डैड, क्या कहते हैं आप?
डैड, क्या कहते हैं आप?
राजनेता के तौर पर मेरा कद बहुत बड़ा है। इससे, एक बड़ा वर्ग मेरा प्रशंसक है। या यूँ कहिये के मेरी शक्तिशाली होने और तंत्र पर प्रभाव होने से, मुझ से लाभ उठाने के इच्छुक लोगों का मेरे इर्द गिर्द जमावड़ा है। जिनमें पुरुष नारी और युवा बूढ़े सब हमारे इर्द गिर्द, नित कई तरह के आयोजन होते हैं। ये कार्यालय में भी होते हैं, जहाँ मेरा, अधीनस्थ बड़ा स्टाफ होता है। मेरे ऑफ़िस में विज़िटर्स भी बहुत होते हैं। मैं शिरकत करता हूँ जिनमें, ऐसी रात्रि पार्टियाँ भी, बहुत होती हैं, जहाँ, औरत मर्द, जाम भी टकराते हैं ऐसी सब जगह, प्रकट में, सभी के साथ, मुझे मधुरता से पेश आना होता है। समय समय पर, जन प्रतिनिधि के चुनाव में, अपना चुना जाना यूँ ही सुनिश्चित होता है। नेता, मंत्री, बने रहने के लिए, सभी के मत चाहिए जो होते हैं।
अपने मन की मगर कहूँ तो, मुझे इन सब में पसंद होता है, आकर्षक युवतियों से घिरा होना।
यह मेरा मन दर्पण है, जिसमें, मुझे सब झलक जाता है। इस मन दर्पण के सामने, मैं स्वयं की करतूतें छिपाना चाहूँ तो भी छिपती नहीं हैं।
मैं अपनी ख़राब करनी को यहाँ, अच्छाई के श्रृंगार की परत भी देना चाहूँ, तब भी इस दर्पण में यह कुरूपता छिपती नहीं है। मैं यह कहूँ कि अक्सर कई युवतियों के हित में, उन्हें नियम कायदों से विलग लाभ प्रदान करवा देता हूँ। ऐसी युवतियों से इसके एवज में उनसे कुछ दिल का सुकून पा भी लेता हूँ, तो इसमें बुरा क्या है? लेकिन नहीं, यह मन दर्पण, जिसे बदला भी नहीं जा सकता, इसे मेरी ख़राबी जैसा, दिखा दिया करता है।
मेरी डायरी लिखने की आदत विद्यालीन समय से है। उस समय की मन निर्मलता में, मैंने, डायरी लिखते हुए, इसमें सच ही लिखने की आदत बनाई हुई थी।
सफलताओं के मद में यद्यपि, मेरे काम तो ख़राब कर दिए, मगर डायरी में सच लिखना, मैं अब भी जारी रखा करता हूँ। सुंदर युवतियों के साथ, मेरी ओछी हरकतें भी, मैंने अपनी डायरियों में बिन लाग लपेट के, और सही लिखी हुई हैं।
मुझे इस बात का अंदाजा भी है कि इनमें से कुछ भी या एक भी डायरी, मेरे विरोधियों के हाथ लग जायें, तो मुझे कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।मुझे ज्ञात है, जिन्हें कानून में अपराध बताया गया है एवं हमारी समाज मर्यादायें धिक्कारती हैं जिन पर, मैंने ऐसे अनेक कार्य किये हैं। जिनका स्वयं मेरी हस्तलिपि में किसी को मिल जाना, मेरी स्वीकारोक्ति जैसा प्रयोग किया जा सकता है। जिससे अदालत मुझे कारावास भेज सकती है या मेरा सार्वजनिक जीवन में चरित्र हनन, सरलता से किया जा सकता है।
किसी पेशेवर तरह के अपराधी के हाथ ये डायरी या इनमें से कोई 1 ही, लग जाये तो, मुझसे ब्लैक मेलिंग का सिलसिला आरंभ हो सकता है। जिसका अंत मेरी मौत तक चल सकता है।
