ढोंग-ढकोसला
ढोंग-ढकोसला


हर सुबह की कहानी थी, सभी लोग परेशान थे पड़ौस के घर में होने वाले रोज के इस लड़ाई-झगड़े और शोर-शराबे से। इस घर में कुल पांच सदस्य हैं जिनमें मां-बाप, एक बेटा और दो बेटियां हैं। बाप किसी नौकरी से सेवानिवृत है, मां एक ग्रहणी, बेटा और बड़ी बेटी कहीं नौकरी करते हैं तथा सबसे छोटी बेटी कालेज की पढ़ाई कर रही है। अर्थात् रोज सुबह घर से जाने वालों में बेटा तथा दोनों ही बेटियां हैं जिनको हर सुबह तैयारी के साथ बस पकड़ने की भी जल्दी होती है, मां तथा बाप घर पर ही रहते हैं।
इस घर में कलह-क्लेश की जड़ का कारण है कि हर कोई घर में रह कर काम करना नहीं चाहता था और सभी को धुले हुऐ तथा प्रेस किऐ हुऐ कपड़े, बना हुआ खाना और चाय के साथ-साथ तैयार नास्ता चाहिऐ होता था। जहां सभी लोग एकदम मौज उड़ाने वाले तथा बाहर जाकर मस्ती करने वाले थे वहीं दूसरी ओर जो उनकी माता जी थी वह उन सबकी गुरु थी, वही औरत एक प्रकार से इस घर की कलह का कारण भी थी। क्योंकि यह औरत घर का कोई भी काम-काज करके राजी नहीं थी इसके विपरीत वह अपने आपको ऐसे प्रदर्शित करती थी मानों धरती पर उससे बढ़कर धर्मात्मा कोई नहीं है और न ही उससे बढ़कर कोई भगवान को मानने वाला ही है। अब बचा केवल उस घर का बुजुर्ग जिसने न सिर्फ पूरी जिंदगी कमाई कर सभी को पढ़ाया-लिखाया था बल्कि वह घर भी उसी के द्वारा ही खरीदा गया था जिसमें यह हरामखोरों का पूरा परिवार मौज उड़ा रहा था। बेचारे बुढ्ढे की नौकरी से रिटायर होने के बाद तो और भी दुर्गति के दिन आ गये थे। कहानी इस प्रकार है कि सुबह उठकर जब बेटे और दोनों बेटियों के बाहर जाने का वक्त होता था ठीक उसी समय उनकी मां के पूजा का वक्त होता था। इस समय उसे किसी से कोई भी मतलब नहीं था। वह तो घर के एक कौने में बने छोटे से मंदिर में बैठ जाया करती थी। उसकी पूजा भी कोई छोटी-मोटी पूजा नहीं होती थी बल्कि घंटों बैठ कर वह भगवान को रिझाने का काम किया करती थी। इधर दोनों लड़कियों में से एक भी किचिन में जाने को तैयार नहीं होती थी बल्कि उन्हें भी नहा धोकर सजने सवंरने के लिऐ घंटों की तैयारी की जरुरत होती थी, आखिर बाहर निकलेंगी तो लोगों का ध्यान भी आकर्षित करना होता है, सबसे खूबसूरत नजर आना होता है। लड़का बाहर ऑफीसर है तो घर में भी ऑफीसर ही है, वह भी क्यों किसी काम को करने वाला था बल्कि उसे भी प्रेस किये हुऐ कपड़ों से लेकर खाने का टिफिन व चाय नास्ता सभी कुछ तो तैयार ही चाहिऐ था। इन सब कामों को लेकर पूरे घर में चिल्ला-चौंथ मची हुई है, सबको जल्दी बहुत है लेकिन काम कोई भी नहीं करना चाहता और उधर माता जी भगवान के दरबार में बैठ कर भगवान जी से गुफ्तगू करने में लगी हुई हैं। उनकी रोज की यही दिनचर्या होती है, जब तक वो भगवान जी को हर प्रकार से खुश नहीं कर लेतीं तब तक किसी की मजाल है कि किसी अन्य काम के लिऐ उनको मंदिर से उठा दे। मंदिर से लगातार परन्तु आवाजें आती रहती हैं कि चाय बना ली क्या, नास्ता बना लिया क्या, अब आटा भी तो गूंथ लो, अरे भई बेटा भूखा ही चला जाऐगा क्या, अरे आज लड़कियों को कुछ खाने को है या नहीं। अब घर का मुखिया जब देखता था कि बच्चों के खाने व चाय-नास्ते का कोई भी ठिकाना नहीं है ऊपर से उस औरत के चीखने-चिल्लाने की आवाजें आ रही हैं, बेचारा डर के मारे हार थक के उठ खड़ा होता और अनायास ही रसोई की तरफ बढ़ जाया करता। रसोई में जा कर उसने चाय बना ली है, आटा गूंथ लिया है, सब्जी भी काट ली है।
अब जाकर जरा देखता हूँ कि कितनी देर की पूजा और बची है। आखिर लगभग एक से ड़ेढ घंटा तो गुजर ही चुका है अब तक तो पूजा खत्म ही हो जानी चाहिऐ थी। परन्तु यह क्या, जब बुढ्ढे ने कहा कि अब तुम आकर रोटी डाल दो और सब्जी भी तो छोंकनी है, यकायक मालकिन का गुस्सा सातबें आसमान में पहुंच चुका था। एकदम टूट कर बोली थी, ओऐ बुढ्ढे तुझे दिखाई नहीं देता है कि अभी तो ठाकुर जी को जगाया भी नहीं गया है, अभी तो आरती करके ठाकुर जी को जगाने का वक्त है। लो जी कर लो बात। अगर अभी तक ठाकुर जी जागे भी नहीं हैं तो इतनी देर तक यह औरत मंदिर में बैठ कर किससे बतिया रही थी, बेचारा मन ही मन बुड़बुड़ाता है और डर के मारे फिर से रसोई में घुस जाता है। घर में पूरी तरह युद्ध का सा माहौल है किसी को कोई प्रेस किया हुआ कपड़ा नहीं मिल रहा है तो किसी का जूता पॉलिश नहीं है तो किसी की कोई फाइल, किताब या कोई कागज गायब है।
बेचारा बुढ्ढा अकेले ही सबकुछ सम्हालने की कोशिश करता रहता है।
रसोई का बहुत सारा काम वह बुढ्ढा अपने थके हुऐ से हाथों से निपटा चुका था। कच्ची-पक्की रोटियां भी उसने डाल ली थीं। अब बुला कर देखता हूँ शायद मालकिन की पूजा खत्म हो गई हो। लेकिन नहीं अभी भी मालकिन के एक हाथ में आरती की थाली थी और दूसरे हाथ में एक छोटी सी घंटी और जोर जोर से आरती कर घंटी बजाते हुऐ वह अपने ठाकुर जी को घोर निन्द्रा से जगाने की कोशिश में लगी हुई थी।
चाय बन चुकी थी उसके साथ ब्रेड के कुछ पीस लाकर बुढ्ढे ने खाने की मेज पर रख दिये थे। तीनों बच्चे नाश्ता कर रहे थे इतने में बेढि़या जो कि लगभग ढाई घंटे मंदिर में गुजार चुकी थी का अचानक आगमन होता है और सीधे ही आकर बुढ्ढे से कड़ी आवाज में पूछने लगती है कि बेटे का टिफिन कहां है। इस पर बुढ्ढे ने अपनी लाचारी दिखाते हुऐ कहा कि भागवान मैंने रोटी तो बना ली हैं पर सब्जी तो बन नहीं पाई है, फिर बिना सब्जी के टिफिन कैसे लगाता। बस फिर क्या था अब तो बुढ्ढे की शामत ही आने वाली थी। बुढिया एकदम उस पर टूट पड़ी और गुस्से में बोली तुम्हारा रोज का यही हिसाब है, जब तुम्हें पता है कि मेरा बेटा रोज टिफिन ले जाता है तो थोड़ा जल्दी नहीं कर सकते। अब क्या दिनभर मेरा बेटा भूखा ही रहेगा। हे भगवान इस बुढ्ढे ने तो मेरी जिंदगी नरक ही बना दी है। पता नहीं कौन से पाप किये थे जो यह बुढ्ढा मेरे पल्ले पड़ गया, बड़बड़ाते हुये रसोई में घुसी और न जाने किस बात पर तेजी से बाहर निकली जिसके एक हाथ में चिमटा लग रहा था और आव देखा न ताब, आकर बुढ्ढे में दो चिमटे जड़ दिये। बुढ्ढा बेचारा बिना कुछ कहे ही देखता रह गया था। बेटा बोला क्या हुआ मम्मा। बुढिया गुस्से में चीख कर बोली, इतने बरस गुजर गये हैं लेकिन इस बुढ्ढे को ठीक से रोटी सेकनी भी नहीं आई है, देखना कितनी रोटियां जला दी हैं। बुढ्ढा बेचारा चुपचाप ही सब कुछ सह गया था, उसके लिऐ यह रोज की कहानी थी, रोज ही तो दो-चार चिमटों की मार खा ही लेता है। बेचारे बुढ्ढे के लिऐ चिंता का विषय यह नहीं था कि उसने अभी अभी दो चिमटों की मार खाई है; उसकी रुह तो इस कारण कांप रही थी कि अभी तो पूरे दिन उसे इसी घर में इसी औरत के साथ बितानी है, घर का सारा काम जैसे बर्तन साफ करना, झाडू-पोचा करना तथा कपड़े साफ करना, सभी कुछ तो बाकी है।
इतना ही नहीं, वह अच्छी तरह से इस औरत को जानता है कि इसके लिऐ घर परिवार के काम से बढ़कर ठाकुर जी की पूजा हर हाल में जरुरी थी भले ही उसके लिऐ वह अपने पति को चिमटों से पीट ले और यह एक दिन की बात नहीं थी बल्कि उस हरामखोर औरत की रोज की कहानी थी, रोज की दिनचर्या थी। घर में जब भी काम की मारा-मारी होती है तो यह औरत अपनी आरती की थाली और घंटी उठा कर मंदिर में व्यस्त हो जाती है और वहां बैठकर भी बेचारे बुढ्ढे पर हुक्म चला कर काम करवाती रहती है। यह तो हो गई सुबह ठाकुर जी को उठाने की बात, नींद से जगाने की बात। अभी तो शाम को भी सभी ने वापस घर आना है और शाम का भी खाना बनना है। आप सोचेंगे कि अब शाम को क्या होने वाला है, तो जनाब अब शाम को भी तो पूजा होनी होती है। आखिर ठाकुर जी सुबह के जगे हुऐ हैं तो उनको सुलाना नहीं होता है क्या। तो फिर आप ही समझ लीजिऐ कि शाम के खाने के वक्त फिर से क्या मारा-मारी होने वाली है।
फिर से जैसे ही शाम को काम का वक्त हुआ तो माता जी चल पड़ीं अपने मंदिर में जो कि घंटो मंदिर में बैठ कर पहले तो अपने ठाकुर जी कल पूजा करेंगी, उनको तरह-तरह से रिझाऐंगी और फिर करीब एक घंटे की आरती कर उन्हें सुलाने का काम करेंगी। अत: इस पूरे प्रकरण में बेचारे बुढ्ढे की जिंदगी नर्क बनी हुई थी। तो क्या इस बुढ्ढे की पिटाई जो कि और कोई नहीं बल्कि उसका जीवन साथी रहा है और उसका पति है तथा अपनी पूजा से ठाकुर जी प्रसन्न हो जाने वाले हैं ?
अब आप ही बताईये कि यह किस प्रकार की पूजा है, आखिर इससे क्या आसिल होने वाला है। एक कहावत है कि कर्म ही पूजा है। पर इस औरत को कौन समझाऐ कि जो यह कर रही है वह मात्र एक ढ़ोंग है और ढ़ोग के अलावा कुछ भी नहीं। हमाने समाज में इस प्रकार के कई उदाहरण आप को मिल जाऐंगे जहां कहीं पर स्त्री तथा कहीं पर पुरुष जानबूझ कर ऐसा ढोंग रचा कर रखते हैं ताकि मुख्य कामों अथवा उनके असली कर्तव्यों से सबका ध्यान भटका कर रखें।