Suraj Kumar Sahu

Children Stories Inspirational

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Suraj Kumar Sahu

Children Stories Inspirational

लीला नदी

लीला नदी

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लीला नदी के बारे में कौन नहीं जानता, बड़ी अनोखी नदी है। चौड़ाई तो बहुत कम, मगर बहुत गहरी नदी है। जिसके दोनों तरफ सिर्फ बड़ी बड़ी चट्टानें, और उसके गहराई में बड़े बड़े पत्थर। नदी के जल का प्रवाह इतना शांत कि बड़े गौर से देखने के बाद पता चलेगा बहती किस दिशा में है। 

लीला नदी की लीला, बहुत भारी है। जहाँ से निकली वहाँ से लेकर आखिरी छोर तक उसके तट में केवल एक गाँव बसा है। सबसे छिपती छिपाती घने जंगल के बीच ऐसे निकल गई जैसे पहरेदार के बीच से दबे पैर चोर निकल जाता है। दरअसल, नदी अपनी सुंदरता को खोना नहीं चाहती, इसलिए लोगों की पहुँच से दूर शुकुन से बहते हुए बड़ी नदी में जाकर समा गई। न मैला होने की टेंशन और न किसी के कब्जे का डर। आज भी उसका जल सबसे स्वच्छ और सुंदर मिल जायेगा। 

लीला नदी सुन्दरता के साथ साथ जलीय जीवों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। मछली, झींगे, मगरमच्छ कई जीव जो उसमें घर बनाकर रहते है। उनमें सबसे ज्यादा मछलियों, जो कई परिवार में बंट कर अपना अपना जीवन गुजार रही है। 

उन्हीं परिवार के बीच एक दल्ली मछली का परिवार है। दल्ली मछली का जीवन लगभग समाप्त ही है। वैसे तो वह अभी जवान है, मगर उसके पति की मौंत के बाद जीवन में कुछ नहीं बचा। 

वह एक हादसा था, इंसान जो हमेशा से मछलियों का दुश्मन रहा, एक दिन उसके पति की जान छीन लिया। एक बार इंसान के हाथ कोई मछली चली जाए वहाँ कभी वापस आ सकती है? मगर जो कुछ भी हुआ था तो दल्ली मछली के कारण। जिसका पछतावा उसे आज भी है। 

दल्ली मछली की शादी हुई, वह अपने पति के साथ खुश रहने लगी। उसका पति एक सैनिक था जो जल देवता के द्वारा चुने जाते है। उनका काम उनके क्षेत्र के सारी मछलियों की सुरक्षा करना होता है। जल देवता के द्वारा उनको खास तरह की शक्ति प्रदान की जाती है जिससे वो आसपास का जायजा लेकर अन्य मछलियों को घुमने फिरने की आजादी देते है। इस बीच कोई मछली मुसीबत में फंस जाए तो उसकी मदद करते है। अन्य मछलियों पर सख्त प्रतिबंध लगाते कि उसे क्या करना है और क्या नहीं। 

दल्ली मछली का पति उसे अत्याधिक प्रेम करता था। इसलिए उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता। उसके हर जिद को पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ता, और एक दिन हुआ भी यही दल्ली मछली को आटा दिखाई दिया। वह आटा जिसके द्वारा शिकारी मछलियों का शिकार करते है, लोहे की कांटी में फंसाकर। मगर दल्ली मछली को वह आटा खाना था, उसने अपने पति को बताई और जिद करने लगी कि उसे खाना है। उसका पति आटे के करीब गया, जायजा लिया तो पता चला ये सच में शिकारियों का जाल है। आकर अपने पत्नी को बताया, मगर दल्ली मछली को नहीं समझना था तो नहीं समझी। उस वक्त दोनों के अलावा दल्ली के माँ बाप भी वही थे। उन्होंने भी बेटी को समझाने की भरपूर कोशिश किये कि वह अपने पति की बात माने, मगर वह नहीं मानी। 

उसको लगा पति उसकी बात नहीं मानेंगा तो गुस्से में उस आटे की तरफ बढ़ी। उसका पति उसका रास्ता रोकता रहा मगर वह नहीं मानी। अंत में जैसे खाने के लिए मुँह खोली उसका पति कांटी सहित आटा चबा गया। देखते ही देखते कांटी उसके फेंफड़े में इस तरह फंस गई कि वह दर्द से फड़फड़ाने लगा। यह देख दल्ली मछली को बहुत पछतावा हुआ, वह रोने गाने लगी। छाती पीट रही थी। बेचारा पति अपने पत्नी को रोते बिलखते देख शुकुन से मर भी नहीं पाया। अब पछताये क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। अपने शिकार को फंसा देख शिकारी उसे पानी से बाहर खींच लिया, दल्ली मछली विधवा हो गई। 

