STORYMIRROR

Mritunjay Patel

Drama Romance

3  

Mritunjay Patel

Drama Romance

लघु कथा 'अधुरापन'

लघु कथा 'अधुरापन'

13 mins
270


हर्षा चुलबुली, बिंदास लड़की है, छोटी सी कसवाई शहर में रहते हुए भी जिंदगी को अपने नज़रिए से देख रही थी। बात -बात पर जो़र की ठहक्का लगाना,किसी डीबेट में भाग लेना आम बात थी। घर वाले लाख समझाती “ हर्षा तुम एक लड़की हो, इस तरह से हँसना, बोलना अच्छी बात नहीं है। अब तुम छोटी नहीं रही हो …, कॉलेज में पढ़नेवाली लड़की हो, लड़कों से दोस्ती रखना अच्छी बात नहीं है। 

“ मम्मी, हम लड़कियों को एक कै़दी की तरह क्यों रखा जाता है। मुझे भी अपनी तरह से ज़िन्दगी जीने का हक़ है। सही,ग़लत में फर्क करने की समझदारी है मुझ में…।“ हर्षा, मम्मी की हर बात को काट कर अपनी मनमानी करती। मम्मी के हर सवाल का जवाब रखती थी। मम्मी जब चीढ़ जाती तो कहती “थोड़ी पढ़-लिख क्या ली बात -बात पर ज़बान लड़ाती हो। पापा को दफ़्तर से फ़ुर्सत रहती नहीं जो तुम्हारी बतमीज़ी का हिसाब - किताब रखें। दूसरा तुम्हारा भाई हमेशा गेम खेलने में मग्न रहता है, उसे दो अक्षर पढ़ा -लिखा दोगी तो समझूंगी कि तुम घर में कोई काम की लड़की हो…।

तभी पापा जी आ जाते हैं “ भाई घर में इतनी धमाल -चौकी क्यों मची है। सब शांत हो जाते हैं। पापा आते ही हर्षा को कहते हैं 

 “बेटी एक ग्लास पानी पिलाना तो.. । “  राजू अभी भी गेम में मग्न था। पिता, राजू (बेटा) की तरफ इशारा करते हुए 

“ बेटा पापा आये हैं और आप अभी तक गेम खेल रहे हैं। बुरी बात ! देखो पापा आप के लिए क्या लाएं हैं।“ पॉकेट से टॉफी निकालते हुए, राजू की नज़र टॉफी पर पड़ती है, राजू, पापा के पास चिपक कर बैठ जाता है,टॉफी झपटकर खाने लगता है।

“बेटा आज आपने क्या किया..? “

तभी मम्मी चिढ़ती हुई बोल पड़ती है “ आप ने सबको दुलार से बिगाड़ कर रख दिया है। पूरे दिन जब देखो गेम खेलने में व्यस्त रहता है, अब तो होमवर्क भी करना छोड़ दिया है।“ 

इतने में हर्षा पानी लेकर आ जाती है, “ पापा पानी , आप ऑफिस से जल्दी आ गए। पापा ने कहा “ हाँ मन किया तुम लोगों के लिए कभी -कभार समय निकाल लिया करु।

 हर्षा की मम्मी हुमकी भरती हुई“ आज सूरज कौन सी दिशा में निकल आया है। अगर ऐसा होता तो सारे बच्चे सुधर जाते।“  इसी बात पर हर्षा, मम्मी की बात को ट्यून कर देती है “ पापा जी, मम्मी हमेशा झल्लाती रहती हैं।

पापा माहौल को शान्ति बनाते हुए “ आज खाना में कुछ मेरे मनपसंद की बनाओं। झोले में भिंडी की सब्ज़ी ले आया हूँ ..।

 चुटकी लेती हुई पत्नी बोल पड़ती है  “ शादी से आज तक भिंडी के अलावा कोई और पसंद की सब्ज़ी है, आप के लिस्ट में। आज आप की कोई फ़रमाइश नहीं चलेगी कटहल की सब्ज़ी बनाई हूँ। आज मायके से कटहल भेज दिए थे। “  

 हर्षा के पापा भी चुटकी लेने से कहां बाज़ आते “हा भाई ससुराल की चीज़ को मना कैसे कर सकते हैं। ससुराल के नाम पर पुराना आदमी भी नया हो जाता है। “ वह ख़ुद ज़ोर से हँसने लगे। हर्षा, पिता के हँसी में तो साथ नहीं दी वह मम्मी की तरफ देखती रही, मम्मी बड़ी नज़ाकत से मुस्कुरा उठी थी। मम्मी की मुस्कुराहट बड़े दिनों बाद देखी थी।


