दोस्ती और विश्वास
दोस्ती और विश्वास
मुझे आज भी याद है कि जब मैं एक विद्यार्थी हुआ करता था उस वक्त मेरा एक दोस्त था जो कि मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखता था. मैं हिंदू वह मुसलमान लेकिन हम दोनों में कभी भी किसी भी अवस्था में धर्म बीच में नहीं आया था. हमें तो यह भी नहीं जानते थे कि आखिर हिन्दू मुसलमान का मतलब क्या होता है. हम तो एक दूसरे को अपने सगे भाई से बढकर और जान से भी प्यारा बस अपना दोस्त मानते थे. हम दोनों ही एक दूसरे के घर पर मनाऐ जाने वाले तीज त्योहारों में शामिल हुआ करते थे. जब ईद होती थी तो मेरा वह दोस्त मेरे लिए हमेशा ही मीठी खीर लेकर आया करता था. हम दोनों में कितना प्यार था उसे आज शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है.
दोस्ती सिर्फ दोस्ती होती है और होनी भी चाहिए इतनी प्रगाढ़ होनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति दोस्तों के बीच में नफरत का बीज ना बो सके. ऐसे ही हम एक दूसरे को सिर्फ दोस्त के नाम से जाना करते थे हमें यह भी नहीं पता था कि मुसलमान क्या होता है हिंदू क्या होता है. लेकिन जैसे जैसे बड़े हुए तो हमें पता चला कि इस देश और समाज को धर्म के नाम पर कितने हिस्सों में बांटा हुआ है. शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो यह नहीं जानता होगा कि धर्म ना कभी किसी को रोटी दे सकता है, ना कभी किसी को नौकरी दे सकता है और ना ही कभी किसी को सुख दे सकता है. यह तो काम सिर्फ समाज के ठेकेदारों और नेताओं का रह गया है जो कि समाज को बांट कर, उनमें नफरत फैलाकर, उनमें खून खराबा करवा कर सिर्फ अपनी रोटियां सेकते हैं, अपने वोट बैंक बनाते हैं और फिर अपनी जिंदगी को राजाशाही तरीकों से तथा ऐय्याशों की तरह व्यतीत करते हैं. मुझे वह स्कूल-कॉलेज, नदी-नाला पार्क इत्यादि आज भी याद है जब हम दोनों दोस्त एक दूसरे के साथ खेला करते थे और स्कूल के बाद अपना अधिकांश वक्त इन सभी जगहों पर हंसते खेलते व्यतीत किया करते थे. समय बदला, समय के साथ मैं भी उस जगह को छोड़कर दिल्ली चला आया और यहां पर नौकरी की तलाश करने लग गया और बाद में भगवान की दुआ से नौकरी पाकर यहीं पर बस गया.
समय दिन महीना और साल बनकर गुजरने लगा, कितने वर्ष हो गए थे आज मैं भी अधेड़ उम्र को पार कर चुका था और मुझे ऐसा लगता था कि शायद मेरा वह दोस्त जो भी लगभग मेरी उम्र को पहुंच चुका होगा. मैं अक्सर सोचा करता था कि आज की तारीख में मेरा वह दोस्त कैसा दिखता होगा. मुझे मालूम है कि यही बात वह भी मेरे लिए सोचता होगा कि मेरा दोस्त आज कैसा दिखता होगा. एक दिन अचानक फोन बजा और मैंने जब फोन उठाया तो दूसरी तरफ से एक अनजानी आवाज आई, उसने मुझसे कहा "अरविंद भाई कैसे हो आप". जब मैंने कहा कि "भाई मैं बिल्कुल ठीक हूं लेकिन मैंने आपको पहचाना नहीं कृपया पहले अपना परिचय दीजिए" तो उसने एक दो बार मुझसे कहा "नहीं भाई पहचान आज तो तुम्हें पहचानना ही पड़ेगा कि मैं कौन बोल रहा हूं". मैं समझ नहीं पा रहा था, मैं अंदाजा भी नहीं लगा पा रहा था कि इतने में दूसरी तरफ से आवाज आई कि नहीं पहचान पाया चल मैं ही बताता हूं कि "मैं मुतल्लिब बोल रहा हूं". मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा कम से कम 25-30 साल बाद आज उस दोस्त का फोन आया था जिसको अक्सर में याद किया करता था जिसके साथ बिताए हुए दिनों को मैं याद किया याद करके खुश हो लिया करता था| मैंने जब कहा "अरे यार मैं टल्ली कहां खो गया था "
