anuradha chauhan

Horror

4.6  

anuradha chauhan

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शापित कैनवास

शापित कैनवास

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अभी महीना भर ही हुआ था रतन और जानकी की शादी को!नयी शादीशुदा जिंदगी को न जाने किसकी नज़र लगी कि सबकुछ तहस-नहस हो गया था।

शादी के बाद रतन और जानकी हनीमून के लिए हिल स्टेशन गए थे।लौटते समय उनकी गाड़ी रामगढ़ पहुँचने से पहले ही बंद पड़ जाती है।

"क्या हुआ रतन?गाड़ी क्यों रोक दी"

"रोकी नहीं, बंद हो गई है! रुको देखता हूँ!"

रतन गाड़ी को ठीक करने की कोशिश करता है पर उसे समझ नहीं आया क्या हुआ है।सुनसान सड़क घनघोर अँधेरे में अजीब-अजीब आवाजें सुनकर जानकी अकेली डर रही थी तो बाहर निकलकर रतन के पास खड़ी हो गई।

"क्या हुआ है कुछ पता चला?"

"नहीं यार यहाँ सब ठीक है। इंजन भी गरम नहीं है, पेट्रोल टैंक तो फुल भराकर चले थे। फिर भी पता नहीं क्यों रुक गई?चलो फोन करके दूसरी गाड़ी मंगा लेते हैं।"


रामगढ़ एक छोटा-सा शहर,जहाँ से दूसरे शहरों में जाने के लिए जंगल में बने रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है।इस जंगल को लेकर रामगढ़ और आसपास के शहरों में कई रहस्यमय बातें प्रचलित थी।रतन जब भी बाहर घूमने जाता तो अक्सर घरवालों की बात अनसुनी कर शाम को ही लौटकर आता था।इस बात से रतन के पिताजी बहुत नाराज़ रहते थे।रतन तुम्हें हमेशा मना करते हैं,शाम होने के बाद जंगल से मत गुजरा करो! तुम बड़ों की बात क्यों नहीं सुनते?"

"आप भी पिताजी! जंगल के रास्ते में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे डरा जाए। मुझे कुछ हुआ?आप भी बस अफवाहों को सच समझकर बैठे हुए हैं।"रतन पिता की बात हँसकर टाल गया।पर आज अचानक घने जंगल के बीच गाड़ी बंद पड़ने से रतन भी थोड़ा सहम गया था।कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था।

तेज हवाओं के साथ अजीब सी आवाजें उसे भी डरा रही थी। रतन जानकी के सामने सामान्य रहने की कोशिश करने लगा।

"रतन अब क्या करेंगे? मैंने कहा था सुबह चलेंगे, पर तुमने मेरी बात नहीं सुनी।माँ-बाबूजी ने भी रात को आने से मना किया था।बाहर कितना अँधेरा है, मुझे बहुत डर लग रहा है।"

"अरे यार थोड़ी शांति रखो! एक तो फोन नहीं लग रहा ऊपर से तुम दिमाग खराब कर रही हो रतन झुँझला कर बोला!मैं यहाँ नया नहीं हूँ? अकसर इसी समय शहर से लौटता हूँ!"


चमगादड़ के चीखने की आवाजें जानकी को डरा रहीं थीं। ऐसा रतन ने कभी नहीं देखा था।आज तो कुछ अजीब सा रतन भी महसूस कर रहा था। "पता नहीं..पर आज जैसा महसूस कर रहा हूँ पहले कभी नहीं किया था।"

"जानकी सुनो! हम दोनों के मोबाइल के नेटवर्क गायब हैं। रामगढ़ ज्यादा दूर नहीं है, एक घंटे में पहुँच जाएंगे।आओ पैदल चलते हैं।"

"नहीं-नहीं रतन मुझे बहुत डर लग रहा है,हम यहीं रुकते हैं गाड़ी के अंदर, बाहर कोई जंगली जानवर या साँप आ गया तो?"

"तुम भी ना जानकी!रात गाड़ी में वो भी इस ठंड में? अच्छा ठीक है।"डरा हुआ तो रतन भी था,रतन गाड़ी में ही रुकने को मजबूर हो जाता है। जानकी ने कसकर रतन को पकड़ रखा था।


तभी दूर अंधेरे में उन्हें एक लंबे कद का साया अपनी तरफ ही आता दिखाई देता है, उसके हाथ में टार्च भी थी।


"जानकी वो देखो! लगता है कोई इस तरफ ही आ रहा है। उसके पास बड़ी टार्च भी है।हम उससे मदद लेकर उसके साथ निकल चलते हैं,देखो अब मना मत करना! वरना सारी रात यहीं गाड़ी में बितानी पड़ेगी।"साया गाड़ी के एकदम पास आकर रुक गया। रतन मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में उसे देखता है।वह एक युवक था जिसे देख रतन गाड़ी के काँच खोल उससे बात करने लगा।


