Ila Jaiswal

Abstract

4.7  

Ila Jaiswal

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छूटता आसमान

छूटता आसमान

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रचना अचानक से रचनाकार बन गई थी। भाषा की थोड़ी - बहुत समझ जरूर थी पर लिखती नहीं थी। किसी एक मित्र ने उसे किसी समूह में जुड़वा दिया, सबका पढ़ - पढ़ कर उसे लगा कि ये कविता, ये शेरोशायरी तो वह भी लिख सकती है। थोड़ा प्रयास किया, थोड़ी तुकबंदी तो कविता बन ही गई। " सूरज निकला, मेरा दिल तुम्हारी याद में फिसला। तुम आ जाओ, वरना मेरा दम यहीं निकला।" समूह में डाला तो कुछ लोगों ने तारीफ़ कर दी। फिर तो यह रोज का ही क्रम बन गया। वह लिखती, लोगों की प्रतिक्रिया मिलती तो वह खुश ही जाती। उसे लगता वह अपने नाम को सार्थक कर रही है। इसी खुशी में उसने अपनी सहेली सीमा को फोन किया," हैलो, मैं रचना बोल रही हूं।" " हाय रचना, कैसी हो ? बड़े दिनों बाद फोन किया।", सीमा ने कहा।

"हां, आजकल बहुत व्यस्त रहती हूं, फुर्सत ही नहीं मिलती। तुझे पता है मै अब लिखने लगी हूं। कविता, शेर, शायरी अभी तक मैं सिर्फ पढ़ती थी अब मैं भी लिखती हूं। कवयित्री बन गई हूं।", रचना अपनी ही धुन में कहती चली गई। " अच्छा, पर तुझे तो ज़्यादा शौक नहीं था। अब ये सब कैसे करने लगी?",सीमा ने पूछा। " बस ऐसे ही किसी ने एक समूह में नाम जुड़वा दिया। उसमें मैंने कुछ लिखा तो बड़ी तारीफ़ हुई। फिर क्या था, तब से तो रोज़ ही कुछ न कुछ लिखकर भेज देती हूं, बड़ी तारीफ़ मिलती है।" रचना बहुत उत्साहित हो गई थी। " वह सब तो ठीक है, पर थोड़ा सावधान

रहना, कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाओ। जानकार हो तो ठीक है कभी लोग पैसे भी मांगने लग जाते हैं।", सीमा ने रचना को सतर्क किया। रचना की शायरी में कुछ खास दम नहीं था, प्यार - मोहब्बत, मिलन, जुदाई बस इसी सब पर थोड़ा लिख लेती थी। और लोग वाह - वाही कर देते थे।

रचना की खुशी बढ़ती जा रही थी। एक कवि ने उसे शहर के कवि सम्मेलन में आने और कविता पाठ करने का न्यौता दे डाला। रचना का गला भी कुछ खास सुरीला न था, पर गा लेती थी। रचना निर्धारित समय पर पहुंच गई। रचना के नैन - नक्श बहुत सुंदर थे, तैयार होकर तो और भी सुंदर लगती थी। काले रंग की पारदर्शी साड़ी बहुत जंच रही थी। वह मंच पर बैठ गई। अपना नाम पुकारे जाने पर इठलाते हुए वह माइक पर पहुंची। अनुभवहीनता के कारण ज़्यादा तो नहीं गा सकी, पर लोगों ने उसकी सुंदरता पर जरूर जुमले बोले।

" सुंदरता की मूर्ति, अभी बोलेगी आदि - आदि", रचना को यह सब अपनी तारीफ़ ही लग रही थी। उसने बोलना शुरू किया," रात गुजर गई, इंतज़ार में। दिल की बाज़ी लगी, जीत - हार में। " लोगों ने कुछ फिकरे कसे। पर वह मुस्कुराती ही रही। मंच से उतरने पर, कई लोगों ने उससे बात करने की कोशिश की। वह हाथ जोड़ते हुए वापिस आ गई। लोगो की छींटाकशी, पास आने की कोशिश उसको बहुत भली लग रही थी।अगले दिन सुबह उसने स्थानीय समाचार पत्र में कवि सम्मेलन का समाचार अपनी फोटो के साथ देखा। रचना के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसने पहले कवि सम्मेंलन के संयोजक को धन्यवाद के लिए फोन किया और उसके बाद अपनी सहेली को।

