प्रेम जाल
प्रेम जाल


फ़ातीमा बैन्ड स्टेन पर बैठी समुंद्र में उठते हिचकोलियों को अपने जि़न्दगी से जोड़ रही थी।एक समय वह भी था जब वह समुंद्र की लहरें, जि़न्दगी के उत्साह को चर्मोत्कर्ष की बिम्ब हुआ करती थी। जब फ़ातीमा ज़वानी के दहलीज़ पर पहुंच रही थी तभी से सय्यादऔर फ़ातीमा की दिवानगी परवान पर चढ़ गई थी। दिल बहलाने के लिए बैड स्टेन पर घंटो बैठा करती । जिस तरह समुंद्र की तरंग एक दुसरे को पीछा करती आपस में समा जाते हैं। वैसे ही फ़ातीमा और सय्याद आपस में लिपटकर अनगिनत चुबंन लिए होगें । दोनों की क़दम यही तक नहीं रुका था । दोनों अपनी मर्जी़ से निका़ह कर लिए। लेकिन फ़ातीमा की जि़न्दगी समुंद्र की तरंग की तरह हिचकोलिया लेती रहीं ……!
फ़ातीमा घर की पहली लड़की थी। जो नका़ब से बाहर आकर पढ़ना लिखना चाहती थी । अब्बा (अबदुल) बेटियों को पढ़ाना नहीं चाहते थे। अब्दुल की चिराग़ में फ़ातीमा पांचवीं बेटी में वह चौथे नंबर पर थी और तीन भाई जो तीनों बहनों से बड़े थे।घर का माहौल शक्त और दकियानूसी विचार के थे । घर में सभी पांच वक्त के नमाज़ी थे । बेटे पढ़ लिख रहे थे ।बेटियों की आज़ादी पर बंदिश थी।
फ़ातीमा घर में सबसे अलग लड़की थी घर में सभी तहजी़बेदार होते हुए भी वह टपोरी मुम्बईया लड़की थी। पार्टियों में जाना , सोसाइटी के किसी फेस्टिवल पर बेधड़क नाचना-गाना। मुम्बई के लोकल ट्रेन पकड़ कर समुन्द्र बीच पर फ्रेंड्स के साथ निकल जाना। स्कूल से बंक मार कर फरेंड के साथ सिनेमा देखने चले जाना आम बात थी । घर में पता लगने पर भाई ,फ़ातीमा को बहुत पिटाई करते थे। अम्मी ज़ान हर बार फ़ातीमा को बचा लेती । भाई सारा दोष उसे बिगाड़ने की अम्मी जान पर गढ़ देता । फातीमा मार -पिटाई की वज़ह से दिन व दिन बतमीज़ हो गई थी। जब भी फ़ातीमा अपनी फ्रीडम की बात करती घर वाले उसे दबाने के लिए कई तरह की मज़हबी तर्क देकर चुप कर देता लेकिन फ़ातीमा उन सबों में बधने वाली नहीं थी। उसी दरम्यान सय्याद से नज़दीकीयां बढ़ने लगी थी । सय्याद उसी के कॉलोनी में ओटो चलाते थे ।वह कभी फ़ातीमा को फ्री में छोड़ देता । दुआ सलाम भी होने लगी थी । सय्याद मजा़किया और रोमांटिक था किसी लड़कियों को घुमाना उसके लिए आसान था । सय्याद ,फ़ातीमा को अपने प्रेम जाल में फसा लिया था ।
दोनों अपनी मर्जी से निक़ाह कर लेते हैं । फ़ातीमा ,सय्याद के साथ चौल में शिप्ट हो जाते हैं। इस चौल में फातीमा के लिए रहना आसान नहीं थी । छोटा सा चौल में घर के पांच सदस्य रहते थे। चौल लम्बा सा था दो पार्टिशन में बटे थे उसी में गु़सलखा़ना भी था। शुक्र इस बात की थी कि टॉयलेट अंदर ही था । दरसअल इस तरह के चौल में टॉयलेट नहीं होते बी.एम. सी. की टॉयलेट में बाहर रोज़ लम्बी कतार लगानी होती हैं ।
