ARVIND KUMAR SINGH

Inspirational

4.5  

ARVIND KUMAR SINGH

Inspirational

महानायक

महानायक

12 mins
454


जो कहानी आज मैं आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने जा रहा हूं मुझे विश्वास है कि उसे पढ़ने के बाद आप लोगों का दृष्टिकोण अमीरी और गरीबी से हटकर नीयत, परोपकार और इच्छाशक्ति के प्रति दृढ़ हो जाएगा । जिस वक्त इस कहानी में से मैं स्वयं गुजर रहा था उस उस वक्त मुझे इतनी समझ नहीं थी कि आखिर एक व्यक्ति महानता की कितनी ऊंचाइयों को छू सकता है क्योंकि इस कहानी के किरदार को मैंने स्वयं जिया है इसलिए मैं यह दावे से कह सकता हूं तथा उन लोगों की बात पर दृढतापूर्वक सहमति प्रकट करता हूं जो यह कहते हैं कि समाज में जो दिखता है वास्तव में वैसा होता नहीं है और न ही आदमी को दिखाई देने वाले झांसे मे ही आना चाहिए । इतने वर्षों बाद भी यह कहानी मेरे मानस पटल पर इस प्रकार से जीवन्त है मानो ये सब कुछ कल ही मेरे साथ घटित हुआ है । मैं आज भी इस कहानी के उस महानायक को याद करता हूं और ढूंढने की कोशिश करता हूं जो कि अब इस दुनिया में नहीं है अत: ना ही मुझे कभी ऐसा मौका मिलेगा जिससे कि मैं उसके प्रति आभार ही व्यक्त कर सकूंगा । 

कुव्वत, औहदे और औकात की बात करें तो समाज में भिखारी से नीचे किसी का स्तर हो ही नहीं सकता । मेरी इस कहानी का महानायक वास्तव में ऐसा ही एक व्‍यक्ति है जिसकी असलियत के बारे में जब मुझे पता चला था तो मेरे आश्‍चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जो कि ना कोई मेरा दोस्त था ना मेरा रिश्तेदार और ना ही मैं उसे जानता था परंतु उसने अनजान होकर भी अपनी हैसियत से ऊपर उठकर मेरी मदद करने का जो कार्य किया था मैं उम्र भर उसे ना तो कभी भुला पाऊंगा और ना ही उसका यह ऋण ही चुका पाऊंगा ।

शाम का समय दिन भर की जद्दोजहद के बाद सड़क के किनारे की उसी पुलिया जिस पर मैं अक्‍सर बैठ जाया करता था, ठीक उसी वक्‍त एक बेहद ही मैले कुचैले वस्‍त्रों में या यूं कहिऐ कि एक फटे हाल व्‍यक्ति भी उस पुलिया पर आकर बैठ जाया करता था और यह सिलसिला जब कई दिन पुराना हो चला था अत: अब हम एक दूसरे को इतना जानने लगे थे कि अब मैं उससे रोज ही नमस्‍ते कर लिया करता था और इसके जवाब में वह मुझसे मेरा हाल चाल पूछ लिया करता था । एक दिन की बात है जब शायद मुझे चिंता में देखकर उसे मुझ पर दया आ रही थी और उसने मुझसे पूछ ही लिया था कि आज तुम सुस्‍त नजर आ रहे हो क्‍या कारण है । यह उन दिनों की बात है जब मैं स्कूल की पढाई पूरी कर कॉलेज में एडमिशन लेने वाला था । मैं बड़े ही तंगी के माहौल में दिन गुजार रहा था । हालांकि मेरे घर परिवार की हालत इतनी भी खराब नहीं थी परन्‍तु फिर भी मुझे इस कारण से जेब खर्च भी नहीं दिया जाता था कि मैं बिगड़ जाउंगा और पैसे से गलत आदतों में पड़कर अपना जीवन ही बरबाद कर लुंगा, ऐसी मेरे घर वालों की धारणा थी । अब तक जेब खर्च न मिलने की आदत सी पड़ चुकी थी और वह भी इस कदर कि अपनी किसी जरुरत के लिए भी घर वालों से मांगने की मेरी हिम्‍मत नहीं होती थी । 

मुझ से उम्र में काफी बड़े उस व्‍यक्ति ने मुझे चिंता में देखकर मेरे सिर पर हाथ रखा शायद उसे मुझ पर दया आ रही थी वह बोला कि क्या बात है मुझे बताओ शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊंगा मैंने धीरे से थोड़ा सा मुंह खोल कर उसे कहा कि मुझे कुछ पैसों की जरूरत है ।

