समर्पण
समर्पण
बचपन में ही सुमी के सिर से माँ-बाप का साया उठ गया था। दादा-दादी ने मासूम सुमी की जिम्मेदारी अपने कँधो पर ले ली और सुमी देखरेख में बड़ी होने लगी।
बचपन से ही उसे संस्कारों की घुटी पिलाई जाने लगी और सुमी पढ़ाई हर काम सलीके से करती थी इसलिए दादा-दादी की बेहद लाड़ली थी।
हुंह यही एक नातिन है क्या इनकी? जब देखो तब सुमी सुमी मेरी निशा तो कहीं नहीं दिखती जैसे वो इनकी कुछ नहीं लगती सुमी की चाची अपनी गुस्सा चाचाजी पर उतार रही थीं।
तुम भी रेणुका!! अब क्या बोलूँ? रोज एक ही बात लेकर बैठ जाती हो कभी प्यार से उस बिन माँ की बच्ची से बात कर लिया करो प्रकाश पत्नी को समझाते हुए बोले। तुम तो उससे भूलकर भी प्यार से बोलती नहीं और चाहती हो माँ बाबूजी भी न बोले? मुझे तुम्हारी यही एक बात अच्छी नहीं लगती!
हम्म हम क्यों अच्छे लगेंगे? सारा कुछ कर दो भाईसाहब की लाडली के नाम! सुमी को उसकी चाची बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी शायद सुमी की खूबसूरती उनकी आंखों में खटकती थी।
इसके विपरीत सुमी जब भी समय मिलता चाची की मदद करने आ जाती थी चाची की बड़ी बेटी निशा सुमी की हमउम्र थी, पर चाची ने उसके मन में भी सुमी के लिए जहर भर रखा था यही कारण था वो भी सुमी से जलती थी।
निशा की आदत थी जो सुमी को मिले वही उसे भी चाहिए। उसने दादा जी को सुमी को पैसे देते देखा तो तुरंत माँ के पास भागी..माँ!!कहाँ हो?
क्या हुआ? क्यों चिल्ला कर घर सिर पर उठाई हो?
माँ! दादी माँ ने सुमी को नयी ड्रेस के लिए पाँच सौ रुपए दिए मुझे भी चाहिए!
अभी पिछले महीने तो तूने नए कपड़े खरीदे थे फिर क्यों नए चाहिए ? यह माँ बाबूजी जानबूझकर मेरी बेटी के साथ सौतेले व्यवहार करते हैं तू रुक मैं बात करती हूँ!
बाबूजी इस घर में मेरे भी बच्चे रहते हैं पर शायद आपको दिखाई नहीं देते?
क्या हुआ बहू..? दीनानाथ बोले।
क्यों अनजान बनते हो बाबूजी! इस घर में और भी बच्चे हैं उनके बारे में भी सोच लिया कीजिए। सुमी को किस बात के पैसे दिए हैं आपने..?
बहू मैंने सुमी के लिए लड़का देखा है और वो लोग एक दो दिन में उसे देखने आने वाले हैं, पुराने कपड़े पहनेगी तो लड़के वाले क्या कहेंगे? सुमन की शादी उसके दादाजी ने अपने मित्र के पोते से तय कर दी।
लो कर लो बात, इतना कांड रच लिया और मुझे जानकारी ही नहीं..क्यों माँजी?
प्रकाश ने कहा वो तुम्हें बता देगा..! क्या उसने नहीं बताया तुम्हें? हमें लगा तुम्हें सारी जानकारी होगी।
हुँह...सब समझ आ रहा है मुझे! मेरे खिलाफ हमेशा ही षड़यंत्र रचे जाते हैं रेणुका बड़बड़ाते हुए चली गई।
दो दिन बाद सुरेंद्र कुमार अपने बेटे-बहू और पोते आकाश के साथ सुमी को देखने आ गए। दीनानाथ जी घर में कोई कलह नहीं चाहते थे तो खाने-पीने की व्यवस्था करने के लिए हलवाई बुला लिया था। यह देख रेणुका बहुत खुश हो गई और अच्छी होने का दिखावा करती रही।
आपकी पोती तो हमें पसंद आ गई दीना! अब फैसला मेरे बच्चों के हाथ में है! सुमी के चेहरे पर शर्म की लाली छा गई।
आकाश के माता-पिता बोले, सुमी हमें भी पसंद हैं अंकल जी बच्चों को अकेले बात कर लेने देते हैं वो एक-दूसरे के बारे में क्या सोचते हैं?
