चुड़ैल
चुड़ैल


लगभग चालीस-पचास की भीड़ थी जिसमें बूढ़े, जवान, आदमी, औरत तथा बच्चे शामिल थे, चहल-पहल और भगदड़ के साथ एक दिशा की ओर तेजी से बढ़े जा रहे थे.
एक लड़का दूर खड़े होकर इस दृश्य को बड़ी ही उत्सुकता से देख रहा था. यह कहानी तत्कालीन मध्य प्रदेश के कोरबा जिले के एक छोटे से कस्बे छुरी की है और यह लड़का छुरी के ही एक आदिवासी छात्रावास में रह कर छठवीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा था.
कौतूहलवश वह लड़का दूर जाती हुई भीड़ की तरफ भाग लिया जो कि एक तालाब के किनारे से कदम के कई पेड़ों के बीच से गुजरती हुई पगडण्डियों की ओर तेजी से बढ़ी चली जा रही थी. लड़का दौड़कर भीड़ के पीछे तक पहुँच चुका था परन्तु वहां तक पहुँच कर भी वह संतुष्ट नहीं था. वह जानना चाहता था कि आखिर ये भीड़ किसलिऐ और किसके पीछे दौड़ी चली जा रही है. यही बात जानने के लिए कि इस भीड़ को आखिर कौन संचालित कर रहा है, वह लड़का और तेजी से दौड़कर भीड़ के आगे पहुँच जाता है. भीड़ के आगे का नजारा देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसने देखा कि एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति जिसे लोग वहां की स्थानीय भाषा में बैगा बता रहे थे, जिसका मतलब ओझा या तांत्रिक होता है, के हाथ में एक हिरण का सींग था. यह कहा जा रहा था कि यह हिरण का सींग ही उस पूरी भीड़ को संचालित कर रहा था जो कि बैगा ने अपने हाथ में पूरी ताकत के साथ पकड़ रखा था, इसी सींग की ताकत से बैगा खिंचता हुआ उसके बताऐ रास्ते पर बढ़ा चला जा रहा था और इसी को देखने के लिऐ पूरी की पूरी भीड़ उसके पीछे चल रही थी.
चूँकि आदिवासी छात्रावास में उन दिनों छात्रों के घूमने-फिरने पर किसी भी प्रकार की न तो कोई रोक-टोक थी और न ही कोई बंधन था अत: बिना किसी बात की परवाह किये वह लड़का भी उस भीड़ के साथ हो लिया जिसकी निगाहें निरंतर ही उस सींग और बैगा के ऊपर टिकी हुई थीं और अपनी कोशिश से वह बैगा के एकदम नजदीक चल रहा था. यह बताया जा रहा था कि यह बैगा एक बहुत ही पहुँचा हुआ तांत्रिक है जिसने स्वंय तो सिद्धि कर ही रखी है बल्कि उस सिद्धि द्वारा उस सींग को भी इस प्रकार की दैवीय शक्ति से ताकत प्रदान है कि उसे जो कहा जाता है वह उस बैगा का कहना मानता है खासकर जब किसी भी वस्तु को ढ़ूढना होता है तो वह सींग उस बैगा को खींचते हुऐ उस वस्तु तक ले जाता है.
लगभग आधा घंटा गुजर चुका था अब वह सींग उस बैगा और उसके पीछे की भीड़ को लेकर छुरी के बाहरी इलाके में स्थित या यूं कहिये कि सटी हुई एक छोटी सी बस्ती में पहुंच कर वहां की संकरी गलियों से गुजर रहा था और वह लगभग 12-13 साल का लड़का इस उधेड़-बुन में था कि आखिर आगे क्या होने वाला है. यह क्या अचानक वह सींग उस बैगा को लेकर सक छोटे से कच्चे मकान के दरवाजे पर जाकर रुक गया था.
सींग को दरवाजे पर टिका कर बैगा ने भीड़ में कुछ लोग जो उसके बिलकुल नजदीक चल रहे थे को कुछ इशारा किया. बैगा का इशारा पाकर वो आठ-दस लोग उस बन्द दरवाजे की ओर बढ़े और उसे तेजी से खटखटाने लगे.
जल्दी ही वह दरवाजा खुला और उसमें से एक जवान परन्तु बेहद ही कमजोर औरत जिसके कपड़े भी पुराने और फटेहाल दिखाई दे रहे थे, बाहर निकली. परन्तु यह क्या उन आठ-दस लोगों ने आव देखा न ताव और न ही उस औरत से कोई बात ही की बल्कि अचानक ही उसे और बाहर गन्दी सी गली में खींच कर उसे लात घूँसेां से मारने लगे. यह दृश्य देख कर वह लड़का बेचैन हो उठा था. उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ये क्या माजरा है. इन लोगों ने अचानक ही उस बैगा के इशारे पर उस बेहद ही कमजारे और गरीब औरत को इस बेदर्दी से मारना क्यों शुरु कर दिया था. वह औरत मार खाते हुऐ अबतक जमींन पर गिर पड़ी थी. देखते ही देखते भीड़़ में से कुछ और लोग जिनमें न केवल पुरुष थे बल्कि महिलाऐं व बच्चे भी थे, यह कहकर शोर मचाने लगे कि बहुत बड़ी चुड़ैल है इसे मारो जिंदा मत छोड़ो, साथ ही उस जमींन पर गिरी हुई औरत को न सिर्फ और भी लातों से और चप्पलों से मारने लगे बल्कि गालियों की बौछार करते हुये उस पर थूकने भी लगे थे.
