Mritunjay Patel

Inspirational

4.5  

Mritunjay Patel

Inspirational

तोड़ती बेड़ियां

तोड़ती बेड़ियां

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“ पापा अब चिंता करने से कुछ नहीं होगा । लोगों को जो सोंचना / कहना है कह लेने दीजिए । इस तरह की घटना हर समाज में होती है ।इसका मतलब यह नही कि समाज में हम सभी जीना छोड़ दे। ग़लती मेरी भी है कि अर्पिता को सम्भाल नहीं पाई। आप ने बेटों से बढ़कर समझा है… मैं विश्वास दिलाती हूँ कि मैं आप के टूटते सपने को सकार करूंगी। “ 

यह कहते हुए सुजीता की स्वर भर जाती है ..

निर्मल घर का एकलौता वारिश था । ग़रीबी ने उसकी बचपन कैसी छिनी पता तक नहीं चला था । घर की ग़रीबी और भूख ने निर्मल को आत्मनिर्भर और मेहनतकश बना दिया था । निर्मल अब 20 वर्ष का हो गया था । उनके पिता घनश्याम जी अब निर्मल की शादी कर देना चाहते हैं क्योंकि घर में तीन बेटियों की शादी कर अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा कर चुके थे ।

निर्मल शादी की ज़िम्मेदारी से बचना चाहते थे, लेकिन निर्मल की बस ना चला उनकी शादी करवा दी जाती है । घर में कन्या आ जाने से पिता जी खुश थे । अब सारी ज़िम्मेदारी अपने बेटे निर्मल पर छोड़ देना चाहता है ।

“ बेटा अब तुम्हें अपना परिवार की परवरिश करना है। मैं अपना कर्तव्य निभा कर आराम करना चाहता हूँ। अब ये बूढ़ा शरीर खेत में मेंहनत करने से रहा। अब तो सारी बिटियां भी परायी धन हो गई जो हमारे किसानी में मदद करती थी ,साल भर की अनाज के लिए मोहताज़ नही होना पड़ता था । बहू -बेटा उनकी बातें सुन रहे थे । घर में बिटियों को छोड़ कर चार सदस्य बचें थे । माता -पिता ,निर्मल और निर्मल की पत्नी।

किसानी में बाढ़ -सुखाड़ के एक पखवाड़ा पूरा होते ही घर में नन्ही सी परी का आगमन हुआ । निर्मल के पिता बहुत खुश थे लेकिन निर्मल उदास था ,उनकी माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई थी । 

“ बेटा तुम मुँह क्यों सुखराये हो, घर में बेटी के रूप में धनवन्ति आई है ।“ 

 घर में लड़की पैदा होते ही नाच -गाना करने वाले ‘पमरिया’ घर पहुंच जाते है , खुशियों के गीत गाने लगते हैं । घनश्याम, दादा बनने की खुशी में अनाज़ के साथ तोफ़े में रुपये देतें हैं ।

निर्मल के जीवन में एक नई ज़िम्मेदारी के साथ नई परिवर्तन भी आने लगा था । निर्मल घर आई बेटी के बारे में सोचने लगा था , समाज में चारों तरफ शिक्षा का माहौल था ,लड़कियां घर से बाहर निकल कर पढ़ने लगी थी । गांव की कई लड़कियां सरकारी नौकरी से जुड़ गई थी । निर्मल तो नहीं पढ़ -लिख पाया था जिसका उसे मलाल था । वह अपनी बेटी को अनपढ़ नहीं रखना चाहता है । वह किसानी से बस दो जून की रोटी ही कमा पाता था । अब निर्मल राजमिस्त्री का काम सीखने लगा था । देहारी पर काम करने लगा था । कम समय में मकान जोड़ने का काम सिख गया था लोग कारीगर के रूप में बुलाने लगा था रोज़ की आमदनी बढ़ गई थी । फिर एक साल बाद निर्मल को बेटी हो जाती है । निर्मल इन सालों में हिम्मत और खुशियां बटोर लिया था लेकिन फिर से घर बेटी जन्म लेने पर खुशियां कम पड़ गई थी । लेकिन अपने चेहरे पर शिकन का पता तक नहीं चलने दिया । वक़्त के कुछ पड़ाव पार करते दोनों बेटियां बड़ी हो गई थी । इस बार मैट्रिक की परीक्षा दे कर रिजल्ट का इंतज़ार कर रही थी ।

