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Mritunjay Patel

Abstract Drama Romance

3  

Mritunjay Patel

Abstract Drama Romance

डाइवोर्स

डाइवोर्स

4 mins
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सावन से पहले कैसे पतझड़ में सारे पेड़ -पौधे उदास और नग्न हो जाते हैं फिर नए कोपल आकर नई उमंगों के साथ खिलखिला उठते हैं l ऐसी घटना मेरी ज़िन्दगी में कभी नहीं घटीl

मेरी ज़िन्दगी में प्रेम का आना हुआ तब मुझे लगा कि मेरी ज़िन्दगी में नई बहार आई हो जैसे फ़िज़ा में गीत बजने लगे “ जीना यहाँ, मरना यहां उसके सिवा जाना कहां….. l कुछ दिन बीतने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा की दरअसल मेरा यह पहला प्यार था ही नहीं l जो मुझे प्यार को लेकर ख़्यालात थी l दिन -व -दिन हमारी और प्रेम के बीच सारे रिश्ते ख़त्म हो गए l हम दोनों अपने -अपने महत्वकांझी आसमान को सिलने लगेl

ऐसा नहीं था कि उनकी यादें नहीं आती थी जब याद आती तो दिल को बहुत चुभती थी अगर उस समय मेरे हाथ में कोई सामान होती थी तो जोर से उसे पटक देती थी ‘धड़ाम’….कुछ देर के लिए शांत हो जाती थी l ज़िन्दगी पर philosophy देना बड़ा आसान होता है, ज़िन्दगी छोटी है यूँ ही कट जाएगी साली ये जिंदगी जीने में बड़ी मशक्कत है.. l

मैं सभी से नाते -रिश्ते तोड़ कर दिल्ली आ कर एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब पकड़ ली l तब से आज तक 40 साल कैसे बीते पता नहीं चला.. l उसी बीच कई बेस्ट फ्रैंड बने सभी के बड़े -बड़े सपने और साथ निभाने के वायदे….लेकिन सभी अंदर से खोखले नज़र आएं l सभी लिव एंड रिलेशनशिप में रहना चाह रहें थे. सबको पता था मैं एक डाइवोर्स लेडी हूँ l मैं किसी के सम्पूर्ण प्यार में बंधना चाह रही थी l जिस कारण किसी से ना बनी मैं अच्छी लेडी होती हुई भी खड़ूस में गिनती आने लगी l 

हमारे साथ बहुत लड़कियां कोम्प्रोमाईज़ कर आगे बढ़ी थी, चमचमाती गाड़ियों में घूम रही थी l मैं वही वर्षों की पुरानी स्कूटी से घर से ऑफिस , ऑफिस से घर l ये कम वक़्त उम्र अकेले काटने को दौड़ रही है l

अब मैं पूरी सोसाइटी कि आंटी थी l इस 40 वर्षों में एक जाने -अनजाने नंबर से फ़ोन आया….नम्बर पूरे तो याद नहीं थी, हां आखरी नंबर याद थी l मुझे यकीन नहीं हो रही थी कि उस नम्बर से फ़ोन क्यों आ रहा है l जब मैंने फ़ोन उठाया तो शक यकीन में बदल गई l 

एक ही शब्द था…. प्रिया मुझे माफ़ कर दो!

मैं आवाज़ को पहचानने की कोशिश कर रही थी, आवाज़ में कुछ देर के लिए पाउज़..

मैं बोलती रही hello आप कौन बोल रहे हैं और मुझसे कैसी माफ़ी, लड़खड़ाती आवाज़ आई ‘ मैं प्रेम बोल रहा हूँ.. l मैं कुछ देर के लिए शून्य रह गई l उसके आवाज़ में कोई ठसक ना थी लगता किसी बूढ़े की आवाज़ हो l लेकिन मेरी आवाज़ में ठसक बाकी थी कोई अनजान व्यक्ति मेरी फ़ोन रिसीव कर ले मेरी आवाज़ को पहचानना मुश्किल हो जाये.. गलत नम्बर से कई बार मुझे प्रोपोज़ भी कर देता ‘ मैं कहती तुम्हारी अम्मा की अम्मी लगूंगी….l


सच -मुच उनकी लड़खड़ाती आवाज़ ने मेरे अंदर उसके लिए करुणा से मेरा मन विचलित हो गई l मेरी गले रुंध गए, आँखों से आँसू बहने लगे ‘माफ़ी किस बात की हम दोनों ने अपनी मर्जी से एक दूसरे का साथ छोड़ा था…’

प्रेम फिर लड़खड़ाते और रुंधे स्वर में बोल पड़े ‘ ये मेरी भूल थी कि तुम्हें समझ नहीं पाया l’

आप कहना क्या चाहतें हैं?

मैं आख़री सांस तुम्हारे सामने बिताना चाहता हूँ l

आप ने अभी तक शादी नहीं की?

हां मैंने शादी की लेकिन अपने बच्चों से अलग – थलग एक वृद्धाश्रम में दिन गुज़ार रहा हूँ l

मेरा दिल मानो बैठ गया हो, मैं चुप रही l वह हमारे बारे में बहुत कुछ जानकारी कर रखे थे…l

उसने कहां अभी तक तुम अकेली हो, शादी नहीं की तुमने…..फिर से एक बार दुःख प्रकट किया फिर अपनी जिंदगी की कच्चा चिट्ठा खोला जो बहुत ही दुखद था! 

दो बच्चे होने के बाद जब दोनों बेटे 10-12 साल का रहा होगा उसी बीच पत्नी को लग्स कैंसर होने से उनकी मौत हो जाती है अपनी कमाई का सारा पैसा पत्नी को बचाने में झोंक दिया था l बाकी दोनों बच्चों की परवरिश में अपने आप को झोंक दीl दोनों बच्चे अपने पैर पर खड़े हो गए थे l मेरा सीना चौड़ा हो गया था, मानो मैंने अपनी जिंदगी में सब कुछ जीत लिया हो l दोनों बेटों की शादी होने के बाद अलग -अलग शहर में बस गए l मैं रह गया अकेला…उन लोगों की जिल्लत नहीं सह सकता था, दोनों अपनी तरक्की में लग गए थे, मानो मैं उन सब की तरक्की में बोझ बन गया हूँ l मुझे वृद्धाश्रम का सहारा लेना पड़ा l 

तुम्हारी याद हमेशा खलती रही एक दिन पता चला कि तुम दिल्ली में हो अभी तक शादी नहीं की तब मेरे ऊपर पाप का बोझ भारी हो गया शायद मुझे ऊपर वाले ने पाप के प्रायश्चित के लिए अकेला जीने के लिए छोड़ दिया है l

मैंने एक गहरी सांस ली ‘शायद भगवान की यही मंजूर रहा होगा l हम दोनों को आखिरी सांस में साथ रहने की विधान में लिख गये हो l 


समाप्त



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