आज मुझे नहीं मालूम कि किसलिए मुझे पैसेां की जरूरत पड़ी थी लेकिन इतना जरुर जानता हूं कि उस वक्त एक रुपये की कीमत भी बहुत ज्यादा हुआ करती थी जबकि मुझे अब यह कतई याद नहीं पड़ता कि वास्तव में मुझे कितने रुपये चाहिए थे परन्‍तु इतना याद है कि बहुत ही जरूरी काम के लिए चाहिए थे । मेरे पास बैठे उस व्यक्ति के बार-बार आग्रह करने पर मैंने आखिर उससे कह दिया कि मुझे इतने रुपयों की सख्त जरूरत है । उस व्यक्ति ने मुझे हिम्मत दिलाई और मेरे सिर पर हाथ फेर कर यह कहते हुऐ वहां से चला गया कि देखो शायद मैं कुछ कर पाऊं । थोड़ी ही देर में वह व्‍यकित पुन: मेरे पास आया और उसने खुशी खुशी मेरे हाथ में ठीक उतने ही रुपये पकड़ा दिये जितने मैंने उससे मांगे थे । रुपये देते हुऐ उसने कहा था कि जाओ पहले तुम अपना काम निकालो । इतना ही नहीं बल्कि उसने यह भी कहा कि इसके अलावा भी तुम्‍हें जब भी कोई तकलीफ होगी तो मुझे बताना क्योंकि मेरा तो और इस दुनिया में कोई भी नहीं है और अब मैंने तुम्‍हें अपना मान लिया है तो क्‍यों न हम अपनों के काम आ जाऐं । उस व्यक्ति की इंसानियत मानवता और दयालु दिल को देखकर मेरा मन पसीज गया था मैं मन ही मन उसे लाख धन्यवाद देकर खुशी-खुशी अपने घर आ गया था ।

इसके बाद भी हम उस पुलिया पर इसी प्रकार मिलते रहे थे परन्‍तु न तो मेरी औकात थी कि मैं उसके रुपये लौटाने की बात करता और न ही उस महान व्‍यक्ति ने कभी भी अपनी जुबान से अपने रुपयों का तकाजा ही किया था । यह घटना आज से लगभग पचास वर्ष पुरानी है लेकिन आज भी मेरे दिलों दिमाग पर छाई हुई है । पुलिया पर मिलने का सिलसिला कुछ समय तक इसी प्रकार चलता रहा और फिर अचानक ही वह व्‍यक्ति गायब हो गया था । मैंने कई बार उसे ढूंढना भी चाहा पर उसे नहीं पा सका । एक दिन अचानक ही मेरा एक दोस्‍त जो कि हमें पुलिया पर बैठे अक्‍सर देखा करता था, आकर कहने लगा कि आजकल तेरा वह फटे हाल दोस्‍त नहीं आ रहा क्‍या बात है । उसकी बात में एक अजीब सा व्‍यंग था कि आखिर मैं इतने गंदे और बेहद ही गरीब सा दिखने वाले व्‍यक्ति के सा‍थ मैं क्‍यों बैठा करता हूं । मैंने जब सीधे साधे अंदाज मे कहा कि पता नहीं यार क्‍यों नहीं आता और न ही मैं उसका पता ही जानता हूं । इस पर वह दोस्‍त एक व्‍यंगात्‍मक हंसी हंसा और बोला कि ऐसे लोगों का कोई पता वता नहीं होता है । मैं उसकी बात समझ नहीं पा रहा था कि उस दोस्‍त ने फिर कहा कि तू नहीं जानता कि वह एक भिखारी है और मैंने उसे कई बार फलां सिनेमा हॉल के पास भीख मांगते हुऐ भी देखा था । उस दोस्‍त की बात सुनकर मानों मेरे पैरों तले से जमीन ही खिसक गई थी और दु:ख भरे आश्‍चर्य से मेरी बोलती भी बंद हो चुकी थी । मेरे दिल में उस व्‍यक्ति के लिऐ और भी अधिक आदर भाव पैदा हो गया था ।

मुझे नहीं मालूम था उस वक्‍त उसकी हालत इतनी दयनीय हो सकती थी । उसके बाद मैंने कई बार उसे सिनेमा हॉलों के पास ढूंढने की कोशिश भी की थी परन्‍त वह मुझे नहीं मिला । और एक दिन अचानक मुझे पता चला कि वह किसी अन्‍य शहर की तहसील के पास मृत अवस्‍था में पाया गया था । 

सवाल यह नहीं कि मदद छोटी थी या बड़ी थी असली सवाल यह है कि उस मदद के बिना जो आपका नुकसान होने वाला था वह कितना बड़ा था । सवाल यह भी है कि जिस आदमी की अपनी इतनी बड़ी बड़ी परेशानियां थीं कि उसे जीवन व्‍यतीत करने के लिऐ लोगों की भिक्षा के ऊपर निर्भर रहना पड़ता हो क्‍या ऐसा आदमी भी किसी की मदद के लिऐ आगे आ सकता है । 