"यार मैं तो कॉलेज के बाद दिल्ली आ गया था और मुझे पता भी नहीं था कि वह कौन सा तरीका है जिससे कि तुमसे बात की जा सके लेकिन इतना जरूर है कि मैं हर वक्त तुम्हें याद किया करता था दिल से याद किया करता था" यही सब ठीक यही शब्द मुतल्लिब ने भी मेरे लिए सोचा होगा. वह बोलने लगा "भाई अरविंद मेरे पास तुम्हारा कोई फोन नंबर नहीं था मैं अगर बात करना भी चाहता था तो मैं कैसे बात करता". यह कह कर उसकी भी आंखें नम हो चुकी थी और मैं भी अपने बीते हुए वक्त की यादों में खो चुका था. उसने मुझे बताया कि मेरा नंबर किसी ऐसे आदमी से लिया है जो मुझे भी जानता था और उसे भी और वह भी दिल्ली में रहता था. बोला भाई नंबर लेकर सबसे पहले मैंने तेरे को फोन मिलाया है कि मैं अपने दोस्तों से जल्दी से जल्दी बात करूं. हाल-चाल पूछने के बाद जब पता चला कि वह भी परिवार सहित ठीक है. उसने मेरा हाल चाल पूछा उसके फौरन बाद फोन काट दिया और अभी सिर्फ 15 मिनट ही गुजरे थे कि उसने व्हाट्सएप में मुझे वीडियो कॉल कर दिया तो वह बोलने लगा "भाई मैं तेरी सूरत देखना चाहता था कि तू आजकल कैसा लगता है और मेरे मन में भी ठीक यही इच्छा थी. लगा इसने वीडियो कॉल किया तो अब मैं भी इसे देख लूंगा कि आखिर इतने बरस बाद वह कैसा लगता है".
मैं तो वास्तव में हैरान था उसे देख कर मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही मेरा बचपन वाला दोस्त है. आज उसकी लंबी सफेद दाढ़ी थी और वह पूरी तरह से मुल्लाजी बन चुका था. मैंने उससे बोला भाई अगर तू कहीं मुझे मिल भी जाता तो मैं तुझे पहचान नहीं सकता था. उसने भी मुझसे यही बात कही कि "भाई अरविंद अगर तू कहीं मिलता मुझसे तो मैं भी नहीं पहचान सकता था क्योंकि उस टाइम पर तू एकदम दुबला पतला लड़का हुआ करता था और आज एक लंबा चौड़ा आदमी बन चुका है और अपने शरीर में वजन बढ़ा चुका है. थोड़ी देर बातचीत के बाद में उसने मुझसे कहा कि "भाई मैं अगले महीने दिल्ली आ रहा हूं हो सके तो तुम मुझसे मुलाकात करना. मैं तुम्हें फोन करके बता दूंगा कि कहां पर हूं तो तुम वहां आ जाना". मैंने हां मैं प्रॉमिस किया और बोला कि मैं जरूर तुमसे मिलूंगा. अगला महीना आते-आते दिल्ली में हिंदू मुसलमानों के जातीय दंगे भड़क चुके थे राजनीति फिर धर्मों पर हावी हो गई थी. भाईचारे पर हावी हो गई थी और दिल्ली में खून खराबा हो रहा था. ऐसे में वह दिन भी आ गया कि मेरा दोस्त इंदौर से दिल्ली पहुंच गया था और उसने दिल्ली पहुंच कर मुझे फोन किया था कि भाई मैं यहां पर हूं हो सके तो मिल लेना. दिल्ली में लाल किले की पार्किंग का उसने मुझे पता दिया था जहां जाकर मुझे उससे मिलना था. दूसरे दिन मिलने के तय वक्त से पहले ही मेरे पास एक फोन आया जो कि मुझे किसी जरूरी काम के लिए और मुझे व्यस्त करने के लिए था. मैं बड़ी कशमकश में था कि मेरा एक दोस्त इंदौर से यहां आया हुआ है और अगर आज मैं किसी भी जरूरी काम से रुक गया तो उसके दिल में यह रहेगा कि दोस्त-वोस्त कोई किसी का नहीं होता. सभी वक्त के साथ बदल जाते हैं.