" हैलो सीमा, आज का अखबार देखा तूने, मेरी फोटो छपी है काव्यपाठ करते हुए। वाह ! इतनी जल्दी में स्थापित हो गई। बड़ी कवयित्री बन गई। ", रचना खुशी से छलकते हुए बोल रही थी।

" वह सब तो ठीक है, रचना। इन मंचों पर काव्य पाठ करना कोई बड़ी बात नहीं है। तुझे अवसर मिला तो लोगों ने तेरे सुंदर चेहरे को पसंद किया है, तेरी कविताओं को नहीं। अखबार में फोटो भी तेरी सुंदरता के कारण ही है। सुंदरता पाने के लिए हर कोई लालायित रहता है। मंच पर साथ बैठा सुंदर चेहरा आने वालों और सुनने वालों का पूरा मनोरंजन और सुंदरतापान करवाता है। निम्न स्तर की प्यार - मोहब्बत की शायरी में गहराई नहीं होती। सिर्फ तुकबंदी करना कविता नहीं होता। ", सीमा ने रचना को वास्तविकता के धरातल पर पटक दिया था। उसकी बातें सुनकर रचना दुखी तो हुई पर अगले ही पल आए फोन ने उसके दुख को सुख में बदल दिया। " रचना जी, कल शाम को आपको काव्यपाठ के लिए आना है। आपके लिए खास कहा है, शर्मा जी ने।" संयोजक महोदय ने कहा। " ओह, अच्छा। बड़ी खुशी की बात है। मैं पहुंच जाऊंगी अपनी नई कविताओं के साथ। अगले दिन, वह समय पर पहुंच गई। मंच पर अन्य कवियों के साथ आसीन हो गई।

आज लाल रंग की साड़ी में वह कुछ ज़्यादा ही सुंदर लग रही थी। बुलाए जाने पर नमस्कार करते हुए, उसने गाना शुरू किया," आ जाओ, सही न जाती ये दूरियां, ये मौसम, चलाए मन पर छूरियां।" फिर वही जुमले बाज़ी। उसने मुस्करा के अभिवादन किया और मंच से उतर गई। तभी संयोजक महोदय ने आकर कहा," आपको शर्मा जी बुला रहे हैं। आने वाले कवि सम्मेलन के विषय में चर्चा करनी है।" " जी, मैं चलती हूं।" रचना शर्मा जी के कमरे में पहुंची। अभिवादन के बाद शर्मा जी ने बोलना शुरू किया," आपकी कविताएं बड़ी दर्द भरी होती है। लगता है, आप का प्यार आपके साथ नहीं। अगर आप चाहें तो मैं यह कमी पूरी कर सकता हूं।" इतना कहकर उन्होंने रचना का हाथ पकड़ लिया तथा जबरदस्ती करने लगे।

रचना जी उन्हें धक्का देकर दरवाजे की तरफ भागी। बाहर संयोजक महोदय पहले ही खड़े थे। रचना की हालत देखते हुए बोले," रचना जी, आपकी रचनाओं में तो कोई आकर्षण नहीं, पर आपके चेहरे में बहुत आकर्षण है। कई लोग तो सिर्फ आपको देखने ही आते हैं। वैसे भी मंच पर अगर कोई सुंदर महिला बैठी हो तो लोग उसे देखने और सुनने के लालच में अन्य कवियों को भी सुन लेते हैं। हमारा फायदा हो जाता है। आप जैसे नए - नए खुद को कवि कहलवाने का शौक रखने वालों को अगर हम मंच दे रहे हैं तो कुछ निजी फायदा तो हमारा भी होना चाहिए।"

रचना को एक करारा झ्टका और लगा। उसे सीमा की बातें याद आने लगी। जिस मंच को पाने के बाद वह आसमान को छूने की इच्छा करने लगी थी, आज उसे पता लगा कि उसकी उड़ान कितनी बौनी थी। आज उसे आसमान छूटता दिख रहा था और वह गर्त में गिरती ही जा रही थी।


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