ख़्वाबों के फूल
ख़्वाबों के फूल


रघुवीर की उम्र ४५ (वर्ष) उनके बाप, दादा पुश्तैनी 'ज़मींदार' थे लेकिन रघुवीर की माली हालात बहुत अच्छा नहीं रहा था। पुश्तैनी मान -सम्मान की वजह से गांव का 'प्रधान' है। रघुवीर ईमानदार होने के कारण उनके सामाजिक फैसलों पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। रघुवीर की इकलौती बेटी (राधिका) है ।वह अपनी बेटी से बहुत प्यार करते हैं, उनकी ख्वाहिश है कि बेटी की शादी किसी सरकारी नौकरी वाले लड़का से हो। रघुवीर अपने बेटी को पढ़ाई के लिए शहर तो नहीं भेज सका, वह अपने ही गाँव के शहर में बी.ए. की तालीम ले रही है। वह बिंदास टाईप की लड़की है।
उसी शहर के नुक्कड़ पर सुलतान का मोटर गैरेज की दुकान है। वह दरअसल मैकेनिकल इंजीनियरिंग का असफल स्टूडेंट था, बेरोज़गारी में वह अपनी गैरेज चला रहा है। वह दिल का अच्छा है और बेबाक बोलता भी है, वह किसी धर्म, जाति से कट्टर नहीं हैं ...इसलिए आए दिन मुद्दों पर कटाक्ष करता रहता है जिस कारण सुलतान विवादों में घिरा रहता है, यही वज़ह रहा था कि वह मैकेनिकल इंजीनियररिंग पास नहीं की ....एक्स्ट्रा एक्टिवियों में ज़्यादा रहा था। सुलतान की नज़र राधिका पर है, वह राधिका को लाईक करता है। कई बार उसके अजीब हरकतों की वजह से राधिका पर इम्प्रेशन अच्छा नहीं है। राधिका उस के डर से कई बार बच के निकल जाती है। वह कोई हंगामा खड़ा नहीं करना चाहती है। राधिका को मालूम है कि उसके पिता उसके जैसे लड़का को उखाड़ फेंकेंगे फिर भी समाज में बदनामी लड़की की ही होती है। एक दिन सुलतान, राधिका को प्रोपोज़ कर देता है ...उसे हर हाल में मनाने की कोशिश करता है , राधिका के पास कोई दूसरा सलूशन नहीं था। वह उसके मन रखने के लिए मान जाती है, .....लेकिन कुछ समय चाहिए सोचने के लिए। सुलतान को ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है, वह राधिका को अपनी मोटर बाईक पर बैठने की सहमती कर लेता है। राधिका को डर था कि कहीं घर वाले ना देख ले। ...गाँव के शहर में चुपके से इश्क़ लड़ाना ख़तरे से खाली नहीं होता ...हर शाख पर उल्लू की तरह आपके पड़ोसी बैठा होता है .....वैसे भी इश्क़ का चर्चा फैलने में समय नहीं लगता है। सुलतान ख़ुशी के उतावलापन में, 'राधिका' को अपने मोटर बाईक पर बिठा कर शहर का चक्कर लगा देता है ....उसी मार्केट में राधिका के पिता, बेटी 'राधिका' को उस लड़का के साथ देख लेता है। अब होना क्या था! राधिका को घर में क्लास लग जाती है।
....मान, मर्यादा .....इत्यादि। राधिका, पापा से सारी बात बताती है, रघुवीर इस घटना को बर्दाश्त नहीं कर सकता था। वह अपने गुर्के को लेकर सुलतान के गैरेज को घेर लेता है, दोनों में ज़बर्दस्त लड़ाई हो जाती है, आननफान में पुलिस आ जाती है ..लड़की की छेड़छाड़ के आरोप में सुलतान को कुछ समय के लिए पुलिस स्टेशन जाना पड़ता है। सुलतान पर कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था । इंस्पेक्टर का आना -जाना पहले से गैरेज पर लगा रहा था ......फ्री सर्विसेज जीप, बाईक इत्यादि। पुलिस, सुलतान को हिदायत देकर छोड़ देती है। रघुवीर इस घटना से आहत होता है, वह ठान लेता है कि बेटी की शादी कर देने में ही भलाई है, पिता, सरकारी नौकरी वाले लड़के की तलाश में भीड़ जाते है, तब जाके पता चलता है कि फलाने बाबू का बेटा सिविल इंजीनियर है। लड़का वाले की तरफ से कहा जाता है कि आपके जैसा पुश्तैनी ठाट -बाट तो नहीं है लेकिन लड़का सरकारी इंजीनियर है ...