आज मुझे अपनी संस्कृति याद आ रही थी जिसका मैं पुरजोर समर्थन करता आया हूँ. पूरी दुनिया में जहां एक तरफ हमारे देश भारतवर्ष का कोई सानी नहीं जहां पर हर एक धर्म के लोग मिलजुलकर एक साथ भाईचारे से रहते रहे हैं हमारी संस्कृति सदियों से इस बात के लिए जानी जाती है कि हमारे यहां पर एक दूसरे के धर्मों का ना सिर्फ आदर सम्मान किया जाता है बल्कि एक दूसरे के तीज त्योहारों तथा समारोहों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जाता है सत्कार और सर्वधर्म संपन्न इस देश को इसी कारण पूरी दुनिया में माना जाता है और प्राचीन काल से यही हमारी संस्कृति रही है. क्योंकि अच्छाई और बुराई एक साथ चलते हैं, जहां हमारे समाज में एक तरफ जहां सभी धर्म व जाति के लोग भाईचारे से मिलजुल कर रहते हैं, एक दूसरे की तकलीफ में हाथ बढ़ाते हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे सरारती व असामाजिक तत्व भी होते हैं जिनसे यह सब मेल -जोल व भाईचारा बर्दाश्त नहीं होता है. ऐसे लोग अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए हर समय इस जुगत में लगे रहते हैं कि कब समाज में नफरत का जहर घोला जाए और एक दूसरे को एक दूसरे के दिल से अलग कर अपना उल्लू सीधा किया जाये. ये लोग आग लगाकर या चिंगारी छोडकर दूर बैठे तमाशा देखा किया करते हैं और फिर मगरमच्छी आंसू बहाकर सहानुभूति भी बटोरने में निपुण होते हैं. जहां एक तरफ आम नागरिक अपनी रोजी-रोटी की चिंता और व्यवस्था में व्यस्त रहता है, अपने परिवार को पालने तथा उसकी खुशहाली में लगा रहता है वहीं दूसरी ओर ऐसे लोग समाज में निरंतर ही जहर फैलाने का काम करते रहते हैं ताकि अराजकता और आगजनी को हथियार बनाकर, लोगों के बीच में नफरत के बीज बो कर समाज को कई वर्गों में बांटा जा सके. ऐसे लोग न सिर्फ समाज के बल्कि देश के भी दुश्मन होते हैं जो समय-समय पर धर्म व जाति के नाम जगह-जगह दंगे फैलाकर न सिर्फ सम्पूर्ण समाज को बल्कि पूरे देश को पतन की गर्त तक ले जाते हैं. सच्चाई का आलम यह है कि ऐसे लोग न तो किसी धर्म को माननेवाले होते हैं और न ही ये लोग किसी दैवी देवता अथवा किसी भी भगवान, ईसा या पैगम्बर को ही मानते हैं परंतु फिर भी धर्म के ठेकेदार बनकर धर्म के नाम की लाठी से समाज को बांटने का काम किया करते हैं, समाज में नफरत फैलाने और आग लगाने का काम किया करते हैं.
