ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy Inspirational

4.3  

ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy Inspirational

वक्‍त की मेहरबानी

वक्‍त की मेहरबानी

14 mins
341


बात उन दिनों की है जब स्नातक डिग्री हासिल करने के पश्चात मैं दिल्ली आया था उससे पहले मैं दिल्ली के बारे में कुछ जानता नहीं था लेकिन मेरे दिल में दिल्ली को जानने की तमन्ना अवश्य थी, दिल में अरमान थे और एक जोश भी था कि मैंने स्नातक की डिग्री हासिल कर ली है और वह भी साइंस बॉयोलोजी विषय के साथ, तो मुझे दिल्ली में एक अच्छी नौकरी मिल जानी तय होनी ही चाहिए। वैसे भी दिल्ली आकर मैं अपने सगे संबंधियों या यूं कहिये कि अपने भैया-भाभी के ऊपर आश्रित था और यह वजह मुझे दिन-रात कचोटती रहती थी, मेरी चिंता का कारण थी इसलिऐ मुझे नौकरी की अत्यंत आवश्यकता थी।

दिन गुजरे महीने गुजरे वर्ष गुजरने लगे परंतु मुझे नौकरी मिलने की कहीं से कोई आज की किरण दिखाई नहीं दे रही थी। साइंस में स्नातक की डिग्री हासिल करने का मेरा जो गुरूर था सारा का सारा धारा शाही हो चुका था। मैं अब हवा की वजह जमीन पर चलने लगा था। अन्य बेरोजगारों की भांति मैंने भी अखबारों में नौकरियों के विज्ञापन देखना शुरू कर दिये थे और साथ ही साथ रोजगार समाचार अपने लिए प्राप्त करने का प्रबंध भी कर लिया था। मैं अखबारों में से विभिन्न कंपनियों के विज्ञापनों से उनके पते लेकर रोज सुबह घर से निकल जाया करता था और पता नहीं दिन में कितने दफ्तरों में इंटरव्यू देकर शाम को हताश होकर घर लौट आया करता था। मेरे हाथ रोज निराशा ही लग रही थी ऐसे में मैं हिम्मत हार चुका था मैंने सोच लिया था कि आप छोटी मोटी कैसी भी नौकरी मिले तो मैं उसे करना शुरू कर दूंगा।

अखबार में नौकरी के लिए विज्ञापनों के कॉलम देखते-देखते मेरे दिन गुजर रहे थे। एक दिन अचानक मेरी नजर एक कंपनी जो कि अन्‍य बड़ी व सरकारी कम्‍पनियों के लिए फर्नीचर मुहैया करने तथा उनके इंटीरियर डेकोरेशन के ठेके लिया करती थी, के एक विज्ञापन पर पड़ी। मुझे आज भी याद है कि वह नौकरी लगभग पंद्रह हजार रुपये महीने की तनख्वाह के लिए विज्ञापित की गई थी। मेरी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर मुझे मालूम था कि मैं शायद उस नौकरी के लिए फिट हूं। मैंने अखबार से उस कंपनी का पता एक कागज पर लिखा और दूसरे दिन सुबह उस पते पर पहुंच गया। वह पता दिल्ली में कनॉट प्लेस की एक बड़ी बिल्डिंग में स्थित दफ्तर का था। मैं सुबह-सुबह वहां पहुंच गया और मैंने उस दफ्तर में जाकर विज्ञापन का संदर्भ देते हुए अपने आप को उस नौकरी के लिए इच्छुक प्रार्थी के रूप में उस कंपनी के एक अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जिससे मैं बातचीत कर रहा था। उसने मुझे इशारा किया कि इस सोफे पर बैठ जाओ और मैं ऑफिस के बाहर वरेंडा में रखे एक सोफे पर एक किनारे बैठ गया जहां पर पहले से ही चार-पांच लड़के बैठे हुए थे। मुझे समझते हुए देर नहीं लगी कि वह लोग भी इस विज्ञापन को देखकर आज उसी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने के लिए आए हुए थे। एक व्यक्ति दरवाजे पर खड़ा था जो कि एक एक करके बारी-बारी उन सभी आए हुए इच्छुक व्यक्तियों को इंटरव्यू के लिए अंदर भेज रहा था। क्योंकि मैं सबसे बाद में उस दफ्तर पहुंचा था इसलिए इंटरव्यू के लिए मेरा नंबर सबसे आखरी में आया। मैंने अब तक जितने भी इंटरव्यू दिए थे सभी में निराशा ही हाथ लगी थी इसलिए मेरा कॉन्फिडेंस लेवल एकदम डामाडोल था। 

