पुर्वानुमान
पुर्वानुमान
मुरारी पण्डित, गाँव ही नहीं आसपास के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम हैं। उन्हें ईश्वर से पुर्वानुमान की विद्या जो प्राप्त है। लोगों का मानना हैं कि कुछ वर्ष पूर्व पण्डित जी घने जंगल में जाकर तपस्या किये। उनके कठिन साधना से प्रशन्न होकर ईश्वर ने पुर्वानुमान की विद्या दी। इस बात का घमण्ड उनको जरा भी नही, जो भी कुछ पूछने आया अपने अनुमान से पूर्व में ही बता दिए। ऐसी विद्या पाकर तो कोई भी दुकान खोलकर बैठ जाये, दिनभर की दो चार दस हजार की कमाई हो जाये, मगर मुरारी पंडित किसी से एक रूपये नहीं लिये। मुफ्त सेवा। इसलिए लोगों को ज्यादा विश्वास था। वो किसी भी समस्या का हल नहीं, बल्कि क्या होगा बताते। झाड़ फूँक से दूर रहे, और न ही किसी भी प्रकार के कष्ट का इलाज बताया।
फिर भी लोग उन्हें भगवान की तरह पूजते। आश्रम तो नहीं उनका न ही घर के इतना बड़ा जो भीड़ इक्कठा कर सके। किसी के घर जाकर भी विद्या का प्रयोग नहीं करते। दिनभर खेती बाड़ी का काम, रात में पण्डिताइन के हाथ का भोजन करते, बच्चों के साथ समय व्यतीत कर सो जाते। दिन में किसी से मुलाकात हो गई, कोई पूँछ लिया तो बता दिये।
कोई औरत गर्भवती हो, उसको या परिवार वालों को जानना हो पेट में क्या हैं, तो पुर्वानुमान से बता देते। किसी को खेती करना हो, तो इस फिराक में रहते पंडित जी से मुलाकात हो जाए। खेत में जो फसल लगाना चाह रहे हैं उसकी उपज कैसी होगी, कौन सी फसल लगाना सही होगा। किसी की शादी नहीं हो रही, कब तक होगी? किसी को कोई समान गुम गया, मिलेगा कि नहीं। कई सेठ धनगढ़ व्यापार में तरक्की होगी या नहीं जानने के लिए पंडित जी को याद करते। घाटा तो नहीं होगा। यदा कदा गरीब पहुँच जाता, जानने के लिए उसकी गरीबी जायेगी या नहीं। छोटा बच्चा हैं बड़ा होकर कुछ बनेगा या नहीं।
ऐसी कई समस्या थी लोगों की, जो मुरारी पण्डित के मिलने पर पूछी जाती। लोगों को विश्वास था पण्डित जी की बात झूठी नहीं होती। वह अलग बात थी कि कभी शिकायत भी लोग करते कि उनके साथ वह नहीं हुआ जो पण्डित जी बताये। लोगों का क्या, उनका मुँह तो पण्डित जी यह कहकर चुप करा देते-
"भई हमने तो पुर्वानुमान लगाया था। अब वह खरा नहीं उतरा तो हमारी क्या गलती। हो सकता है ईश्वर को कुछ और मंजूर था।"
अब जिसने दो रूपये दक्षिणा दिया न हो, वह क्या दोष दे, सही नहीं निकला तो आगे से पूछेगा नहीं। पण्डित जी ही सही, मानकर अपने निज निवास को चले जाते। कई बार पण्डित जी ने पुर्वानुमान लगाकर लोगों को संतुष्ट किये तो कई बार गलत होने पर पल्ला भी झाड़ लिये।
उनके पास लोगों का आना कम नहीं हुआ। मगर कुछ लोगों के अंदर जलन जरुर पैदा हो गई। वो लोग जिन्हें पण्डित जी के विद्या पर यकिन नहीं। वो लोग जिसको बताया गया पुर्वानुमान गलत निकला। कुछ वो लोग भी, जो पंडित जी के विद्या का मजाक समझते। उससे मुरारी पंडित की रोजी रोटी कौन सी छिनने वाली थी। वो किसानी से कमाई करते हैं। फिर भी लोगों के नजर में उनका खटकना स्वाभाविक था।