मैं यह कदापि नहीं चाहता था कि मेरे दोस्त का विश्वास हमारी दोस्ती के प्रति डगमगा जाऐ. वैसे भी यहां पर हिंदू मुसलमानों के दंगे चल रहे हैं तो वह ठहरा हिंदू मैं मुसलमान ऊपर से दिल्ली वालों की छवि दोस्ती यारी के मामले में कुछ अच्छी नहीं है, तो उसके दिल में ना जाने कैसे कैसे भाव आएंगे और वह नर्वस हो जाएगा कि किसी की दोस्ती यारी और भाई-चारे से भी बढ़कर होता है जाति व धर्म.
इसलिए मैंने अपने जरूरी काम को टाल करने की सोचा कि ठीक है मेरा कोई नुकसान होता है तो होने दो लेकिन आज मैं अपने दोस्त से मिलने जरूर जाऊंगा. मैंने गाड़ी उठाई और लाल किले पहुंच लिया वहां पर जाकर फोन से एक दूसरे से संपर्क होकर हम आपस में मिले तो वह अपने परिवार के साथ था बल्कि यूं कहिए कि अपनी मिसेज यानी मेरी भाभी जी के साथ था. मुझे देख कर उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. शायद उसे यह उम्मीद नहीं थी आज मैं उससे मिलने लाल किले तक आ सकता हूं क्योंकि एक तो दिल्ली का माहौल बहुत ही बेकार था जिसमें हिंदू मुसलमान और हिंदू मुसलमानों के प्रति एक दूसरे के दिलों में नफरत की आग बढती ही जा रही थी. चारों तरफ आगजनी हो रही थी, खून खराबा हो रहा था और दूसरी तरफ हम दोनों ही दोस्त एक दूसरे के विपरीत धर्मों के मानने वाले थे.
खैर थोड़ी देर बातचीत के बाद उसने इच्छा जाहिर की कि मैं उन्हें गाड़ी में बिठाकर थोड़ा इंडिया गेट और कुतुब मीनार घुमा दूं तो मैंने ऐसा ही किया. मैंने उनको बिठाया और पहले इंडिया गेट पर घूमते हुए हमने कचोडि़यां खाईं और उसके बाद में उन्हें घुमाने के लिए कुतुबमीनार ले गया. हालांकि शाम हो चुकी थी फिर भी बाहर से ही कुतुब मीनार के पास से गाड़ी घुमा कर मैं वापस आने लगा तो उसने कहा बताया कि मुझे कहां छोड़ना है. मैंने कहा ठीक है बताओ तो उसने कहा कि जहां से हमें बिठाया था वहीं जाकर छोड़ दो, हम वहां से हमारी जो बस है उस में बैठकर जाएंगे.
अभी गाड़ी में हम लोग आ ही रहे थे कि मेरे उस दोस्त ने कहा कि "भाई अगर बुरा ना माने तो एक बात कहूं", मैंने एकदम कहा "क्या बात कर रहा है यार बता ना क्या हुआ", तो उसने बड़ी संतुष्टि के साथ में एक लंबी सांस ली और बोला "भाई मुझे यह आज यह यकीन नहीं था कि तू मुझसे मिलने के लिए यहां आएगा और यही तेरी भाभी कह रही थी कि अरे तुम भी नादान हो, तुमने उस आदमी को फोन किया है जो पता नहीं कितने साल पहले तुम्हारा दोस्त था. इतना वक्त गुजर गया है कौन किसका दोस्त है, और वैसे भी यहां पर हिंदू मुसलमान हो रही है ऐसे में वह दिल्ली में रहने वाला दोस्त तुम्हें मिलने आएगा, अरे भूल जाओ. मैं कहती हूं मतलब ही नहीं है जो तुम्हारा यह दोस्त तुमसे मिलने आ जाए. उसने फिर कहा कि मैंने अपनी बीवी की बातों का यकीन तो नहीं हुआ था लेकिन मैंने विश्वास भी नहीं किया था कि मेरा दोस्त शायद मुझसे मिलने जरूर आएगा".
वह फिर बोला कि "मेरे दिल में ना उम्मीदी ही थी फिर भी मैंने आजमाने के लिए कि देखता हूं मेरी बीवी का विश्वास कहां तक अडिग है, और मैं कहां तक उसकी इस धारणा को झूठलाने में सफल हो सकता हूं कि नहीं दोस्ती दोस्ती होती है, इसमें धर्म जाति और भेदभाव का कोई स्थान नहीं होता है. आज भाई तूने मैं जितवा दिया और तेरी भाभी हार गई. मैं इसको यही कहता था कि नहीं वह ऐसा नहीं है. उसको अगर कोई मजबूरी नहीं हुई तो जरूर आएगा. इस पर मेरी बीवी ने कहा था कि देखना बहाना तो किसी ना किसी मजबूरी का ही होगा कि भाई मुझे ऐसा काम पड़ गया, मुझे वैसा काम पड़ गया या मेरे यहां किसी को बीमारी हो गई अस्पताल ले जाना पड़ गया, लेकिन कोई ना कोई बहाना बनाकर आज वह तुम्हारा दोस्त हमसे मिलने आएगा ही नहीं".
उसकी यह सब बातें सुनकर मैंने अपने आप को धन्य किया, अपने आप को सराहा. मैंने सोचा हे भगवान मुझे तो वास्तव में ही एक बहुत ही जरूरी काम था जो कि मैंने नहीं किया जिसका खामियाजा भी मुझे भुगतना पड़ेगा. मेरा काफी बड़ा नुकसान हो गया लेकिन फिर भी मैंने अच्छा किया कि उस काम को छोड़कर मैं अपने दोस्त से आज यहां मिलने आ गया, वरना जिंदगी भर के लिए यह हो जाता कि दोस्त-वोस्त कोई किसी का नहीं होता है. वह हिंदू हिंदू है और हम मुसलमान मुसलमान हैं, यहां पर दोस्ती का कोई भी रिश्ता नहीं है.
देखने में एक छोटी सी घटना प्रतीत होती है परन्तु यह एक जंग थी धर्म जाति और दोस्ती के बीच में. आज दोस्ती जीत गई थी और धर्म जाति वाली नफरत हार चुकी थी. मैंने अपने आप को मन ही मन सराहा और कहां भाई ऐसा कैसे हो सकता है. मुझे तो आना ही था और देख मैं आ गया. तो इस पर मेरा दोस्त और उसकी बीवी दौनों ही बेहद खुश हुए और उन्होंने कहा कि भाई हम थोड़ा बहक गए थे. हमारा विश्वास डगमगा गया था, लेकिन आज तेरे आने से यकीन हो गया कि नहीं दोस्ती का स्तर सबसे ऊंचा होता है, भाईचारे का स्तर सबसे ऊंचा है और इसमें कोई कितनी भी आग लगाना चाहे तब भी वह सफल नहीं हो सकता. चाहे बिल्डिंगों को जला दिया जाए, गाड़ियों को फूंक दिया जाए, घरों पर पत्थर फेंके जाएं लेकिन यह करवाने वाले कोई और होते हैं. यह दोस्त नहीं हो सकते, यह आम आदमी नहीं हो सकते, यह वह नहीं है जो कि हमेशा आपस में मिल जुल कर रहते हैं.
जिंदगी वास्तव में बहुत छोटी है और इसमें नफरत तथा ईर्ष्या द्वेष का कोई भाव, कोई स्थान नहीं होना चाहिए और जो लोग नफरत फैलाने का काम करते हैं, जो लोग ईर्ष्या द्वेष फैला कर इस समाज में जहर घोलने का काम करते हैं उनको उखाड़ फेंकना चाहिए. उखाड़ फेंकने के लिए जरूरी नहीं कि आप बगावत करें, उखाड़ फेंकने के लिए इतना ही काफी है कि आपके भाईचारे में कभी कोई कमी ना आए, आपका विश्वास एक दूसरे पर इतना होना चाहिए कि किसी भी स्थिति में यह डगमगा ना सके. अतः विश्वास सबसे बड़ी चीज है, आप एक दूसरे के प्रति विश्वास को बनाए रखते हैं तो समझ लीजिए दुनिया की कोई ताकत आपको न तो एक दूसरे से अलग कर सकती है और न ही बांट सकती है.