अपने चेहरे पर परिस्थितियों की मार परेशानी और नाकामियों का अनुभव तथा चेहरे पर घबराहट के भाव लेकर में अंदर दाखिल हो चुका था। मैंने देखा सामने केवल दो लोग बैठे हुए थे उनमें से एक ने मुझे इशारा करके सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ जाने के लिए कहा तो मैं अपने आप को थोड़ा सा संभालते हुए जा कर उस कुर्सी पर बैठ गया| उनमें से दूसरे व्यक्ति ने मेरी सर्टिफिकेट वगैरा देखने की इच्छा प्रकट की जो कि मैं अपने साथ लेकर वहां गया था। थोड़ी देर सभी कागजों को देखने के बाद उसने मेरी ओर देखा और कहा कि भाई ठीक है तुम इस नौकरी के लायक हो हमें ठीक लगा है परन्तु आप जरा बाहर इंतजार कीजिए हम आपको थोड़ी देर में बताते हैं। मैं मन ही मन भगवान का लाख-लाख धन्यवाद कर रहा था क्योंकि अभी तक जितने प्रार्थी या व्यक्ति इस इंटरव्यू के लिए आए थे उनमें से किसी को भी इस कंपनी के अधिकारी ने बाहर बैठने या इंतजार करने के लिए नहीं कहा था, सिर्फ मुझे ही कहा था तो मेरे मन में आया कि शायद यह नौकरी मुझे मिल ही जाएगी। थोड़ी देर बाद अन्‍दर बैठे दोनों में से एक व्यक्ति बाहर निकल कर मेरे पास आया और उसने मुझसे कहा कि भई ठीक है हमने आपको सेलेक्‍ट कर लिया है और आप सोमवार से ही आकर ज्वाइन कर सकते हैं लेकिन उससे पहले आपको अपने कागजात इस ऑफिस में जमा कराने होंगे। आप ऐसा कीजिए कि सोमवार को ही अपनी एप्लीकेशन और अपने सर्टिफिकेट्स की एक-एक कॉपी लेकर आ जाइए और हमारी तरफ से सोमवार से ही आप नौकरी करना शुरू कर सकते हैं।

मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा मैं बहुत दिन से बेरोजगारी की मार झेल रहा था। मैं आज अपने आप को दुनिया का सफलतम व्यक्ति समझ रहा था। मुझे आज भी याद है कि यह इंटरव्यू मैंने शुक्रवार के दिन दिया था और उन लोगों ने मुझे कहा था कि सोमवार से ही आप नौकरी ज्वाइन कर सकते हैं। शनिवार और इतवार का दिन बीच में था, मैं बड़ी ही बेताबी से अपने नए ऑफिस को ज्वाइन करने के लिए उत्सुक था और उसके लिए अपनी ड्रेस तैयार कर रहा था। मांगी गई सभी सर्टिफिकेट्स की कॉपी तैयार कर रहा था और साथ ही एप्लीकेशन बनाकर अपने आप को एकदम चुस्त-दुरुस्त करके सुबह पहुंच जाना चाहता था।

नई नौकरी ज्‍वाइन करने की बेताबी में रात भर मुझे नींद नहीं आई थी और पता ही नहीं चला कि कब सुबह हो गई। मैं जल्दी से जल्दी तैयार होकर ऑफिस के टाइम से भी लगभग आधा घंटा पहले वहां पहुंच गया था। जैसे ही मैंने उस व्यक्ति को देखा जिसने मुझे सर्टिफिकेट्स की कॉपी और एप्लीकेशन लाने के लिए कहा था, मैंने पास जाकर फौरन उससे नमस्ते की और उसके हाथ में अपने कागज थमाते हुए कहा गुड मॉर्निंग सर आपने बोला था कि सोमवार से नौकरी ज्वाइन कर सकते हो तो मैं आ गया हूं, आप बताइए अब मैं क्या करूं। उस व्यक्ति ने मेरे हाथ से कागज लेते हुए मुझसे कहा ठीक है तुम थोड़ा बाहर बैठो मैं अभी तुमको बुलवा लूंगा। वरांडा के सोफे पर बैठ कर मैं उस ऑफिस की दीवारों को और दरवाजों को निहार रहा था। मुझे लग रहा था कि आज के बाद यह सब दीवारें और दरवाजे और जो भी कैलेंडर वगैरह टंगे हुए हैं वह मेरे अपने हैं। मेरे मन में उमंगों के गुबार फूट रहे थे मैं अपनी खुशी को अंदर ही अंदर दबाए हुए बड़ी ही बेताबी से अंदर बुलाए जाने का इंतजार कर रहा था।

