आंखों देखी
आंखों देखी
यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है। शर्मा जी का परिवार मेरे पड़ोस में रहता था। उनके तीन बेटियां और एक बेटा था। उनकी बड़ी बेटी मेरे साथ पढ़ती थी। उनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। अंकल हमेशा यही सोचते कि बस राजी - खुशी तीनों बेटियों की शादी कर दूं। शर्मा जी किसी स्कूल में क्लर्क थे , बहुत कम तनख्वाह थी । जिसमें उनको घर भी चलाना होता था और बेटियों के लिए बचाना भी होता था। शर्मा जी ने मेरी सहेली गीता की शादी बारहवीं पास करते - करते ही कर दी। वह कहते ," अरे , एक बेटी की शादी से निपटेंगे तभी तो दूसरी के लिए जोड़ना शुरू करेंगे।" आंटी भी हर फैसले में अंकल का साथ देती। अंकल बैंक की या किसी और बचत कंपनी की आने वाली हर नई योजना पर नज़र रखते। जैसे ही उन्हें कोई लाभदाई योजना दिखती, वह तुरंत पैसे जमा कर देते।
वह एक दिन ऐसे ही किसी जोड़ - तोड़ का हिसाब कर रहे थे, तो उन्होंने आंटी को बुलाकर बोला, "सुनो, ध्यान से देखो इन कागज़ों को। पचास हज़ार रुपए तुम्हारे नाम पर भी फिक्स करवा दिए हैं। बच्चों के साथ - साथ तुम्हारे भविष्य का भी तो ध्यान रखना है ।" आंटी बोली," रहने दो बस, मेरे साथ तुम हो तो बस मुझे पैसे क्या करना ? रह गई बात कागज़ों की तो तुम ही देखो। मुझे न देखना है और न समझना है।" अंकल बोले ," हर बार तुम ऐसा ही कहती हो। तुम पढ़ी - लिखी नहीं हो इसलिए मुझे हमेशा चिंता रहती है, अगर मुझे कुछ हो गया तो तुम्हारा क्या होगा ? " " कैसी बातें करते हो ?
जब तक मैं हूं तब तक तुम्हें कुछ नहीं होने वाला। ये काग़ज़ सारी उम्र तुम्हीं संभालना , मैं कभी यह नहीं करने वाली।" आंटी ने हंस कर कहा। समय अपनी चाल चलता रहा। अंकल ने तीनों बेटियों की शादी कर दी।
अब बेटा भी बड़ा हो गया था, अब वह भी नौकरी की तलाश कर रहा था। अंकल जी का रिटायरमेंट भी करीब था। सोच रहे थे कि नौकरी में रहते - रहते ही बेटे की शादी भी कर दें। थोड़े समय के बाद बेटे की नौकरी भी लग गई और उसकी शादी भी हो गई। पर आंटी के लिए उनकी चिंता वही थी कि उनके जाने के बाद क्या होगा ? आंटी तो पढ़ी - लिखी भी नहीं है। और आंटी का वही जवाब होता ," वह दिन कभी नहीं आएगा।"
ईश्वर को क्या मंज़ूर था ? किसी को नहीं पता था । और एक दिन , अंकल बैंक गए हुए थे , वहीं उनको दिल का दौरा पड़ा और उनकी वहीं मृत्यु हो गई। सब लोग सदमे में आ गए। किसी तरह गाड़ी का इंतजाम करके उन्हें घर ले जाया गया। जैसे ही अंकल का पार्थिव शरीर घर में रखा गया , आंटी अंदर से बाहर की तरफ आते हुए बोली," मैंने कहा था न वह दिन कभी नहीं आएगा।" वह अंकल के सीने पर झुक गईं , देर होने पर जब उनको उठाया गया तो सब लोग सकते में आ गए , आंटी के प्राण - पखेरू उड़ चुके थे। वह जो सारी उम्र कहती रही , वह सच हो गया था। कोई एक दूसरे के बिना नहीं जी पाया। यह घटना आप मानो या ना मानो, पर यह आंखों देखी है।