डायरी के पन्ने डे 21वां दिन
डायरी के पन्ने डे 21वां दिन


आज लॉक डाउन के प्रथम फेज का अंतिम दिन है। अतः आज रामायण से अधिक उत्सुकता 10 बजने की थी। सबकी निगाह टी वी पर टिकी थी। क्योंकि आज लॉक डाउन का 21वां दिन पूर्ण होने वाला है और पूर्ण होने से पहले सुबह दस बजे प्रधानमंत्री आज लॉक डाउन के संदर्भ में संदेश देने वाले थे। सामाजिक दूरियाँ के तहत सभी अपने-अपने घरों में टी वी के समीप बैठे थे और मोबाइल से एक दूसरे से जुड़ अपने विचारों का आदान-प्रदान कर रहे थे।
टी वी स्क्रीन पर प्रधानमंत्री के आते ही सबकी सांस रुक गई। प्रधानमंत्री भी सीधे एक बार में नहीं कहे कि लॉक डाउन का समय बढ़ाया जा रहा है। वे लॉक डाउन में सभी के प्रति अपना आभार व्यक्त कर रहे थे। उसके महत्व को बता रहे थे। जो सभी सुनना चाह रहे थे उसे बोलने में देर कर रहे थे तो कितने ने तो अपने आप में कहना शुरू कर दिया - 'काम की बात पहले कीजिए ना।'
ज्यों उन्होंने कहा तीन तक लॉक डाउन पूर्व की ही भांति चलेगा। तीन व्यक्ति पर तीन प्रतिक्रिया।
1- पुरुष जिन्हें छुट्टी का अभाव रहता घर में रह कर आराम नहीं कर पाते वे खुश हो गए।
2 - महिलाएँ जिनके घर में या तो पति थे मदद करने वाले या कोई अन्य साथ रह रहा था जिससे काम का बंटवारा हो जाता उन्हें विशेष अंतर नहीं आया।
3 - कामगार वे बाई या मजदूर जिन्हें भर पेट भोजन प्रतिदिन घर से बाहर जाने पर मिलती सर पकड़ कर बैठ गए।
हाँ इन सब से अलग बच्चे उदास हो गए क्योंकि स्कूल के साथ-साथ साथी संगत छूट रहे थे, मौज-मस्ती नहीं थी, घर में दिन रात मम्मी के साथ-साथ पापा के भी भाषण सुनने पड़ रहे थे। वे महिलाएँ जिनकी किटी पार्टी,क्लब, पिक्चर और मॉल भ्रमण छूट रहे थे मायूस थी। और जिस घर में सास थोड़ी बूढ़ी थी और बहू के एक पांव घर से बाहर रहते थे वे बहुत खुश थी।
मिला-जुला कर निष्कर्ष निकाला कि परिस्थित कोई भी आए सभी न तो खुश हो सकते हैं और न ही नाखुश। सबकी अपनी-अपनी।
उफ्फ्फ किसे क्या कहें। हमारे भारत के लोग कितने भोले कितने नादान हैं या आने वाले परिस्थिति को नहीं समझ रहे या खुद को भगवान समझते। कुछ समझ में नहीं आ रहा । अभी-अभी मुम्बई बांद्रा रेलवे स्टेशन पर लाखों की भीड़, कारण तो अभी तक पता नहीं चला। पर क्या हो सकता है? किसी ने अफवाह उड़ा दी होगी कि बांद्रा से आज और सिर्फ आज ही ट्रेन जाएगी। हमारे नादान भाई- बहन सब कुछ भूल कर सारी हदें पार कर हजारो की तायदाद में खड़े हो गए। भूल गए कि घर जा कर घर वालों को क्या देंगे, कोरोना की सौगात! कौन समझाए और कैसे समझाए। बस अब सारी निदानें कल पर छोड़ आज लेखनी बंद।