छुटका-बड़का की जादू और पीके के रूप में वापसी
छुटका-बड़का की जादू और पीके के रूप में वापसी
"सावित्री चाची! सावित्री चाची! दरवाजा खोलो, दरवाजा खोलो।"-पांचों बच्चे बड़े घबराए हुए से बड़े जोर- जोर से सावित्री का दरवाजा पीटते हुए रोते -रोते चिल्ला रही थे।
सावित्री ने जल्दी उठकर दरवाजा खोलते हुए बच्चों से कहा-"क्या बात है? क्यों तुम सबने सिर पर आसमान उठा रखा है? तुम लोग रो क्यों रहे हो?"
बड़ी जोर से रोते हुए राहुल बोला-"चाची, चाची, छुटका भैया, बड़का भैया.....।
इसके राहुल की घिग्घी बंध गई और वह रोने के अलावा कुछ भी बोल नहीं पा रहा था। वह बड़े जोर से रोए और सिर्फ रोते ही जा रहा था उसे बेतहाशा रोता देखकर सावित्री बड़ी परेशान हो गईं।
उन्होंने बाकी बच्चों से पूछा-" राहुल क्या कहना चाहता है ? और छुटका बड़का कहां गए हैं? वे दोनों भी तो तुम लोगों के साथ ही खेलने गए थे।
विपिन ने सावित्री को बताया-" चाची, हम सब लोग नहर के पास वाले भाग में छुपम- छुपाई खेल रहे थे। राहुल की ढूंढने की बारी थी और हम सब लोगों की छिपने की बारी थी बाग से थोड़ी दूर बड़ी अजीब सी कोई दो अलग-अलग सी चपटी- चपटी गोल -गोल सी चीज खड़ी थी। मैं एक झाड़ी के पीछे छिप गया था और मैंने उनमें से एक में छूट का वह दूसरी वाली में लड़का को अंदर की ओर जाते देखा था। उन दोनों के उनमें अंदर जाने के थोड़ी देर बाद वे दोनों अजीब सी चीज है ऊपर उड़कर गायब हो गईं। आपके दोनों बच्चे छुटका और बड़का भी उसी में चले गए।"
"क्या कर रहे हो तुम सब लोग ऐसा कैसे हो सकता है "-यह कहते हुए सावित्री नहर के पास वाले बाग की तरफ भागी उसके पीछे सारे बच्चे बड़ी जोर से चिल्लाते हुए सावित्री के पीछे भागने लगे।
सावित्री के पीछे- पीछे भागते भागते भागते सारे
बच्चे चिल्ला रहे थे-"सावित्री चाची के छुटका भैया और बड़का भैया गायब हो गए, सावित्री चाची के छुटका भैया और बड़का भैया गायब हो गए, छुटका भैया और बड़का भैया गायब हो गए, छुटका -बड़का गायब हो गए।"
गांव के लोग सावित्री और सावित्री के पीछे चिल्लाते हुए बच्चों को भागते हुए देखकर वे भी उनके पीछे लाठी -डंडा , जिसके हाथ में जो भी पड़ा उसे लेकर वह भी नहर वाले बाग की तरफ भागा। बाग से थोड़ी ही दूर उन बच्चों ने जहां पर वह तो अजीब सी चीज है खुली देखी थी वहां जाकर देखा तो जमीन पर कुछ छोटे से गड्ढों निशान तो दिखे लेकिन उनकी अजीब सी चीजों का कोई नामोनिशान नहीं दिखा जिनके बारे में बच्चों ने बताया था कि उसके अंदर सावित्री के छुटका और बड़का अलग अलग उन अजीब सी गाड़ियों में बैठकर उड़ गए थे। अब गाड़ियों का कोई नामोनिशान आसमान में या आसपास दूर-दूर तक नहीं था। लोगों को तो यह भरोसा ही नहीं हो रहा था कि इस तरीके से कोई चीज इतने पास आए और उसकी आवाज का कोई पता ही न चल पाए।
