Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Abstract Drama Classics

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Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Abstract Drama Classics

मजहब

मजहब

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शाम थी, मगर अंधियारा फैल चुका था। अभी मिन्नी के पापा ऑफिस से आकर चाय भी नहीं पी पाए थे कि किसी ने दरवाजा खटखटाया। कुत्तों के भूँकने की आवाज भी तेज हो रही थी। मिन्नी ज्यों ही, दरवाजा खोलने को लपकी की पापा ने रोक दिया और खुद  जाकर दरवाजा खोला। रमेश बाबू झट-पट अंदर आकर दरवाजा सटाया और कहने लगे -  "अगले चौक पर बहुत भीड़ लगी है। कुछ लोग कह रहे हैं सड़क के किनारे ही एक बच्चा शॉल में लिपटा है। शॉल के रंग से लोग उसे मुसलमान बस्ती का बता रहे हैं पर मंडल मियां ने कहा उन्होंने बच्चे को देखा है, बिल्कुल हिन्दू का बच्चा है। उसके गले में काला धागा डाला हुआ है। कोई उसे छू भी नहीं रहा। भीड़ में से ही किसी ने पुलिस को खबर कर दिया है। 

 एक दो नेता जैसे लोग दोनों ही दल से सामने आ उलझ रहे हैं और एक दूसरे के कॉम का श्रृंगार  गंदी गालियों से कर रहे हैं। मण्डल मियाँ उसमें कुछ ज्यादा ही बढ़ कर बोल रहे हैं। अब उनका मुँह बंद करना बहुत जरूरी है।

मिन्नी अंकल की बात सुन कर गुस्से में उबल पड़ी -" अजीब लोग हैं किसका बच्चा है फैसला करते रहें, वो बच्चा ठंड से मर भी जाए। मैं जा रही हूँ उस इंसान के बच्चे को बचाने और वो किसी की बात सुने बिना लपक कर सड़क पर आ गई।

तेज हवा के उल्टी दिशा में पैदल बढ़ना कष्टप्रद था। उसने अपने शॉल को कस कर लपेटा और क्षण में वहाँ पहुँच गई। पन्द्रह- बीस व्यक्ति के भीड़ को भेद उसे अंदर पहुँचते देर न लगी। वो हदप्रद रह गई ये देख कर कि एक कुतिया उस बच्चे के निकट उसे अपने पैरों में दबाए बैठी थी और वहीं पर अन्य दो चार कुत्ते खड़े थे जो रह-रह कर भीड़ पर भौंक रहे थे। भीड़ में काना-फूसी के अलावे अन्य कोई हलचल नहीं थी।

जब वो उस नन्हे को उठाने आगे बढ़ी तो कुतिया वहाँ से उठ कर खड़ी हो गई और उसे सूंघने लगी। बाकी कुत्ते भी भौंकना बंद कर दिए। 

आश्वस्त हो भीड़ दो भागों में बट गई मगर काना-फूसी जारी थी।


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