इन सब ख़तरों के बाद भी, मेरी लिखी डायरी, मैं दो कारणों से नष्ट नहीं करता हूँ।
एक कारण यह है :-
इसे पढ़कर, मुझे अपनी मर्दानगी पर नाज़ होता है। मैं गिन पाता हूँ कि कितनी युवतियों से, किस किस तरह की यौन हरकतें/करतूतें मैंने की हैं जिसे बैड टच निरूपित किये जाते हैं, वे काम मैंने, अपनी चालाकियों से, कैसे कैसे, इतनी सारी युवतियों के साथ किये हुए हैं।
इन्हें मैंने, कभी कार्यालय में, कभी रात्रि पार्टीज में और कभी सार्वजनिक कार्यक्रमों में, अपनी धूर्तता से और झूठी छवि बनाये रखते हुए, अंजाम दिए हैं।
डायरी में मैंने, अपनी ही लेखनी से, श्रृंगार रस के प्रयोग से बहुत ही अच्छी भाषा में, प्रत्येक किस्से लिखे हैं।
हर पृष्ठ एक कहानी हो गया है। पुरुष नज़रिये से, हर कहानी में, मधुर रस भरा है, कि कैसे? किसी युवती के साथ भीड़ से नज़र बचा के किस तरह के, बैड का आनंद लिया जा सकता है। अवश्य ही, हर किस्सा, नारी दृष्टिकोण से करुण एवं वीभत्स रस का उदाहरण है।
बैड टच की एक शुरुआत से, किन किन युवतियों को, कैसे कैसे, मैं अपने बिस्तर तक ले आ सका हूँ, यह कुटिलता भी देखी जा सकती है।
किन्हें, चालाकी और अपने शक्ति से, प्रभावित करते हुए, मैंने उनकी सहमति से सब किया है।
और किन के साथ मैंने, उनकी सहमति बिना, जबरदस्ती से किया है। और अपने प्रभाव से, जबरदस्ती के पहले या बाद, उनके लिए किये फेवर के माध्यम से, उनको कोई व्यवसायिक लाभ दिलाते हुए, उन्हें चुप रहने को विवश किया है।
इन डायरियों में, यह भी उल्लेख है कि कितनी युवतियों ने, मुझे पहचान कर, मेरी शुरूआती करतूतों में ही, मुझसे किनारा किया है और, कितने से मेरे संबंध कुछ महीनों / सालों चले, जिनसे ऊब कर,बाद में, मैंने ही किनारा लिया है।
मुझे तो ऐसा भी प्रतीत होता है कि मेरी ही उम्र का, कोई अति लोकप्रिय कुँवारा सिने अभिनेता भी यदि, मेरी डायरियाँ पूरी पढ़ ले तो अवसाद ग्रस्त हो सकता है कि, जितनी सुंदरियों के सहमति से, या जबरदस्ती के सुख मेरे हैं, उसके आगे, उसके तो कुछ हैं ही नहीं।अन्य शब्दों में लिखूँ तो यह सही होगा कि, मैं यह लिखूँ कि, किसी विकृत मानसिकता के मर्द, जिसे अपने मनोरंजन के लिए, अश्लील साहित्य या कामुक वीडियो की दरकार होती है, उनसे भिन्न, ऐसी जरूरत, मेरे लिए, मेरी खुद की डायरी पूरी करती हैं।
जब कोई युवती का संग न हो और मेरी रात तन्हा हो, तब शराब की चुस्कियों बीच, मैं इनमें से किसी डायरी को, आनंद लेते हुए पढ़ लेता हूँ। डायरी को नष्ट न करने का दूसरा कारण यह है कि:-
मेरे लिए, आत्मघाती सिद्ध हो सकने वाली ये डायरियाँ, मेरे लिए, अब तक लाभकारी रही हैं। अब की, मेरी 54 की उम्र तक, मेरी दो बार शादी हुईं हैं।
