बुढ़ापे की पीड़ा
बुढ़ापे की पीड़ा


नम होती आंँखों को लिए गाँव की ओर थके कदमों से लौटते रामनाथ अपने बीते दिनों को याद कर रहे थे।
"गंगा राजू बड़ा होकर एक दिन हमारा नाम रोशन करेगा,देखो कितनी आसानी से सारे सवाल हल कर लेता है!"रामनाथ खुश होते हुए बोले।
"मेरा बेटा है भी तो लाखों में एक!आप देखना राजू के बापू! बुढ़ापे में हमको पलकों पर बिठाकर रखेगा,रखेगा न राजा बेटा?"गंगा राजू से पूछती है।
"हाँ माँ मैं बड़ा होकर आप लोगों की खूब सेवा करूँगा!"
राजू बड़ा होकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पढ़ने शहर चला गया। पढ़ाई पूरी होते ही अच्छी नौकरी लग गई तो राजू शहर में ही रहते हुए अपनी पसंद की लड़की से शादी कर लेता है।
"गंगा अपना राजू अब सही में बड़ा हो गया है! उसने शादी कर ली माँ-बाप को पूछा भी नही.. शायद हम ही उसे सही शिक्षा नहीं दे पाए?"
"ऐ जी दिल छोटा न करो! आजकल के बच्चे अपने मन की करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि वो माँ-बाप को भूल गए,हमारा बेटा ऐसा नहीं है जी!"अपने मन को समझाती गंगा बोली।
तभी राजू का फोन आ जाता है।"माँ मैं आ रहा हूँ आप लोगों को लेने,अब आप यहाँ शहर में मेरे साथ ही रहोगे!अपनी तैयारी रखना, मुझे छुट्टी नहीं मिली है!"
कुछ दिन ही हुए थे शहर आए, गंगा और रामनाथ को राजू और बहू में कलयुगी बेटे का चेहरा दिखने लगा।बहू नौकरी करती तो गंगा को घर का सारा काम करना पड़ता था।
"गंगा चलो वापस गाँव चलते हैं।तू दिनभर काम करती है मुझे अच्छा नहीं लगता!"
"ऐ जी अपने बच्चों के लिए कुछ करने में कैसी परेशानी? फिर गाँव जाकर क्या कहेंगे? बहू बेटे ने परेशान किया, इसलिए वापस आ गए! गंगा मना कर देती है।
सही बात तो यह थी कि गंगा अंदर से टूट गई थी और गाँव वालों का सामना नहीं करना चाहती थी। तिरस्कार सहती गंगा एक दिन दुनिया छोड़ गई।अब रामनाथ अकेले हो गए थे।
एक दिन..."राजेश तुम्हारे पिताजी बैठकर खाने के लिए हैं क्या? तुम उनसे कुछ कहते क्यों नहींं?कम से कम घर की साफ-सफाई ही कर लिया करें!"
"धीरे बोलो सुमन! पिताजी सुन लेंगे, तुम चिंता न करो धीरे-धीरे उन्हें सब करने के लिए कह दूँगा तुम अपना दिमाग मत खराब करो!"
बेटे-बहू का वार्तालाप सुनकर रामनाथ की आँखों से आँसू झरने लगे। उन्होंने दुखी मन से अपनी अटैची पैक की और बिना कुछ बोले गाँव के लिए निकल पड़े।