नुक्कड़ नाटक : वादों का झुनझुना
नुक्कड़ नाटक : वादों का झुनझुना
नुक्कड़ नाटक :
।। वादों का झुनझुना।।
पात्र परिचय :
युवा - १० से २०
पुलिस अधिकारी - १
पुलिस - ४- ५
नेता - १.
रिपोटर्स - २
प्रस्तावना
देश में सबसे ज्यादा युवा हैं । और किसी देश और समाज का निर्माण युवा के कंधों पर होता है । हम युवा को जिस दिशा में निर्माण करते हैं। उसका प्रतिफल वैसा ही होता है ।
आज युवा हर दृष्टिकोण से छला जा रहा है। वह राजनैतिक , सामाजिक और सांस्कृतिक क्यों ना हों!नेता उसे रोजगार का झुनझुना ,दिखाकर उसके सपने को दफ़न कर दे रहीं हैं। वह घर की ज़िम्मेदारी का बोझ उठाने में असमर्थत हैं। जिस कारण उसे अपमान सहना पड़ता है । उसके लिए शादी का रिश्ता तक नहीं आता । लड़की ऐसे युवाओं को तिरस्कार कर देती है।
लड़का, लड़की के समानता की आर में युवाओं का शोषण अदृश्य सा लगता है।उसके ऊपर चरित्र हनन का आरोप आसानी से गढ़ा जाना आम बात हो गई है ।इस बात को कतई नकारा नहीं जा सकता है, कि समाज में पैतृक सत्ता है । उसका भी दोहन पुरुष के हर रुपों में उस पर किया जा रहा है । चाहें उसकी आजादी को लेकर हो या कपड़ा पहनने को लेकर कर हो । लड़कियों / महिलों के साथ लगातार घरेलू हिंसा, छेड़छाड़ और बलात्कार का मामला मानवीय संवेदनाओं को झकझोर रहीं हैं।
यह नुक्कड़ नाटक तात्कालिक समस्या मूलक मुद्दों को उजागर करती है । सत्ता से सवाल करती है।
यक्ष प्रश्न यह है कि माहौल /व्यवस्था मूल जड़ क्या है ?
जिससे युवाओं और युवतियों की महत्वकांक्षा दफ़न हो जा रहीं हैं। युवा दिशाहीन और कुंठिक होने पर मजबूर हो जा रहा है । और कई गहरे सवाल खड़ा करती है ।
लेखक:
मृत्युंजय पटेल
दृश्य 1
समय - दिन।
स्थान - किसी समुदाइक , नुक्कड़ या मैदान आदि।
पात्र - १० - १२ युवाओं का हुजूम /भीड़ ।
(नाटक को समा बांधने के लिए औपचारिक गीत / जोगिरा गाते है ,जो कि युवाओं की सरकार से मांगों की प्रतिकारात्मक गीत हैं। युवा पर हो रही लगातार शोषण का केन्द्र बिंदू है ।
जिसमें बेरोजगारी, आर्थिक संकट, पलायनवाद, बेरोगारी में लड़की के द्वारा समाजिक तिरस्कार, घरवालों की उनसे बड़ी अपेक्षा आदि। को लेकर मैदान में सरकार के प्रति प्रतिरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।)
गीत / जोगिरा :
चलत मुसाफ़िर मन मोह लिया रे
……
चलत मुसाफ़िर मोह लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया ) - ३
उड़ उड़ बैठी हलवइया दुकनिया - २
हे रामा!!!!
उड़ उड़ बैठी हलवइया दुकनिया
आरे!!
(बरफ़ी के सब रस ले लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया ) - २
अ हे अ हे ... हे रामा
उड़ उड़ बैठी बजजवा दुकनिया - २
आहा!!!!
उड़ उड़ बैठी बजजवा दुकनिया
आरे!
(कपड़ा के सब रस ले लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया ) - ३
जियो जियो पलकदस जियो!!
उड़ उड़ बैठी पनवड़िया दुकनिया - २
हे रामा!!!!
उड़ उड़ बैठी पनवड़िया दुकनिया
आरे!!
(बीड़ा के सब रस ले लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया ) - ३
(गीतकार शैलेंद्र )
जोगीरा:
जोगीरा सरार..
वाह जोगीरा सरारर..