और क्या चाहिए ? रघुवीर, लड़का देखने उसके घर आते हैं ....दोनों पक्ष में बात -चीत के दरमियाँ विषय का सेंटर दहेज़ पर आ जाता है। दहेज़ के रूप में दस लाख का डिमांड कर देता है.....शायद ही लड़के का पिता कभी लाख की गड्डी देखा होगा ...यूं कहिये लड़का होनहार था अपने दम पर कम्पेटीशन पास हो गये थे।रघुवीर इतना रकम सुन के एक -दम से तिलमिला जाता है, वो अपने गुस्से को सँभालते हुए ..अपनी बेटी का पक्ष रखता है ,"मैं ने भी अपनी बेटी को अनपढ़ नहीं रखा है ....बी.ए. कर रही है ,हम ने बेटी को अच्छे संस्कार दिए है, बेटी तो आपके घर, परिवार को संभालेगी ......" दोनों तरफ से कई सवाल होते हैं जिसका कोई मतलब नहीं निकलता है .....दहेज़ में दस लाख ही चाहिए ! दहेज़ एक सामाजिक मर्यादा हो गया है ....रघुवीर अपने गुस्से को पीते हुए वहां से चले आते हैं, उसके पास दहेज़ देने के लिए उतने रुपये नहीं थे। उनके पास रह गया था तो पुरखों की मान -सम्मान .....। लड़का (शंकर )की शादी बैंक मैनेजर की बेटी से तय हो जाती है। बारात बड़े ही शानो शौकत से गाजे -बाजे के साथ जा रही होती है। बारात अपने गंतव्य से पहुँचने में कुछ मील का फासला रहा होगा ....दुल्हन का घर दुल्हन की तरह सज कर तैयार था....लोगों में उत्सुकता है कि बारात फलाने जगह पहुँच गई हैं.........कई तरह का शोर ..। इतने में दुल्हे का अपहरण हो जाता है, गोलियों की आवाज़ सुन कर बारातियों में भगदड़ मच जाती है। लड़की वालों तक ख़बर पहुंच जाती है कि दुल्हे राजा को कोई अगवा कर लिया ह। रघुवीर बन्दूक कि नोक पर शंकर को अपहरण कर लिया था। राधिका की शादी इंजीनियर (शंकर )से करवा देना चाहता है, इस तरह कि शादी की रज़ामंदी राधिका को पसंद नहीं है ...राधिका की एक भी बात नहीं मानी गई...शंकर और राधिका को एक कमरे में बंद कर दिया गया। शादी को लेकर शंकर और राधिका में बहस होती है । "...तुम्हारे बाप भले ही बन्दूक के नोक पर हमारी शादी करवा दे, तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुम्हें एक्सेप्ट कर करूँगा...।
राधिका बेबाक बोल पड़ती है " सही कह रहें हैं आप लेकिन एक पिता को मजबूर किसने किया .... । आप के जैसे पढ़े लिखे लोग दहेज़ को प्रोत्साहन देते हैं ,जिससे समाज में असमानता का भाव बढ़ता है। हर पिता चाहता है कि उसकी बेटी को अच्छा वर मिले जो उनकी हर कमी को पूरा करें। जब उनकी मर्यादा को ठेस पहुंचता है तब ग़लत कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं। मैं इस फैसले को सही नहीं मानती हूँ। हर हाल में अभिशप्त हम लड़कियां ही होती है, कभी दहेज़ के नाम पर तो कभी लिंग भेद के नाम पर उत्पीड़न सहना पड़ता है या उन्हें मार दी जाती है। आप कौन सी डिग्री कि बात कर रहे हैं ? उससे अच्छा तो अंगूठा छाप है ...वह आदमी और रिश्तों की परख़ जानते हैं ......मुझे भी आप जैसों से नहीं करनी है शादी ! "
इन कई प्रकार के बातों ने इंजीनियर को हिला कर रख देता है .उसके सामने कोई शब्द नहीं था कहने को .......बाहर औपचारिक गीत -नाद चल रहा था ,राधिका ज़ोर -ज़ोर से चिल्लाती हुई दरवाजे पीट रही है .....दरवाजे खुलते ही ....अपने पापा पर टूट पड़ती है "....बन्दूक की नोक पर शादी करवा कर आप, अपनी बेटी को खुश देखना चाहते हैं ?