उन लोगेां के बताऐ अनुसार अब तक उस लड़के को भी पूरी कहानी समझ में आ चुकी थी कि इस औरत को बैगा के कहने पर इसलिए मारा जा रहा था कि वह कोई चुड़ैल है जो कि रातों को जाकर खपरैल की छत पर चढ़कर तथा खपरा हटा कर अपने मुंह की लार को पाइप की तरह उपयोग कर घर में सोने वाले लोगों का खून पीती है.
उस औरत का जिसको बैगा के कहने पर कुछ आदमियों और उसकी भीड़ ने मार-मार कर गली में ही मरी समझा कर छोड़ दिया था, शायद मर ही गई होगी. इसके पश्चात बैगा अपने सींग को लेकर तथा अन्य लोग भी वहां से चले गये थे लेकिन वह लड़का अभी भी उस औरत को देख रहा था जिस पर उसे दया आ रही थी.
हालांकि वह लड़का भी वापस अपने हॉस्टल आ चुका था परन्तु उस रात बेचैनी ने उसे सोने नहीं दिया. उसे इस घटना ने इस कदर झकझोर दिया था कि क्या वह औरत सचमुच एक चुड़ैल थी, क्या सचमुच में वह किसी मकान की छत पर चढ़कर लोगों का खून पीती थी, क्या वास्तब में कोई अपनी लार को किसी सोते हुऐ आदमी पर लटका कर ऊपर छत तक उसके द्वारा खून पी सकती थी, क्या भरी भीड़ में एक भी आदमी उस औरत को बचाना या उसकी मदद नहीं करना चाहता था. ये सभी सवाल उस लड़के के दिल व दिमाग में घर कर गये थे.
लगभग पचास साल पुरानी यह घटना आज भी उस लड़के के मानस पटल पर उतनी ही सिद्दत से जिंदा थी, इस घटना का एक भी दृश्य वह लड़का इतने वर्ष बाद भी भुला नहीं पाया था, हां इतना अवश्य है कि आज उसे इस घटना का कारण स्पष्ट रुप से समझ में आ चुका था क्योंकि आज उस लड़के में सोचने समझने की शक्ति आ चुकी थी साथ ही अपनी बातों को बेबाकी से समाज के सपक्ष रख सकता है. वह लड़का और कोई नहीं बल्कि मैं स्वंय जो इस कहानी को इतने अरसे बाद इसलिऐ लिख रहा हूँ क्योंकि आज के संदर्भ में भी यह घटना उतनी ही प्रासंगिक है जितना कि घटना के वक्त थी. आज भी इन घटनाओं में किसी भी प्रकार की कमी दिखाई नहीं देती है, हो सकता है थोड़े बहुत बदले हुऐ स्वरुप में या और भी घिनौने रुप में अधिकाधिक गिनती में आज भी ये घटनाऐं हमारे समक्ष आती हों लेकिन हम इनको इतनी गंभीरता से इसलिये नहीं लेते हैं क्योंकि हम स्वंय नहीं चाहते कि समाज में ऐसी घटनाऐं न हों बल्कि कहीं न कहीं ये हमें रिझाती हैं, हमारे कौतूहल का कारण बनती हैं और मनोरंजन करती हैं.
कभी किसी ने सोचा कि अगर वह औरत चुड़ैल ही थी तो क्या वह इतनी कमजोर थी कि कोई भी उसे मौत के घाट उतार सकता था, अगर वह औरत लोगों का खून पीती थी तो क्या उसमें इतनी भी ताकत नहीं आ पाई थी कि कम से कम अपने बचाव में वह थोड़ा भी हाथ-पैर चला पाती. उस चुड़ैल को कभी किसी ने किसी की भी छत पर चढ़ते हुये या छत के खपरैल हठा कर अपनी लार से किसी का भी खून पीते हुऐ कभी भी नहीं देखा था क्योंकि अगर ऐसा होता तो उसी दिन या उसी रात उस औरत का मार दिया गया होता. यह सिर्फ और सिर्फ लोगों के अंधविश्वास का नतीजा है जिसकी आड़ में कुछ गुण्डों ने एक मासूम सी बेचारी कमजारे औरत को मौत के घाट उतार दिया था और उनके इस उल्लू सीधे करने के प्रकरण में अंधी भीड़ भरपूर सहयोग कर रही थी.
