दादा जी के अधूरे ख़्वाब
दादा जी के अधूरे ख़्वाब
राम प्रकाश उम्र (65 वर्ष ) उनके दो बेटे l परिवार का पेशा किसानी से चलता है l गरीब मध्य वर्ग l राम प्रकाश अपनी मेहनत से परिवार का परवरिश करते आएं हैं l दो बेटियों की शादी की दोनों बेटे को पाल – पोश कर बड़ा किया और उनकी शादी l उपर वाले की कृपा से दोनों बेटे का परिवार खुशहाल रहा हैl
अब दोनों बेटे सम्मिलित परिवार में नहीं रह सकते थे l इसलिए आपसी बटवारा करने की ठान ली है l जब दोनों बेटे को माता -पिता की जिम्मेदारी लेने की बात आती है तो दोनों सोच में पर जाते हैं l दोनों भाई का जिद इस बात पर रुकी थी कि सभी चीजों में बटवारा बराबर का हो l इसलिए दोनों चाह रहे थे कि एक बेटा में पिता और दूसरे के हिस्से में माँ आए l लेकिन यह बात पिता (राम प्रकाश ) को नामंजूर था l माता -पिता के दिल पर ठेस पहुँचता है l राम प्रकाश अपने पत्नी के साथ दोनों बेटे से अलग साथ रहने की फैसला कर लेते हैं l
सालनी उनकी पोती का रंग श्यामली, चंचल l उनके पिता ‘रखुबर’ अपने बेटी को पढ़ना चाहते हैं l इसलिए नहीं की शिक्षा उनकी अधिकार है l पिता चाहते हैं कि बेटी पढ़ – लिख लेगी तो उनकी शादी में ज्यादा दिक्क़त ना होगी क्योंकि बेटी का रंग श्यामली है l सालनी भी पढ़ना चाहती थी l सालनी की दाखिला अच्छी स्कूल में करवा दी जाती है l वह, स्कूल के अलावे ट्यूशन भी पढ़ रही थी l सालनी पढ़ाई में अपने आप को झोंक दी थी l सालनी जिस सामाजिक परिवेश में थी लड़कियां घर की काम- काज के साथ मवेसी, बकड़ियां लेकर नदी के किनारे चराया करती हैं l
सालनी की पढ़ाई पर खर्च करना के दादा जी ( राम प्रकाश ) को समझ की बाहर थी l उनका कथन यह था कि बेटी, घर का काम – काज करेगी तो शादी के बाद अपने ससुराल में खुश रहेगी l गरीब की बेटी पढ़ -लिखकर कौन सी कलक्टर हो जाएगी ! राम प्रकाश की पत्नी उन्हें बार -बार समझाती रहती हैं कि पोती के पढ़ाने के खिलाफ़ क्यों हैं ! आदमी को ज़माने के साथ चलना पड़ता है l आप को बुढ़ापे में अपने जीवन की मुक्ति के बारे में सोचना चाहिए l इस उम्र में पूजा -पाठ, दान - पुण्य का कार्य करनी चाहिए और आप का मोह मांसाहारी से टूट नहीं रहा है l मैं, आप से बार -बार कहती हूँ कि आप किसी साधु -महात्मा से गले में कंठी बंधवा लीजिए l लेकिन मेरी बात नीम की तरह करवी लगती है… l
सालनी, पढ़ाई में दिन व् दिन अच्छा करते जा रही थी l वह अपने माँ से सवाल करने लगी थी की क्या वह देखने में गोरी होती तो उसे पढ़ने का मौका नहीं मिलता …! वह लड़का, लड़की के बीच भेदभाव समझने लगी थी l लेकिन वह खुश थी की उसे पढ़ने के लिए मौका दी गई l वह हर क्लास में अव्वल रहती l
दादा जी पोती के पढ़ाई में सबसे अव्वल रहने पर खुश रहने लगे थे l अब वह भी अपनी पोती ( सालनी ) की बड़ाई करते नहीं थक रहें थे l पोती भी दादा जी का ख़ूब ख़्याल रखा करती थी l सालनी कहती कि - वह कोई अच्छी से सरकारी नौकरी करेगी l यह बात घर वालों के लिए आसमान में तारे तोड़ने के बराबर था l गांव -कस्बे में सरकारी नौकर की खासा मान – प्रतिष्ठा आज भी बरकरार है l
दादा जी को पोती ( सालनी ) के प्रति प्यार बढ़ गया था l वह पोती के “कन्यादान” को लेकर भी सोचने लगे थे l कन्यादान, हिन्दू समाज में एक प्रकार का रस्म है, जो कि शादी के समय उनके ख़ास रिश्तेदार ‘कन्यादान’ करते हैं l जिसमें वर - वधु को आशीर्वाद के रूप में कुछ वस्तु या कोई चीज़ दान करते हैं l
