anuradha chauhan

Abstract

5.0  

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दिखावटी संस्कार

दिखावटी संस्कार

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रामगढ़ी में रहने वाले जगमाल बहुत ही पुराने ख्यालों के इंसान थे।वह जब भी शहर अपने भाई के यहाँ आते तो भाई का पूरा परिवार डर से काँपता रहता था कहीं कोई गलती न हो जाए।

जितने दिन वह रहते पारंपरिक तरीके से घर में हर कार्य होता था।बच्चे भी डर-डर कर रहते ताऊजी नाराज़ हो गए तो आफत आ जाएगी।

पर बच्चों को ताऊजी की एक बात खटकती कि ताऊजी रोज़ मंदिर के लिए जाते हैं तीन घंटे बाद आते जैसे कोई फिल्म देखने जाते हो।

बच्चों का जासूसी दिमाग चला उन्होंने जगमाल का पीछा किया उनका शक सही था।

अरे बाबा यह हैं ताऊजी के दिखावटी संस्कार...घर पर हमारे टीवी देखने को संस्कार के खिलाफ बताते हैं खुद पिक्चर देख रहे हैं वाह ये ताऊजी संस्कारों के नाम पर हमें ही चूना लगा रहे.... वाह ताऊजी।

बच्चों ने मम्मी-पापा को बुला लिया फिल्म की टिकट निकाल ताऊजी के पीछे की पंक्ति में जा बैठे।

जैसे ही कोई अच्छा दृश्य आए बच्चे हीरो-हीरोइन की नकल करके ताऊजी को तंग करने लगे।

जगमाल ठीक से कुछ सुन नहीं पा रहे थे, उन्हें बच्चों की आवाजें सुनकर गुस्सा आने लगा था।

जैसे ही वो उन्हें डांटने के लिए पलटे भाई के पूरे परिवार को देखकर शर्म से पानी-पानी हो गए फिर बाहर निकलकर घर के लिए भागे ।

पीछे-पीछे बच्चे ताऊजी रुको....!ताऊजी रुको.…! पर ताऊजी कहाँ रुकते।

सबका हँस-हँसकर बुरा हाल था और ताऊजी बेचारे खिसियानी मुस्कान के साथ बोरिया-बिस्तर बाँधकर रामगढ़ी के लिए निकल पड़े।


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