उसने तो केवल इंसानियत के नाते मेरी मदद की थी मगर इसके विपरीत में एक ऐसा वाकया सुनाऊंगा जो मेरे अपने दोस्‍त जिसे मैं अपने सगे भाई से बढ़कर मानता था जो कि मेरा एक बहुत ही घनिष्ट मित्र था के बारे में है| मुझे उन दिनों जेब खर्च के लिए भी कोई खास पैसे नहीं मिला करते थे । ऐसे में मेरा वही दोस्त जिसका नाम भी अब मैं अपनी जुबान पर लाना उचित नहीं समझता, था । वह हालांकि एक बहुत ही अच्छे घर का लड़का था लेकिन मुझसे हमेशा यही कहता था कि मैं मुझे भी कोई जेब खर्च नहीं मिलती है । 

वह मित्र जिसके साथ में दिन के या यूं कहिए कि जिंदगी के ज्यादा से ज्यादा पल व्यतीत होते थे हम दोनों एक दूसरे के दुख दर्द को सुनते थे बांटने की कसमें खाते थे और अपनी तंगहाली के दिनों में एक दूसरे का मनोबल बढ़ाने का काम किया करते थे । आज मुझे याद आता है कि उस मित्र की आर्थिक स्थिति उसके परिवार की आर्थिक स्थिति मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति से कई गुना अच्छी थी मुझे मालूम है कि मुझे यदा-कदा जेब खर्च के लिए एक-दो रुपया मिल जाया करता था । हालांकि दिल नहीं मानता था फिर भी मैं उसकी बातों पर भरोसा करता था कि आखिर यह मुझसे झूठ क्यों बोलेगा हो सकता है इसे भी जेब खर्च मिलती ही ना हो । ऐसी हालत में जो मेरे पास पैसा होता था हम दोनों उसको एंजॉय किया करते थे उसका मजा लिया करते थे पकौड़े चाय वगैरह खाकर अपना टाइम व्यतीत करते थे । मुझे उम्मीद थी कि वह मेरी मदद नहीं कर पाएगा फिर भी अपनी उस तंगहाली के लिए और मदद के लिए मैंने उसके सामने हाथ फैला ही दिए कि भाई मुझे चंद रुपयों की जरूरत है जिसके बिना मेरा बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा । जिस उत्तर की मैंने उम्मीद की थी वही उत्तर मुझे अपने उस दोस्त से मिला और उसने अपनी मजबूरी मेरे सामने बयान कर कहा भाई मैं कहां से लाऊंगा मेरे पास एक भी रुपया नहीं है । ठीक है कह कर मैंने उस दोस्त से भी कहा कोई बात नहीं मेरे यार नहीं है तो निराश होने की इसमें कोई जरूरत नहीं है मैं शायद कहीं और से इंतजाम करके अपना यह काम निपटा लूंगा और भगवान की दुआ से उसी बीच वह फटे हाल व्यक्ति जिसे बाद में मैंने समझा कि वह एक भिखारी था उसने दिल खोलकर मेरी मेरी मदद की और मुसीबत के वक्‍त मेरा काम निकाला । 

उस दोस्त के घर अक्सर मेरा आना जाना होता रहता था एक दिन जब मैंने उसे बताया कि मेरी मदद ऐसे एक आदमी ने की है तो वह भी यदा-कदा अपनी किसी मदद के लिए उस आदमी के पास चला जाया करता था और अपना छोटा मोटा काम निकालने के लिए उससे पैसे लिया करता था । मुझे थोड़ी सी शंका होने लगी थी कि मेरा यह दोस्त बेहद ही चालाक और लंपट किस्म का लड़का है जो कि मेरी तो मजबूरी थी कि मैंने किसी अनजान आदमी से मदद ली परंतु यह तो हर दूसरे दिन उसके पास पहुंच जाता है और तरह-तरह के बहाने बना कर बिना वजह ही उससे मदद के लिए पैसे लेकर आ जाता है और फिर गुलछर्रे उड़ाता है । 

