बच्चे मन के सच्चे (व्यंग्य)
बच्चे मन के सच्चे (व्यंग्य)
बच्चे मन के सच्चे होते हैं । जब छोटे से ही उसके दिमाग में कचरा भरा जा रहा हो तो बच्चे मन के सच्चे कैसे हो होंगे। आप अपने मोहल्ले में निरीक्षण कर लीजिए, बच्चे की बात -बात पर बदतमीजी, गालियों सुन कर आप शर्मा जाते होंगे, लेकिन हम दरकिनार कर आगे निकल जाते हैं। हम लोग भी जाने -अनजाने में अपने घर पर भी अभद्र भाषा का प्रयोग करते होंगे / करते हैं। बात -बात पर माँ की ....बहन की …
मर्द , स्त्री अभद्रता की गालियां का प्रयोग करते हैं । बात तो तब हद हो जाती है स्त्री ही स्त्री को संबोधन कर अपनी स्त्री सृंगार को कलंकित करती है। जितने कवियों को उनके रूप और कुरूपता की जानकारी न होगी उससे कहीं ज्यादा वर्णन होती है। हाँ कवि उन रसों का रसास्वादन कर सकते हैं और रस छंन्द को आगे बढ़ा सकते हैं ।
इस विषय पर P. H. D. कर सकते हैं । शायद P. H. D. कर भी ले तब भी आप इस समाज में गालियों के पुल बनाये संयमित नहीं हो सकते हैं। शायद स्त्री आकर्षण और काम वासना से ज़्यादा कुछ नज़र नहीं आती। हर किस्सा – कहानियों , फ़िल्म.. इत्यादि में सेक्स ,लव के प्रसंग ही हिट्स होते हैं। उस कहानी में प्रेरणा के नाम पर कुछ हासिल नहीं होता, न ही स्त्री के लिए कुछ अच्छी यादें छोड़कर जाते हैं । एक बात ज़रूर है , सेक्स ,लव, हिंसा वाली कहानियां रोमांचित ज़रूर कर जाती है ।
आज स्कूल, कॉलेजों में ,आम पार्क सार्वजनिक जगहों का नज़ारा देख ही रहें होंगे ,रोमांस का प्रदर्शन किस कदर किया जा रहा है ।ऐसा नहीं कि प्रेम करना ग़लत है ,ज़रूरी है उनकी बुनियादी बातों पर कितना पहल होती है ।
रेप का वीभत्स घटना अंदर से झकझोड़ देती है । इसका कारण क्या है , स्त्री दोष या मर्द का नज़रिया ..?
हाँ हम प्रकृति के बनाये गए आकर्षण को दरकिनार नहीं कर सकते, लेकिन मनुष्य अन्य जीवों से विवेकशील है। तो आकर्षण का मतलब स्त्री भोग की वस्तु कैसे हो सकती है ! खूबसूरत बचपन जब एक संयुक्त परिवार में परवरिश हो रहा होता है। जहाँ हम सब कुछ सीखते है , सीखने को अधूरा रह जाता है तो स्त्री के प्रति नज़रिया। यही नज़रिया हिंसा में परिवर्तित होता चला जाता है । हम रिश्तों की प्रेम और त्याग की स्त्री भूमिका को भूल कर किसी स्त्री को अकेला पाकर उसे गिद्ध की तरह नोचने की कोशिश करते हैं ।
प्रेम में आकर बहक जाना दूसरी बात है , स्त्री के अस्मिता पर प्रहार करना हमें जानवर की श्रेणीयों में धकेल देता है।
बच्चे मन के सदा सच्चे नहीं होते । उसके लिए हम सभी ज़िम्मेदार है ।