मुबई उस महानगर में एक है जो कभी नहीं ठहरता है । एक तरफ कुछ लोग सो रहें होते हैं तो दूसरी तरफ आधी मुंबई जाग रही होती है । लोग आधी पहर से जाग कर अपने काम पर भाग -दौड़ शुरू कर देते हैं । फ़ातीमा का घर इससे अछूता ना था । आधी पहर से ही लोग जाग जाते । सुबह की अज़ान होने से पहले तैयार हो कर लोकल ट्रेन पकड़ने को कश्मकश की तैयारी शुरू हो जाती। फ़ातीमा को इस कल्चर में ढ़लने के लिए मज़बूर कर दिया था । वह चाहतें की वहां से अलग रह कर अपनी ज़िंदगी को इंजॉय करे लेकिन सय्याद इस बात से सहमत नहीं हुए। दोनों में बात- बात पर तकरार होने लगी । रफीक हर शाम ड्रींग कर के आता किसी बात के बहस को लेकर उसकी पिटाई कर देता । फ़ातीमा की आज़ादी पूर्ण रूप से छीन गई थी । बस वह काम की वस्तु रह गई थी । सय्याद जो पहले रोमाटिंक हुआ करता था शादी के बाद उतना ही विपरीत था । घर के बाहर बुर्के भी पहनने को कहते ।फतीमा मॉडर्न लाइफ जीना चाहती थी लेकिन वह अब नहीं रही । देखते ही देखते तीन बच्चें की माँ हो गईं थी । पहले बात -बात पर अकेले मार खाती थी अब तो बच्चों के सामने मार खाती जो उसे वर्दाश्त नहीं होती । कई बार उस जाल से निकलना भी चाही थी । लेकिन अब तीन - तीन बच्चों की फ़िकर हो रही थी । घर में कोई साथ देने वाला नही था और न ही फातीमा के घर वालों का कोई सहारा था । रफी़क ज़्यादा शराब पीने की वज़ह से उसको पैरालिसिस हो जाता है। फतीमा अकेली पड़ जाती ।
फ़ातीमा मॉल में सेल्समैन की जॉब करके कुछ हद तक परिवार चलाने की कोशिश करती है । सय्याद को डॉ0 से इलाज़ करवाती है ।लेकिन कुछ भी सुधार तक नहीं होता है। घरवाले भी सय्याद पर खर्चा करना छोड़ दिया था । पूरी ज़िम्मेदारी फ़ातीमा पर थी । फ़ातीमा को कुछ समझ में नहीं आ रही थी । कई बार आत्महत्या करने की बात मन मे आती लेकिन तीन बच्चों की ममता में यह करने से रोक ली। फ़ातीमा , सय्याद को छोड़ने की हिम्मत जुटा रही है । फतीमा के ज़िंदगी में कई मर्द आने की झांसा दे रहे थे । तीन बच्चें की अम्मी ज़रूर थी लेकिन बॉडी की बनाबट बेहतरीन और सुंदर थी। जो भी उनके सम्पर्क में आता सभी फ़ातीमा से सेक्ससुल रिलेशन बनाना चाहते । फतीमा मुम्बई की लोगों की बॉडी लैंग्वेज समझ सकती थी वैसे भी स्त्री को सिक्ससेंस ज्या़दा होती है किसी मर्द का मनोभाव समझने के लिए। फ़ातीमा मर्दो से दोस्ती बनाती रही । उसका कारण यह भी था कि उसे कई तरह की मदद मिल जाती थी । फ़ातीमा नई ज़िंदगी की तलाश करने लगी है ।
कोई ऐसा साथी की तलाश में है जो उसका सारा ज़िम्मेदारी उठा ले। लेकिन दूर -दूर तक ऐसा नहीं दिखता । सभी दोस्ती के नाम पर इस्तेमाल करना चाह रहे थे । डेट पर जाने की कमी नहीं थी । रेस्तरां में अच्छा खाना ,गाड़ियों में घुमाना। वह हर बार सेक्ससुल रिलेशन से बचते रही। लेकिन यह सब से उनकी मुसीबत की हल नहीं था। फतीमा धीरे-धीरे अंदर से टूट जाती है । जो लड़की बिनदास थी अब वह सभी से कट कर अकेली रहने लगी थी ।इस दरमियां कुछ लोगों से सलाह मिल गया था कि बच्चों को किसी ट्रस्ट में पढ़ाई के लिए डालकर उसकी कुछ हद तक राहत मिल सकती है ।