हमें अपना हक़ चाहिए ।
नहीं कोई भीख चाहिए।
हम युवा हैं, मुझे स्वाभिमान चहिए।
सपनों का “झुनझुना” नहीं, हमें उड़ान चाहिए।
जोगीरा सरार..
वाह जोगीरा सरारर..
कुर्सी पर जो बैठा उल्लू है,
उनसे करनी है ज़रा मुलाकात ।
तेरी तानाशाही नहीं।
जोगीरा सरारा..।२
युवा - हमारी मांगे पूरा करो ।
युवा - पूरा करो। २
युवा - तानाशाही नहीं चलेगी।
युवा - नहीं चलेगी ।२
युवा- युवाओं का शोषण बंद करों।
युवा - बंद करों। २
(सभी सरकार के खिलाफ़ नारे लगा रहे हैं। तभी कुछ पुलिस आकर उसपर लाठी चार्ज करते हैं। सभी में भगदड़ हो जाती हैं। सिंबोलिक वाटर कैनन चलाया जाता है । सभी युवा आपस में एक दूसरे से लिपट जाते हैं। )
सभी एक साथ -
लाख चले लाठी - डंडा ,
हम ना इरादों से झुकने वाले हैं ।
चला दो अपने बुजदिली का तोप,
कल यही युवा इतिहास लिखने वाले हैं।
युवा १. -
तुम्हारी तानाशाही नहीं चलेगी ।
सभी - नहीं चलेगी ।
(कुछ पुलिस भीड़ को आगे बढ़ाने से रोकने की कोशिश। पुलिस अधिकारी, मंत्री को फोन लगा कर बात करता है। तभी दूसरे तरफ कुछ युवा नेता जी का कुर्सी बन जाता, जिसपर नेता जी बैठ जाते हैं। एक दूसरे से बता - चीत ।)
पुलिस अधिकारी-
हेलो सर , युवाओं को कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा हैं । अब क्या करें। आगे आपका इलेक्शन भी सर पर है । अच्छा होगा की आप आश्वाशन का झुनझुना बजा कर सभी को घर वापस भेज दीजिए !आप तो राजनीतिज्ञ चाणक्य है । अभी कोई भी रिस्क लेना ठीक नहीं हैं।
( नेता जी मानव कुर्सी पर ठाठ से बैठे, पान चवाते हुए फ़ोन पर अधिकारी को आदेश देते है।)
नेताजी -
आरे बुड़बक ! जरा माहौल गर्म होने दो । तब पाशा खेलने में मज़ा आता है । अगर सारी मुसीबतों का एक ही बार में हल हो जायेगा , तो हम लोग क्या करेंगे। हर पांच साल , कुछ ना कुछ जनता को चूरन देना होता है। ये कोई साधारण बात है ।
(तभी नेता जी पान का पीत ज़मीन पर उगल देता है।)
पांच साल कुर्सी पर रह कर ,उसकी हलक से माल- पानी छीनना होता है । फिर इसी कुर्सी के लिए मकड़ जाल बिछाना पड़ता है । ये सभी धरना - उरना हवा की झोखा की तरह है । ये लोग कुछ दिन भूखा रहेगा । कुछ को ठंडे पड़ेंगे।सभी मुद्दे शांत पड़ जायेगा । ये हमें पता है कि उसे कैसे और कब पटाना है । उसे आगे मत बढ़ने दो । आप बस अपना ड्यूटी करों ! किसी की जान न जाएं यह ख्याल रखना बस । आगे से कोई नसीहत मत दो समझें की नहीं समझें ।
पुलिस अधिकारी-
धत साला! हम लोग धोबी का कुत्ता हैं। ना इधर का , ना उधर का । डंडा चलाओं तो दिक्कत ना चलाओं तो दिक्कत ।
पुलिस :-
तो अब हम क्या करें!
पु० अधिकारी -
फॉलो ऑन रूल एंड ऑडर। किसी को भी आगे मत बढ़ने दो ।
(उसी भीड़ में से कई युवा रिपोटर्स बनकर सामने अपने हैंड को कैमरा बनाते हुए, दूसरे हाथ में माइक का एक्ट करते हुए युवाओं से पूछताछ करने लगता है । )
रिपोटर्स: -
अभी मैं आप लोगों के बीच लाइव हूं। युवा अपने मांगों को लेकर कई दिनों से लगातार धरना प्रदर्शन कर थे । आज उनके साथ प्रशासन बर्बरता से पेश आई है । यह घटना कहीं न कहीं लोकतंत्र पर आघात किया है।
आम आदमी अपनी अधिकारों की मांग करती है तो सरकार द्वारा पर बर्बरता से लाठी चार्ज करती है। आखिर लाचार युवा / नागरिक क्या करें ?