लीजिए मेरा इंतजार शायद खत्म हो चुका था। एक आदमी बाहर आया और मुझसे कहने लगा कि चलो अंदर आपको साहब बुला रहे हैं। मेरे मन में स्वाभाविक से विचार ही आ रहे थे कि अब तो सिर्फ मुझे काम के बारे में बताया जाएगा कि तुम कहां बैठोगे कौन सा काम करोगे कितने बजे आओगे कितने बजे जाओगे इत्यादि इत्यादि। इन्हीं विचारों को लेकर मैं अंदर दाखिल हो चुका था। मुझे देखते ही उनमें से एक व्यक्ति ने कहा अरे भाई आप आ गए हैं बैठिए हम आपसे एक बात करना चाहते थे। आप तो ज्वाइन करने आ गए लेकिन हमारी एक परेशानी है कि हम आपको पंद्रह हजार नहीं दे पाएंगे हम आपको सिर्फ बारह हजार ही दे पाएंगे, अब आप देख लीजिए क्या आप यह नौकरी ज्वाइन करना चाहते हैं या नहीं। मैंने इस सवाल की उम्मीद भी नहीं की थी। इस सवाल ने मेरे दिल को झकझोर दिया था। लेकिन फिर भी चूंकि मैं तंगहाली से गुजर रहा था इसलिए मैंने थोड़ा सा सोचा और अनमने ढंग से परंतु ऊपर से फिर भी खुश होकर मैंने कहा ठीक है सर कोई बात नहीं मैं बारह हजार में यह नौकरी करने के लिए तैयार हूं। मेरा जवाब सुनकर उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर मुझे देखकर उनमें से एक बोला कि ठीक है चलो अच्छा है आप बारह हजार में करने के लिए तैयार हैं तो आप ऐसा कीजिए आज नहीं कल से आ जाइए हम आपकी एप्लीकेशन आज ही सम्बन्धित विभाग में भिजवा देंगे तो कल से आप आकर नौकरी ज्वाइन कर लीजिए।

मैं थोड़ा सा परेशान अवश्य हुआ था परंतु निराश नहीं हुआ था कि चलो कोई बात नहीं पंद्रह हजार नहीं देंगे तो बारह हजार ही सही वह भी मेरे लिए बहुत बड़ी सहायता होगी। बेकार बैठने से तो अच्छा है मैं बारह हजार में यह नौकरी कर लूं। यह सोचते हुए मैं अपने घर वापस आ गया। पूरी रात मुझे हताशा निराशा बदहाली परेशानी तंगी इन सब के भाव आते रहे और पता नहीं कब आंख लग गई। सुबह सवेरे जल्दी उठकर मैं तैयार होकर फिर से उसी ऑफिस में समय से पहले पहुंच चुका था। थोड़ी देर में वही व्यक्ति मेरे पास आया जिसे मैंने अपने एप्लीकेशन और सर्टिफिकेट के फोटो कॉपी दिए थे। वह मुझसे कहने लगा कि भाई कल आपके जाने के बाद हमारी बातें हुई हैं हम आपको बारह हजार नहीं आपको हम दस हजार दे पाएंगे अब आप देख लीजिए कि अगर ज्वाइन करना है तो आज से ज्वाइन कर सकते हैं। मैं एकदम परेशान हो चुका था फिर भी मैंने एक तरफ दस हजार और दूसरी तरफ अपनी तंगहाली परेशानी और बेरोजगारी को तोल कर देखा तो मैंने सोचा चलो यार यह बोल रहे हैं आज से ही ज्वाइन कर लो तो दस हजार ही सही वह भी ठीक है मैं ज्वाइन कर लेता हूं। मैंने सोचकर उस व्यक्ति से कहा ठीक है सर मैं आज से ज्वाइन करने के लिए तैयार हूं। उस व्यक्ति ने मुझसे कहा अच्छा ठीक है मैं दो मिनट में आपके पास आता हूं और आप इंतजार कीजिए। मैं वहीं बैठा हुआ था कि थोड़ी देर में वह आदमी बाहर आया और मुझसे कहने लगा कि अरे यार आज तो दूसरे साहब हैं नहीं मैं उनसे बात किए बिना आपको ज्वाइन नहीं करवा सकता इसलिए आप ऐसा कीजिए कल आ जाइए।