दोनों को अंदर कमरे में भेज दिया जाता है। थोड़ी देर में ही आकाश वापस आ गया और माँ के कान में धीरे से कुछ कहकर चुप बैठ गया।
सुरेंद्र क्या बात है? आकाश क्या तुम्हें सुमी पसंद नहीं..?
आकाश की सुरभि बोली, नहीं-नहीं अंकल जी! हमें यह रिश्ता मंजूर है! सुरभि मुस्कुराते हुए बोली सुमी बेटा आप क्या चाहती हो..? सुमी को भी आकाश पसंद आया वो हाँ कर देती है।
दोनों में फोन पर बातचीत शुरू हो गई थी।सुमी मन ही मन वो आकाश को चाहने लगी थी। आकाश भी सुमन से बहुत प्यार करने लगा था।
सुमी के लिए इतना सुंदर घर और वर देखकर सुमी की ख़ुशियाँ चाची और निशा को अखरने लगी।चाची अब इस कोशिश में थी काश..! सुमी की जगह निशा आकाश की शादी हो जाए।
सगाई की तैयारी शुरू हो गई थी। आकाश शॉपिंग के लिए सुमी को साथ ले जाना चाहता था पर चाची ने जबरन निशा को साथ भेजा ताकि वो मिल न पाएं।
बहू तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है? आकाश और सुमी के साथ निशा का जाना जरूरी था क्या.?
हाँ जरूरी था माँजी दोनों जवान हैं, कुछ ऊँच नीच हो गई तो उसका भुगतान तो मुझे और मेरी बेटियों को करना पड़ेगा।आप लोगों की ज़िंदगी कितने दिन की है।
दीनानाथ और कामिनी चुप बैठ गए। रेणुका को जल्दी समझ आ गया कि आकाश की माँ सुरभि की आकाश की शादी को लेकर आकांक्षाएं तो बहुत हैं पर ससुर की बात का मान तो रखना ही था। यह सोचकर वो शादी के लिए राजी हो गई थी।
रेणुका को मौका मिल गया आकाश की मां के लालच को परख उन्होंने अपना दाँव खेल दिया कि अगर निशा और आकाश की शादी होती है तो मनचाहा दहेज देंगी, शादी के ठीक दो दिन पहले सुरभि ने आकर नई माँगें सामने रख दी।
यह क्या कह रही हो बेटा..? सुरेंद्र से मैं बात करता हूँ उसे तो सब पता है फिर यह अचानक?
पिताजी क्या करेंगे..? आकाश मेरा बेटा है! मेरे भी कुछ सपने हैं.? आपको मंजूर हो तो ठीक है नहीं तो! अभी दो दिन हैं आप सोच लीजिए!
सुरभि की माँगो को पूरा करने में दादाजी सक्षम नहीं थे वो हताशा से सुरभि को जाता देखते रहे। सुमी से दादा-दादी की लाचारी देखी न गई वो शादी के लिए मना कर देती है।
सुरभि यह मैं क्या सुन रहा हूँ? तुम दीना अंकल को दहेज की लंबी-चौडी लिस्ट थमा आईं वो भी विवाह से दो दिन पहले.. तुम पागल तो नहीं हो..?
क्यों इसमें गलत क्या है..?आकाश मेरा भी बेटा है, मेरे भी कुछ अरमान है,और यह मेरा हक है।आपको नहीं पसंद तो फिर मेरी जिद सुन लीजिए अगर यह सब लिए बिना सुमी यहाँ आई तो मैं घर छोड़कर चली जाऊँगी।
माँ की ज़िद सुनकर आकाश भी ज़िद पर अड़ गया। फिर मेरी भी ज़िद है कि मेरी जीवन संगिनी सुमी बनेगी नहीं तो मैं जीवन भर शादी नहीं करूँगा माँ..!यह आप भी सुन लो ? मुझे सोने की गुड़िया नहीं चाहिए।
सुमी ने आकाश का फोन
रिसीव करना बंद कर दिया। रेणुका ने सुरभि से आकाश और निशा के रिश्ते को आगे बढ़ाने का प्रलोभन दे दिया जिसे सुरभि ने स्वीकार कर लिया। घर में निशा की शादी की तैयारियाँ होने लगी।
सुमी की बेचैनी देखकर दादा-दादी की आँखों से आँसू बहने लगे। कामिनी क्या सोचा था और क्या हो गया..? मेरी फूल सी बच्ची के जीवन में इतना दर्द क्यों लिख दिया भगवान..?