उसके छोटे छोटे तीन बच्चे थे। किसी तरह बच्चों के लिए वह जीवित रही। माँ बाप उसे जीवन भर कोस रहे थे। उसका एक भाई भी था, जो पति की तरह एक सैनिक का फर्ज पूरा कर रहा था। उसको भी वही जिम्मेदारी मिली हुई थी। ताकत से भरपूर, आज तक उसने कई मछलियों को ऐसे शिकारियों से बचाया, मगर एक दिन फिर वही वक्त आया। 

दल्ली मछली अपने बच्चों के साथ घूम रही थी कि शिकारियों के डालें कांटी में एक बार पुनः आटा दिखाई दिया। उसकी जीभ स्वाद के लिए उलटने पलटने लगी। वह भूल चुकी थी कि उसके पति की जान इसी कारण गई। बच्चों से नज़र चुराकर वह उस ओर बढ़ने लगी, उसका सैनिक भाई कि नजर पड़ी तो उसने रोका। 

"क्या कर रही है दल्ली? भूल गई कि जीजा जी को इसी कारण अपना जान गँवाना पड़ा?" वह पास आकर बोला। 

"मगर भाई जरूरी तो नहीं कि हर बार शिकारी के द्वारा इस तरह आटा डाला जाए। हो सकता है कि किसी भले आदमी के द्वारा हमारे खाने के लिए डाला गया हो।" उसने जवाब दी। 

यह सुनकर सैनिक भाई जायजा लेने चला गया। वापस लौट कर बताया ये शिकारियों का जाल है। क्योंकि आटा एक पतली रस्सी से बंधा हुआ है। दल्ली मछली इस बार भी नहीं मान रही थी तो उसका भाई कहा-

"अपने लिये न सही तो इन बच्चों को तो ख्याल कर। जो अपने बाप को तेरे जिद के कारण पहले ही खो चुके है।"

उसको इस बार भी नहीं समझाना था इसलिए उसने आव देखा न ताव यह कहकर उस आटे को चुंभ कराई कि -

"तुम्हें पता नहीं सैनिक के पद का कितना घमंड है। एक सैनिक का पद पाकर सभी को रोक टोक करके तुम उसके आजादी नहीं छीन सकते। मैं तो चली खाने।"

वह एक झटके में खा लेना चाहती थी। मगर पति की तरह उसके फेंफड़ों में कांटी चुभ गई। वह दर्द से तड़फने लगी। अपने माँ को इस तरह दर्द से तड़फते देख बच्चे "मामा मामा, माँ को बचाओ" कहकर चिल्लाने लगे। मगर एक वह था जो दूर से खड़ा सब कुछ देख रहा था। देखते ही देखते शिकारी उसे भी ऊपर की तरफ खींच ले गये। 

उसके बच्चे रोते अपने मामा के पास आये। उन्होंने पूछा-

"क्या हुआ मामा, आप तो माँ को बचा सकते थे? फिर आप को उनपर दया क्यों नहीं आई? क्या आप भूल गये कि आप हम सबकी रक्षा के लिए ही है?"

उसने जवाब दिया-

"ये सच है कि मैं तुम सब के रक्षा के लिए हूँ, मगर हमें सिर्फ इतना निर्देश है कि आप लोगों को उन चीजों से अवगत कराना है जिनसे जान को खतरा है। हम सब किसी न किसी नियम से बंधे हुए है। मैंने वही किया तुम्हारी माँ को समझाया, मगर वह मेरी बात नहीं मानी। तुम्हारी माँ को समझना था कि जीवन में वही गलती दोबारा नही करनी चाहिए, जिसका परिणाम हम एक बार भुगत चुके हो। अपने जिद के कारण ही एक दिन वह तुम्हारे पापा को खो दी, और आज अपने आप को। इसलिए जीवन जीने के लिए ईश्वर के द्वारा निर्देश बनाए गये है उसका पालन करना चाहिए। वरना तुम्हारे अपने रखवाले चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते। हमें भी नियम से हटकर कुछ नहीं करना चाहिए, जैसे तुम्हारे पापा ने किया। आज अगर वही गलती मैं करता बच्चों तो मुझे अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता।"

अपने मामा की बात को अच्छी तरह समझकर बच्चों ने आगे से ऐसी गलती न करने की कसम खाकर उसके साथ घर की तरफ चले गए। 


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