(युवा से सवाल )
आप युवाओं को सरकार से क्या मांग है ?
(सभी के हाथ में एक- एक “झुनझुना” है । जो चारों तरफ पब्लिक की ओर इशारा करते हुऐ झुनझुना का शोर मचाता है । )
युवा १.
हम जब भी अपना अधिकार सरकार से मगाते हैं ,
हमें वादों का ‘झुनझुना’ पकड़ा दिया जाता है।
युवा २.
जब हम बेरोजगारी की बात करते हैं। तो सरकार कहती है ! सभी - हम चांद पर पहुंच गए । भाई आप ही बताओं बेरोजगारी और चांद में क्या संबंध है।
गाने -
(यह गाने गरीबी और बेरोजगारी की दंश को बिंब के रूप में प्रस्तुत करती है )
इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ
इक बगल में नींद होगी, इक बगल में लोरियाँ
हम चाँद पे, हम चाँद पे,
रोटी की चादर डाल कर सो जाएँगे
और नींद से, और नींद से कह देंगे
लोरी कल सुनाने आएँगे
इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ
इक बगल में नींद होगी, इक बगल में लोरियाँ
हम चाँद पे, रोटी की चादर डाल के सो जाएँगे
और नींद से कह देंगे लोरी कल सुनाने आएँगे
(गीतकार पियूष मिश्रा )
युवा ३.
अब बेरोजगारी का डंस सहा नहीं जा रहा हैं। घर का बड़ा बेटा हूं। सारा जिम्मेदारी का बोझ मुझ पर है। घर वालों ने बहुत सारे आशाएं पाल रखें हैं ।
मेरे “मां - बाप” खेती - मजदूरी कर मुझे पढ़ाया - लिखाया ताकि कुछ अच्छा काम कर सकूं । लेकिन रोज़गार के नाम पर क्या मिला ?
सभी -
“झुनझुना” !
(अपने हाथ में लिए झुनझुना बजाता है ।)
युवा ४.
मैं ने कल पिता जी से कहा, “ मैं आज से पकौड़ा तलना शुरू करता हूं।” तब पिता जी झल्ला गए। बोले:
तुम्हें पढ़ाने - लिखाने से अच्छा होता , घर का बैल ही रहने देता ।
युवा ५.
हमारे पड़ोसी दिलासा देते हैं, “ चाय बेच कर आदमी देश का बड़ा आदमी बन सकता है । पैट्रोल पंप पर काम करने वाला अंबानी बन सकता है ,तो तुम क्यों नहीं बन सकते हो । “
युवा ६.
हां हां….!!! (व्यंग्य करते हुए)
लोग तो यही चाहतें हैं , हम आज भी उसी दलदल में फसे रहें ।
युवा ७.
शिक्षा में शिक्षा माफिया घुस आया है । परीक्षा से पहले ही सीट बिक जाता है । परीक्षा के पर्चे लीक हो जाता है और हमारे हिस्से में क्या आता है “झुनझुना “…।
युवा ९.
आज हमारी शादी नहीं हो रही है , क्योंकि मेरे पास कोई नौकरी नहीं हैं। समाज के नजरों में मैं एक निठल्ला हूं , निठल्ला..।
युवा १०.
भाई ! हद तो तब गई,मेरे पड़ोस में श्याम भाई की पत्नी भाग गई ! क्योंकि उसे कोई सही रोज़गार नहीं मिला ।
युवा १.
भाई सच बयां करने में संकोच कैसा ?
हम युवाओं का कॉन्फिडेंस बहुत लूज हो गया है । खुलकर प्रेम करने की हिमाकत तक नहीं कर सकते हैं।
अब प्रेम भी व्यापार हो गया हैं।
पूछी जाती है , आप के पास कोई सरकारी नौकरी है क्या ?
मुंह तो बेरोजारी में पहले से सुखा रहता है। मुंह तो तब “चौकर आम” की तरह लटक जाता है।
लड़की ११.
हमारे ऊपर हो रहें घरेलू हिंसा, बलात्कार,आसमंताओं का भेदभाव क्यों हो रहा है ?