मुझे नौकरी की अत्यंत आवश्यकता थी मैं किसी भी हाल में नौकरी करना चाहता था मुझे दस हजार महीने भी मंजूर थे इसलिए दूसरे दिन फिर दोबारा में जल्दी से जल्दी तैयार होकर ऑफिस से भी आधा घंटे पहले वहां पहुंच गया। थोड़ी देर में वही व्यक्ति फिर मुझसे मुखातिब हुआ जिसे मैंने अपनी एप्लीकेशन और सर्टिफिकेट की कॉपी दी थी। उसने मुझे देखकर कुछ नहीं कहा और केवल उंगली के इशारे से कहा कि मैं अभी आता हूं और अंदर चला गया। थोड़ी देर में अंदर से जब बाहर आया तो वह अकेला नहीं था बल्कि उसके साथ दूसरा ऑफिसर भी था। उनमें से एक ने दूसरे व्यक्ति से कहा कि सर अब ये आ गए हैं और दस हजार के लिए राजी हैं तो इनको ज्वाइन करा देते हैं, आपका क्या विचार हैं। दोनों एक दूसरे को देख रहे थे मैं उनकी चालाकी को अब थोड़ा सा समझने लग गया था। पहले व्यक्ति ने कहा कि दस हजार में आज इनको ज्वाइन करा दें क्या तो दूसरा व्यक्ति कहता है लेकिन उस दिन जो दो लड़के आए थे उनमें से एक तो आठ हजार के लिए ही तैयार था तो हम इनको दस क्यों दें। इतना कहकर फिर वे मेरे चेहरे की ओर देखने लगे और मेरे चेहरे को पढ़ने लगे। मैं कुछ बोलता उससे पहले ही फिर से वही व्यक्ति बोला कि जो दूसरा दूसरा लड़का था वह तो हमें पांच हजार में काम करने के लिए तैयार था तो हम आठ भी क्यों दें, भाई ठीक है तुम ऐसा करो अगर पांच हजार में काम करना चाहते हो तो आज से शुरू कर दो। मैं यह सब सुनकर दुखी हो चुका था। मैंने उन लोगों से इतनी नीचता और जलालत भरे व्यवहार की कल्पना भी नहीं की थी। अब मैंने सोचा कि आखिर मेरा भी थोड़ा सा स्वाभिमान होना चाहिए क्योंकि इनके द्वारा मुझे गिराए जाने की कोई सीमा नहीं है और न ही आगे भी होगी। मेरा स्वाभिमान अब तक चारों खाने चित हो चुका था। मैं समझ रहा था कि महीने के आखिरी में अब ये लोग मुझे पांच हजार भी नहीं देने वाले हैं।

मैंने उनसे माफी मांगी और मैं सॉरी सर कहता हुआ हताश और जलील होकर वहां से वापस अपने घर चला आया। हताशा और निराशा मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी। मुझे इस घटना ने बहुत तकलीफ पहुंचाई थी। लोग किन किन तरीकों से किसी की मजबूरी और बदहाली का मजाक उड़ाते हैं मैंने यह सब अपनी आंखों से देख लिया था।

फिर भी मुझे कहीं ना कहीं भगवान पर भरोसा था कि एक ना एक दिन तो ऐसा अवश्य आएगा जब मैं भी कहीं ना कहीं एक नौकरी कर रहा हूंगा। इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया था। मैंने अपने इरादों को इसके बाद थोड़ा और मजबूत किया और बजाय हताश और निराश होने के मैंने यह निश्चय कर लिया कि अब मैं एक अच्छी नौकरी लेकर ही रहूंगा।

वक्त करवट बदल चुका था मेरी मेहनत ने मुझे रंग दिखाया और मैं कंपटीशन के द्वारा एक पब्लिक सेक्टर की नौकरी के लिए चयनित कर लिया गया था। उस दिन मैंने समझा कि भगवान के यहां देर है अंधेर नहीं। वक्त बदलते देर नहीं लगती, हां इसके लिए मेहनत जरूरी है।

मेरी मेहनत रंग ला चुकी थी और मैं अब तक उस पब्लिक सेक्टर में अपनी नौकरी ज्वाइन कर चुका था। मुझे उस पब्लिक सेक्टर कंपनी में ऐसी सीट का कार्यभार सौंपा गया था जहां पर दूसरी कंपनियों के जो बिल होते हैं उनको पास करवाना होता है, उनके बिलों को चेक करना होता है देखना होता है कि उन्होंने जो बिल रेज किए हैं वह उनके द्वारा किऐ गये कार्य के अनुरूप थे। ये बिल अधिकांशत: उन छोटी-छोटी कंपनियों के थे जो हमारे इस पब्लिक सेक्टर ऑर्गेनाइजेशन के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर काम करती थीं और कहीं लकड़ी का, कहीं कंस्ट्रक्शन का और कहीं रिनोवेशन का काम करवा कर अपने बिल सब्मिट किया करती थी। बिलों का मिलान करके और उनकी अनियमितताओं को दूर करने की दिशा में कार्य करते हुए मैं उनके बिलों को पास करवा कर पेमेंट दिलवाने के लिए फाइनेंस डिपार्टमेंट के लिए फॉरवर्ड किया करता था।