"सुनो हमारी गाड़ी बंद पड़ गई है। हमें रामगढ़ जाना है और हमारे मोबाइल में बैटरी बहुत कम है घर पर कॉल भी नहीं लग रहे हैं। क्या आप हमारे साथ रामगढ़ तक चलेंगे?वो क्या है मेरी पत्नी को अँधेरे से डर लगता है।

"अरे भैया रामगढ़ जाते-जाते तो सुबह हो जाएगी! अभी तो आपको बहुत लंबा रास्ता तय करना बाकी है।"आप मेरे यहाँ चलो, यहीं पास में मेरी कोठी है।वहाँ से मैकेनिक को फोन कर देंगे।

"तुम्हारे घर?नहीं भाई ,हम आपको नहीं जानते फिर आपके घर, नहीं फिर हम गाड़ी में ही ठीक हैं। आपके पास बड़ी टार्च देखकर मदद मांगी थी।

वैसे जैसा आप कह रहे हो कि रामगढ़ दूर है तो आपको बता दूँ, मैं वहीं का रहने वाला हूँ,गाड़ी से सिर्फ पंद्रह मिनट लगेंगे।वैसे भी मेरी जानकारी में यहाँ इस घने जंगल में कोई घर नहीं है।"


"ठीक है जैसी आपकी मर्जी! मुझे क्या! मैं तो बढ़ती ठंड देखकर बोला। फिर भी अगर आपका मन हो जाए तो वो उस तरफ मेरा घर है मैं इंतजार करूँगा वो साया जानकी की आँखों में झाँकते हुए बोला।"

"आपकी जानकारी के लिए, मैंने यह घर अभी कुछ दिन पहले ही बनवाया है। इसलिए आपको या और किसी को इसके बारे में कुछ पता नहीं है।"

पता नहीं उसकी आँखों में क्या मोहिनी थी,जानकी को उसकी बात सच्ची लग रही थी।


रतन सुनो! चलो ना चलते हैं यहाँ रुकने से भी क्या लाभ, रामगढ़ तो सुबह ही जा सकते हैं। फिर वो कह रहा है कि उसने यहाँ नया घर बनवाया है,तो हो सकता है इसलिए आपको जानकारी नहीं होगी।

"जानकी तुम्हें यहाँ के रास्ते के बारे में कुछ नहीं पता! चलो हम पैदल चलते हैं,घर ज्यादा दूर नहीं है।वो झूठ बोल कर हमें कहीं ओर ले जाना चाहता है। अगर पैदल नहीं चलना तो चुपचाप गाड़ी में ही बैठी रहो।"


थोड़ी देर में हवाएं और तेज-तेज चलने लगी। जनवरी का महीना था। जिससे ठंड और बढ़ने लगी थी। जानकी बुरी तरह काँप रही थी।रतन को भी लगने लगा अगर थोड़ी देर और गाड़ी में रहे तो खून जमने लगेगा।

"जानकी तुम्हारी तो हालत बिगड़ रही है चलो उस तरफ ही चलते जिधर वो साया गया है।रात उसके घर पर बिताएंगे, अब हमारे पास दूसरा कोई चारा नहीं है।"दोनों उस और चल दिए जहाँ साए ने अपना घर बताया था।कुछ दूर जाने पर उन्हें लाइट्स दिखाई देने लगी। जानकी हम पहुँच गए,सच ही कहा था उसने।यह घर तो बिल्कुल नया दिखाई दे रहा है।


रतन ने घंटी बजाने के लिए हाथ उठाया ही थी कि कर्रर्रर्र की ध्वनि के साथ दरवाजा खुल जाता है।यह देख रतन और जानकी डरकर पीछे हट गए।

"रतन यह दरवाजा अपने-आप कैसे"? जानकी कसकर रतन को पकड़ लेती है। कुछ तो गड़बड़ है? चलो हम वापस चलते हैं।

तभी उन्हें साए का स्वर सुनाई दिया।डरो नहीं मैंने तुम्हारे पैरों की आहट सुन ली थी‌।इसलिए दरवाजे की कुंडी खोलकर छोड़ दिया था, शायद हवा ने पीछे ढकेल दिया।घर में प्रवेश करते ही ठंड से बेहाल जानकी की जान में जान आई।घर के अंदर बिना हीटर बहुत गर्माहट थी। ठंड से काँपते रतन को भी अब अच्छा लगने लगा। घर काफी बड़ा था और सामने दीवार पर एक पेंटिंग लगी थीं।जो कि अधूरी पड़ी थी।


"आपका घर बहुत सुंदर है।आपका नाम क्या है?आप बुरा नहीं मानो तो आपसे एक बात पूछ सकती हूँ?"जानकी ने पूछा।यह अधूरी पेंटिंग?"