हर्षा हमेशा परिवार में रंग जमाती रही है। वह पढ़ाई में कभी कम नम्बर से पास नहीं कि थी इसलिए पापा की डांट सुनने को नहीं मिला। पापा ब्लॉक के कर्मचारी थे, सुबह से शाम तक ऑफिस में रहते, ऑफिस से छुट्टी मिलने के बाद अधिकारी और दोस्तों के साथ समय बिताने के बाद देर रात घर लौटना आदत सी हो गई थी। 

हर्षा, पापा से कहती है “ पापा कल मेरे कॉलेज में एक प्रतियोगिता है जिसका कोडिनेशन मैं कर रही हूँ, साथ में नाटक में एक पात्र भी कर रही हूँ, सो प्लीज पापा इस वार कोई बहाना नहीं चलेगा।

इतना कहते ही मम्मी ,हर्षा के विरोध में बोल पड़ी “ देखा आप ने बेटी अब तो नोटंकी करेगी….!

पापा बेटी पर गर्व से बोल पड़े “ उसमें बुराई की क्या बात है। यह काम हर लड़कियों की बस की बात नहीं है।

उस आयोजन में ब्लॉक के अधिकारी भी आमंत्रित थे। हर्षा के पापा अपने बॉस के साथ आयोजन में शिरकत हुए। विषय ‘स्त्री विमर्श’ पर था। उदघोषिका हर्षा थी और नाटक की मुख्य पात्र में हर्षा अभिनय कर रही थी। पिता गर्व से समा नहीं रहे थे । नाटक की अंतिम संवाद सब को मंत्रमुग्ध कर दिया था।

“ स्त्री को कभी कम नहीं आंकना चाहिए !हर काल में स्त्री त्याग और बलिदान की देवी रही है। लेकिन जब स्त्री के अस्तित्व पर आंच आई तब तलवार और बंदूक भी उठाई है और आज हवाई जहाज उड़ा रही है।

 ज़रूरत है तो मर्द की मानसिकता बदलने की जो स्त्री को काम की वस्तु समझते हैं। स्त्री ज़मीन और आसमां दोनों है।“

तभी एक लड़के का समूह आता है और पात्र को कवर कर लेता है। वह उस भीड़ से निकलने की कोशिश कर रही है तभी वह,उनलोगों की चंगुल से छूट जाती आगे निकलने की कोशिश करती है तभी फिर से सभी उसे जकड़ लेता है। दृश्य वही फ्रीज़ (स्थिर) हो जाता है।

तालियों की आवाज़ से कॉलेज के परिसर गूंज उठता है।

हर्षा पर कई लड़के फिदा थे, जिसमें अजीतेश इस नाटक में हर्षा के करीब आ गया था। नाटक के पात्र में हर्षा की प्रेमी के रूप में था जो उनके सपनों की उड़ान में साथ देता है। रिहरलसल के दरमियां कई ऐसे क्षण भी आए जो हर्षा ने प्रेम को महसूस की थी। आज valentine day था अजीतेश उस मौका को गवाना नहीं चाह रहा था। एक और लड़का उसी के बैचमेट देवेश था जो हर्षा के करीब था, पढ़ाई और परीक्षा में नोट्स के अलावे बहुत बातें न होती थी। देवेश ,हर्षा को बहुत पसंद करता था,लेकिन कभी प्रोपोज़ नहीं कर पाया था। नाटक के रिहलसल में हर्षा और अजीतेश को करीब आते देख मानो उसका दिल छल्ली होता जा रहा था। हिम्मत भी न था कि हर्षा को कहता, “.. मैं तुमकों चाहता हूँ…। “

लेकिन उसके लिए भी valentine day का मौका अच्छा था। देवेश भी हर्षा के लिए गुलाब और गिफ्ट ले रखा था। 