शायद मैं आप के लिए बोझ बन गई हूँ ....करा दो हमारी शादी किसी अंगूठे -छाप से उससे ज़्यादा सम्मान आप की बेटी को मिलेगा ....दहेज़ ना देने की वजह से आपकी बिटिया को आग में नहीं जलाई जाएगी . .. वर्ना इसी बन्दूक से मार दो मुझको। रघुवीर जिस गुस्सा और जोश से बेटी की शादी के लिए 'लखटकिया दूल्हा' पकड़ लाया था ,यह प्रपोजल अब कोई काम का नहीं रहा था, रघुवीर को हकीकत का अंदाज़ा हो जाता है ,दुल्हे को छ
ोड़ दिया जाता है। यह ख़बर कुछ ही समय में लोगों के कानो -कान चल गया था , रघुवीर किसी दुल्हे को अगवा कर अपनी बेटी से जबरन शादी करवा देना चाहता है , यह बात सुलतान को पता चलता है। सुलतान ,राधिका से एक तरफा प्यार करता है। सुल्तान ,राधिका की शादी नहीं होने देना चाहता है ,वह कुछ अपराधी तत्व लिए राधिका की गाँव की तरफ जा ही रहे थे कि इतने में एक दुल्हे के लिबास में एक खटारा बाईक के पीछे दूल्हा दिख जाता है ,सुलतान उसे रोकता है , दोनों आमने- सामने होते ही एक -दूसरे को देख कर हैरान हो जाता है ! दोनों वही दोस्त थे जो इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते थे। दोनों कि जबरदस्त वैचारिक दुश्मनी थी, हॉस्टल में वर्चस्व की लड़ाई में दोनों के बीच गोली भी चल चुकी थी। लेकिन शंकर स्टर्डी को इम्पोर्टेंट देता रहा था। जब शंकर 'इंजीनियरिंग डिग्री' लेकर जा रहा था तब दूसरी तरफ सुलतान फेल होकर हॉस्टल से बाहर ...दोनों को वह दिन याद आ जाता है, दोनों की बात -चीत में राधिका घटना क्रम का पता चलता है. सुल्तान, शंकर पर कमेन्ट करता है "....मुझे पता नहीं था इंजीनियर साहब इस हालत में मिलेगा .....अच्छा हुआ राधिका की शादी मेरे दुश्मन से नहीं हुआ। शंकर, कुटिलता से कहता है - तुम अभी तक नहीं बदले ,तुम्हारी अकड़ आज भी वही है ,जिस से तुम शादी करने की सोच रहे हो उसके काबिल नहीं हो तुम ....." इस बात को लेकर दोनों भीड़ जाते है , एक पॉइंट पर शंकर, सुलतान को चुनौती देकर जाता है ...भले ही हम इस लड़की को आज छोड़ कर जा रहे हैं, देखना उसे मैं दुल्हनिया बना कर ले जाऊंगा।
शंकर को घर पहुँचते ही गाँव के लोगों का भीड़ जमा हो जाती है । कई तरह की सवाल उठता है .... शंकर के घर लड़की वाले पहले से वहाँ मौजूद थे । घटना सभी को समझ में आ गई थी। ....लड़की वाले की राय है कि शादी अब साधारण रुप से आज ही हो जाए । हम सभी पहले से ही नुकसान झेल चुके हैं । शंकर एक बार सोचने का मौका देने को कहता है , शंकर की बात को ले कर बवाल खड़ा हो जाता है ,आखिर ये इस तरह की बात क्यों कर रहें हैं...? शंकर अपने पिता से कहता है कि हमें पहले वाला रिश्ता करना चाहिए। पिता गुस्से से भड़क जातें हैं। अब तक उन्होंने दहेज़ का पूरा रूपये उठा चुके थे , घर की शौचालय से लेकर हेंड पंप का चबूतरा इसी रुपयों से बना था .....और कई बातों पर बहस होती है। पिता , शंकर से बिना पूछे शादी की अगली तारीख तय कर देता है. शंकर को राधिका का बेबाक तर्क उसे अपने और खींच गई थी।
दूसरी तरफ सुलतान हिम्मत करने कि कोशिश करता है कि राधिका से शादी का प्रोपोज़ल उनके पिता तक कैसे रखे ? चूंकि वह एक मुस्लिम लड़का है !ये बात और है कि वह किसी धर्म ,जाति में ज्यादा आस्था नहीं रखता है. वह अपने आपको एक इंसान होना काफी समझता है , लेकिन डर इस बात को लेकर है कि कहीं मामला हिन्दू ,मुस्लिम का ना हो जाए ,फिर भी एक बार राधिका से बात करना चाहता है । कुछ दिन बाद राधिका से मुलाक़ात हो जाती है सुलतान उसके पीछे पर जाता है । वह शादी की प्रोपोजल रखता है, इस बार राधिका गुस्सा हो जाती है ‘क्या समझतें हो अपने आप को जिसको देखा उसके पीछे पड़ जाते हो । शादी तो दूर, तुमको देखना तक नहीं चाहती हूँ। मैं प्यार के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती हूँ , जिससे मेरे पिता का अभिमान कम हो वह काम मैं हरगिज़ नही कर सकती हूँ। हमारा समाज कभी भी अलग धर्म की रिश्ते को एक्सेप्ट नहीं करेगा ।अच्छा यही होगा कि तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो ।