निर्मल दोनों बेटी की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ा था । बेटियां, गांव में टुएशन पढ़ कर अपने स्कूल में प्रथम स्थान दर्ज करती रही । अपने पिता की हौशला बढ़ाती रही। घर के काम -काज से किसानी का कार्य करने तक पीछे नहीं होती । रोज़ ज़रूरी कार्य कर कर पढ़ने -लिखने में तल्लीनता से लग जाती। आस - पास के लोग दोनों बेटियों की तारीफ़ करते। 

बड़ी वाली सुजीता और छोटी अर्पिता दोनों में बहुंत अंतर थी। सुजीता रंग से श्यामली, सुशील और अर्पिता रंग से गोरी ,चंचल ।

घर में पिता ( निर्मल) एक स्मार्ट फ़ोन ले रखा है उस फ़ोन पर अधिकतर छोटकी अर्पिता की क़ब्ज़ा रहती है । जिस कारण दादा जी नाराज़ भी हो जातें हैं , अधिकतर फ़ोन के साथ लगे रहने पर गुस्सा भी करतें हैं । दादा को डर लगा रहता है कि आज कल लड़कियां फ़ोन से बिगर भी जाती है । समय बदल गया है लड़का – लड़कियों का प्रेम फ़ोन पर ही हो जाता है ..और कई तरह की बातें क्योंकि आस -पास में घटना घटित होते देख रहे थे । पिता को लगता कि आदमी को ज़माने के साथ चलना ही चाहिए लोग tv ,मोबाइल से बहुत कुछ सीखते भी हैं ।

 निर्मल काम के दौरान कई लोगों से संपर्क में था । लड़कियों की आगे बढ़ाने की गाथा सुनते रहता । वह बीच -बीच में अपनी बेटियों की अच्छाई की बात कर देता था। 

आज मैट्रिक की रिजल्ट जारी होने ही वाली थी। दोनों बहनें रिजल्ट का इतंज़ार कर रही थी ।आगे की कैरीयर के बारे में चिंतित थी।

 घर में पहली पीढ़ी था जो पढ़ -लिख रही थी कोई रास्ता दिखाने वाला नही था।

सुबह होते ही निर्मल के घर खुशियों की लहर दौड़ गई थी ।अर्पिता जब पापा के मोबाइल से रिजल्ट देखती है दोनों फस्ट डिवीजन से पास हो गई थी , लेकिन सुजीता जिला टॉप कर गई थी । निर्मल यह ख़बर सुन कर उसका सीना चौड़ा हो जाता है।

निर्मल ,चौराहे से अख़बार ख़रीद कर दोनों बिटियां की प्रकाशित रिज़ल्ट पर चिन्ह लगा लिया था जहां भी जाता अपनी बेटी की रिज़ल्ट दिखाता । अगले ही दिन अख़बार के जिला एडिशन में सुजीता की टॉपर होने की न्यूज़ प्रकाशित हो जाती है । पूरे गांव में निर्मल की बेटी शुर्खियाँ बटोर रही थी । जो लोग कभी निर्मल को मज़ाक बनाता था वही लोग उसकी बेटियां की कैरियर कॉन्सेलर बन बैठा था। जितने लोग उतनी बातें …..। 

दोनों बेटीयां अपनी रुझान और संसाधन को ध्यान में रखते हुए विषय का चयन करती है । सुजीता साइंस और अर्पिता आर्ट में अपने ही बगल के शहर में एक कॉलेज में दाखिला लेती है । 

 दोनों उम्र में बड़ी हो रही थी। घर के संबाद से दोनों सही और गलत की फ़र्क समझने लगी थी । घर वाले हमेशा कहते “ बेटियां घर की इज़्ज़त और शान होती है ।बेटियां की एक ग़लत क़दम होते ही समाज में घर वालों की नाक कट जाती है । दोनों बेटियां, घर में लड़का नहीं होने कि घर वालों की दर्द को भी समझने लगी थी । लेकिन पिता का प्यार कभी कम नही हुआ।

निर्मल हर दिन सुबह अपने कार्य पर साईकिल से निकल पड़ता , आज शाम घर लौटते समय निर्मल को मोटरसाइकिल से एक्सीडेंट हो जाता है। वह बड़े हादसा से बचे लेकिन पैर में मोच आ जाने की वज़ह से डॉ0 पैर का प्लास्टर कर कुछ महीने बेड रेस्ट करने कहा है ।

निर्मल को पैर से ज़्यादा चिंता परिवार और दोनों बेटियों को लेकर होने लगा था । दोनों बिटियां की चिंता अपने पिता पर थी । दोनों पिता की खूब ख़्याल रखती है । खेत में गेहूं की फसल पक के तैयार था, सूरज की गर्मी आग उगलने लगा था । इस गर्मी में दोनों बेटियां सारा फसल काट कर अनाज को घर करती है । 

