बाल्या
बाल्या
बहुत ही उल्लास और खुशी का दिन था। कई महीनों से इस दिन की तैयारियां कर रहे थे। आखिर वो दिन आ ही गया जब छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा में पहाडि़यों के बीच स्थित स्कूल से करीब दो सौ मीटर की दूरी पर ही एक आदिवासी हॉस्टल जिसमें रहकर हम लोग पढ़ाई किया करते थे, आज वार्षिक महोत्सव मनाने के लिऐ यहीं से अपना सब सामान लेकर जंगल की पगडंण्डियों से होते हुये पहाड़ी से उतर कर नीचे एक मैदान में जा रहे थे।
बड़ा ही मनोरम दृश्य था। इसी मैदान में आज स्कूल के वार्षिक महोत्सव के उपलक्ष में एक मीना बाजार का आयोजन किया जा रहा था जिसमें विद्यार्थियों द्वारा ही टैंट से बनी हुई करीब 20-25 दुकानों में से अपनी अपनी दुकान जो कि लाटरी द्वारा निर्धारित कर हर ग्रुप के नाम से चिन्हित की गई थीं, में अपनी दुकान को अपने ही द्वारा बनाऐ गये सामान से सजाया जाना था।
यह बात उन दिनों की है जब दन्तेवाड़ा जो कि मध्य प्रदेश राज्य का ही एक तहसील हुआ करता था जो कि बाद में छत्तीसगढ़ में एक जिला बना, में हम नवमी कक्षा के छात्र हुआ करते थे। ये बताना मैं इसलिए उचित समझ रहा हूँ क्योंकि घटना इतनी पुरानी होते हुऐ भी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जो किस प्रकार एक जिन्दगी पर या यूँ कहिये जिंदगी जीने के नजरिये पर अपना प्रभाव छोड़ जाती है, इस बात का अन्दाजा भलिभांति लगाया जा सकता है।
विद्यार्थीयों को तीन-तीन के ग्रुप में बांट कर एक एक दुकान दी गई थी जिन्हें बड़े ही उत्साहपूर्वक सजाया गया था। बाजार में जहां एक ओर गोल गप्पे, हलुआ-पूरी, दही-भल्ले आदि खाने-पीने की चीजें थीं वहीं दूसरी ओर खेल-खिलौने की दुकाने लगाई गई थीं जिनमें रिंग फेंक कर सामान जीतने, एअर पिस्टल से निशाना लगाकर गुब्बारे फोड़ने, मोमबत्ती बुझाने व सिक्के पर निशाना लगाने तथा करेंट वाले तार को चाबी के छेद से एक किनारे से दूसरे किनारे तक बिना तार को छुऐ ले जाकर इनाम जीतने जैसी गतिविधियां थीं। इसके अलावा लकड़ी के टुकडों को एक निश्चित समय में एक निश्चित आकार में जोड़कर भी इनाम जीता जा सकता था।
बाजार में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कूपन लेकर ही प्रवेश दिया गया था और कूपन कूपन से ही हर दुकान में खाने-पीने का व अन्य सामान लेने तथा छोटे-छोटे खेलों में हिस्सा लेने की अनुमति थी। अत: इस पूरे बाजार का व्यापार कूपन आधारित था। प्रत्येक दुकान में आने वाले कूपनों का एक छोटा सा ह
िस्सा ग्रुप के विद्यार्थियों द्वारा अपने खाने-पीने के उपयोग में लाकर बाकी स्कूल के अधिकारियों को दिया जाना था।
बाजार शुरु हुआ, एकदम भीड़ उमड़ पड़ी और भीड़ के साथ हमारी कूपन की कमाई भी बढ़ने लगी थी। थोड़ी थोड़ी देर बाद हर ग्रुप के विद्यार्थी अपने सिस्से के कुपनों का बखूबी व लगातार इस्तेमाल करते रहे और खाने-पीने की दुकानों पर जाकर तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेते रहे। परन्तु मैं अपने हिस्से के कूपनों को यह सोचकर संजो कर रखता रहा कि सबके बाद इन इकट्ठे किये हुये कूपनों से अपने लिऐ कुछ लुंगा और खाने-पीने की चीजों का मजा उठाउंगा।
अब थोड़ी देर बाद ही मीना बाजार बंद होने का वक्त हो चला था साथ ही जब मेरे ग्रुप के अन्य दोनों ही विद्यार्थियों ने भी सामान बांध कर दुकान बंद करने की तैयारी शुरु कर दी तो मैंने यह कह कर कि थोड़ा बहुत खाकर आता हूँ, मैं अपने कूपन हाथ में लेकर मन में अच्छी-अच्छी चीजें खाने की इच्छा लिऐ सबसे पहले हलुआ-पूरी की दुकान की ओर लपका। परन्तु यह क्या इस दुकान पर सब कुछ खत्म हो चुका था और हलुआ-पूरी की दुकान के विद्यार्थी बर्तन समेट कर दुकान बंद करने की तैयारी में लगे हुये थे। मैं अपनी हलुआ-पूरी खाने की तीव्र इच्छा को मरते हुऐ देख रहा था। इसके बाद फिर मैंने सोचा कि बड़े जोरों से लग रही भूख तो मिटानी ही है तो चलो कुछ और खा लूता हूँ, दूसरी दुकान की ओर बढ़ा, यह दुकान भी बन्द हो चुकी थी। इसके बाद तेजी से पूरे बाजार में घूम गया परन्तु मेरी बदकिस्मती से खाने-पीने की हर एक दुकान का सामान खत्म हो गया था व दुकान बंद हो चुकी थी। मैं पूरे दिन का भूखा था और अच्छा-अच्छा खाने के लिऐ अपने कूपनों को पूरे दिन से इकट्ठा कर रहा था, जो अब किसी काम के नहीं थे।
मैं बेहद हताश हो चुका था। मेरी आंखें भर आई थीं और मैं अपनी ही बेवकूफी पर अपने आप को कोस रहा था। मेरे लिऐ अब इन कूपनों का कोई भी महत्व नहीं रह गया था जो कि अब सिर्फ एक कागज के कई टुकड़े मात्र थे। हॉस्टल में भी उस पूरी रात मैं भूख के मारे सो नहीं सका था।
यह छोटी सी घटना मेरे दिल व दिमाग पर गहरा असर छोड़ गई थी जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भुला सका हूँ और जो कि मुझे आज तक भी अच्छी तरह से याद है। यह घटना मुझे ऐसा सबक देकर गई थी कि अगर जीना है तो इस प्रकार से जियो कि अपने भविष्य को संवारने की जुगत में कहीं अपना वर्तमान बर्बाद न हो जाऐ तथा इसी घटना से प्रेरित होकर मैं अपनी जिंदगी भगवान की कृपा से इस प्रकार अपनी सोच को बदल कर जिया कि कल किसने देखा है, अगर प्रलय भी आ जाऐ तो कल फिर से मुझे किसी भी प्रकार पछताना न पड़े। अब मैं सबसे पहले सिर्फ आज के लिऐ जीता हूँ।