मोक्ष

मोक्ष

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" मैं किसी से भी आपका अंतिम संस्कार करने की भीख नहीं मांग सकती थी। आपकी वंश बेल आगे न बढ़ सकी तो हमेशा आपको ताऊ जी के बेटों को अपनाने का दबाव झेलना पड़ा। उन्होंने भी आप का साथ बेमन से देने की कोशिश की, पर केवल वहीं तक जहां तक उनकी स्वार्थ सिद्धि हो रही थी। जरा सा आपको जरूरत क्या पड़ी तो सबने अपने हाथ पीछे कर लिए कि उनकी असली संतान उनकी बेटियाँ आगे आएं। तो अब सिर्फ आपकी मोक्ष प्राप्ति के लिए, आपको मुखाग्नि देने के लिए मैं उनके आगे गिड़गिड़ा नहीं सकती थी। आपके मोक्ष से अधिक आपको इस संसार से ससम्मान विदा करना मेरा लक्ष्य था। इसलिए सारे नियमों को ताक पर रखकर मैंने आपको मुखाग्नि दी। इसके लिए मुझे क्षमा कर दीजिएगा ।" पिता की चिता के आगे हाथ जोड़े वसुधा सोच रही थी।



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