सुजीता अब तय कर लेती है कि टुएशन पढ़ा कर खुद की पढ़ाई को जारी रखेगी । देखते ही देखते सुजीता के पास स्टूडेंट्स की कमी नहीं रही । निर्मल का कुछ महीनों का समय कैसे निकल गया था पता नहीं चला ।आज अपने बिटियां पर फक्र हो रहा था ।बेटे की खूबियां बेटियों में तलाशने लगा था। निर्मल ठीक हो कर अपने दिनचर्या पर लौट जाता है। 

अर्पिता सूंदर थी ,कॉलेज के कई लड़के उससे दोस्ती करना चाहता ,अर्पिता के चंचल व्यवहार की वजहों से उसकि किसी से बात करने में कोई झिझक नहीं थी। सुजीता उससे सख्त़ थी जितनी ज़रूरी की बातें उतनी ही तक सीमित थी। अर्पिता की झुकाव क्लासमेट रवि से होने लगा था । बहन सुजीता से बच कर रवि से मिलने का समय निकाल ही लेती थी । धीरे -धीरे यह बात स्टूडेंट्स तक पता चल गया था । अब सुजीता भी इस बात से बेख़बर नहीं थी। सुजीता ,अर्पिता को रवि से दूर रहने को कहती है 

औरअपने पढ़ाई पर ध्यान दे । लेकिन प्रेम की भूत उसपर सवार हो चुका था। प्रेम का भूत अर्पिता को खोखला करते जा रही थी । 

सुजीता पढ़ाई में अब्बल आने की वज़ह से सभी प्रोफेसर उसे मानते थे , जिससे सुजीता को मार्ग भी प्रसस्त हो जाया करती। सुजीता , सीविल सर्विसेज का सपना सजो लेती है । वह पुस्तकालय से किताब लाकर पढ़ने लगी थी ।

अर्पिता पुस्तकालय तो ज़रूर जाती है लेकिन रवि से किसी बहाने मिलने पुस्तकालय, कॉलेज के कैंपस में घंटो बातें करती ।अब बहन सुजीता से कटने लगी थी और बात -बात पर सुजीता से चिढ़ जाती है ।

 कई लोग निर्मल से बिटियों की शादी के बारे में कहने लगे थे । बेटियों की शादी के लिये तलाश शुरू कर दो । बेटियां अब ज़वान हो रही है । अच्छे घर -वर ढूढने में समय तो लगता है। यह बात सुजीता को पता चल गई थी । सुजीता, पिता जी को कहती है

“ बाबू जी मुझे अभी शादी नहीं करनी है जब तक मैं अपने पैर पर ना खड़ी हो जाती …..”

 पिता भी यही चाहते लेकिन समाज की पिछड़ापन उसे इजाजत नहीं देती..। इस समाज में बेटीयों की शादी में देर नही लगती, शादी कर घरवाले तभी सुख -चैन की साँसे लेतें हैं । दोनों की ज़िद ने बैचलर की डिग्री कर ली । इस बार भी सुजीता कॉलेज टॉपर हुई । अर्पिता इस बार किसी तरह से फस्ट कलास से बी.ए. पास की। 

घर वाले अब दोनों की शादी के लिए इंतजार नहीं कर सकता था कई लड़का वालों की नज़र निर्मल की बेटियाँ पर थी । इस बीच लाख मना करने पर लड़का वाले शादी के लिए लड़की देखने आ जाते हैं । सुंदरता की वजह से अर्पिता को पसंद कर लेता । लड़का पक्ष से विशेष डिमांड नहीं था । अर्पिता शादी को लेकर विरोध करती है ।वह अपनी प्रेम का इज़हार करती है। यह बात सुनतें ही घर वालें की प्रतिष्ठा मानों तार -तार हो गई हो।

 निर्मल गरीबी से तो नही उठ पाया था लेकिन अपनी दोनों बेटीयों को शिक्षा दिला कर समाज में प्रतिष्ठा बना लिया था। निर्मल जिस सामाजिक व्यवस्था में पला बढ़ा था वहा अंतर जातिय विवाह करना मुश्कि़ल था। अर्पिता के पक्ष में कोई खड़ा नही हुआ। उसकी शादी घर वाले अपनी पंसद के लड़के से तय कर देता है । अर्पिता की चैन उड़ गई थी।अर्पिता और रवि में गहरा प्रेम था, दोनों जीने -मरने की कसम खाई थी। अर्पिता अपने प्रेम को घर वालों की मर्जी से हासिल ना कर सकी वह घर से भाग जाती है। 