हो सकता है कि वह औरत समाज के इन गिने चुने गुण्डों से अपनी अस्मिता को बचाने में उनका विरोध कर रही हो, हो सकता है कि वह इन लोगेां का या बैगा का कहना नहीं मान रही हो, हो सकता है कि वह बैगा और इसके अन्य साथी अताताईयों के सभी काले कारनामों का राज जानती हो या हो सकता है कि इन लोगों को इस औरत से कहीं कोई और खतरा रहा हो जिससे बचने के लिऐ उन्होंने अंधविश्वास की आड़ में उसे चुड़ैल घोषित कर उसे अपने रास्ते से हमेशा हमेशा के लिऐ हटा दिया हो. परन्तु ये सब किसके सोचने की बात है, कौन इसके लिऐ जिम्मेदार है, यह सोचना उन सभी लोगों का कर्तव्य है जो पढ़े लिखे होकर भी तमाशाई बनकर इस भीड़ का हिस्सा बने रहते हैं.
हमारे समाज में अंधविश्वास इस कदर घर कर गया है कि हम लोग अच्छाई और बुराई का फर्क भूल गये हैं. आज भी हम यह मानने को तैयार नहीं हैं कि किसी की भी बलि चढ़ाने से कभी भी कोई देवी या देवता जमीन पर उतर कर न तो उसे खाने वाला है और न ही खुश होकर या साक्षात् प्रकट होकर किसी भी कष्ट को हरने वाला है. आज भी लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि बिल्ली के रास्ता काटने और किसी भी प्रकार का अनिष्ट होने में कोई संबन्ध नहीं है बल्कि यदि ऐसा हुआ भी है तो वह महज एक इत्तफाक हो सकता है. आज भी अधिकांश लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि किसी भी तांत्रिक शक्ति से किसी भी दम्पत्ति को संतान नहीं दी जा सकती है अथवा पुत्री को भ्रूण में ही पुत्र नहीं बनाया जा सकता है.
कहने को आज हम इक्कीसवीं शताब्दी तक पहुंच गये हैं, कहने को हमने साइंस की पढ़ाई कर रखी है तथा जहां एक ओर हम धरती, आकाश व पाताल को अपने कब्जे में कर चुके हैं, मंगल ग्रह और चांद तक परचम लहरा चुके हैं परन्तु अपने समाज में से उस अंधविश्वास को दूर करने में असमर्थ रहे हैं जिसके नाम पर चंद बैगा व तांत्रिक लोग मासूमों की जिंदगी के साथ खेल कर अपने व्यापार को नई उंचाइयों तक पहुंचा रहे हैं. इसमें गलती उन लोगों की है जो इन तांत्रिकों पर भरोषा कर न सिर्फ अपने घर की बहू बेटियों को उनके हवाले कर देते हैं और उनकी अस्मत को ही सोंप देते हैं बल्कि अपना सब कुछ उन पर लुटाने को तत्पर रहते हैं.
आज थोड़ी भी मुसीबत आने पर लोग तांत्रिकों के पास पहुंच लेते हैं, व्यापार में घाटा या सेहत में मामूली सी गिरावट पर लोग तांत्रिकों पर पहुंच लेते हैं, किसी के घर में बच्चा नहीं हो रहा हो तो लोग तांत्रिकों पर पहुंच लेते हैं, किसी को पुत्र की इच्छा सताती है तो लोग तांत्रिकों पर पहुंच लेते हैं जबकि इतिहास गवाह है कि आज तक कभी भी किसी भी तांत्रिक या मौलवी ने प्रमाण के साथ कोई भी चमत्कार नहीं किया है. परंन्तु लोग समझने को तैयार ही नहीं हैं. आखिर कौन लोग हैं जिनकी वजह से इन तांत्रिकों व मौलवियों का कारेाबार नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है, जी नहीं जनाब इसमें निम्न वर्ग ही नहीं वरन अच्छे खासे, पढ़े लिखे व धनाढ्य लोग भी शामिल हैं जिनकी भीड़ को आप तांत्रिकों और मौलवियों के दरवाजों पर लाइन में लगे हुऐ देख सकते हैं.
आजकल तांत्रिकों, मौलवियों अथवा धर्म गुरुओं की मानों बाढ़ ही आई हुई है क्योंकि यही एक व्यवसाय ऐसा है जहां पर अन्धाधुन्ध कमाई तो है ही वह भी ऐसी जिसके लिऐ न कोई टैक्स का प्रावधान है या टैक्स चुकाने की मजबूरी है और न ही किसी भी प्रकार का प्रारंभिक निवेश करने की आवश्यकता है. लोगों की मूर्खता का भरपूर फायदा उठा रहे हैं, अय्याशी पूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं, नित नई नवेलियों की अस्मत से खेलते हैं तथा इन सबके बावजूद बेइंतेहा भीड़ इनके पैरों में पड़ी रहती है और इन पर चढावा चढाती है तो फिर और इनको क्या चाहिऐ? अभी हाल फिलहाल में बल्कि कई शदियों तक समाज का अंधविश्वास दूर हो सकेगा इस बात की कोई भी संभावना नजर नहीं आती है क्योंकि अनपढ़ को शिक्षित बनाया जा सकता है लेकिन पढ़े लिखे होने के बावजूद भी जो लोग अंधे बने हुऐ हों उनकी आंखें कैसे खोलीं जाऐं या उनको कैसे जगाया जाये, एक बहुत बड़ा सवाल है.