आज पहले से ही अजीतेश कॉलेज के कैंपस में मौजूद था तभी दूर से हर्षा को आते देख अजीतेश अपनी ख़ुशी को रोक नहीं पा रहा था।इत्तेफाक से हर्षा की स्कूटी अजीतेश के पास रुकती है। दोनों की मुस्कुराहट जैसे प्रेम करने को आमंत्रित कर रहा हो। अजीतेश, हर्षा को रोज़ प्रेजेंट कर देता है। “ happy valentine day ” हर्षा की दिल धक से धड़क जाता है “same to you ‘’ गुलाब को अपने दिल से लगा लेती है। वहीं दूर खड़ा देवेश देखता रह जाता है। उसके हाथ में ग़ुलाब और गिफ़्ट कोई काम का नहीं रहा था। उस गुलाब को अपने मुठ्ठी में ही ज़ोर से दवा लिया था,मानों अपने प्यार को दिल के अंदर ही दफ़न कर दिया हो। ग़ुलाब के काटें तलहथी में चुभ गया था, तलहथी से ख़ून निकलने लगा था। दर्द का पता ही न चला, यह दर्द दिल के दर्द से कम था। हाथ में बहते ख़ून को रोकने के लिए रूमाल से बांध लेता है। आज का मोशम बहुत अच्छा था, आसमान में बादल लगे हुए थे धीमी -धीमी हवाएं चल रही थी। अचानक वर्षा होने लगी। मानों एक तरफ़ प्यार की बरसात हो रही हो, “ बहारों फूल बरसाओ मेरे महबूब आया है…..” दूसरे हिस्से में दिल टूटने की आवाज़ के साथ आंसू की बरसात हो रही हो।  


बारिश से बचने के लिए देवेश कॉलेज के गैलरी में आ गए थे। हर्षा और अजीतेश भी वहां आ गया था। देवेश को हर्षा देख लेती है, उसके हथेली पर रुमाल बंधा देख “ hi देवेश। देवेश एक फीकी मुस्कान के साथ welcome।  “ देवेश ये तुम्हारे हाथ में क्या हो गया.. ! “

देवेश दर्द के गहरे सुर में “ कुछ भी नहीं, ग़ुलाब के काटें का खूबसूरत ज़ख्म है..।“ 

 हर्षा ज़ोर से हँस पड़ती है “ अरे ये तो शेरों -शायरी हो गई। तुम कब से शायर बन गए। “ अजीतेश भी सुर मिलाते हुए हँस पड़ता है। हर्षा उसकी हथेली पकड़कर देखती है, ख़ून का धब्बा साफ दिख रहा था। यह स्पर्श देवेश को मानो ज़ख्म को कम कर दिया हो। “ ये तो गहरा ज़ख्म है !” देवेश थोड़ा हलका महसूस करते हुए “ कोई बात नहीं ठीक हो जायेगा। हर्षा और अजीतेश आगे की ओर चल देते हैं। बारिश तेज़ गती से होने लगी थी जैसे वातावर्ण में प्रेम के गीत बज रहे हो।

अजीतेश और हर्षा एक दूसरे को प्रेम इज़हार के बाद हर्षा की दिल की धड़कने बढ़ गई थी। इस पल को जीना अच्छा लगने लगा था। जब भी मिलने का मौका मिलता उस पल को मिस नहीं करना चाहती थी। प्रेम की उन्मुक्तता की बातें किया करती। एक दुसरे के भावनाओं की कोई बात न छुपी थी। लेकिन इन दिनों एक बात की ख़लल हो रही थी कि अजीतेश उन्हें अपने दायरे में बांधना चाहता था। जब भी वह किसी से बात करती मना करता। वह हमेशा संदेह की नज़र से देखने लगा था। फ़ोन लेकर निजी इनफार्मेशन को चेक करती। जो उनकी उन्मुक्तता को खत्म करने लगा था। वह खुश न रह कर परेशान भी होने लगी थी। इस बात को देवेश से शेयर भी करती क्योंकि वह भी अच्छा दोस्त था। लेकिन उसे वाक्पटुता नहीं आती थी। देवेश कहता, ” प्रेम तो एक दूसरे की विश्वास से बनता है। अगर प्रेम में एक दूसरे पर विश्वास न हो तो उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता है। “ हर्षा भी यही कहना चाहती रही थी और कई बार अजीतेश से इस बात पर एतराज़ भी जताई थी। लेकिन उसका उल्टा प्रतिक्रिया होता है।  

हर्षा ठान लेती है कि इस दोस्ती का कोई मतलब नहीं है। जब हर्षा, अजीतेश से बात करना छोड़ देती है तब अजीतेश ब्लैकमेल करने की कोशिश करता है। हर्षा परेशान हो गई थी। वह घर पर बदनामी से बचना चाहती थी। लेकिन परेशानी का सिलसिला बढ़ते जा रही थी। हर्षा ने बहुत सोच समझ कर काम करती है। घर में पापा मम्मी से सारी बात बताती है और अपने किए पर माफ़ी मांगती है। हर्षा माँ के सामने दुःख प्रकट करती है, “ माँ तुम सही कहती थी लड़का और लड़की में फ़र्क़ होता है, मुझे लड़कियों की तरह रहना चाहिए …! ”

अजीतेश की बतमीज़ी पर थाना में F. I. R. दर्ज करवा देती है। पुलिस, अजीतेश को ब्लैकमेल के आरोप में गिरफ़्तार कर जेल भज देती है। 

