Suraj Kumar Sahu

Classics

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Suraj Kumar Sahu

Classics

बीमार बैल

बीमार बैल

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एक गाँव में एक बड़े किसान के दो बेटे थे। पिता की अच्छी खासी जमीन थी दोनों मिलकर खेती करते जिससे घर की अच्छी आमदानी हो जाती। दोनों भाइयों की शादी हो चुकी। छोटे छोटे बाल गोपाल भी हो गये। कोई स्कूल में पढ़ाई कर रहा, तो कोई घर पर ही खेल खा रहा। दोनों भाइयों सहित पूरे परिवार में आपसी तालमेल बहुत अच्छा था। उम्र चालिस पार कर गई किन्तु कभी अलग होने के बारे में दोनों सोचे नहीं। 

उनका पिता सक्त मिज़ाज का व्यक्ति था। दोनों बहु ले आया मगर घर में फूट आज तक नहीं पड़ने दिया। उनका कहना था मिलकर रहो फिर चाहे रूखा सूखा कुछ भी खाना पड़े। दोनों बेटे भी पिता की बात को सर आँखों पर रखते। बेटों की तरह पत्नियां भी ससुर की बात मानती थी। पूरे इलाके में दोनों भाई खेती किसानी और मवेशी के अच्छे जानकर  व्यक्ति हैं। आखिर वो एक मझे हुए किसान के बेटे जो ठहरे।

एक बार किसान के घर ऐसा समय आया, जब दोनों बेटे के बीच आपसी तालमेल बिगड़ने लगा। कारण कुछ नहीं, बस वो जिस घर पर मवेशी के इलाज करने जाते अपनी बढ़ाई करते, दूसरे की बुराई करते। आसपास के क्षेत्रों में सभी के कान भरे जा चुके थे। कही न कही से यह बात उनके भी कान पर सुनाई पड़ी कि दूसरा उसकी बुराई किया तो घर पहुँचकर दोनों में झगड़ा होने लगा।

आय दिन यह झगड़ा देख किसान को चिंता हुई। दोनों का इस तरह से एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में तो घर टूट जायेगा। तब किसान उनके भले के लिए एक तरक़ीब सोचा।

कही से मरियल से बैल खरीद लाया। एक दम बीमार, जो दाना पानी भी खाना पीना छोड़ चूके। बस जान थी जो कभी भी निकल सकती थी। एक एक बैल दोनों के देकर कहा-

"तुम अपने आप को खूब जानकार समझते हो तो एक एक बैल लेकर इन्हें अपने इलाज से ठीक करके दिखाओ। तभी तय होगा कौन ज्यादा जानकार हैं, वरना ये एक दूसरे का नीचा दिखाना छोड़ देना। यदि तुम किसी की मदद लिए तो उसका जुर्माना देना होगा। जुर्माना की कीमत क्या होगी ये मैं तय करूंगा, और हाँ बैल मरना नहीं चाहिए। तुम्हें लगे हार रहे हो तो मेरे पास आ जाना।"

दोनों भाइयों को बैलों की इलाज पलक झपकते का काम लगा। दोनों जुट गये अपने अपने बैल की सेवा में। जितना संभव था हर तरह का इलाज प्रांरभ किये। लेकिन उन मवेशीयों को कुछ असर नही हो रहा था। वो जितना इलाज करते उससे कहीं ज्यादा बैल बीमार होते गये। किसान को भरोसा था कि उसके बेटा सफलता न मिलने पर उसके पास मदद के लिए आयेंगे। हुआ भी वही, हार थककर छोटा भाई अपने पिता के पास पहुँचा। अपनी व्यथा सुनाई और कहा अब वह बैल का ठीक नहीं कर सकता।

तब उसके पिता ने उसका इलाज बताया। छोटा बेटा अपने पिता की बात मानकर वही करने लगा जो पिता ने कहा। किन्तु उसका बड़ा भाई जब सुना छोटा तो हार मान गया तो अंदर ही अंदर बहुत खुश हुआ। लेकिन उसकी खुशी ज्यादा दिन टिक नहीं पाई। जहाँ उसके छोटे भाई का बैल पिता के बताये इलाज से ठीक हो गया। वही बड़े भाई का बैल खुद के दिये इलाज से मर गया। बड़ा भाई शर्म से पानी पानी हो गया। उसके मन में चलने लगा वह अपने पिता और छोटे भाई को क्या मुँह दिखायेंगा। सारे क्षेत्र में उसके ग्यान का मजाक होगा अलग। फिर भी किसी तरह वह अपने पिता के पास गया।

"पिताजी मुझे माफ करें, बैल को बचा नही सका, वह आज ही मर गया।"

"यह मैं क्या सुन रहा हूँ। तू तो बहुत बड़ा डॉक्टर बना फिर रहा था। क्या हुआ जो सही इलाज नही कर सका। सीख कुछ अपने छोटे भाई से।"

"उससे क्या सीखूँ ? वह तो आपसे मदद लेकर ठीक कर लिया, पिता जी अपने तो शर्त रखी थी कि यदि कोई मदद लेगा तो उसे जुर्माना देना होगा। क्या हुआ उसका?"

"अरे! मुर्ख बचुआ। किस चीज का जुर्माना? कौन सा उसका बैल मरा, जितनी कोशिश करनी थी किया।"

"कोशिश तो मैंने भी की न पिता जी।"

"मिला क्या? मर गया बैल बेचारा। तेरे छोटे भाई का बैल मरा तो नहीं। वह ही सही किया जो मेरी मदद ले लिया। जिस चीज का हमें अनुभव नही और कोई अनुभवी पास हो तो उससे मदद लेने में कैसी हिचकहाट? बचुआ मुझे जुर्माना छोटे पर नहीं बल्कि तेरे पर लगाना चाहिए।"

बड़ा बेटा अपनी गलती स्वीकार लिया। पिता की बात समझ चुका था। दोनों ने उसकी बात सुनी तो अक्ल ठिकाने आ गयी। पिता के पैर पकड़ लिये।

"कोई भी व्यक्ति किसी चीज में पूर्ण नही होता। अपने ग्यान पर घमंड करके दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश बेवकूफी का काम हैं। सच तो ये कि हमें मिलकर काम करना चाहिए। मुझे पता था किसे किस चीज की जानकारी नही। इसीलिए मैं उसको वही बैल दिया। तुम दोनों का एक दूसरे को नीचा दिखाना सही नही। अगर मेरी बात समझ आ गई हो तो अब एक दूसरे की बुराई करना छोड़ देना।"

पिता की बात को सर आँखों पर रख दोनों पुन: स्नेह से रहने लगे। अब वो कभी एक दूसरे की बुराई नही करते।बल्कि जहाँ जिसकी जरूर जितनी पड़ती एक दूसरे की मदद भी लेते। यह देख किसान को बहुत खुशी हुई।


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