इधर सावित्री का भी रो रो कर बुरा हाल हो रहा सावित्री के पति भूपेंद्र जी भारतीय वायु सेना में अपनी सेवाएं दे रहे थे। इस समय वह अपनी ड्यूटी पर थे और यहां गांव में उनकी पत्नी सावित्री अपने दोनों बच्चों के साथ गांव में रह रही थीं। उनका बेटा छुटका तीन साल का और बड़का पांच साल का था। बड़ा वाला गांव के स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ने जाता था। घर से उन दोनों बच्चों को यह संस्कार मिले हुए थे कि दोनों बच्चे साथ ही साथ रहते साथ साथ खेलते कूदते साथ साथ नहाते समय खाते और साथ-साथ सोते थे उन दोनों भाइयों में आपस में बड़ा ही प्रेम था। वर्तमान समय में जो परिस्थितियां उत्पन्न हुई थीं उनके अनुसार फिलहाल अभी तो सब्र के अलावा कुछ भी नहीं किया जा सकता था। सावित्री ने जब अपनी यह इच्छा व्यक्त की कि वह इन बच्चों के खोने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करवाएगी तो गांव लगभग सब लोग इस बात से पूरी तरह सहमत थे । सावित्री ने दोनों बच्चों के खोने की रिपोर्ट थाने में विवरण देते हुए लिखवा दी ।सावित्री ने बच्चों के मुंह से सुनी हुई कहानी पुलिस स्टेशन पर लिखकर दे दी पुलिस ने उसे बताया गया कि बच्चों के अनुसार यदि वह इस तरीके की अजीब गाड़ी में बैठ कर गायब हुए हैं तो वहां हवाई जहाज तो पहुँचना असंभव ही था यदि हेलीकॉप्टर होते तो भी हेलीकॉप्टर के उतरते और उड़ते समय जो आवाज होती है उसे गांव के लोग आसानी से सुन सकते थे और उसके बारे में अपनी जानकारी से अवगत करवा सकते थे।
सावित्री के पति भूपेंद्र जी को इस बारे में सूचना दी गई। वे अवकाश लेकर आए । वायु सेना के कुछ लोग भी उनके साथ आए। काफी उच्च स्तर की खोजबीन करने का प्रयास किया गया लेकिन यह सारे के सारे प्रयास निरर्थक साबित हुए। दोनों बच्चों का कोई भी पता नहीं चला और न ही उन अजीब सी गाड़ियों के आने का किया वापस जाने का कुछ भी पता लग सका जिनमें बैठकर वे दोनों बच्चे गायब हो गए थे। सावित्री का तो रो -रो कर बुरा हाल था और हो भी क्यों नहीं। अपने बच्चों को खोने का मां से ज्यादा दर्द किसको होगा। लोग उन्हें सांत्वना देते। अलग-अलग तरह से समझाते तुम तो पढ़ी-लिखी और समझदार हो। इस परिस्थिति में अब क्या किया जा सकता है ?अब तुम्हें समझदारी का परिचय देते हुए रोना-धोना बंद कर देना चाहिए। यह विषम परिस्थिति है, दुख की घड़ी है ,तुम्हें अपने साहस और धैर्य का परिचय देना चाहिए। उनके इस दर्द को समझते हुए भूपेंद्र जी उन्हें अपने साथ ले गए क्योंकि यदि वे यहां गांव में अकेले रहती और बच्चों को बार बार याद करती रहतीं। उस एयर फोर्स स्टेशन जिस पर भूपेंद्र जी सेवारत थे, वहां मिले स्टाफ क्वार्टर में भूपेंद्र जी के साथ सावित्री जी भी रहने लगीं और वहीं उसी कैम्पस में स्थित विद्यालय मैं एक शिक्षिका रूप के रूप में अपनी सेवाएं देने लगी जिसमें उसी एयरफोर्स स्टेशन ने कार्यरत वायुसेना के अधिकारियों -कर्मचारियों के बच्चे पढ़ते थे। भूपेंद्र जी ने भी उन्हें खुद शांत रहते हुए उन्हें समझाया कि अब हमारे बच्चे तो है नहीं । अब इस विद्यालय के बच्चों में ही हम- तुम अपने बच्चों की छवि देखेंगे। हम जिस तरीके से अपने बच्चों को परवरिश देना चाहते थे उसी तरीके से हम इन बच्चों के साथ पूरे मनोयोग के साथ कार्य करेंगे। आखिर हम इस भारत देश के नागरिक हैं और देश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने देश की भलाई के लिए अपना अधिक से अधिक योगदान दे। वह चाहे जिस रूप में हो। धीरे-धीरे सावित्री विद्यालय के उन बच्चों के साथ में व्यस्त रहने लगी और धीरे-धीरे उनका दुख कम होता गया।