मेरे इस शक को एक दिन इतना बल मिला कि मुझे दोस्ती यारी और अपनापन दिखाने वाले हर एक व्यक्ति से नफरत सी हो गई मेरी जिंदगी एकदम बदल चुकी थी क्योंकि बात उस दिन की है जिस दिन में अचानक ही अपने दोस्त के घर पहुंच गया था और मेरा दोस्त उस समय घर पर नहीं था । मेरे दोस्त की छोटी बहन ने मेरे लिए दरवाजा खोला और मुझसे कहा कि थोड़ी देर में वह आने वाला है तुम यहां बैठ जाओ| दरवाजे से घुसकर ही एक छोटा सा बरामदा दरवाजे के साथ था और वहां पर बीच में एक टेबल और दो चार कुर्सियां पड़ी हुई थी मैं जाकर एक कुर्सी पर बैठ गया । मेरे दोस्‍त की बहिन छत के पंखे का स्विच ऑन करके अन्‍दर चली गई थी । सामने ही बीच की मेज पर एक मोटी सी किताब रखी थी जिसके पन्ने अचानक ही ऊपर चलते हुए पंखे की हवा से उड़ने लगे थे और उसके जब पन्ने उड़े तो पन्नों के बीच में रखे नोटों की एक गड्डी रखी हुई थी जिसके नोट भी हवा से उड़ने लगे थे । मैं उन नोटों को समेटकर दोबारा उस किताब के बीच में रखने के लिए इकट्ठा करने लगा उसी वक्त उसकी वह छोटी बहन और साथ में बड़ी बहन भी आ गई और बोली कि देखो यह हमारा भाई कितना लापरवाह है जो कि अपनी जेब खर्चे के पैसों को न तो खर्च ही करता है और न ही ठीक से संभाल कर रख नहीं सकता है । मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि यह मेरा वही दोस्त है जो मेरे साथ में दुनिया भर के झूठी कसमें खाता है मेरा साथ निभाने का वादा करता है और मुझसे यह कहता था कि मुझे तो एक भी पैसा जेब खर्च इतना तो मिलती है और ना ही मेरे पास इस वक्त एक पैसा है । मैं अपने सोचने की शक्ति खो बैठा था । मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस बात का क्या अंदाजा लगाऊं क्योंकि किताब में से गिरे हुए नोटों की संख्या इतनी थी जिससे मैं आसानी से अंदाजा लगा सकता था कि मुझे अपनी मदद के लिए जितने पैसे चाहिए थे उससे लगभग पचास गुना ज्यादा पैसे उसने अपनी इस किताब में संजोकर रखे हुए थे और रोज झूठ बोलकर मेरे ही पैसों पर वह गुलछर्रे उड़ाता था, उड़ाना चाहता था मेरे ही पैसों पर सिनेमा की टिकट खरीद कर सिनेमा देखा करता था और हम दौनों के पकोड़ा चाय आदि का खर्चा भी मेरे ही पैसों से हुआ करता था । इस घटना ने मेरी आत्मा को झकझोर दिया था बहुत तेज का झटका मेरे दिलो-दिमाग पर लगा था ।

मेरी इस कहानी का आशय आप लोग भी समझ गए होंगे कि मदद करने के लिए अमीरी गरीबी नहीं बल्कि इंसानियत और इच्छाशक्ति का होना बहुत जरूरी है । यह दुनिया चालकों से भरी पड़ी है अपना काम निकालने के लिए लोग आपके पेट में घुस जाएंगे परंतु जब आपको जरूरत होगी तो तरह-तरह से अपनी मुसीबतें अपनी मजबूरियां गिनवा कर ना केवल मदद मल के नाम पर कन्नी काट जाएंगे बल्कि अपने प्रति साबुन सहानुभूति भी अर्जित कर लेंगे । एक तरफ एक ऐसा व्यक्ति था जिसका जीवन में कोई स्तर नहीं था और जो कि एक भिखारी था और दूसरी तरफ एक ऐसा लंपट था जो असलियत में अपने खानदान का इकलौता बेटा था तथा अपने आपको मेरे सगे भाई से बढ़कर दोस्त बताया करता था और जिसने मेरे साथ इतना छल किया, मुझे नहीं मालूम था कि उसके पास कभी इतने पैसे हो सकते हैं जिस हिसाब से वह अपनी मजबूरियां मेरे सामने हरदम गिनवाया करता था । वह मेरे पैसों पर ही मौज मस्ती करने की कोशिश किया करता था मैं आसानी से उसका कहना मान लेता था तथा मैं उसकी बातों पर विश्वास कर लिया करता था ।

आज ना तो मेरा कोई संपर्क उस व्यक्ति से है जिसने अनजान होते हुए भी अपनी औकात से बढ़कर मेरी मदद की थी, जिसका चाहते हुए भी न तो मैं शुक्रिया अदा कर सकता हूं, न ही उसका एहसान जताने की इच्छा ही प्रकट कर सकता हूं क्योंकि वह व्यक्ति अब इस दुनिया मे ही नहीं था और ना ही कोई संपर्क मेरे उस लंपट दोस्त से है जो कि दोस्ती के नाम पर मुझे हमेशा ठगने की लूटने की और झूठ बोल कर हमदर्दी लेने की कोशिश किया करता था, सहानुभूति लिया करता था । अब आप समझ गए होंगे कि उस अनजान व्यक्ति को जिसकी न कोई कुव्वत थी, न औकात फिर भी मैंने उसे इस कहानी का महानायक क्यों कहा ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational