहा है क्या नहीं उस बेचारी को कुछ भी ज्ञात नहीं। बेटा को तीन गोली शरीर पर ज़ख्म बनाते हुए गुज़र गया। लेकिन भगवान की दया और सौम्या की सच्ची प्रेम भावना के कारण आज पूनः हर्षकुमार जीवित हैं। सच ही किसी ने कहा है - "जिसको राखे साईया उसे मार सके न कोय।"
-"सौम्या! सौम्या!"
-"जी!"
बेड के बगल में लगी हुई कुर्सी पर बैठी हुई सौम्या खड़ी होते हुए बोली।
-" जरा मुझे एक ग्लास पानी दो। आपकी मम्मी - पापा कहाँ हैं?"
-"जी दवा लाने के लिए दोनों साथ गये हैं।"
-"पैसा था?"
-"आप पैसों की चिंता न करें। भगवान की दया से आप जल्दी ठीक हो जायें बस।"
सौम्या सामने टेबल पर रखा हुआ मग से ग्लास में पानी डालते हुए बोली।
संसार भी गजब है न। हमारी रिश्ते भी गजब होते हैं। कैसे-कैसे रिश्ते बनते - बिगड़ते है। और बनते हैं। कुछ रिश्ते हमारे जन्म से बनते हैं और कुछ रिश्ते हम स्वयं तय करते हैं जो हमारी आवश्यकता को देखते हुए बनता है। लेकिन कुछ ऐसे भी रिश्ते होते हैं, जो न जन्म के कारण बनता है और नहीं अपनी आवश्यकता को देखते हुए बनता है, वो रिश्ता विश्वास और प्रेम के आधार पर खड़े किए जाते हैं। जो किसी भी रिश्ते - नाते से कहीं ज्यादा मजबूत होता है।
सौम्या की आँखों में एक वैसा ही प्रेम हर्षकुमार के लिए झलक रहा था। प्रेम में त्याग जरूरी होता है। अगर त्याग और तपस्या प्रेम में हो, सात्विक मनोवृत्ति के साथ किसी से प्रेम संबंध स्थापित किया जाए तो यह संसार का सर्वोत्तम संबंधों में गिना जाता है।
सौम्या इन सभी सिद्धांतों और आदर्शों पर खरी उतरते जा रही थी।
-"क्या अब भी संध्या को याद आती है?"
-"क्यों, क्या जो आपको ज़ख्म देते हैं वो याद नहीं आते। सौम्या! मानव जितना चाहे किसी को भूलना, वह उतना ही याद आता है। इतना आसान नहीं है किसी को भूल पाना। रही बात जहां तक संध्या कि तो उसने मुझसे नफरत की है, उसको तो मैं कभी नफरत की नज़रों से देख ही नहीं पाया। "
-" प्यार में कभी भी झूठ का सहारा नहीं लिया जाता, यह मैं नहीं आप ही का कथन है। लेकिन एक दिन आप बोल रहे थे, संध्या कितनी भी झुठी क्यों न हो, मैं उसे दिल से नहीं निकाल सकता। आप बता सकते हैं, वह कब क्या आपसे झूठ बोली है? "
-" छोड़ो उन बातों को! "
एक लम्बी साँस लेते हुए हर्षकुमार बोले।
-" नहीं! आपको बतलाना होगा। "
-" ओहो! छोड़ दो न, ये सब बात जानकर तू क्या करोगी। "
-" नहीं! मुझे जानना है। "
-" तुम भी संध्या की तरह जिद्दी हो। वो भी किसी भी बात पर मुझसे जिद्द करने लगती थी।"
मुस्कुराहट बिखेरते हुए हर्षकुमार बोले। ये कैसी मोहब्बत है एक तरफ माशुका जान ले ली और दूसरी तरफ आशिक उसके नाम लेकर ही मुस्कुराये जा रहा है। ये ही तो प्रेम है। जिन्दगी की अंतिम लम्हों तक याद किया जाता है। जो युनिक हुआ करते हैं। संसार में सब के लिए सब खास नहीं होते। और जो खास होते हैं न उनका दिया हुआ दर्द का कभी एहसास नहीं होते।
-"संध्या पहली बार झूठ बोली थी, जब मैनें पूछा था, संध्या फेसबुक चलाती हो क्या। तब उसने साफ इंकार कर दिया था। लेकिन जब मैं उसको एक दिन अपने ही मोबाइल फोन पर उसकी फेसबुक आई डी दिखा दिया। तब वो थोड़ी सी नरवस होते हुए बोली...।"
-"ये मैं नहीं बनाई हूँ। मेरे तस्वीर को कोई गलत तरीके से इस्तेमाल कर के बना दिया है। "
हर्षकुमार कुछ सोचने लगे। तभी सौम्या बोल पड़ी,
-" तब आपको सच्चाई कैसे पता चला! "
-" सच्चाई! "
एक दर्द भरे गहरी साँस लेते हुए हर्षकुमार बोले,
-" सौम्या, कभी भी सच्चाई नहीं छुप सकती। तुम सच्चाई को छुपाने का कितना भी कोशिश कर लो लेकिन वो सर चढ़ कर बोलती है। मैं पहले से ही जानता था कि संध्या फेसबुक चलाती है, क्योंकि उसको कई लड़कों से फ्रेंड्सिप रह चुकी है। और जीवन का यह नियम है अगर आप दोस्ती करते हो या प्रेम, तो एक से ही करना, अगर तुम्हारे जीवन में जहां एक से दो, दो से तीन हुआ नफरत चालू। और उसकी तो आदत रह चुकी है कभी भी न एक की वो हुई है, आज उसको तो कल किसी और को। उसी में एक लड़के ने आकर सच्चाई बता दी। मैं तो एक अंधे आशीक की तरह उसकी प्रत्येक बातों पर विश्वास करते जा रहा था। क्योंकि प्रेम का यह पहला पाठ है कि जिससे तू प्यार करते हो उसपर विश्वास होना जरूरी है। इसलिए मैं उसकी सारी बातों पर आँख मुंदकर विश्वास कर लेता था। "
-" और? "
-" छोड़ो उन बातों को, मेरा सर दुख रहा है। "
-" आप गुस्से में हैं। आप गुस्से में न आये, मैं तो यूं ही पूछ रही थी। लेकिन आप ये सब जानते हुए भी....! "
-" हाँ , मैं ये सब जानते हुए भी उससे प्रेम करता था, क्योंकि मैं उसमे सुधार चाहता था। उसने कई बार झूठ की सहारा ली है, लेकिन मैं ध्यान उसके झूठ पर नहीं, उसकी जिन्दगी संवारने पर दे रहा था। क्योंकि मुझे लगता था की उसका मुझ पर कर्ज है। ये मेरी प्रिया है जो दोबारा जन्म ली है। चलो साथ तो नहीं जी सकते लेकिन कुछ इसके लिए अच्छा तो कर ही सकते हैं न! "
क्रमशः अगले भाग में।
