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Mritunjay Patel

Tragedy Others

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Mritunjay Patel

Tragedy Others

पलायनवाद और सरकारें (व्यंग्य)

पलायनवाद और सरकारें (व्यंग्य)

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हर विषय का एक पीक समय होता है, जैसे संक्रमण के बाद चारों तरफ हाय -तौबा मचने लगती है। रोग बेकाबू होने से जब तक हज़ारो की तदात में लोगों की मौत न हो जाये, तब तक कोई बहस न होती न महकमे में सुगबुगाहट ! जैसे आप इस समय कोरोना काल में देख रहें है। साथ में जब अन्य राज्य से बेहिसाब लोग मौत के भय से आम गरीब, मज़दूर लोग अपने प्रदेश को चल पडे़ थे। सैकड़ों, हज़ारों मील पैदल ही चल पडे़ थे। वो दर्द का भी मंज़र देखा, महसूस भी किया होगा। कितनों आप में से कई होंगे।  

तब टीवी पर क्या धमाल था, शब्दों के नई जाल गढ़ा गया। सब कूद पडे़ थे। सभी राज्यों की विकास की पोल खुल रहे थे, कौन सा राज्य ज्यादा मज़दूरों का सफ्लायर है। कहां कितने इंडस्ट्रीज लगाए गए। उस दौड़ में बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ के लोग आगे थे, ऐसा नहीं कि और राज्य आर्थिक, इंडस्ट्रीयल में बहुत आगे है। कुछ राज्यों को छोड़ कर। लोगों में गुस्सा भी था हम सरकार बदल देंगे। ठीक उसी काल में कई राज्यों में कोरोना को चिढ़ाते हुए एलेक्शन हुई। फिर वहीं सरकार प्रमुखता से आई। फिर क्या हुआ पलायनवाद पर कोई ग्राफ बना। फिर से फ़िज़ा में धर्म और जाति की समीकरण के मुद्दा में गुम हो गई।

क्या पयालनवाद कोई अपनी खेतों की मूली -गाजर है जो बो दी और उखाड़ ली। सरकार को उससे क्या सरोकार है, सरोकार तो जातिय समीकरण के खेमें को कैसे पकड़ बनाईं जाए। लेकिन उन जातियों का कभी भला न हो सका आज भी हासिये पर है ! हा कुछ लोग सत्ता में ज़रूर आये लेकिन फिर उसने ही अपनी फायदा की राजनीति में मशगूल हो गए ..उसका नाम गिनाने की ज़रूरत नहीं है। दो धर्म के बीच गैप कैसे पैदा रखना है, यही सब काम आतें है सियासत में ज़िन्दा रहने के लिए। रही बात विकास की तो पंच वर्षीय योजनाओं में कुछ न कुछ होगा ही जिसमें सियासी की संपत्ति सौ गुणा की बढ़ोतरी कैसे हो जाती है ? 

आम जनता रोज़ी -रोटी के लिए पलायन करते रहतें हैं सरकारें चलती रहती है। आप ही सोचिये कि किसी को आप सपनों की उड़ान को रोक सकते हैं क्या ? … लोग हर फील्ड में कैरियर बना रहे है, देश -विदेश में लोग जा रहें हैं। लेकिन बहुत कम लोगों की नसीब में होता है। पलायनवाद के लिए हम आप भी कम दोशी नहीं हैं। हम कभी भी अपनी ज़रूरतों को प्रबल नहीं समझा है। जाति, धर्म, पार्टियों की नीतियों में उलझकर उन्ही के साथ बहते चले गए। ऐसा नहीं है कि सन 1947 आज़ादी के जश्न और हमारा देश की विभाजन से आज तक दर्द और खुशियाँ कम देखी हैं। मुक्कमल की तारीखों पर बात कब होगी ? ऐसा भी नहीं कि लाल किले के प्राचीर से वो तारीख की घोषणा नहीं होती हैं। होती है मगर कहीं गुम क्यों हो जाती है। 

हर बार सारी ज़िम्मेदारी जनता पर छोड़ दी जाती, “आप मुझे सत्ता में लाकर देख लो फिर तमासा देखना “ माफ करना" देश की काया पलट हो जाएगी”। संसद सत्र में विकास और कार्य पर कितनी बहस होती है। सरकार को न्यायलय से कब, कितनी फटकार मिलती है। सरकार, जनता की कितनी बात सुनी जाती है। बात तो यह हो गई कि अनुशासित परिवार में मुखिया और परिवार के सदस्यों में कोई तालमेल नहीं है, उसका परिदृश्य देखिए तो समझ में आ जायेगा। ऐसा नहीं है कि आपके परिवार में कोई सभ्यता और नियम -क़ायदे नहीं हैं। लेकिन कई बार सीमाएं तोड़ जातें हैं। फिर भी आप देश और परिवार से तुलना नहीं कर सकतें हैं। हमारा संविधान है उस पर हमें हर हाल में पहल करना है। इसी वज़ह से हम शांति कायम करने में सफल रहें हैं। 

पहले हम सभी नुक्कड़ों पर सरकार और मुद्दे को लेकर चीखते थे, पार्टी के भक्त पुख्ता तर्क देकर वोट को कंट्रोल कर रखता, यही बात सोशल मीडिया पर हो रहा लेकिन विचारों का बड़े पैमाने पर आदान -प्रदान हो रहा है। लेकिन गाली -साली सॉरररी..अभद्रतापूर्ण गालियों से परहेज़ करिए। जिस तरह शुगर होने के बाद चीनी से परहेज़ करते हैं। क्या आपके स्कूल में पढ़ाई होती है? आपके निकतटम स्वास्थ्य केन्द्र पर आप का सही ईलाज होता है ? बाबू लोग आप से सही से पेश आतें हैं ? पानी, सड़क, बिजली का हाल? किसानी, मज़दूरी से पेट भरता है ? ….इन सब की यात्राओं से रोज़ परिचित है। फिर भी हमारी बी.पी.नार्मल है। मुबारक हो आपकी इम्यून सिस्टम बहुते मज़बूत है। क्या करें हमारी भी मज़बूरी समझिए या हमारी रोज़ की आदतें। 

फ़िज़ा में इस बार फिर से गूंजने लगे … इस बार हमारी पार्टी बहुमत से जीतकर आएगी तो देश को चाँद पर पहुंचा देंगे! 

कोरस से चीख -चीखकर आवाज़ें आने लगी ….इंकलाब ज़िन्दाबाद….जीतेगा भाई जीतेगा…।


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