Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

anuradha chauhan

Tragedy

3.4  

anuradha chauhan

Tragedy

यह कैसा न्याय

यह कैसा न्याय

3 mins
344


विक्रम ने अपनी गलती कबूल कर ली है इसलिए यह पंचायत तीन महीने के लिए उसका हुक्का-पानी बंद करती है। पंचों के इस फ़ैसले पर गाँव के रसूखदारों के बीच खुशी की लहर दौड़ पड़ी।

यह कैसा न्याय है सरपंच जी..? सुलोचना की आँखों से आँसू छलक पड़े। मेरी बेटी के साथ घृणित कार्य करने वाले तीन महीने में सजा मुक्त, यह सजा नहीं दिखावा है दिखावा..! सुलोचना चीखते हुए बोली।

चल चल चुप बैठ..तीन महीने बिरादरी से अलग कर दिया अब क्या जान से मार दें..?

और जो हमारी बिटिया इसके अन्याय के चलते रोज तिल-तिल कर मरेगी उसका क्या..? एक ही सहारा हमारे बुढ़ापे का, उसे भी जीते जी मार दिया गया और ऊपर से बस तीन महीने..? हमारी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद हो गई है सरपंच जी..!

सुन सुलोचना अब बहुत बोल लिया तूने.. विक्रम की माँ गुस्से से तिलमिलाई। इसमें तेरी गलती नहीं रही...क्यों बेटी को ऊँच-नीच नहीं समझाई ? क्या जरूरत थी उसे इधर-उधर डोलने की।

हाँ सही बात है.. रसूखदारों ने हाँ में हाँ मिलाई।

मेरी बेटी इधर उधर डोल नहीं रही थी सुना तुम सबने..? वो स्कूल में बच्चों को पढ़ाकर लौट रही थी। मेरी हमेशा चहकने वाली सुमन जिंदा लाश बनकर रह गई और तुम सब कह रहे हो उसकी गलती है..?

तो क्या जरूरत थी नौकरी करने की..? तेरे घर में बेटी को खिलाने के लिए रोटी नहीं थी क्या..?

तुम लोगों से बहस करने का कोई फायदा नहीं अब मैं पुलिस में शिकायत करूँगी.. मुझे लगा पंचायत में ही मेरी बेटी को न्याय मिल जाएगा पर मैं गलत थी।अब मैं अपनी बेटी को न्याय दिलवाकर ही चैन की साँस लूँगी..! सुलोचना अपने आँसू पोंछती घर लौट गई।

सुलोचना और सुमन बस यही इनकी छोटी सी दुनिया थी। सुमन के पिता किसान थे, तीन साल पहले कैंसर की वजह से इस दुनिया से चले गए थे। सुमन बारहवीं कक्षा में पढ़ती थी। जिसके लिए उसे रोज गाँव से बाहर बने कॉलेज में जाना पड़ता था।

सुलोचना सिलाई करने लगी और सुमन घर खर्च और पढ़ाई के खर्च के लिए गाँव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। दो लोगों की ज़िंदगी शांति से गुजर रही थी।

एक दिन स्कूल से लौटते समय विक्रम की गंदी नजर सुमन पर पड़ गई और उसने उस मासूम की जिंदगी तबाह कर दी। आज पंचायत का न्याय देख सुलोचना का खून खौल गया।

सुमन छत को घूरती निशब्द पड़ी थी। मेरी बच्ची..सिर पर हाथ फिराते हुए फफक पड़ी सुलोचना। सुमन एकटक छत को निहार रही थी। सुलोचना उठी और बाहर निकल कर, राधा काकी..! घर में हो..?

हाँ बहू घर में ही हैं.. पंचायत में क्या हुआ..?

कुछ नहीं काकी, इसलिए अब हम पुलिस थाने जा रहे हैं तो आने में देर हो सकती है। क्या आप सुमन का ध्यान रखोगी..?

लो यह भी कोई कहने की बात है.. सुमन मेरी भी पोती ही लगती है जाओ पर संभलकर, मुझे इन लोगों पर विश्वास नहीं है।

हम्म काकी मुझे भी नहीं है इसलिए तो आपसे कह रही हूँ..! सुलोचना चली गई और पुलिस थाने से आने में उसे देर हो गई और इसी बात का इंतजार कर रहे रसूखदारों ने सुमन को सुलोचना के आने से पहले ही मौत के घाट उतार दिया और उसके घर को आग के हवाले कर दिया।

सुलोचना जब वापस लौटी तो उसे ना घर मिला ना बेटी बस मिली तो सुलगती हुई दुनिया, चीख-चीखकर सुमन को ढूँढती सुलोचना के आँसू पोंछने वाला भी कोई नहीं था।

इस अग्निकांड को दुर्घटना समझकर पुलिस लौट गई। अपने भरे-पूरे परिवार की सलामती के लिए राधा काकी भी इस मामले में मौन हो गई। एक बेटी फिर से हैवानियत की शिकार होकर मौत की बलि चढ़ गई।



Rate this content
Log in

More hindi story from anuradha chauhan

Similar hindi story from Tragedy