तपस्या
तपस्या
1 min
574
वसुधा निमंत्रण पत्र हाथ में लेकर भावविह्वल खड़ी थी। उसने पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। दीक्षांत समारोह में राज्यपाल के हाथों उसे स्वर्ण पदक मिलना था। उसके जीवन का यह सबसे बड़ा और मूल्यवान सम्मान था।
विवाह होते ही जिस प्रकार से उसके मन - मस्तिष्क के पट बन्द कर दिए गए थे। यह सम्मान उन लोगों के मुंह पर एक ज़ोरदार तमाचा था जो यह सोचते थे कि घर की चहारदीवारी और दहलीज के बाहर जाने वाली सोच और क़दमों को उन्होंने तोड़ दिया है। वह आराम से बैठ गई , उसकी तपस्या पूरी हो गई थी । उसने साबित के दिया था कि तपस्या करने के लिए मन्दिर नहीं मन की आवश्यकता होती है।