सुलतान का दिल टूट जाता है “ … हमारी दोस्ती ही सही , मैं तुम्हें अपने दिल से निकाल नहीं सकता हूँ । मैं तुमसे यही कहूंगा कि मुझे नफ़रत की भाव से मत देखना । मैं तुमको अब कभी पीछा नहीं करूंगा।“ यह कहते हुए सुलतान आगे निकल जाता है । वह राधिका पर शायद नफ़रत के आग को कम कर गया था।
राधिका के पिता ,राधिका के लिए दूसरा लड़का पसंद कर आया है , लड़का सरकारी नौकरी वाला तो नहीं है , लेकिन लड़का होनहार और उसके पास खानदानी ठीक -ठाक ज़मीन है । राधिका इस रिश्ते को लेकर कुछ नहीं बोलती है . शंकर, गाँव के एक बिचोलियों से राधिका के घर का फोन नंबर लेता है ,शंकर फोन करता है । फोन राधिका के पिता जी उठाते हैं ,शंकर उसकी बेटी से शादी करने को राज़ी होने की बात कहते हैं। रघुवीर को यह बात गले नहीं पड़ रही थी , रघुवीर कहता है कि ये फ़ैसला मेरे हाथ में नहीं है ,राधिका चाहेगी तभी शादी हो सकती है ....और कई बातें होती है ..शंकर एक बार राधिका से बात करना चाहता है, अपनी गलती का एहसास जताने पर पिता ,राधिका से बात करवा देता है , शंकर अपने एहसास को बयां करता है
“ …… तुम्हारी जैसी लड़की मुझे मिल ही नहीं सकती ,तुम ने हमें बदल दिया है ! “
यह अंतिम शब्द राधिका को शादी के फैसलों को ले कर उधेड़ बुन में डाल देती है ।
पिता और घर वाले आपस में विचार- विमर्श करतें हैं , राधिका की मौन को लेकर उसकी सहमति मान लिया जाता है। सभी राधिका की शादी के लिए शंकर से राज़ी हो जाते हैं।
शंकर अपने पिता को शादी के लिए तैयार कर लेता है, पहले वाले रिश्ता से मुकरने पर समाज में शंकर के पिता को फ़जीहत झेलना पड़ा, सारा गाँव -जवार शंकर को दोषी करार देता है । लड़की वाले को सारा मुआवज़ा लौटना पड़ा । शंकर के पिता तो उनके फ़ैसला से नाखुश थे , पिता को बेटा की सुर में सुर मिलाने की मज़बूरी थी ।
शंकर और राधिका की शादी की तारीख़ तय हो जाती है ,लोगों में शंकर की शादी चर्चा में था गली नुक्कड़ पर लोग चुटकी लेने लगे थे । जो व्यक्ति पहले शादी में दस लाख माँग था अब बिना दहेज़ शादी करना बात रास नहीं आ रहा था । लोगों में कई किस्से गढ़ा जा रहा था ।
शंकर और राधिका की शादी बड़े धूमधाम से हो जाता है । दूल्हे की गाड़ी अब अपने गंतव्य स्थान पर जा रही थी शादी के जोड़े में शंकर और राधिका ख़ूब फब रहे थे और दोनों खुश थे ।
सुलतान अपने ही गैरज पर हाथ में गुलदस्ता (बूके) लिए दोनों (राधिका और शंकर) को शादी मुबारक देने का इंतज़ार कर रहे थे । सुलतान के आँखों के सामने से गाड़ीयों की काफिला निकल जाता है आगे की गाड़ी में दूल्हा (शंकर) और राधिका बैठी थी ,सुल्तान उसे देखता रह जाता है ,एक नज़र राधिका की सुलतान से टकराती है वह उसके हाथ में गुलदस्ता देख उसकी मर्म को समझ लेती है । शंकर भी उसे देख लेता है ,उसे इस तरह खड़ा देख शंकर एक कुटिल मुस्कान हँसता है ।आज शंकर को अपनी जीत पर गर्व महसूस हो रहा था । सुलतान ज्योंही ही स्वागत को आगे बढ़ा ही था गाड़ी तेज़ी से आगे निकल जाती है ।
सुलतान के हाथ में फूलों का बूके उसके हाथ में ही रह जाता है, उसके इमोशन का चकनाचूर हो जाता है । यह बूके को अपने दुकान में लगा देता है शायद इंसान को हर कुछ इस जहां में हर कुछ मुकम्मल नहीं होता। आसपास का शोर , राधिका की गाड़ी सामने से निकल जाना मानो टूटे ख़्वाबों के फूल को रौंदकर उसे अकेला छोड़ गया हो।
समाप्त