Mritunjay Patel

Tragedy

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Mritunjay Patel

Tragedy

बदलते समाज की दशा और दिशा

बदलते समाज की दशा और दिशा

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बिहार राज्य ग्राम पंचायत चुनाव में मुझे इस बार प्रत्यक्षदर्शी के रूप में बहुत करीब से देखने का मौका मिला । एक तो हम सभी कोरोना काल से उभरने की ज़दोज़हद में थे दूसरी तरफ पंचायत इलेक्शन करवाने की घोषणा से उम्मीदवार में नया तरह का ज़ोश पैदा हो गया था पढ़े -लिखे बेरोज़गार युवा राजनीत में आने को आतुर थे । अपने विचार को जनता तक पहुँचाने में लगे थे । लेकिन उम्मीदवार से एक चूक ज़रूर हुई थी कि किसी ने भी समाज को समझने की कोशिस नहीं की थी । समाज की बुनियादी ज़रूरत क्या है? भौगोलिक परिस्थिति में योजनाओं का सही विकास कैसे हो…..इन सभी से परे । बस एक हीं ज़ूनून था किसी तरह से पद हासिल करना । रोजगार का नया रास्ता बनाकर मोटी रकम को अपने हिस्से में लेना । 

अगर हम सामाजिक सरोकार की बात करे तो आज भी बिना पद आसीन लोग पंचयात के घरेलू मामले, ज़मीनी मुद्दे…अन्य प्रकार के मुद्दों पर आपसी समझौता करवाने में आगे रहते हैं और समाज में मांग उन्हीं की रहती है । 

इलेक्शन का बिगुल बज चूका था । उम्मीदवार मैदान में कूद चुके थे । उम्मीदवार अनेकों तरह की चोचले गढ़ कर जनता को रिझाने में लगे थे । सभी अपने त्रियाचरित्र को गंगा जल से धूलकर मानों पवित्र बताने लगे थे …अपनी उपलब्धि पर मौन और दूसरे की टीका -टिपणी में जुड़ गए थे । 

जनता सभी उम्मीदवार के व्यक्ति विशेषण से वाकीफ थे सभी उम्मीदवार को वोट का समर्थन कर उनका मन गद -गद कीये हुए थे । पंचायत के अन्दर एक नया समीकरण बिचोलियों के रूप में तैयार हो रहा था । जो व्यक्ति जितना पढ़ा लिखा युवा, काविल उससे ज़्यादा उम्मीदवार चालाक निकला उसने, उनके अन्दर के चोर को यूं कह लीजिए युवा उन्मादी मनोविज्ञान को समझ गया था । उसके सामने दारू, गाजा, मुर्गा मसल्लम परोसे जाने लगे थे । उसके सपने को हिलकोर दे रहा था जैसे मुंगेरी लाल के हसीन सपने...। 

पंचायत के लोग कई धररे में बट गए थे सभी लोग कन्फ्यूज थे । सभी उम्मीदवारों का समीझा और आलोचना हो रहा था । चाय के नुक्कड़ पर बड़बोलों की कमी ना थी, बेवज़ह की मुद्दे को हवा देना । अब इलेक्शन चर्मोउत्कर्ष की ओर पहुँचते जा रही थी । लोंगो का रंग साफ दिखने लगा था कौन किसके समर्थन में है । जनता बस एक बनावटी चोला पहन रखा था! 

पंचायत, जाति, धर्म, टोला -मोहल्ला में बट कर तैयार था उम्मीदवार का चरित्र बदल गया था । जितने लोग उतनी बातें । सभी लोग जाति -पाति, टोला -मोहल्ला में उम्मीदवार को चुनने की समीकरण पर मानों मुहर लगा चूके थे । अब किसी व्यक्ति विशेषण का कोई ज़्यादा तबज़ू ना रहा था । कुछ लोग बस हवा की रुख़ की इंतज़ार कर रहे थे... । 

सभी उम्मीदवार अपनी जीत की ताल ठोक रहें थे । प्रचार -प्रसार की चीखती लौडिस्पीकर की आवाज़े सभी के कान को बहरा बना दिया था । जिस समाज में सामाजिक कर्मठता की घोर आभाव हो आज लौडिस्पीकर के माध्यम से सभी उम्मीदवार अपनी कर्मठता की राग अलाप रहे थे । लेकिन जनता के सामने सभी नंगे थे । इलेक्शन का प्रचार समाप्त हुआ लोंगो को शोर -गुल से राहत मिला । लेकिन उम्मीदवारों से प्रेसर अभी भी बना हुआ था । 

कल इलेक्शन होना है उम्मीदवार रात भर गस्ती लगाते रहें कहीं कोई उमीदवार वोटर को खरीद -फरोख्त ना कर ले ।

आज सुबह वोटिंग शुरू हो गया था लोग बढ़ - चढ़ कर वोटिंग कर रहे थे । कुछ घंटे बाद एक अलग तरह की बात सुर्खियों में आने लगी कि फलाने -फलाने जगहों का वोटर बिक गए, एक वोट पर 500 -1000 रूपये दिए गए! मुझे यकीन नहीं आ रहा था । सभी उम्मीदवारों का होश उड़ गए थे लेकिन सही ख़बर की पुष्टि अभी बाकी था । सभी राम भरोसे अपनी जीत की जयकार लगा रहे थे ।

अब रिजल्ट का आना बाकी रहा गया था । एक दिन छोड़ कर जब उम्मीदवार की परिणाम घोषित हुआ सभी के होश उड़ गए थे जिस प्रतिद्वंधी से कोई उम्मीद ना थी । पैसों का कमाल साफ दिख रहा था कितनों ने अपनी ईमान बेच कर अपने स्वतंत्र वोटिंग का अधिकार ही नहीं खोया था उसने लोकतंत्र की हत्या भी की थी । 

आख़िर इसी तरह से पंचायत इलेक्शन में भी नोटों का खेल होता रहा तो विकास का क्या होगा । पंचायत में किसान वर्ग, गरीब वर्ग के लोग पंचायत इलेक्शन से भी दूर रहना पड़ेगा । जिस तरह से लोक सभा, विधानसभा.. के इलेक्शन से आम आदमी दूर हैं । इस तरह के बनते हालात पर चिंतन करना बेहद ज़रूरी है । 







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