हर्षा अब कॉलेज में पॉपुलर हो गई थी। कई लड़के उनके दीवाने थे अब सभी उनसे डरने लगे थे। हर्षा के लिए इमोशन का सहारा देवेश था। देवेश इस घटना से खुश था क्योंकि वह हर्षा से प्रेम करता है। देवेश ने अब तक vilentine day वाला गुलाब को अभी तक संभाल के रखा था। 

यूनिवर्सिटी की फाइनल ईयर बैचलर की परीक्षा नज़दीक आ गया था। नोट्स के लिए देवेश को कहती है, हर साल की तरह इस साल भी उसका नॉट्स काम आएगा। दरसअल देवेश हर साल मेहनत कर नोट्स बनता, उसी से कई दोस्त रट्टा मारकर पास हो जाते थे।

देवेश इस बार बड़ी मेहनत से नोट्स बनाया था, एक अच्छे से लिफाफा में नोट्स हर्षा को पेश करता है! यह देख हर्षा कहती है “ ऐसा लग रहा है कि यह कोई नोट्स नहीं शादी इनविटेशन कार्ड हो दे रहें हो..।“ देवेश मुस्कुराते हुए “ ये उससे कम थोड़े न है। ये हमारी परीक्षा की अंतिम साल है। पता नहीं पास हो जाने के बाद कब मुलाक़ात होगी। “

 हर्षा बोल पड़ती है  “ फिलहाल इस शहर छोड़कर कहीं जाने का इरादा नहीं है, नोट्स के लिए थैंक्स। “ 

देवेश नो मेंशन.. कहते हुए चला गया था।

आज मौसम में थोड़ी नमी थी, बादल टुकड़ों में बटे थे। ठंढी हवा चल रहीं थी। हर्षा पुराने यादों से उबरने की कोशिश कर परीक्षा के लिए खुद को तैयार कर रही थी, शाम ढल गई थी हर्षा अपने कमरे में बैठी इस खूबसूरत लिफाफा से नोट्स निकालती है, पन्ना उलटते ही ग़ुलाब के फूल थे जो सूखकर गहरे कलर की हो गई थी। उसके नीचे शेर लिखा था “ 

शायद यह गुलाब मेरे ज़ख्मों को भर दे। यह वही ग़ुलाब है जिसके कांटे मेरे दिल में चुभकर मेरे हथेलियों से खून निकल आया था, किसी के स्पर्श से दर्द का मरहम बन गया था, देवेश। “

 यह शब्द हर्षा को उस दिन की घटना को ताज़ा कर देती है।

“ अच्छा तो देवेश भी मुझे चाहता है। लेकिन कभी इज़हार नहीं कर सका। अब तो मुझे ग़ुलाब से डर लगता है। अब मैं किसी के प्यार के चक्कर में नहीं पड़ूँगी। “ 

हवा की झोंके से खिड़की के पर्दा लहराते हुए ठंडी हवा हर्षा के चेहरा पर पड़ती है। गहरी सांस लेते हुए

“ देवेश अच्छा लड़का है। “ 

यह कहते हुए कुछ उसके बिताए पल सामने में आने लगते हैं और नोट्स के उलटते पन्नों में गुम हो जाती है। 

देवेश का यह आईडिया हर्षा को पसंद आ गई थी मन ही मन बुदबुदाती हुई “ देवेश से दोस्ती करने में कोई बुराई नहीं है। वह हमारे भावनाओं को भी समझता है। “ देवेश डर के मारे कुछ दिन तक हर्षा से मुलाक़ात नहीं किया था। कुछ दिन बाद जब कॉलेज में हर्षा से मुलाक़ात होती है देवेश मुँह चुराए सामने खड़ा था, हर्षा मुस्कुरा देती है “ हम लोग तो पहले से ही बेस्ट फ्रेन्ड थे, लेकिन यह इज़हार करने का तरीका हम दोनों की दोस्ती को खास बना दिया है..। “

देवेश का डर ख़त्म हो जाता है, दिल खुशी से झूम उठता है “ सच “ कहते हुए हर्षा की हाथ को चूम लेता है। यह स्पर्श हर्षा को लगा मानो देवेश अपने पलकों पर बिठा लिया हो। पाता नहीं देवेश को यह हिम्मत कहां से आ गया था। “ तुम ही मेरी पहली मोहब्बत हो! मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता हूँ।“ 