इस बीच भूपेंद्र जी का अलग-अलग एयर फोर्स स्टेशनों पर स्थानांतरण होता गया और सावित्री जी उन्हीं के साथ इन नए नए स्थानों पर जाती रही और हरने स्थान पर भी उन्होंने विद्यालय में शिक्षिका के रूप में अपनी सेवाएं जारी रखें और उन विद्यालय के बच्चों में ही वे अपने बच्चों की सभी देखकर संतुष्ट रहने लगीं। भूपेंद्र जी और सावित्री जी अपने गांव शादी विवाह जैसे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए या वार्षिक अवकाश के समय ही एक- दो वर्ष के अंतराल पर जाया करते थे।
इस बार भूपेंद्र जी और सावित्री जी गांव में भूपेंद्र जी की भतीजी स्नेहा की शादी में आए हुए थे। इस समय तक गांव भी काफी बदल चुके थे जिसने हमें पहले हर समय पानी रहता था अब उसने हर में पिछले चार वर्षों से उसमें बिल्कुल पानी आ ही नहीं आ रहा था ,नहर सूखी रहती थी। नहर के किनारे का जो बड़ा सा बाग था उसके पेड़ों को एक एक कर बेचकर कटवा दिया गया था और अब उस बात की जगह खेत थे। इसके अलावा जो दूसरे भी कई एक बाग थे वे भी सब कट चुके थे अगर कहीं पेड़ों के नाम से कोई चीज दिखती थी तो वह यूकेलिप्टस के पेड़ थे। उपेंद्र जी अफसोस जताते हुए कहते एक गांव है इससे ज्यादा पेड़ तो शहरों में हैं। यहां लोगों ने पैसे और जमीन के लालच में पेड़ कटवा दिए खेती शुरू कर दी।
यह शादी जनवरी माह में हो रही थी एक घने कोहरे वाला दिन था सवेरे से चारों ओर घना कोहरा छाया हुआ था कोहरे की वजह से काफी नजदीक की भी चीजें नजर नहीं आ रही थी लोगों ने उस कोहरे को चीरती हुई आसमान से कोई चमकती हुई तश्तरी नुमा चीज नीचे आती हुई दिखाई दी जो आकर जमीन पर रुक गई ।लोग उत्सुकता बस उस ओर देखने के लिए दौड़े। वे लोग वहां पहुंच ही रहे थे कि तब तक एक और वैसी ही दूसरी तश्तरी नुमा़ चीज आती हुई दिखाई दी। वह जमीन पर आकर रुक गई। उन दोनों के दरवाजे खुले और दरवाजे से कुछ अजीब से लगने वाले लोग उतरे जिनके बीच अपने जैसे दिखने वाले एक -एक युवक दोनों वाहनों से उतरे। इन दोनों लोगों को छोड़कर और वाहनों से उतरे अजीब से लोग फिर से वाहन में वापस चले गए उनके अंदर जाते ही दरवाजे बंद हुए और वह तश्तरीनुमा वाहन ऊपर उठे और देखते ही देखते आंखों से ओझल हो गए।
ये आए हुए दोनों युवक सावित्री और भूपेंद्र जी के पंद्रह साल पहले गायब हुए बच्चे छुटका और बड़का ही थे। इन छुटका और बड़का के पास बड़ी आश्चर्यजनक शक्तियां थीं। वे दूर से ही किसी बीमार व्यक्ति को देखकर अपने आंखों से निकलने वाली विशेष प्रकार की रोशनी से बड़ी ही जल्दी ठीक कर देते। उनके जैसे अनेक हैरतअंगेज कारनामे देखकर लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि सावित्री और भूपेंद्र जी के ये दोनों बच्चे छुटका और बड़का बड़ी ही दिव्य शक्तियों के स्वामी हैं जो दूसरे ग्रहों से यह दिव्य शक्तियां जिद करके पृथ्वी पर वापस आ गए हैं। यह तो छुटका और बड़का की धरती पर जादू और पीके के रूप में वापसी हुई है ये जादू और पीके दोनों बिछड़े हुए भाई थे जो पंद्रह सालों के बाद फिर आपस में मिले हैं।