सच्चा प्यार त्याग और समर्पण चाहता है। सुमी ने सबकी ख़ुशी को ध्यान में रखते हुए सारा दर्द दिल में छुपा लिया पर आकाश ने विद्रोह करते हुए शादी के लिए मना कर दिया।
प्रकाश भी मन ही मन चाहते थे कि कैसे भी सुमी का घर बस जाए। उन्होंने रेणुका को भ्रम में रखते हुए सुरेंद्रकुमार और उनके बेटे सुरेश से सुमी और आकाश के रिश्ते को आगे बढ़ाने की फरियाद करने लगे।
देखिए मैं जानता हूँ सुरभि भाभी के मन में दहेज का विष रेणुका ने ही भरा है पर कलह-क्लेश के कारण चुप रह गया। मैं सुमी को जानता हूँ वो घुट-घुटकर मर जाएगी पर अपना दर्द किसी को नहीं दिखाएगी।
वो निशा की शादी की तैयारी करती है तो करती रहे पर सुमी के प्रति मेरी भी कुछ जिम्मेदारी है। आप बस सुरभि भाभी को मना लीजिए मुझसे जो बन पड़ेगा वो खुशी से देने को तैयार हूँ।
तभी बातचीत के बीच मैं आकाश आ गया। अंकल आप बेफिक्र होकर जाइए, मेरी शादी सिर्फ और सिर्फ सुमी से ही होगी। आकाश की बात सुनकर प्रकाश वहाँ से संतुष्ट होकर चले गए।
सुरभि शादी की शॉपिंग करके लौटी तो देखा कमरे में बैग पैक रखे हुए थे। यह सब क्या है..?
मैं वापस यूएस जा रहा हूँ माँ!
क्या..?कल तेरी शादी है और तू यूएस जा रहा है, तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया..? और आप सभी चुप बैठे तमाशा देख रहे हो.? सुरभि गुस्से में बोली
माँ..माँ एक मिनट..! शाँत हो पहले फिर मेरी बात सुनो..!
मुझे कुछ नहीं सुनना, तू कहीं नहीं जा रहा है, यह सारा सामान अंदर रखो..?
ठीक है मत सुनिए! आपसे कुछ कहने का कुछ फायदा नहीं।आपने तो बेटे के लिए एक जिद्दी,घमंडी, बदतमीज लड़की का चुनाव कर लिया! आपने माँ होने का कर्त्तव्य निभा दिया। अब जरा मेरी बात का जवाब दीजिए। निशा की माँ ने अपने स्वार्थ के लिए अपनी भतीजी की ख़ुशियों की बलि चढ़ा दी, आपको क्या लगता है उनकी बेटी आपके घर को ख़ुशियों से भरेगी..? जवाब दीजिए माँ?
सुमी ने अपने घर की सुख-शांति के लिए कितना बड़ा त्याग कर दिया वो नहीं दिखाई दिया। सबकी ख़ुशियों को ध्यान में रखते हुए चुपचाप हालात के आगे समर्पण कर दिया। अब बताइए दया ममता से भरी हुई लड़की आपके घर को ख़ुशियों से भरेगी या स्वार्थ में डूबी लड़की..? फिर भी अगर आप सही हैं तो मैं आपकी खुशी के लिए अपनी ज़िंदगी दाँव पर नहीं लगा सकता।
बहू बुरा मत मानना, पर कल जब तुम्हारे सामने आकाश की ज़िंदगी कलह-क्लेश से भरी होगी तो क्या तुम खुश रह पाओगी..? नहीं ना..?अब भी समय है, मान जाओ और सुमी को स्वीकार कर लो।
आकाश की बातें सुनकर सुरभि को समझ आ गई कि वो लालच में अंधी होकर कितना गलत करने जा रही थी।जो लड़की बहन का हक छीन कर खुश होती हैं वो मेरा घर क्या संभालेगी.?