फ़ातीमा अब सय्याद को छोड़ कर अपनी दुनियां अलग कर लेती है । फ़ातीमा की अब्बा एक दो चौल में रूम खरीद रखे थे वो कोशिश कर रही थी कि उसमें उनको अपने बच्चों के साथ पनाह मिल जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ सभी भाई ने उस पर कब्ज़ा कर रखा था । मज़बूरी में उसे किराये की घर मुश्कि़ल हालात में लेनी पड़ी । फ़ातीमा ज़माने की फ़रेब को समझ चुकी थी । फ़ातीमा सजना -सवरना छोड़ देती है । आम लेडी की तरह रहना शुरू कर देती है ताकि उसके पीछे मर्दो का पहरा न रहें। फ़ातीमा से दोस्त कट चुके थे जब उनसे डिमांड पूरी नहीं हुई ।फ़ातीमा को समय पर पैसे भी मिलना बंद हो गई थी। कभी- कभी बच्चें को भूखे पेट भी सोने को मज़बूर हो जाते ।फ़ातीमा बहुत रोती हर बार इबादत में बच्चों की हिफाज़त और दो वक्त की रोटी मांगती । फ़ातीमा की शक्ल अब बदसूरत दिखने लगी थी ।एक बच्ची बड़ी हो गई थी ।अम्मी की दर्द को समझने लगी थी । अम्मी अपनी बच्ची को होशला देती “मैं तुम लोगों की अच्छी परवरिश करना चाहती हूँ। लेकिन वक्त साथ नहीं देता अल्लाह कभी न कभी हमारी फरयाद ज़रूरत सुनेगी।
इस सफ़र में एक कुँवारा लड़का ‘रफी़क’ उसके ज़िन्दगी में आने की कोशिश करता है । रफी़क उसी सोसाइटी में रहता था वह उसके बच्चें को कभी कभार दुलार कर लेता ,टॉफी देकर खुश कर देता । रफी़क युवा, हेंडसम लड़का था कमाई के नाम पर कुछ कमा लेता है। दरसअल उसका काम लोकल Tv.केबल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्शन का काम करता था । वह बात पटुता में माहिर था ।
रफी़क ,फ़ातीमा की मनोदशा को समझ गया था । रफी़क धीरे-धीरे फ़ातीमा के करीब आ जाता है । वह फ़ातीमा को अबसाद (डिप्रेशन) से निकलता है । उसकी तारीफ करता है उस समय फ़ातीमा बहुत अकेली हो चुकी थी । फ़ातीमा , रफी़क को एक नया उभरते दोस्त के रूप में देखने लगती है। रफी़क उनके मुसीबत में साथ आने लगा था । वो कभी उनके बच्चों को साथ पार्क या किसी रिसॉर्ट में घुमने ले जाता जिससे थोड़ी मन की खुशी मिल जाती है । फ़ातीमा अब फिर से जीने लगी थी । दोनों को जब भी मौका मिलता एक नई प्रेमी की तरह कहीं घुमने निकल पड़ता । फ़ातीमा की प्रेम की उन्माद फिर से एक बार चरम थी । फ़ातीमा, रफी़क में हमसफ़र देखने लगती है । उसे हर हाल में पाना भी चाहती है ।
फ़ातीमा उस सोसाईटी से घर भी चेंज कर लेती है ताकि रफी़क का आना -जाना किसी को ना खले। फ़ातीमा को समुन्द्र के किनारे बैठना बड़ा अच्छा लगता है ।उसे जब भी सैड या खुशी होती समुन्द्र के किनारे बैंड स्टैंड पर बिताना अच्छा लगता है उसी जग़ह बड़े फ़िल्मी सितारों के घर है । वह लहरों के तरंग में खुद के अंदर हलचल को देखती है । मानों इन लहरों से सवाल - जबाब भी करती है । बीते लम्हों को याद कर लोट आती ,जैसे समुंद्र तंरग को अपने अंदर समेट लेती है ।
वह रफी़क के साथ बैंड स्टैन पर बिताने लगी थी । शाम होते ही ख़्वाबों की शहर मुम्बई , रोशनी से जगमगा उठता है वैसे ही फ़ातीमा की ज़िन्दागी एक नया आकार ले रही थी ।
फ़ातीमा को अब रफी़क से खुल कर प्रेम करने में बच्चें जैसे ख़लल दे रही थी। वह तीन बच्चों की माँ थी मर्द को किस चीज़ की ज़रूरत होती है उसकी समझ थी और किसी स्त्री के साथ पुरुष का होना कितनी ज़रूर होती है ,वह जान चुकी थी। वह रफी़क के साथ निका़ह कर एक बेटा की उम्मीद पाल रखी थी । फ़ातीमा तीनों बच्ची को इस्लामिक ट