हम २१वीं सदी में जी रहे हैं। क्या बदला है, हमारे जीवन में! आज भी अपने सपनों की छलांग नहीं लगा सकती ..। हमें गर्व में ही मार दी जाती है ।
आज भी पुरुष अपने अवधारणाओं में कैद रखना चाहता है । आखिर एक नारी का आकार क्या है?
युवा १२-
अधिकार तो हमारा छीना जा रहा है । घर भी शोषण बाहर भी शोषण !
लड़की -
कहना क्या चाहते हो तुम ?
युवा १२-
घर और बाहर की ज़िम्मेदारी हम मर्दों का होता है ।
लड़की -
स्त्री के योगदान बिना एक कदम चल नहीं सकते हो। घर की जिम्मेदारी, रिश्तों को तो हम निभाते हैं। जब - जब मौका मिला बेहतर कर दिखाया है ।
अगर देश और समाज को आगे बढ़ाना है तो उनकी स्वतंत्र अधिकार दिए बिना आगे नहीं बढ़ सकती हैं ।
युवा१ - ये है विकास के नाम झुनझुना ।
युवा२ - ये है समार्टसिटी के नाम झुनझुना ।
युवा ३- ये है धर्म और जाति के नाम झुनझुना ।
युवा ४- ये फैक्ट्री / उद्योग के नाम झुनझुना ।
(सभी गोलचक्र लगाते हुए आवाज़ लगाते है ।)
युवा, मजदूरी और रोजगार के लिए दूसरे प्रदेश को जा रहें हैं। सभी प्रदेशों से हमें गलियां मिलता है।
हम अपनी स्वाभिमान की रक्षा भी नहीं कर सकते हैं।
सभी - अपने प्रदेश में उद्योग लगाए।
युवा - नई तकनीतियों का विकास किया जाए।
युवा - सत्ता हासिल करने यूवाओं को जाति और धार्मिक उन्मादों में ना उलझाया जाए ।
(तभी पीछे से युवा की आवाज़ लगता है, की राम प्रकाश ने आत्म हत्या कर लिया । एक युवा ज़मीन पर
लेट जाता है । सभी दौड़ कर उसके पास विलाप करते है । इसको कंधे पर लेकर राम नाम सत्य का श्लोक बोलते गोल चक्कर लगाता है। )
युवा १३.
हे “भगवान” जुलुम हो गया ! राम प्रकाश भाई आत्म हत्या कर लिया।
युवा सभी -
रामप्रकाश, आत्म हत्या कर लिया! (अफ़सोस जताते हुए) एक और बेरोजगार की हत्या !
( सभी “रामप्रकाश” को सहानुभूतिपूर्ण उसके चारों ओर घेरा बनाकर बैठ जाते हैं।)
युवा - ५
ये अच्छा नहीं किया प्रकाश ! तुम तो होनहार विद्यार्थी थे । तुमसे हम सब की उम्मीदें जुड़ी थी ।
तुम कायर कैसे हो गए ! आज से लोग तुम्हें कायर ही कहेंगे! तुम्हारी संघर्ष की यश गान कोई नहीं गाएगा ।
युवा २
प्रकाश, तुम ने आत्म हत्या नहीं की हैं ।
ये हमारी लाचार व्यवस्थाओं ने हमारी महत्वकांक्षा को दमन किया हैं। तुम्हारा हत्यारा हमारी लाचार व्यवस्था है।
(सभी रामप्रकाश को चार युवा कंधे पर उठा लेता है, जैसे अर्थी पर लिए संस्कार के लिए जा रहे हैं । एक युवा हाथ में मिट्टी का बर्तन लिए आगे आगे चल रहा है । )
सभी -
राम नाम सत्य है।
राम नाम सत्य है।
राम नाम सत्य है।
युवा -
आखिर कब तक हमारे सपनों का हत्या होता रहेगा । हमें चिंता है, अपने देश की । हमें चिंता है, अपने परिवार की जिम्मेदारियों का । हमें सपनों का झुंझना दिखाना बंद करों । अगर युवा का भविष्य उज्जवल होगा,तभी हमारा देश आगे बढ़ेगा। हम खुशहाल होंगे। नई पीढ़ी का सपना साकार होगा ।
जय हिंद ।। जय युवा शक्ति।।
।। समाप्त