दादा जी ( राम प्रकाश ) के पास जमा के रूप में रुपए नहीं थे l वह सोचने लगे थे कि अभी से कुछ सामान जमा नहीं करेंगे तो पोती की कन्यादान कैसे होगीl
वह एक -एक पैसे जुटाने लगते हैं l जिस मेले में जाते वहीं से कुछ ना कुछ सामान खरीद लेते l इन बीते कुछ सालों में उन्होंने बहुत सारी सामान खरीद लिए थे l घर का एक कोना भर गया था l
अब दादा – दादी, पोती के कन्यादान के लिए चिंता मुक्त हो गई थी कि वह अपने हैसियत के हिसाब से बहुत कुछ खरीद लिए थे l वक़्त के साथ – साथ दोनों बेटे से अलग रहना सीखा दिया था l लेकिन वह अंतिम सांस तक अपना कर्तव्य से पीछे मुँह नहीं मोड़ना चाहते थे l
राम प्रकाश की पत्नी की अचानक सेहत ख़राब हो गई कई दिनों तक खाना – पीना त्याग दी, गाँव के कई डॉ. को दिखाया गया उनपर दवा का कोई असर नहीं हुआ वह परलोक सिधार गई l
राम प्रकाश अपने पत्नी के चले जाने की वज़ह से टूट गए थे l जो कभी पूजा - पाठ नहीं करते थे l अब वह भक्ति में रम गए l गले में कंठी और रामचरित्र मानस की संस्कृत श्लोक कंठस्थ याद हो गए थे l मानो पत्नी की कही बातें को सार्थक कर रहें हो l
पोती ( सालनी ) बैंक की जॉब के लिए परीक्षा में इस बार सफल हो गई थी l घर में खुशी का ठिकाना ना रहा l दादा जी का धारना टूट गया था l सालनी अपने ही घर की अकेली लड़की नहीं थी जो सरकारी नौकरी हासिल की ! वह पूरे गांव की पहली लड़की थी जो अपने सपने को साकार की थी l चारों तरफ से बधाइयाँ आने लगी थी l दादा जी का सीना चौड़ा हो गया था l
दादा जी का पुराना चोट जो किसी मोटर साइकिल के एक्सीडेंट से सर में चोट लगी थी l वह पुरानी ज़ख्म ताज़ा होने लगा था l डॉ. से उपचार के दौरान पता चला कि कई नस खींच जाने कि वजह से सेहत ख़राब होने लगी है l घूमने – फिरने में दिक्कत होने लगा था l पत्नी का वियोग उसे अंदर से खोखला कर दिया था l
दादा जी ( राम प्रकाश ) अपनी पोती के कन्यादान किए बिना स्वर्ग सिधार गए l
दादा जी के चले जाने के बाद फिर से उनकी चीजों का बटवारा हुआ l जिसमें पोती( सालनी ) के कन्यादान की वस्तुएँ थी l इसका भी दोनों भाई में बटवारा हो रहा था l पीतल की थाली, लोटा ,….इत्यादि l वह बर्तन मानो बेजान हो जो बिना मक़सद का खरीदा गया कोई वस्तु हो… l
पोती ( सालनी ) के दिल पर एक - एक वस्तु का बटवारा जैसे उसके दिल को छल्ली कर दे रही हो l वह हर वस्तु में दादा जी की रूह को महसूस कर रही थी l सालनी को दुःख हो रही थी काश आज दादा जी ज़िन्दा होते तो मैं भी उनकी सपने पूरा करती l पहली कमाई का सुख देकर, मैं भी धन्य हो जाती l लेकिन मेरे और दादा जी की किस्मत एक जैसी निकला l
सालनी की शादी बड़ी धूम – धाम से हुई l अच्छा घर -वर मिला l अधूरा सा रह गया था तो दादा जी का आशीर्वाद, कन्यादान के लिए सपने l सालनी के हिस्से में कुछ बर्तन मिले थे जो दादा जी ने संजोए थे l उस वर्तन को देख कर दादा जी के यादें फिर से ताज़ा हो गई.. l उस वर्तन को सीने से लगा कर फूट – फूट कर रोने लगी l उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि दादा जी उन्हें आशीर्वाद दे रहें हो l
समाप्त