्रस्ट में एडुकेशन के लिए दाखि़ला कर देती है । वहाँ बहुत कम रुपये पर मुस्लिम समाज के बच्चों की तालीम दी जाती है । अपने तीनों बच्चों को होस्टल भेज कर फ्री हो गई थी । अब दोनों को एंजॉय करने में कोई दिक्क़त न थी ।
कुछ साल तक बहुत सुहाने दिन कटे। रफी़क ने एक साथ में कई लड़कियों से प्रेम रचा रखा था । जिसका खुलासा फ़ातीमा को हो जाती है। फ़ातीमा के दिल पर चोट पहुँचती है। रफी़क के साथ झगड़ जाती है और उस पर षोशण के आरोप में जेल भेजवा देती है । यह घटना फ़ातीमा के लिए सदमा से कम न था , बहुत रोई थी । “ …आखिर उसे धोखा ही देना था तो फिर से जीने की सपना क्यों दिखाया…? “
वह फिर से टूटने लगी थी । उसी दरमियां रफ़ीक के खि़लाफ़ रिपोर्ट लिखने वाले थानेदार फ़ातीमा की हमदर्द हो जाता है ।
थानेदार टाइम पास हमदर्द बन गया था। यह हमदर्दी फा़तीमा को छलावा लग रही थी , लेकिन कुछ मुसिबतों में काम आ जाते थे। उसकी हमदर्दी को एक दम से खारीज़ भी नहीं कर सकती थी । उसकी मर्दों से यकी़न उठ गई थी । वह सब कुछ छोड़ कर फिर से मज़बूत हो जाती है । अब किसी से इश्क़ के चक्कर में नहीं फसना चाहती है ।
फा़तीमा मुम्बई की चमक -धमक वाली ज़िन्दगी की ओर आकर्षित हो जाती है । वह फ़िल्म और tv . धारावाहिक के लिए लोगों के सम्पर्क में आती है । उसके लिए एक नई संघर्ष था। वहां भी शोषण करने वालों की कमी न थी । जितनी लोग उतनी बातें । छोटा सा कास्टिंग के नाम पर सीधे कोम्प्रोमाईज़ करने को कहते । फ़ातीमा के लिए यह डिक्शन नया था लेकिन बहुत ज़ल्दी सिख गई थी कि tv. & फिल्म के कास्टिंग के नाम पर सेक्स करना । फ़ातीमा इस फील्ड में शरीर को बेचने नहीं आई थी बल्कि रुपया और शोहरत के नाम कुछ भी हासिल हो जाए। फ़ातीमा कहीं अभिनय तो सीखी नहीं थी । प्रोड्यूसर , डायरेक्टर उनकी तारीफ कर झुठे सपने दिखाते । प्रोड्यूस बहुत घुमाने पर छोटा सा रोल फिल्म या सीरियल में देते । बड़े फ़िल्म प्रोड्यूसर या डाइरेक्ट तक पहुँच न थी । उस दरमियान अच्छे लोगों से कम , गलत लोगों से ज़्यादा मुलाक़ात होती रही । कई प्रोड्यूसर सेक्स रैकेट वाले मिले जो मोटी रकम का झांसा दे कर शूट करवाना चाहते थे लेकिन वह इस दलदल में फसना नहीं चाहती थी । वह मज़बूर ज़रूर थी अपनी ज़िंदगी के साथ -साथ बच्ची का भविष्य का सवाल था। फ़ातीमा जुनियर आर्टिस्ट्स के रूप में काम कर लेती यानी किसी भीड़ वाली दृश्य में कुछ कर लेने वाली कार्य को कर वह खुश तो नहीं थी लेकिन पैसे मिलजाते थे । वहां एक दूसरी दुनियां में जीने वाली प्राणी बना दिया था । छोटे -छोटे अभिनय कर बड़ा काम मिल सकने की उम्मीद …। फ़ातीमा अपनी बॉडी स्ट्रक्चर को बेहतरीन बना ली थी । अपने को कुँवारी लड़की से कम न आंकती । अब वह अपनी लाइफ के बारे में किसी को न बताती लेकिन उम्र को छुपाया न जा सकता था ।
