लापरवाही
लापरवाही


कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी से आज एक ओर पूरा विश्व जूझ रहा है।सरकार भी हर जगह लॉकडाउन करके कोरोना वायरस की चैन तोड़ने की कोशिशों में जुटी हुई थी।
कुछ लोग लॉकडाउन के नियमों की अनदेखी कर रहे थे। मोहनलाल भी इन्हीं में से एक थे।मोहनलाल सोने-चांदी के व्यापारी,लक्ष्मी जी की असीम कृपा थी।
मोहनलाल अपनी दौलत के घमंड में चूर होकर अक्सर नियमों की अवहेलना कर इधर-उधर घूमते रहते थे। वही पास में ही उनके मित्र मिश्रा जी रहते थे जो उन्हें टोकने से बाज नहीं आते।
क्यों मोहन भाई आज फिर बिना मास्क लगाए टहलने निकल पड़े! कहीं कोरोना वायरस लग गया तो? बगल वाले घर से मिश्रा जी ने आवाज़ लगाई।
अरे मिश्रा जी!आप भी ना बहुत डरते हैं!अरे यह कोरोना वोरोना कुछ नहीं बस मामूली सर्दी-जुकाम की बीमारी है। आइए साथ घूमकर आते हैं।
नहीं-नहीं तुम घूमों! मुझे कहीं नहीं जाना। कहीं कोरोना हो गया तो इलाज कहाँ से कराऊँगा?
अरे आप भी मिश्रा जी! अरे यह बीमारी उतनी बड़ी नहीं जितना यह लोग बना रहे हैं। बस अच्छा खाओ पियो और मस्त रहो कुछ नहीं होने वाला।
दुनिया में सैकड़ों लोग मर रहे हैं और तुम कह रहे हो कुछ नहीं है? ठीक है भई तुम्हारी मर्जी! अब जो चाहें करो मुझे क्या? मैं इतना जरूर कहूँगा कहीं यह लापरवाही तुम्हारे परिवार पर भारी न पड़ जाए।
इस बात पर ठठाकर हँस पड़े मोहनलाल।आप भी ना मिश्रा जी बहुत डरपोक हो।चलो माना कोरोना हो गया तो पैसे के दम पर अच्छे से अच्छा इलाज मिल जाएगा।
गलती हो गई भाई मोहनलाल आगे से नहीं टोकूँगा। तुम पैसे वाले हो कुछ भी खरीद सकते हो पर ज़िंदगी नहीं खरीद सकते यह याद रखना।
पैसे में बहुत ताकत है मिश्रा जी और फिर मरना लिखा है तो कोई नहीं बचा सकता।
यह बात सही कही मोहनलाल कि पैसे में बहुत ताकत है!पर इस समय जरा सी लापरवाही मृत्यु से टक्कर लेने जैसी है और इस दुनिया में एक ही सच है वो है मृत्यु!वो चाहें राजा हो या रंक किसी को नहीं छोड़ती। यह बात अलग है कि तुम खुद उसके पास जाना चाहते हो तो तुम्हें कोई नहीं समझा सकता।
मिश्रा जी ने उस दिन से मोहनलाल को टोकना बंद कर दिया।पिता की देखा-देखी बच्चों को हौसला मिला तो वो भी पुलिस से नजर बचाकर बाहर निकल जाते।नतीजा यह हुआ कि दोनों ही बेटे कोरोना ग्रस्त हो गए और घर की खुशियों को ग्रहण लगने लगा।
मोहनलाल तो कोरोना को मात देकर घर आ गए पर दोनों बेटे और पत्नी काल का ग्रास बन गए। कोरोना वायरस ने एक झटके में हँसते खेलते घर की खुशियाँ छीन ली।
मोहनलाल जिस मृत्यु के अटल सत्य को नकारते हुए पैसे के दम पर ज़िंदगी खरीदने की बात करते थे,वही दौलत उनके परिवार को ज़िंदगी न दे पाई।
घर की बालकनी में अकेले बैठे सड़कें निहारते मोहनलाल को देखकर मिश्रा जी की आँखें भर आईं ,वो करते भी क्या?लॉकडाउन के नियमों की अनदेखी कर उनके घर पर भी नहीं जा सकते थे।ना ही उनमें मोहनलाल की तरह पैसों के दम पर मृत्यु से टकराने की ताकत थी।