"सिद्धार्थ! मेरा नाम सिद्धार्थ है।काफी समय पहले मैं यहाँ पास के टीले पर अपनी दोस्त की पेंटिंग बना रहा था कि अचानक कुछ लोग वहाँ आ गए मेरा कैनवस भी उठा ले गए और मेरी शोभना को भी ले गए।

"मैं तब से यहाँ शोभना को ढूँढ रहा हूँ, और उन लोगों को भी जो मेरा कैनवस ले गए।यह पेंटिंग मैं उसी कैनवस पर पूरी करूँगा। अच्छा अब आप लोग सो जाइए,रात काफ़ी हो चुकी है।


अभी नींद हावी ही हुई थी कि जानकी को लगा कोई उसे पुकार रहा है।रतन उठो रतन!! डरी-सहमी जानकी रतन को जगाने लगी।रतन यहाँ कोई है!उठो न रतन मुझे डर लग रहा है!जानकी आँखें खोलती तो आवाज सुनाई देना बंद हो जाती।आँख बंद करते ही कोई उसे पुकारने लगता।

"क्या है जानकी? प्लीज सोने दो न यार!" रतन ने खींचकर जानकी को अपने करीब लिटा लिया और खुद नींद के आगोश में समा गया।


जानकी फिर सोने की कोशिश करने लगी।उसे फिर वही आवाज सुनाई दी। जानकी भी सुनने की कोशिश करने लगी कि आखिर ये आवाज़ किसकी है।

जानकी के कानों में कोई फुसफुसाते हुए कुछ कह रहा था। जानकी मुझे वो कैनवास लाकर दो,वो तुम ही ला सकती तुम्हारे घर के पीछे मंदिर के तहखाने में है। मेरी बातों पर यकीन करो।


जानकी घबराकर उठ गई। कैनवस, शोभना, सिद्धार्थ और यह सपना कहीं जुड़े हुए तो नहीं? तभी दरवाजे पर कोई दस्तक देने लगा।


"रतन उठो रतन कोई है बाहर, दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। रतन भी उठ जाता है।दस्तक रह-रहकर हो रही थी।"मैं देखता हूँ,डरो मत।"


दरवाजे पर सिद्धार्थ था।"माफ़ कीजिए आपको डिस्टर्ब किया। दरअसल मुझे अभी अर्जेंट बाहर जाना है, सोचा अपनी गाड़ी में आप लोगों को घर भेजकर निकल जाऊँ।घर ताला लगाकर बंद करना होगा।


"हम्म अच्छी बात है,आपके पास गाड़ी थी तो हमें पहले ही भेज देते, हमारी वजह आपको भी तकलीफ़ हो गई। दोनों सिद्धार्थ की गाड़ी में बैठकर रामगढ़ के लिए निकल गए।

सिद्धार्थ कार के मिरर से जानकी की आँखो में झाँककर उसे कैनवास बाहर निकालने के लिए उसे सम्मोहित कर रहा था।

वो पता कहाँ-कहाँ से गाड़ी घुमाकर रामगढ़ ले जा रहा था।"यह रास्ता?यह कौन-सा रास्ता है सिद्धार्थ? मैंने पहले कभी नहीं देखा रतन ने पूछा "

"उस रास्ते पर बड़ा सा पेड़ गिर गया है। इसलिए इस रास्ते से ले जा रहा हूँ,बस हम आ गए,वो रही रामगढ़ की सीमा। रामगढ़ के बाहर गाड़ी रोकते हुए उसने कहा।

अब आप लोग यहाँ से पैदल चले जाइए, मुझे भी सुबह होने से पहले सोमनगर पहुँचना है। दोनों को रामगढ़ की सीमा पर छोड़कर कुछ ही देर में धूल उड़ाती गाड़ी आँखों से ओझल हो गई।

"बड़ा ही अजीब इंसान है,गाड़ी थी तो पहले ही हमें यहाँ छोड़ देता।यूँ पूरी रात तो बेकार न होती"रतन बोला। दोनों कुछ कदम चले थे कि मुर्गे की बाँग सुनाई देने लगी।

"लो सुबह भी हो गई"।घर पर पहुँचते ही सवालों की झड़ी लग गई। गिरधारी लाल तो बड़े आगबबूला होने लगे। एक फोन नहीं कर सकते थे?हम आ जाते,रात में निकले ही क्यों?"