 हर्षा की खामोश रही..जैसे सब कुछ बयां कर दी हो। 

अजीतेश को कोर्ट से परीक्षा देने की अनुमति मिल जाता है। आज एक ही हॉल में हर्षा, अजीतेश और देवेश परीक्षा दे रहे थे। ये दोनों के लिए आसान नहीं था। हर्षा एक बार भी अजीतेश से नज़र नहीं मिला रही थी लेकिन अजीतेश हर्षा की तरफ देखता रहा। वह लिखने में मग्न थी। हर्षा एक बार पलट कर देखती है। दोनों की नज़रें टकरा जाती है। हर्षा अपनी नज़रे झेंप लेती है। झपकते पलकों से उसकी दीवानगी को पढ़ ली थी। हर्षा घंटी लगने से पहले ही पेपर जमाकर हॉल से निकल जाती है। अजीतेश देखते रह जाता है। अजीतेश खुद को बेगुनाह मान रहा था। 

कोर्ट की सुनवाई की तारीख़ पक्की हो गई थी, दोनों जिला कोर्ट में हाजिर होते हैं दोनों पक्ष के वकील अपना -अपना पक्ष रखते हैं। फिर लड़की से बयान लिया जाता है। लड़की अपने बात पर कायम रहती है। जब अजीतेश से बयान लिया जाता है वह लड़की के बयान को सही करार देते हुए अपनी बात मज़बूती से रखता है “ मैं ने हर्षा को सच्चे दिल से प्यार किया है। मैं बुरा इसलिए हो गया क्योंकि उनके निजी ज़िन्दगी में हस्तक्षेप किया, जब भी किसी से हर्षा बात करती थी मुझे डर लगा रहता कि मेरी हर्षा मुझ से दूर न हो जाये। मैं उसे खोना नहीं चाहता था। यही हकीक़त है। अगर मैं गलत हूँ तो हर काल खंडों में पुरुषों, स्त्री को पाने के लिए छल -बल का प्रयोग किया है, स्वयंवर रचाई गई। बहुत ऐसे उदाहरण है। मैं तो हर्षा से निश्छल प्रेम किया है। अगर इस बेगुनाही पर मुझे क़ानून आजीवन कारावास देना चाहे तो मुझे ख़ुशी -ख़ुशी मंज़ूर है। 

हर्षा को यह बयान दिल को छू जाती है, अपने आप को प्रेम के तराजू पर हल्का पड़ने लगी थी। अजीतेश के आंखों में मोहब्बत का जुनून देख रही थी। 

जज साहब कुछ देर खामोश रहे फिर अपनी फैसला सुनाते है 

कानून, प्रेम करने के ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन किसी भी प्रकार का शोषण करना कानूनी ज़ुर्म है और मानवीय असंवेदनशील भी। दोनों पक्ष के बयानों से यही लगता है लड़का, लड़की बालिक है, प्रेम, दोनों की सहमति से हुई है। लेकिन किसी के निज़ी ज़िन्दगी में उसकी आज़ादी को छीनना कानूनी ज़ुर्म है, अगर दोषी अपनी ग़लती को सुधार कर, अपने प्रेमिका को मना ले तब कानून नरमी बरत सकती है।  फैसले पर पहल करने के लिए कुछ समय दिया जाता है, आप दोनों पक्ष आपस में सोच -विचार ले। 

कुछ समय के लिए कोर्ट के अंदर शोर-गुल होने लगता है। बाहर जाकर दोनों पक्ष में लंबी बातें होती है। अजीतेश के घर वाले शरीफ लोग थे। हर्षा के घर वालों को शादी के लिए मना लेते हैं। हर्षा और अजीतेश का आमना -सामना होता है, अजीतेश प्रॉमिस करता है कि उसको कभी नहीं ठेस पहुँचाएगा। हर्षा के दिल में अजीतेश के लिए प्यार बढ़ जाता है। हर्षा की सहमति से कोर्ट ने अजीतेश को बड़ी कर देती है। 

देवेश इस फैसले से खुश न था क्यों कि उसकी प्रेम की हार थी। लेकिन वह इस प्रेम को बदनाम नहीं करना चाहता था। 

इस अधूरेपन को दोस्ती का लिबास बना कर ओढ़ लेना चाहता है लेकिन एक मैसेज लिख कर अपनी जज़बात बयां कर जाता है। 


कोई ज़रूरी नहीं इश्क सब को मयस्सर हो।

हम क़िस्मत वालों में से कहाँ, जो हार कर भी जीत जाए।।

तुम अपना ख़्याल रखना, शायद न मिले इस ज़माने में सही।

शायद हम मिले कहीं मुद्दतें ज़माने बाद।।

देवेश, तुम्हारी मर्जी इस लम्हा को जो नाम दो! 


 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama