ARVIND KUMAR SINGH

Children Stories

4.9  

ARVIND KUMAR SINGH

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भाग्‍य अपना अपना

भाग्‍य अपना अपना

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यह एक मध्‍यमवर्गीय परिवार की कहानी है,जिसमें एक आदमी की सात बेटियां थीं ।उनमें से जो सबसे छोटी बेटी थी वह बेहद स्‍वाभिमानी व स्‍पष्‍ट वक्‍ता थी।पिता अवश्‍य ही परिवार को भलीभांति पाल रहा था परन्‍तु साथ ही साथ वह अपने पूरे परिवार पर अपने द्वारा किऐ गये पत्‍येक कार्य के बदले अहसान जताता था और यह भी चाहता था कि उसकी पत्नि व सातो बेटियां उसकी हर बात में हां में हां मिलाऐं तथा उसका एहसान भी मानें, परन्‍तु उसकी नानी व सबसे छोटी बेटी वही बात कहतीं थीं जो उन्‍हे उचित लगती थी।पिता सबसे छोटी बेटी व अपनी सास से नाखुश रहता था क्‍योंकि वह एक घमंडी व्‍यक्ति था और उसे अपने किऐ गये हर एक काम के बदले सभी से वाहवाही चाहिऐ थी जो कि उन दोनों ही से उसे नहीं मिलती थी।


एक दिन आजमाने के लिए पिता ने एक एक कर अपनी सभी बेटियों से पूछा कि बेटी आप किसके भाग्‍य का खाती हो जिसके जवाब में छ: बड़ी बेटियों ने जो कि अपने पिता की चापलूसी किया करती थीं ,ने तो कहा कि हम आपके भाग्‍य का खाती हैं परन्‍तु सबसे छोटी बेटी ने जवाब दिया कि पिताजी मेरी नानी भी यही कहती हैं कि हर एक व्‍यक्ति अपना अलग भाग्‍य लेकर आता है और सब अपने अपने भाग्‍य का ही खाते हैं इसलिए मैं तो अपने भाग्‍य का ही खाती हूँ। इस पर उसका पिता रुष्‍ट हो गया तथा मन ही मन उससे और भी चिढ़ने लगा।


समय आने पर पिता ने बड़ी बड़ी छ: बेटियों का विवाह अपनी पूरी कोशिश के साथ ऐक से ऐक अच्‍छे घर में किया तथा सबसे छोटी बेटी के लिए जंगल जंगल घूम कर एक पागल को ढ़ूढ कर उसके साथ विवाह रचा दिया ताकि बेटी को सबक सिखा सके।


समय बीतता गया और सबसे छोटी बेटी अपने पागल पति की सेवा में लगी रहती और उसके इलाज के लिए तरह तरह के उपाय करती व वैद्य हकीमों के पास उसको ले जाकर उसका इलाज करवाती थी. एक दिन एक हकीम के इलाज से अचानक वह ठीक हो गया जिससे उसकी पूरी याददाश्त वापिस आ गई जिससे पता चला कि वह किसी प्रदेश के राजा का इकलौता बेटा है जो कि पागलपन में घर छोड़ कर जंगलो की ओर भटक कर आ गया था जबकि राजा के सै‍निक निरंतर उसे ढ़ूढने का प्रयास कर रहे थे, यह जान कर उस राजकुमार की पत्नी यानि कि सबसे छोटी बेटी बेहद प्रसन्‍न थी। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।


इधर राजकुमार को ढूंढते हुऐ राजा के सैनिक भी उस तक आ पहुंचे तथा राजकुमार व उसकी पत्नी दोनों को लेकर वे राजा के पास राजदरबार में पंहुच गये जहां पर अपने आप को राजमहल की बहू पाकर वह बेहद प्रसन्‍न थी तथा भगवान को कोटि कोटि धन्‍यवाद दे रही थी।


अपने खोये हुऐ पुत्र को पाकर राजा की खुशी का भी कोई ठिकाना न था। उसने अपने बेटे और साथ में पुत्रवधु पाने की खुशी में पूरे नगर की दावत के लिए ढिंढोरा पिटवा दिया जिसके लिए एक दिन नियत किया गया।


उस दावत में खाना खाने के लिए वह पिता भी अपनी अन्‍य बेटियों के साथ राजमहल पहुंचा और जब उसने तथा उसकी बेटियों ने अपनी सबसे छोटी बेटी व बहिन को वहां के इकलौते राजकुमार की पत्नी के रुप में पाया तो उनके आश्‍चर्य का ठिकाना नहीं रहा।


पिता ने शर्मिंदा होकर अपनी सबसे छोटी बेटी से कहा कि बेटी, मैंने तो तेरा विवाह एक पागल के साथ किया था फिर यह करिश्‍मा कैसे हुआ ? तब बेटी ने जवाब दिया कि पिताजी हर कोई अपना अपना भाग्‍य लेकर आता है जैसा कि मेरी नानी कहा करती थीं।आपने तो जानबूझ कर मेरी शादी एक पागल के साथ की थी परन्‍तु मेरे भाग्‍य में एक राजकुमार से विवाह लिखा हुआ था जिसको आप नहीं बदल पाऐ, अत: आज भी मैं यही कहती हूं कि मैं अपने भाग्‍य का खाती हूं।


इस पर पिता को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने शर्मिंदा होकर व अपने घमंड को दरकिनार करते हुऐ अपनी बेटी से क्षमा याचना की और यह मान लिया कि हर कोई अपने भाग्‍य का खाता है।





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