बड़ी वाली लड़की को होस्टल से बाहर कर पढ़ाई के लिए दूसरे संस्थान में भेजना था । उसके लिए अलग से डोनेशन की ज़रुरत थी। दूर -दूर तक कोई रास्ता न था । कई दोस्तों के आगे हाथ फैलाई कोई डोनेशन के लिए पैसे देने नहीं दिए।
बेटी(नूर) 13 वर्ष की हो गई थी । अम्मी और बेटी (नूर) दोनों बेस्ट फ्रेंड्स की तरह रहती है । फ़ातीमा , बेटी को ज़िन्दगी की हर तज़ुर्बा बताती है ।जब भी नूर अम्मी के पास आती अम्मी उसे अच्छे रेस्तरां में खाने खिलाने की कोशिश करती । अम्मी अपनी स्कूटी पर नूर को बिठा कर घूमती ज़िन्दगी के सही -गलत की फ़र्क बताती । फातीमा की एक ग़लत क़दम से ज़िन्दगी गर्त में गिरती चली गई थी ,फिर उसे संभालने की ज़द्दोज़हद में लगी है। बेटी को फ्रेंडशिप और प्यार में अंतर बताना चाहती है । फतीमा चाहती थी कि मेरी बेटी कोई ग़लत कदम न उठाले इस लिए उसे सही और ग़लत में फर्क बाता रही थी । नूर अपनी अम्मी की दर्द देखती रही है , रफी़क से निक़ाह करने की सपने भी जानती थी । सारा खेल उसके सामने में ख़त्म हुई थी ।
फ़ातीमा की बचपन की फरेंड मज़रूल खां था । जो कभी फ़ातीमा को लाइक करता था लेकिन उसकी शादी फ़ातीमा के दोस्त से हो गई थी । बहुत सालों तक कोई कांटेक्ट नहीं था । एक ही सोसाईटी के थे घर से सभी का आना जाना भी था । मज़रूल शादी के बाद दूसरे कंट्री में काम करने लगा था । बड़े साल बाद उन दोनों से मुलाकात हो जाती है । उन्हें फ़ातीमा की हालात देख कर दुःख होता है । उसकी हालात को देखकर उसके करीब आ जातें है। वह चाहता सभी काम छोड़ कर उनके साथ रहें । जब भी मज़रूल मुम्बई आता फ़ातीमा के साथ समय बिताने के लिए बेताब रहता । पहली पत्नी से आकर्षण कम हो गया था । पहली वाली में दो बच्चें थे। फ़ातीमा को अब किसी से मोहब्बत न थी जस्ट ज़िंदगी की एक आखड़ी गेम खेलना चाहती है । मज़रूल का ऑफर बड़ा था । इस पर गंम्भीरता से पहल करना चाहती थी। शायद उसकी जिंदगी बदल जाए। कई मित्रों से राय मशविरा लेती है । फ़ातीमा ,मज़रूल से कई शर्ते रखती है। वह उसी शर्त पर निकाह करेगी जब वह तीनों बेटियों की परवरिश की ज़िम्मेदारी लेगें। फ़ातीमा तब तक गर्ल फ्रेंड की तरह मज़रूल को कामवासना के लिए तड़पाती रही । फ़ातीमा को खुश करने के लिए मज़रूल बहुत सारे गिफ्ट लाकर देतें। फ़ातीमा अपने बेटियों से भी मिलाती ताकि उसके साथ बेटी भी उसका दिल जीत सकें। मज़रूल ,नूर की एडुकेशन के लिए डोनेशन दे देता है। बच्चों की पढ़ाई की ख़र्च की ज़िम्मेदारी ले लेता है। अगले ही दिन विदेश जाना था । हर बार फ़ातीमा ,मज़रूल को छोड़ने एयरपोर्ट जाती थी । आज मज़रूल का प्रेम की मापदंड शरीर का समर्पण था । फ़ातीमा चाहती कि हम दोनों निकाह कर ले सारी दूरियां खत्म हो जाएगी । मज़रूल आज भी एक किस से वापस विदेश जाना पड़ा था। फ़ातीमा को विदेश टूर पर जाने के लिए पासपोर्ट बनाने के प्रोसेस कर दिए थे । फ़ातीमा काफी उत्साहित
थी विदेश टूर जाने के लिए ।मज़रूल वहां पहुँचने के बाद वह फ़ातीमा को पाने के लिए बेताब था । फ़ातीमा की हर मूवमेंट की ख़बर रखती मानों उसके पीछे कोई खुपिया कैंमरा लगा रखा हो।
