डायरी के पन्ने 5th डे
डायरी के पन्ने 5th डे


कल रात न्यूज़ में दिल्ली आनंदविहार रेलवे स्टेशन पर कोरोना के भय से पलायन की भीड़ को देख मन घबड़ा गया था। रात में नींद में भी उन लोगों को देखती रही।
न्यूज़ देखते वक्त उन अजनबियों के प्रति मन में आक्रोश था कि कितने नासमझ हैं। कुछ समझते नहीं, बिना कुछ सोचे समझे निकल आए सड़क पर। खुद भी मरेंगे और सभी को मारेंगे। पर रात सपने में जब उन लोगों को देखी तो उस भीड़ का हर इंसान मुझे बहुत समझदार लग रहा था। आज कोई भी इंसान मूर्ख नहीं। मुझे लगा पहले उनकी परिस्थिति में अपने को रखें फिर उन्हें बुरा भला कहें।
घर से दूर रोजी रोटी कमाने निकले वे और एकाएक ये गाज गिरी। उनमें कोई धन्नासेठ तो है नहीं जो दस दिन या एक महीना बिना कमाए खा लेगा। किसी के साथ छोटे बच्चे हैं तो कोई अकेला। सभी लाचार। उनके मन मे है कि अभी पास में दो पैसा है शरीर में ताकत और जूझने की हिम्ममत है। किसी तरह धीरे- धीरे निकल पड़ेंगे तो राह में कहीं गलती से कोई उपाय हो गया तो घर पहुंच जाएंगे वरना मरना है। यो कोरोना से मरें या भूखे बदहाली से। और वे घर से निकल पड़े।
शिकायत तो होनी चाहिए हमारे राजनेताओं से, विभिन्न क्षेत्र के
सेलेब्रेटी से, मन्दिर मस्जिद वालों से। इन्हें आगे बढ़ कर आना था और सहायक बन कर खड़ा होना था। यदि हर सांसद, हर विधायक, और हर सेलेब्रेटी अपने-अपने एरिया में खड़ा जो जाता और नगरपालिका,वार्ड कमिश्नर, पंचायत के सरपंच,मुखिया को आगे ला सबके सामने खड़ा हो जाता तो ये लोग कभी भी विह्वल हो ऐसे सड़क पर नहीं निकलते। सरकार के द्वारा मिलने वाले फायदा तो पहुँचते-पहुँचते पहुँचता है। तब तक लोगों में फैले क्योस को तो ये लोग रोक ही सकते थे।
कुछ लोग कह रहे हैं उन्हें कोई भी जानकारी नहीं थी। ऐसी बात नहीं कि जानकारी नहीं थी उन्हें। सही कहा जाए तो उन्हें गलत जानकारी का शिकार बना घर से निकाल सड़क पर उतर दिया गया। कुछ लोग इसे उनकी की मूर्खता कह रहे तो कुछ लोग पार्टी पॉलटिक्स। बहुत अफसोस कि बात है कि ऐसे समय में भी गलत शिकार और गलत शिकारी।
न जाने संस्कार की शिक्षा देने वाले हमारे देश के लोगों को क्या हो गया जो पिछले कुछ सदी से केवल अपने फायदा की सोच रहें हैं और उसके दुषपरिणाम भी भोग रहे हैं। फिर भी हर बार एक ही गलती।
अंत में मैं भी कहती हूँ सबको भगवान भरोसे छोड़ दो।