एक दिन अचानक मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने उसी व्यक्ति को जो नौकरी देने के लिए बार बार मेरी तौहीन करके मुझे पंद्रह हजार से पांच हजार तक ले आया था। वह व्यक्ति अचानक आज मेरे सामने खड़ा था और मुझसे कह रहा था कि सर हमारे बिल आपके पास काफी समय से पेंडिंग हैं उनको जरा पास करवा दें तो आपकी बहुत कृपा होगी। उस व्यक्ति को देखकर मेरे मन में आज पता नहीं कैसे कैसे भाव आ रहे थे। आज मैं समझ गया था कि वास्तव में वक्त कितना बलवान होता है। वक्त का पहिया गोल होता है और ये वक्‍त ही है जो पता नहीं किस वक्त करवट बदले और आपको नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे पटक दे। मैं एक समय रास्ते की धूल था और एक दिन इसी व्यक्ति ने मुझे जलील करके घर वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया था जो कि आज मैं उस मुकाम पर बैठा हुआ हूं कि आज उसी कंपनी का मालिक और वही व्यक्ति स्वयं अपना बिल पास करवाने के लिए मेरे समक्ष खड़े होकर मुझसे विनती कर रहा है, मुझसे प्रार्थना कर रहा है कि सर हमारे बिल थोड़ा जल्दी पास करवा दीजिए।

मैं तो उस व्यक्ति को पहचान चुका था लेकिन वह मुझे नहीं पहचान पाया था। हालांकि वह अपनी नजरें गड़ाए मुझे लगाता देख रहा था कि शायद इसे मैंने कभी पहले देखा है। इससे पहले कि वह व्यक्ति और और परेशान होता, मैंने अपनी पहचान स्वयं ही उसे बता दी और उचित समझा कि मैं उसे वह घटना भी बता दूं कि कैसे एक दिन में पंद्रह हजार की नौकरी के लिए आपके दरवाजे पर आया था और वह नौकरी मुझे आठ हजार में भी नहीं मिली थी। मैंने उसे लगे हाथ यह भी कह दिया कि ऊपर वाला जो करता है भले के लिए करता है। अगर मैंने वह नौकरी आपके यहां कर ली होती या आपने मुझे दे दी होती तो शायद आज मैं इतनी अच्छी नौकरी पर नहीं होता। मेरी यह बात सुनकर वह व्यक्ति एकदम परेशान हो गया था उस की बोलती बंद हो चुकी थी ऐसा लगता था मानो काटो तो खून नहीं बल्कि पानी होगा। अब वह करें भी तो क्या करे, उसके पास में सिर्फ एक ही उपाय था उसने वही अपनाया। उसने सीधे कहा सर यह वक्त वक्त की बात है हम बहुत शर्मिंदा हैं और हमसे बहुत बड़ी गलती हुई हमें कृपया माफ कर दें। मैंने वक्त की नजाकत को पहचाना कि मुझे भी तो आज अपनी पोजीशन का घमंड नहीं करना चाहिए, आखिर फिर मुझमें और इनमें फर्क ही क्‍या रह जाएगा और फिर मैंने उसे भरोसा दिलाया कि आप निश्चिंत रहें आपके जो भी बिल पेंडिग हैं, मैं जल्दी से जल्दी उनको देखकर उन और उचित कार्रवाई कर उन्हें जल्दी से जल्दी पेमेंट के लिए फाइनेंस डिपार्टमेंट भेज दूंगा।

आज की इस घटना को अपने दिल में संजोए जब मैं घर पहुंचा तो मैंने माना कि भगवान कितनी ऊंची शक्ति है और उसके ही हाथ में वक्त को बदलने की कितनी क्षमता है। मेरा यह विश्वास आज दृढ़ हो गया था कि भगवान जो करता है अच्छा ही करता है। आज वक्‍त की मेहरबानी से मैं उनको भी नतमस्‍तक होते हुए देख रहा था जिन्होंने कभी मुझे जलील करने की सारी हदें पार कर दी थीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy