anuradha chauhan

Tragedy

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anuradha chauhan

Tragedy

बाढ़ की विभीषिका

बाढ़ की विभीषिका

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बदरिया फिर से बहुत करिया घिर के आए रही हैं सुगना के बापू! पहले ही नदिया का पानी खेतों में घुस कर फसलें चौपट कर रहो है,अब और का होइए?

"वही होइए जो राम रची राखा"गहरी साँस लेकर बिजराज ने आसमान की ओर देखकर कहा।

नदी उफान पर थी। शहरों में नदी के इर्द-गिर्द अतिक्रमण करके अवैध निर्माण से संकरे हुए तट का खामियाजा गाँव के ग़रीब किसानों को भुगतना पड़ता था।

बारिस के मौसम में जब नदी उफान पर होती तो उसका बहाव गाँव के खुले इलाकों पर ऐसे भरता जैसे वहाँ खेत नहीं नदी हो।इस वजह से गाँव वालों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता था।

बिजराज गहरी चिंता में बैठा आसमान से आने वाले कहर को देख रहा था कि तभी गाँव के मुखिया अपनी साइकिल लेकर निकले।

बिजराज! सुनो आज मौसम के मिज़ाज कुछ ठीक नहीं लग रहो! तुम एक काम करो, दो-चार लड़कों को जमा करो और सभी बच्चे और महिलाओं को टेकरी वाली पाठशाला में पहुँचने को कहो! तब तक कुछ लोगों को मैं वहाँ राशन-पानी पहुंचाने की व्यवस्था करत हूँ!


पर काहे मुखिया जी?घनी बदरी भले है, नेक आध बरस के चली जावेगी और पानी भी उतर जइए?

अरे नहीं भाई समस्या बहुतई बड़ी होवे वाली है। अबई शहर से बिटिया की खबर आई है! वहाँ तीन दिन से बहुत बारिस हो रही है! देखत तो हो जमुना जी कैसे उफन रही हैं, वहाँ सगरे शहर में पानी भर रहो है!

यहाँ भी बिन बारिस खेतन में पानी-पानी हो गयो है। सोचो अगर यह बदरी पाँच-छ: घंटे बरस गई तो घर-द्वार सबही कछु बह जाएगो। समय नहीं है बिटवा अब जल्दी करो काल कहकर नहीं आता और हाँ मवेशियों को खोल दियो वे खुद ही कहीं ऊँचाई पर चढ़ जावेंगे!


जी मुखिया जी समझो सगरो काम हो गयो! बिजराज राधा को आवाज़ लगाता है। सुगना की माँ जरा सुन तो! जल्दी से जरूरी सामान और खाने को सामान दुई पोटली में बाँध ले! मुखिया जी कहकर गए , बच्चों को लेकर पाठशाला पहुँचो हम आवत है तनिक देर में!

काहे? का हो गयो सुगना के बापू?


बातें बाद में रधिया, बाढ़ जइसन हालात बनत दिखे हैं। ऐसो मुखिया जी बोलत रहे! पहले सामान बाँधकर बच्चों को लेकर टेकरी पर पहूँचो!जाओ जल्दी करो! राधा जरूरी सामान लेकर चल दी। मूसलाधार बारिस शुरू हो गई थी।

बिजराज ने और गाँव के लड़कों ने सभी बच्चे-बूढ़े और महिलाओं को सुरक्षित पहुँचा दिया था। खाने-पीने का भरपूर सामान और कीमती सामान लेकर सभी पाठशाला में पहुँच गए थे।

बारिस भी रुकने का नाम नहीं ले रही उसका रोद्र रूप देख गाँव‌ वाले बहुत डरे हुए थे। रात घिर आई पर सबकी आँखों से नींद गायब थी।

तेज गर्जना और तेज रोशनी के साथ बिजली कड़कड़ाती हुई जमीन छूने की कोशिश कर रही थी। यह दृश्य देखकर कुछ महिलाओं के आँखों से आँसू बहने लगे थे।


जै रोना-धोना तो बंद करो तुम औंरे! वैसे ही आफत घेरे है तुम औरें और परेशान करे हो! मुखिया जी गुस्से में आकर बोले। मुखिया की आवाज़ से शांति छा गई।

मुखिया जी भला हो तुम्हारा! जो तुमने समय रहते खतरा भांप लियो! यह बारिस तो अब क्या जाने क्या करवे वाली है? गाँव के लोग भी बिजराज की बात का समर्थन करते हुए मुखिया जी का आभार व्यक्त करने लगे।

मुखिया जी एक बात पूछें?आप यह कइसन समझे कि बाढ़ आइवे वाली है? जबकि आज सुबहा से तो एकऊ बूँद न बरसवे करी।


मुखिया इस बात पर चुप रहे और अपनी आँखें बंद कर बैठे रहे।फिर थोड़ी देर बाद चुप्पी तोडी। तुम लोगों ने वो कहावत तो सुनी होगी"दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है"!

तो सुनो आज जबसे बिटिया से बात भी और खेतन की परिस्थिति पर गौर करो तो लगो अगर जै बदरी चार-पाँच घंटा जमकर बरस गई तो हम सबके घर डुबो देगी। एक बार फिर जाने कितनी ज़िंदगी की बलि चढ़ जावेगी?

तुम सब नयी उमर के बच्चे हो! इसी कारण सालों पहले घटी घटना नहीं मालूम? तुम लोग अपने माँ-पिता, दादा-दादी से से पूछोगे तो पता चलेगो! सालों पहले भी हम सबकी ख़ुशियाँ पानी की भेंट चढ़ गई थी।

तब यह पाठशाला नहीं थी! सरकार आई मीठी-मीठी बातों से और चंद रुपयों से हमारे घावों पर मरहम लगाकर चली गई!पर हमारे विकास के लिए किसी ने नहीं सोचा।

तुम लोग उस समय या तो बहुत छोटे रहे होगे या पैदा नहीं हुए होगे? उस समय भी सारे नाले और जमुना जी उफन रहीं थीं और बारिस भी जोरों की थी।

हम गाँव वाले जान बचाने के लिए बरसते पानी में में यहीं टेकरी बेबस बैठे अपनी ज़िंदगी भर की पूँजी बहते देखत रहे थे।तीन दिन तीन रातें बस आसमान को निहारत रही और ठंड व भीगने से कई लोग दुनिया से चले गए।

हेलीकॉप्टर घूमते और खाने के पैकेट फेंक जाते थे। बारिस रुकने के बाद नदी तो उतर गई पर हमारे घर, खेत सब नाले में तब्दील हो गए थे।

कीचड़, गंदगी नाले जैसी ज़िंदगी में आशियाने के निशान तलाशत रहे हम लोग!करीब एक महीने में ज़िंदगी पटरी पर आई पर मवेशी छोड़ नहीं पाए जो खुले थे टेकरी पर चढ़ गए, बाकी बह गए थे।

फसलों के साथ हम सबकी ज़िंदगियाँ चौपट हुई गई थी। सरकार से जो थोड़ा बहुत मुआवजा मिलो कछु दूर बसे रिश्तेदारों से मदद ली।

फिर से नयी ज़िंदगी की शुरुआत की। सब-कुछ ठीक हुआ तो सबसे पहला काम हम गाँव वालों ने जे करो, एक-एक पैसा जोड़कर सबसे पहले टेकरी पर यह पाठशाला बनवाए, जानत हो क्यों? ताकि फिर कभी ऐसी आफत आए तो हमारे खेत और घर भले ही नदी नाले की भेंट चढ़े पर जरूरी सामान और परिवार बच जाए।


ओह!! ठंडी साँस लेकर बिजराज बोला, तभी मुखिया जी आपने हमें समय रहते पहले ही चेता दओ! आपकी समझ-बूझ से हम सब यहाँ सूखी जगह में सुरक्षित हैं और खाने की सामग्री भी पास है।

दो दिन दो रातें खूब तेज़ बारिस होती रही। सुबह बारिस तो रुक गई पर चारों ओर पानी-पानी था। देखकर लगता नहीं कि कभी वहाँ कोई गाँव था। नदी नालों का गंदा पानी एकसार होकर बह रहा था।

धीरे-धीरे पानी उतरने लगा, बाढ़ की विभीषिका में सब तबाह हो गया। बारिस अपने पीछे नाले के कीचड़ जैसी गंदगी पीछे छोड़ गई। एकबार फिर मुखिया जी गाँव वालों के साथ घरों के निशान तलाश रहे थे।

शहरों में नदी किनारे बने शहरी अतिक्रमण का संकरी होती नदी के रोद्र रूप का खामियाजा फिर से गाँव के गरीब किसानों को भुगतना पड़ा।



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