"पिताजी गाड़ी खराब हो गई थी ऐसे में हम लोग क्या करते?वो तो एक भला इंसान मिल गया। हमें अपने घर ले गया और अभी थोड़ी देर पहले ही रामगढ़ की सीमा पर छोड़कर चला गया।"

"घर जंगल में? वहाँ कोई घर नहीं है, रतन की माँ पार्वती आश्चर्य से बोली

" पता नहीं तुम दोनों किस घर की बात कर रहे हो? चलो हमें दिखाओ। रुको! हरिओम तुम जगत पंडित को लेकर साथ चलो। गिरधारी लाल गुस्से में बोले।

रतन सबको साथ लेकर वहाँ पहुँच गया जहाँ गाड़ी खड़ी थी।"पिताजी वो उस तरफ घर है उसका बस कुछ बीस-पच्चीस कदम की दूरी पर।"

"चलो देखते हैं"गिरधारी लाल बोले। जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, उन्हें सिर्फ झाड़-झंखाड़ ही दिखाई दे रहे थे।

एक टीले पर पहुँचकर रतन बोला,"पिताजी हम यहाँ तक ही आए थे हमें अच्छे से याद है।पर घर दिखाई नहीं दे रहा। यहीं तो था, कहाँ चला गया!"

"यह तो वही जगह है ठाकुर साहब!जहाँ वो चित्रकार जादुई कैनवस पर गाँव की भोली-भाली लड़कियों को देख उनकी पेंटिंग बनाता, बाद में वो लड़की घर से गायब हो जाती।आपके पिताजी ने उस चित्रकार से उस शापित कैनवस को छीनकर मंदिर के तहखाने में रखवा दिया था और उस चित्रकार को मारकर यहाँ दफना दिया था।"


"वो भी कुछ ऐसा ही कह तो रहा था कुछ अधूरी पेंटिंग और कैनवस को जाने की बात।"सब गाड़ी के पास वापस आते हैं। रतन गाड़ी चालू करने की कोशिश करता है और गाड़ी एक बार में स्टार्ट भी हो जाती है।


"लो यह तो ऐसे चालू हो गई जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। रतन बोला"तभी गिरधारी लाल का मोबाइल बजने लगता है।

"क्या..? तुम सब मर गए थे क्या.? चलो सब जल्दी, बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है। गिरधारी लाल गुस्से से लाल पीले हो रहे थे।

उधर जानकी मंदिर पूजा करने गई तो उसके कानों में वही आवाज गूँजने लगी थी।सपने की बात याद आते ही मंदिर के नीचे बने तहखाने को देखने चली गई।जरा देखूँ तो कैनवस वाली बात कितनी सच हैकैनवास मंदिर के तहखाने में अभिमंत्रित धागों से बंधा हुआ रखा था। जानकी उसे साफ कर घर ले आई


"यह देख पार्वती ने कोहराम मचा दिया,हाय राम यह क्या अपशगुन कर दिया बहू?यह शापित कैनवास है इसे रतन के परदादा ने तहखाने में अभिमंत्रित करके रखा था।जाओ जल्दी इसे वहीं रख आओ।"


"कैनवास भी कभी शापित होते हैं माँजी?आप अंधविश्वास भरी बातें कर रही हैं।यह देखिए कितना सुंदर है और सालों पुराना होने के बाद भी चमक रहा है।

जानकी की इस गलती के बारे में नौकरों ने भी तुरंत फोन कर गिरधारी लाल को सूचित कर दिया।जानकी को पेंटिंग करने का शौक था तो वह उस पर पेंटिंग करने बैठी तो जाने कैसे रतन का चित्र बनने लगा। अभी चित्र पूरा होने ही वाला था कि उस पर किसी ने पानी फेंक दिया।यह गिरधारी लाल थे।


"यह क्या किया बहू तुमने.?यह शापित कैनवास है इसपर जिसका चित्र बनता है वो जीवित नहीं रहता। तुमने अपने पति का ही चित्र..तभी जोर से कुछ टकराने की आवाज आई। रतन!! वो चिल्लाकर बाहर भागे।"


रतन गाड़ी लेकर घर में प्रवेश कर ही रहा था कि अचानक गाड़ी के ब्रेक फेल हो गए थे।इस वजह से गाड़ी सामने दीवार से जा टकराई। रतन बुरी तरह जख्मी हो गया।मंत्र तंत्र की शक्ति से बंधा होने के कारण, सिद्धार्थ की भटकती आत्मा गिरधारी लाल के परिवार से अपना बदला नहीं ले पा रही थी।उसने जानकी को अपना मोहरा बनाकर बदला पूरा कर लिया।गिरधारी लाल ने इस घटना के बाद उस कैनवास को इस बार मंदिर के तहखाने में दफन करवा दिया ताकि फिर कोई यह गलती न दोहराए। जानकी को इस बात का बड़ा गहरा सदमा लगा।वो खुद को रतन का कातिल समझकर रोती रहती थी।


बेटे को खो चुके गिरधारी लाल और पार्वती से बहू की यह दशा नहीं देखी गई।वो दोनों अपने बेटे की आखिरी निशानी अपनी बहू जानकी को लेकर, हमेशा के लिए रामगढ़ छोड़कर चले जाते हैं ‌।




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