मुझे माफ़ कर दीजिए बाबूजी पर अब..?
अब क्या बहू..?
मैं रेणुका जी को मना कैसे करूँ..? सुरभि बोली।
तुम हाँ कर दो बाकी प्रकाश जी देख लेंगे..!बस पहले से किसी से कोई बात नहीं करना सुरेश ने कहा तो सुरभि ने गर्दन हिलाकर स्वीकृति दे दी।
नियत समय पर बारात द्वार पर पहुँच गई थी।बारात की आवाज़ सुनकर सुमी भागकर अपने कमरे में चली गई और रोने लगी। सामने की मेज पर रखा शादी का जोड़ा उसे मुँह चिढ़ा रहा था।
सुमी..!प्रकाश की आवाज़ सुनकर सुमी ने जल्दी से आँसू पोंछ लिए।
जी चाचाजी..!अभी आई सुमी उठकर बाहर निकल रही थी कि चाचा कमरे में आ गए। तू तैयार नहीं हुई अभी तक..? साथ मैं आई लड़कियों से, सुनो जल्दी से इसे तैयार करके नीचे लेकर आओ और यह रखा है शादी का जोड़ा!
पर चाचाजी..?
तू चिंता मत कर सुमी, तेरी चाची को अच्छे से समझा दिया है। अब सब ठीक है चल जल्दी से तैयार हो जा, आकाश इंतजार कर रहा है प्रकाश मुस्कुराते हुए बोले तो सुमी शर्मा गई। प्रकाश मुस्कुराते हुए चले गए।
सुमी और आकाश की शादी हो गई और सुमी विदा हो गई। दीनानाथ और कामिनी सुमी का घर बस जाने से बहुत खुश थे।
माँ आप कुछ बोलीं क्यों नहीं..? निशा माँ से झगड़ा कर रही थी। इतनी बड़ी साज़िश, जैसे मैं सौतेली बेटी हूँ? माँ कुछ बोलो तो..?
क्या बोलूँ..? तेरे पिता ने तलाक के पेपर सामने रख दिए थे। मैं अनपढ़ इस उम्र में अलग होकर कैसे गुजर-बसर करूँगी..?लोग हँसेंगे, थूँकेंगे मुझ पर कि अपने स्वार्थ के लिए अपनी भतीजी के साथ-साथ अपना घर बर्बाद कर लिया। तेरे लिए अपना घर तो नहीं उजाड़ सकती थी।
तलाक के पेपर..? कहाँ हैं जरा मैं भी देखूँ..? निशा पेपर माँगकर देखती है तो चौंक गई और सिर पकड़कर बैठ गई। माँ पापा ने तुझे पागल बनाकर सुमी की शादी करवा दी! यह तो एफडी के पेपर हैं जो दादाजी ने सुमी के लिए तुड़वाई थी।
तो तुम्हें क्या लगा मैं सही मैं तलाक दे सकता हूँ ? प्रकाश अंदर आते हुए बोले, मैं तुम लोगों जैसा स्वार्थी नहीं हूँ जो अपनी खुशी के लिए किसी ख़ुशियाँ छीन लूँ। रेणुका तुम्हारे कारण मैं कभी उस बच्ची को गोद में उठाकर प्यार नहीं कर पाया क्योंकि मैं ऐसा करता तो तुम कलह करती और उसके साथ-साथ माँ बाबूजी का जीना मुश्किल कर देतीं।
स्वार्थ कभी भी ख़ुशियाँ नहीं देता रेणुका..! खुशी पाने के लिए लिए त्याग और समर्पण भी चाहिए।यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आई पर सुरभि भाभी को समझ आ गई और उन्होंने भी सुमी को बहू बनाने का फ़ैसला कर लिया। अब जरा तुम भी कुछ अच्छे संस्कार निशा को देना शुरू कर दो तो बेहतर होगा।
तुम्हारी खुशी के लिए ही मैं सुमी से दूर भागता रहा पर फिर भी तुम उसकी ज़िंदगी में जहर ही घोलती रहीं। अब सुधर जाओ या कलह मचाओ कुछ भी करो ,सुमी का घर बस गया अब मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता प्रकाश जाकर माँ बाबूजी के पास बैठ गए।