सुख की छांव
सुख की छांव
अपने घर में सबसे बड़ी थी सुमिता। हर काम की जिम्मेदारी उठाना, छोटे भाई बहनों का ख्याल रखना, माँ का हाथ बंटाना, घर का कामकाज देखना आदि सब काम बखूबी करती थी। फिर वक्त की मार उस पर भी पड़ी, असमय ही पिता का देहांत हो गया। कम उम्र में ही वह परिपक्व हो गई, घर की जिम्मेदारी उठाने के लिए उसने नौकरी करनी शुरू कर दी। छोटे भाई बहनों को पढ़ाना लिखाना, घर की जिम्मेदारियों को निभाते - निभाते भाई बहनों का बचपन सवारने में, माँ का हाथ बंटाने में भूल ही गई कि वह भी उनकी संतान है। सब की छोटी माँ ही बन गई थी वह। और उसके प्रेम की उम्र, विवाह की उम्र निकलती जा रही थी। इसी समय उसकी मुलाकात अमित से हुई। अमित पहली बार में ही उससे प्रभावित हो गया।
वह भी जीवन की भागमभाग में, अपनी नौकरी में इतना व्यस्त रहा कि उसने कभी अपना घर बसाने के बारे में सोचा ही नहीं। लेकिन सुमिता को देखते ही उसकी सारी इच्छाएं जागृत हो गई। सही समय देखते ही अमित ने सुमिता के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया। सुमिता को विश्वास ही नहीं हुआ, उसने कोई उत्तर नहीं दिया। पर अमित इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं था। वह अपने माता पिता के साथ सुमिता के घर उसका हाथ मांगने पहुंच गया।अमित ने सुमिता से कहा ,"तुमने अपने जीवन के सारे फर्ज़ निभा लिए, अपने भाई बहनों को इस लायक बना दिया कि वह अपने पैरों पर खड़े हो सकें। अब तुम्हें अपने लिए भी सोचना चाहिए, अपना घर बसा लो। मैं वादा करता हूं कि मैं तुमको तुम्हारे फर्ज़ पूरा करने से कभी नहीं रोकूंगा। हमेशा तुम्हारा हर संभव साथ दूँगा।" इतना कहकर अमित ने सुमिता के सिर पर हाथ फेर दिया। सुमिता उस स्पर्श से भावविभोर हो उठी। उसे महसूस हुआ कि सचमुच इस दुनिया में सुख वह नहीं है जो हम धन से कमाते हैं। असली सुख तब होता है जब हमारी सिर पर किसी का हाथ होता है। इतने सालों फ़र्ज़ निभाते हुए , वह सुख के उस स्पर्श से वंचित ही रही। यह सुख की छांव कहीं और से नहीं मिल सकती और उसने विवाह के लिए हां कर दी।