पहली पत्नी का साथ, मेरा 15 सालों का रहा
था।
जब मैं उससे बहुत ऊब चुका था, तब सुनियोजित तरह से एक दिन मैंने भूल का अभिनय करते हुए, उस समय तक लिखी डायरी तक, उसकी पहुँच सुलभ कराई थी।
मुझे आज भी याद है कि कैसे? मेरे से छिपते हुए, उसने दो दिनों में, सारी डायरियाँ पढ़ ली थी। उसने, मुझसे, तीसरे दिन, बेडरूम में लड़ाई की थी। और तब, हमारी 12 साल की हुई बेटी की, फ़िक्र न करते हुए, चौथे दिन कार चलाते हुए, ब्रिज की रेलिंग तोड़, कार सहित नदी में गिर, उसने आत्महत्या कर ली थी।
आत्महत्या वाला सच, मुझे ही मालूम था जबकि, दुनिया की नज़र में, यह दुर्घटना थी। दूसरी पत्नी से, मेरा वैवाहिक जीवन तीन वर्ष ही चला था। वह तथाकथित बैड टच से शुरू हुए, सिलसिले के बाद, मेरी पत्नी बनी थी।
उससे विवाह के तीन वर्ष के बाद, उससे ऊबने पर एक दिन मैंने, उसे भी पूर्व आज़माई तरकीब के तहत ही, सुनियोजित तौर से, अपनी डायरियाँ पढ़ने के अवसर सुलभ कराये थे। मेरा मंतव्य इस बार भी पूरा हुआ था। अपने पति पर यौनिक तौर पर एकाधिकार अभिलाषी, जैसा किसी भारतीय पत्नी में, सहज अधिकार बोध होता है, उसी भावना के अधीन इस पत्नी ने भी, एक रात मुझसे लड़ाई की थी। और फिर, हमारे पाँच सितारा होटल में स्टे के एक दिन, पाँचवे तल से गिर कर, वह मृत पाई गई थी।
इस बार, कुछ खोजी पत्रकार, इसे दुर्घटना मानने तैयार नहीं थे। वे इसे हत्या सिद्ध करने के लिए, मेरे पीछे लगे थे। कुछ के मुँह बंद कराने के लिए, किसी किसी बिचौलिए के जरिये, उन्हें खासा पैसा भी भिजवाया था, ताकि उनके मुंह को बंद रखा जा सके।
अंततः, बिना किसी राजनैतिक हानि के, मुझे, इससे भी समय के साथ, निजात मिल गई थी।
प्रभावशाली हैसियत में मेरा जीवन, यूँ ख़ुशी से बीत रहा था कि तब एक नई बात, दुनिया में उभर के, सामने आई थी। यह थी, मी टू नाम का अभियान, जिसमें सफल लोकप्रिय और पैसे वालों के विरुद्ध उनके यौन अपराध का खुलासा करते हुए, उनकी यौन रूप से शोषित की गईं, औरतें सामने आने लगीं थीं।
यह अभियान हमारे देश तक भी पहुँच गया था।
जीवन का यही वह वक़्त था, जब, मैं सबसे ज्यादा चिंताओं में रहा था। मुझ पर डर सवार हुआ कि इतनी औरतों में से कोई, या कुछ औरतें, मेरी करतूतों का भंडाफोड़ न कर दें मेरी खुश किस्मती रही कि ऐसी कोई महिला, मेरे विरुद्ध मुँह नहीं खोल सकी थी।
मुझे इसकी वजह समझ आ रही थी कि मेरी पीड़ितायें, मेरी की हुईं मदद (फेवर) से एक समृद्ध और प्रतिष्ठा पूर्ण जीवन का आनंद ले रहीं थीं। मुझ पर आरोप लगा कर, वे स्वयं बदनाम नहीं होना चाहती रहीं होंगीं।हमारी समाज में नारी से, ऐसे चरित्र की अपेक्षा एवं परंपरा ने मेरी लिए कोई मी टू समस्या या चुनौती खड़ी नहीं होने दी थी।मगर मजेदार बात यह हुई थी कि मेरी दूसरी पत्नी के आत्महत्या के बाद, जिस ख्याति प्राप्त पत्रकार ने, मुझसे ब्लैक मेल किया था, मी टू की जद में वह आ गया था। उस पर, उसकी बेटी की फ्रेंड ने ही, यौन शोषण का खुलासा कर दिया था।
इससे भी मजेदार बात तो यह हुई थी, उसने मेरे पास आकर प्रार्थना की थी कि मैं अपने प्रभाव से, उसके विरुद्ध मी टू मामले पर, कानूनी कार्यवाही को, शिथिल करवाने में मदद करूँ। मैंने, उसे झूठा ढाँढस दिया था, मगर किया कुछ नहीं था। वह, आज जेल काट रहा है।
अब, समय ने करवट ली है। आज मैं अकेला हूँ। अपनी लत और औरतखोरी की रही आदत के कारण परेशान हूँ।
कोरोना संक्रमण के, पिछले दो महीनों से व्याप्त खतरों में, मैं नए किसी, बैड टच की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ।
युवतियाँ भी, सब दूर दूर, सावधानी से मिल रही हैं। मेरी ऐसी तनहाई को, दो माह हुए हैं। कोरोना ने मुझ पर, विकट मुसीबत खड़ी की है। यहाँ, मैं इस मनःस्थिति में विचलित था। वहीं अचानक आज मेरी बेटी जो 21 वर्ष की हुई है, ने ब्रेकफास्ट पर अजीब बात की है।
वह कह रही है-
पापा, मुझे लगता है कोरोना जानलेवा संक्रमण तो है, मगर यह सदियों से एक वायरस से किसी पुरुष के इन्फेक्ट होने के खतरे के लिए मुझे, टीका (Vaccine) सा प्रतीत हो रहा है।
मैं उसकी इस बात पर, एक सवाल उठा कर फँस गया, मैंने पूछा: निधि (मेरी बेटी का नाम) कौन सा वायरस?
वह किसी मंच पर वक्ता के जैसी, कहने लगी है कि-
पापा, वह वायरस, जिससे इन्फेक्टेड हुआ कोई पुरुष, हमारे समाज में, किसी स्त्री से बैड टच के, और उससे शारीरिक संबंध के, मंतव्य लिए घूमा करता है।
पिछले कई दिनों से कोरोना के भय ने, ऐसे इन्फेक्टेड पुरुष को, किसी भी परिचित अपरिचित युवती से, कम से कम, तीन फ़ीट की दूरी रखने को विवश कर रखा है। जिससे मुझे लगता है कि हमारे समाज में, आज, नारी ज्यादा निर्भया हो रही है।
मैं नहीं कहती कि प्राणघातक यह कोरोना वायरस, यूँ ही फैला रहे। मगर डैड, यदि यह रहता है तो कोई, सुंदर, लड़की/युवती के मन पर से, बैड टच और रेप का खतरा और भय उठ जाता है। फिर, किसी भी बहन या बेटी को पर्दे/बुर्के में, और सुरक्षा की दृष्टि से घर में कैद रहने के, अभिशाप से मुक्ति मिल जाती है।
फिर, आत्मप्रशंसा के भाव मुख पर लिए खिलखिलाते हुए मुझसे पूछती है -
डैड, क्या कहते हैं आप?
मुझे लग रहा है, जैसे किसी ने चोरी करते हुए, मुझे रंगे हाथ पकड़ लिया है।एक खिसियायी मुस्कुराहट के साथ, मैं कहता हूँ- वाह निधि, क्या कहने तुम्हारे!
फिर काम की व्यस्तता का बहाना कर, जल्दी डाइनिंग टेबल छोड़ता हूँ। मेरा दिमाग यह विचार लिए, असमंजस में है कि क्या? -
यह निधि का सहज विचार है या, इसने भी मेरी कोई डायरी पढ़ ली है ....