अर्पिता के इस हरकतों से पूरे परिवार मानों सदमें में चला हो । लोगों के बीच चर्चा की विषय बन गया था।जो लोग पहले निर्मल की बेटीयों की तारीफ करते थे वही लोग निर्मल और उनकी बेटीयों की मजाक उड़ाने लगे थे 

“ निर्मल की बेटियां कुछ पढ़ लिख क्या ली दोनों की दिमाग आसमान में उड़ने लगे थे। बेटी कलक्टर बनेगी ….अब निर्मल का समाज में क्या इज्ज़त रहा । एक लड़की नाक कटा कर गई देखना दूसरी भी इसी राह पर ना निकल पड़े.. ”

निर्मल के पिता अपनी पोतियों को होशला बढ़ाते रहें थे। वह कई दिनों से मौन है। निर्मल भी कई दिनों से कार्य पर नहीं गये। सुजीता के पास स्टुडेंट था वह भी आने से कतराने लगे थे। एक गलती से सभी का मान -मर्यादा इस छोटी सी समाज में चली गई थी। सुजीता को डर था कि उसकी मंजिल ख़त्म ना हो जाए। सुजीता को घर की माहौल देख कर रहा नहीं जा रहा है वह चाहती है फिर से सभी खुशहाल रहें। जो घटना घट गया था उस पर चर्चा करना या समाधान करना मुर्खतापूर्ण था। दोनों बालिक थे अपनी मर्ज़ी से कोर्ट मैरेज की थी । वह अपने आप में समाधान था। 

सुजीता अपने परिवार के बीच बोल पड़ती है “ पापा अब चिंता करने से कुछ नहीं होगा । लोगों को जो सोचना / कहना है कह लेने दीजिए । इस तरह की घटना हर समाज में होती है ।इसका मतलब यह नही कि समाज में हम सभी जीना छोड़ दे। ग़लती मेरी भी है कि उसे सम्भाल नहीं पाई। आप ने बेटों से बढ़कर समझा है… मैं विश्वास दिलवाती हूँ कि मैं आप के टूटते सपने को सकार करूंगी। “ 

यह कहते हुए स्वर भर आती है । कोई भी इस सवाल की ज़वाब देने की स्थिति में नहीं था। दुःख का पहाड़ तो किसी तरह उठालेता है आदमी लेकिन इज्ज़त पर दाग को साफ कर पाना कठिन होता है। 

अर्पिता और रवि की शादी रवि के घर वालों को मंजूर नही था । दोनों को घर में बड़ी मुश्किल से पनाह मिल जाता है । घर वाले साफ -साफ कह दिए कि तुम अपनी ज़िम्मेदारी खुद सम्भालो ….। रवि बेरोगार था आमदनी की कोई स्त्रोत नही था ना हि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी जो लड़ - झगड़ कर कुछ कर ले । रवि को सारे रास्तें बन्द नज़र आने लगे थे। अब दोनों को इश्क़ और हकीक़त में फ़र्क नज़र आने लगाता है ।सुजीता के घर वालों की नज़र में सुजीता की शादी में वक्त नही वर्बाद करनी चाहिए , अपने ही हैसीयत के बराबरी में कहीं शादी हो जाए तो सकुन की सांस ले। सुजीता अपने घरवालों से गुहार लगाती है कि उसे एक से दो साल की मौका दे वह अपने पैर पर खड़ी होना चाहती है । सभी को मदद करना चाहती है । परिवार पर लगा दाग़ को धोना चाहती है। 

निर्मल का हृदय मानों पत्थर का हो गया हो सुजीता की बातों का कोई असर नही पड़ा उसकी विश्वास की नींब कमज़ोर हो गया था । निर्मल का स्वर करुणा से कपकपाने लगता है “ बेटी तुम्हें भी कोई अपनी मर्जी की कदम उठाना है, तो आज कह दो? हम अपने दिल पर पत्थर रख कर मैं अपने आप को समझा लेगें कि मेरा भी कोई संतान था ! “

सुजीता के उपर आघात होती है । वह फफक कर रोने लगती है “पापा मैं अर्पिता के तरफ से प्रायश्चित करना चाहती हूँ! आप को कभी सर झूकने नहीं दूँगी…।

दादा, निर्मल और पोती (सुजीता) को ढ़ाढ़स देती हुई समझाते हैं

 “ …..एक चानस देते है । हम सब तो ठहरे अंगूठा छाप कलक्टर -उलक्टर बनना क्या होता है नही पता यहां चपरासी की नौकरी भी हो जाए तो बड़ी बात है…।“