फ़ातीमा और मज़रूल का प्रेम प्रसंग की जानकारी मज़रूल की पत्नी को हो जाती है। मज़रूल की पत्नी, फ़ातीमा पर भड़क जाती है। फ़ातीमा को कहती कि वह उसकी शोहर को छोड़ दे ।मेरी बसी हुई जिन्दगी में आग मत लगाओ….।
फ़ातीमा कहती “ मैं किसी के जि़न्दगी में आग नही लगाई हूँ , मेंरी जि़न्दगी तो जल के खुद राख़ हो गई है । तुम अपने शौहर को सम्भालों ….।मज़रूल शायद आगे बढ़ गया था । फ़ातीमा पर लड्डू हो गया था । फ़ातीमा की पासपोर्ट बन कर तैयार था । बहुत ज़ल्द बीजा भी बन कर तैयार हो जाता है । मज़रूल मुम्बई आता है लेकिन उसकी पत्नी तक कोई भनक तक नहीं लगने देता । फातीमा के साथ ही रूक जाता है ।
फ़ातीमा को पहली बार मज़रूल को शौहर होने का एहसास हो रही थी । आज खाना खाने दोनों बाहर नहीं गए। फ़ातीमा ने उनके पसंद की सारी डिश बनाई थी । दोनों खुश थे , फतीमा आज मज़रूल पर सब कुछ निछावर कर देना चाहती थी । लेकिन अपने आप को सम्भाल लेती है । वह कुँवारीपन होने की स्वांग रचती है ,यही अदा उनकी मज़रूल को दिवाना बना देती है।
मज़रूल से कहती। “ मैं आपकी हो गई हूँ , क्यों न हम दोनों पहले निकाह कर ले , उसके बाद हम दोनों की पहली सुहागरात बहुत ही हसीन होगी । जो हर औरत की ख्वा़ब होती है शौहर की बाहों में फूल के जैसी जि़न्दगी हो । मज़रूल इस बात पर सहमत हो जाते हैं । फ़ातीमा , मज़रूल के बाहों में थी, वह आख़री खेल जीत गई थी । अगले ही सुबह कोट में निकाह कर लेती है । आज शाम की फ्लैट से रसीया के लिए रवाना हो जाती है ।
फ़ातीमा, रसिया में प्रवेश करते ही उसके उत्साह सातवे आसमां पर थी । मानों उनके सारे दर्द ख़त्म हो गई हो। फ़ातीमा को एक दुल्हन की तरह स्पेशल ट्रीटमेंट मिल रही थी । अच्छे रेस्तरां में खाना फिर अच्छे होटल में हनिमून के लिए कमरा बुक करवाये थे । दोनों की उत्साह चरम पर थी । उस रात की हनिमून के बाद मज़रूल का बहुत ही भद्दा कॉम्प्लिमेंट था ! तुम में एक औरत वाली ही फीलिंग थी ,इस बात को लेकर फ़ातीमा की मज़ा किरकिरा हो जाती है । मज़रूल से चिढ़ जाती है । हाँ मैं तीन बच्ची की माँ हूँ। कोई वर्ज़ीन लड़की नहीं । आप भी कोई कुँवारे लौंडे नहीं हो। दोनों में बहस होती फिर दोनों शांत हो जातें हैं । फ़ातीमा इस कॉम्प्लिमेंट से संभल गई थी। फ़ातीमा अब उसे रिझाने के लिए कोई तरकीब न छोड़ती । वह अब ज़्यादा मॉडर्न हो गई थी। फातीमा इस बार प्रिगनेंट हो गई थी , वो खुश थी वो हमेशा दूआ में पढ़ती थी कि एक बेटा हो जाए। मज़रूल को पता चलता है , वह इतनी जल्दी नहीं चाहता था कि ये सब हो….लेकिन फ़ातीमा अल्लाह की दुहाई देकर संतान को होने देने को कहती हैं ।
फ़ातीमा एक स्वथ्य बेटे को जन्म देती है । उसकी की फरियाद अल्लाह ने सुन ली थी । फ़ातीमा बहुत खुश थी । उसे लगने लगा कि उसकी अधूरी जि़न्दगी पूरी हो गई। अगर मियां मज़रूल का किसी दूसरे स्त्री पर दिल आ जाए या निक़ाह कर ले अब कोई फ़िकर नहीं होगी।
अल्लाह करे ऐसी दिन न आए। फ़ातीमा को यह मलाल था कि हमने दूसरे को घर तबाह कर अपना घर बनाया है । वह अल्लाह से हमेशा दुआ करेगी की उसे माफ़ कर दें।