धूप
धूप
" नहीं, मुझसे और नहीं होगा , ये वीभत्स चेहरा लेकर , मैं इतने सारे अभ्यर्थियों के साथ परीक्षा नहीं दे सकती। उनकी आंखों में कितने सवाल, कितने भाव छुपे होते हैं। वह सब कुछ मुझे अंदर तक हिला के रख देता है। कई लोग की नज़रें तो ऐसी होती है जैसे फिर मुझ पर कोई तेज़ाब फेंक रहा हो।" मीता ने दुखी और हताश भाव में कहा।
मुझे याद है वह काला दिन, जिसने मेरा सब कुछ जला दिया । मैं पढ़ने की शौकीन , प्यार - मोहब्बत से दूर , उस सिरफिरे को मना कर दिया तो उसने तेज़ाब से मेरा चेहरा तो जला दिया लेकिन मेरी हिम्मत को नहीं जला पाया । मैं आगे बढ़ने कि कोशिश तो करती हूं पर लोगों की घूरती निगाहें मेरा रास्ता रोकने को तैयार रहती हैं।" मीता अपने ख्यालों में बड़बड़ाती जा रही थी तभीउसकी सहेली पिया ने आकर उसे खुशखबरी दी कि उसने देश की सर्वोच्च परीक्षा आई. ए. एस. उत्तीर्ण कर ली है। अब मीता को अपना जला चेहरा कोहरे में से झांकता सूरज लग रहा था, जिसकी खिली और चमकीली धूप का सबको इंतजार है।