मन बौरा गया

मन बौरा गया

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"आज फिर मन बौरा गया है। स्त्रियों के चेहरे पर सबसे ज़्यादा निखार बीस के बाद इसी उम्र में आता है, क्योंकि उनका जीवन काफ़ी-कुछ व्यवस्थित हो चुका होता है। घर की जिम्मेदारियों से अलग उनके पास कुछ समय अपने लिए भी होता है। यह उम्र ही ऐसी है। चालीस पार की महिलाओं के साथ ऐसा ही होता है। बच्चे आधे बड़े हो चुके होते हैं। पति - पत्नी का सम्बन्ध भाई - बहन या माता - पिता जैसा हो चुका होता है। स्वयं का यौवन पूरा ढला नहीं होता और बुढ़ापा ठीक से आया नहीं होता। इस मोड़ पर जीवन एक गुलदस्ते सा ही लगता है जिसमें रिश्तों और भावनाओं के फूल लगे होते हैं। कुछ सजावट के लिए ,कुछ सजीवता के लिए।" इतने में दरवाज़ा खुला, बच्चे और पतिदेव घर में आ गए और मैं विचारों की दुनिया से बाहर आ गई। 'भूख लगी है, कुछ खाने को दो, चाय तो बना दो पहले आदि - आदि।' बच्चों की, पतिदेव की मिली-जुली आवाजें आईं। मैं खुशी खुशी चल पड़ी रसोई की ओर, अपने गुलदस्ते के फूलों के लिए।



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