दादा के संवाद से सुजीता को होशला मिलता है । सुजीता अब पढ़ाई में दिन -रात एक देती है। कुछ स्टुडेंट आ जातें पढ़ने को जिससे पढ़ाई का खर्च निकल जाता । इस बार सिविल सर्विसेज में फार्म भड़ी थी और कई सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई की थी। पापा से अनुमति लेकर ऑन लाईन भी पढ़ाई करने लगी थी। घर में माहौल समान्य होने लगा था।अर्पिता की चर्चा ठंडी पड़ गई थी। 

सुजीता की कल सिविल सर्विसेज की प्रिलिम्स की परीक्षा है। पापा (निर्मल) ,सुजीता को परीक्षा दिलवाने अपने राजधानी जा रहें थे। 

 सुजीता की कई पुरस्कार के आयोजन के मौके पर राजधानी जाने का मौका मिला था । निर्मल ,सुजीता के साथ परीक्षा सेन्टर पर पहुंते स्टूडेंट्स की चहलकदमी थी । निर्मल खुद को अच्छा महसुस कर रहें थे।उसको अमीर ,गरीब स्टूडेंट्स में फर्क नज़र आ रहे थे। लेकिन निर्मल को सुजीता की मेहनत पर यकीन था कि मेरी बेटी उन लोगों से कमतर नही है। निर्मल के अंदर कई सवाल घुमरने लगे थे।वह ईश्वर से सुजीता के लिए प्रार्थना में मग्न हो गए। जब स्टूडेंट्स की चहलकदमी होती तब निर्मल की आँखें खुलते ही देखता कि सुजीता मुस्कुराते हुए सामने से आ रही रही थी। निर्मल का दो घंटे कैसे कटता है पता नही चला था। निर्मल ,सुजीता की ओर बढ़ता है ।सुजीता ,पापा को चरण स्पर्श करती है । सुजीता कहती पापा मेरी परीक्षा अच्छी रही । निर्मल का सीना चौड़ा हो जाता है।सुजीता अब अगले मेन्स की तैयारी में लग जाती है घरवालों ने उसकी पढ़ाई में कोई बाधा नही डालती ना ही घर की काम -काज । लोगों के बात पर ध्यान देना बंद कर दिया था। प्रिलिम्स की रिजल्ट में सुजीता पास हो गई थी। परिवार में खुशी की ठिकाना ना थी ।यह ख़बर लोगों तक कानों तक पहुंच गई थी। लोगों का घर आना -जाना होने लगता है । सुजीता इस गांव की पहली लड़की थी, इस परीक्षा में सफल हुई थी। लोग सुजीता को मुबारक़बाद देने लगे थे । सुजीता की होसला बुलंद होती है । वह अपने परिवार पर लगे दाग़ को धुलने में सफल हो रही थी।

सुजीता, सिविल सर्विसेज के तीनों चरण की परीक्षा में पास हो जाती है ।यह सफलता सपनों परे थे लेकिन सुजीता यह मिशाल कायम कर परिवार और गांव का नाम रोशन की थी । यह सफलता की ख़बर अर्पिता तक पहुंचती है उसे अपने फैसले पर मलाल हो रहा था । वह पुरे तरह से परिवार से दूर हो गई थी । आज अर्पिता को सुजीता को सैलुट करने को छटपटाने लगी थी । आज पुरा गांव सुजीता के सम्मान के लिए आयोजन रखा है । सुजीता उस मंच पर अपनी सफलता की कहानी कहती है 

“मेरी सफलता की ईट मेरे पापा और दादा जी है। जिसने खुद अनपढ़ रहते हुए बेटीयों को पढ़ाने की हिम्मत जुटाई। जिस घर में खाने की लाले पडे़ हो मुझ जैसी लड़की को उड़ने के लिए खुला आसमान दिया तो हमें अपने सपने को साकार करने में अआसान हो गई। जो व्यक्ति समय रहते अपने रास्तें से भटक जाते हैं वह जिन्दगी भर अफसोस करते है। वह जि़न्दगी के छोटे -छोटे बहाव में बहते चले जाते है। ….मैं तो यही कहुंगी कि हर आदमी को सपने देखना चाहिए । सपने हर मुस्किल के फासले को पार कर मंजिल तक पहुंचा देती है।“

इस संबोधन से लोगों के नज़र में सुजीता ऊँची हो गई थी। सुजीता हर बेड़ियों को तोड़ कर अपने लिए और परिवार के लिए मुका़म हासिल की थी।

                                                    



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