ऐसे ही उनका एक धुर विरोधी था कमला, जो आये दिन इस फिराक में था, कब पण्डित जी को नीचा दिखाने का मौका मिले। कई मौके आये, और वह उछला भी। मगर लोगों के बीच थू थू उस की हुई। खुद वह, दो चार और साथी जो पण्डित जी के विपक्ष में जी जान लगा लोगों को भड़का रहे थे। कुछ दिन पहले ही उन्होंने लोगों से कहा कि पण्डित जी कोई पुर्वानुमान नहीं बताते, बल्कि उनके पास जो लोग आते हैं, अपने गुप्तचर उनके करीबियों के पास भेजकर हर कुछ जान लेते हैं। उसी के हिसाब से वो पुर्वानुमान बताते हैं।
जिन पर लोगों की अट्टू श्रध्दा हो भला उनके खिलाफ किसी और की बात कितना असर करती। सच्चाई कुछ भी हो मगर कमला अपने साथियों के साथ मुरारी पण्डित जी का आज तक बाल भी बांका नहीं कर सका। तब विरोधियों ने एक विचार बनाया, किसी एक को गंभीर बिमारी का बहाना बना कर उसके भविष्य की दशा जानने का नाटक करते हैं। कमला के साथी यह सोचकर पीछे हट गये कहीं पण्डित जी कुछ गलत बोल दे और वह सच निकल गया तो जिंदगी भर भुगतना पड़ेगा।
तब कमला खुद तैयार हुआ।
दो दिन गंभीर बीमारी का बहाना बना कर घर पर लेट रहा। दो तीन वैद्य को बुलाकर भी जाँच करवाया, आखिरी में पण्डित जी को घर बुलाया गया। जो भी टुटा फूटा स्वागत सत्कार था करने के बाद कमला से मिलाया गया। परिवार वाले पूछें यह कब ठीक होगा।
गौर से देखने के बाद पण्डित जी निराश हो गये। उसका कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया
"यह कभी ठीक नहीं होगा। अब इसके दिन भी कम बचे हैं। बस तीन से पांच दिन में हमारे बीच से चला जाएगा।"
सुनते ही घर वाले तो घबरा गये। आखिर ऐसा क्या हुआ जो पण्डित जी ऐसा कह रहे हैं। पण्डित जी ने उन्हें समझाया कि
"उसे गंभीर बीमारी हैं। जिसके बारे में किसी को मालूम नहीं। खुद कमला इस बात से अंजान हैं। मेरा पुर्वानुमान तो यही कहता है, बाकी उस ईश्वर की मर्जी।"
जिस वक्त सुनें सभी के हाथ पैर फूल गये। खुश था तो कमला, जो अंदर ही अंदर मुस्कुरा रहा था। झूठ मूठ का बिमारी बताकर पड़ा हैं। ताकि वह मुरारी पण्डित को झूठा साबित कर सके। उसके साथियों ने भी कमला का सहयोग किये। लेकिन एक दिन अचानक कमला को चक्कर आया। वह बिस्तर पर पड़े पड़े बेहोश हो गया। जल्द ही वैद्य को बुलाया गया। नाड़ी चैक की गई तो पता चला वह पल दो पल का मेहमान है। मुरारी पण्डित की बात सच निकल गई। कमला को चेतना आई तो समझ आया। एक पल के लिए उसे लगा कि मुरारी पण्डित को चकमा दे रहा। मगर आज की दशा और वैद्य की सलाह ने उसे अंदर तक झकझोर दिया। कभी नहीं सोचा उसे इतनी जल्दी इस दुनिया से विदा लेना होगा। वह अभी मरा तो नहीं किंतु घबरा गया। शायद उसने मौत को बहुत करीब से देख लिया। फिर क्या था वह मुरारी पण्डित को ढूंढने लगा। मुरारी पण्डित ज्यादा व्यस्त नहीं थे, बुलाने पर चले आये। कमला ने उनका पैर पकड़ लिया-
"पण्डित जी मुझे माफ करें, शायद यह मेरी अंतिम घड़ी है। मुझे जरूर लगा कि मैं आपको नीचा दिखा रहा हूँ। मगर आज आपके विद्या के आगे वह नहीं हो सका। सच तो ये है कि हमें किसी के विद्या का मजाक नही उड़ाना चाहिए। किसी की विद्या सभी के लिए नहीं मगर किसी के लिए तो वरदान साबित हो सकती हैं। मुझे माफ करे पण्डित जी, आज मुझे समझ में आ गया।"
यह सुन कर उसके और जो साथी थे, पैर तले की जमीन खिसक गई। सभी मुरारी पण्डित के चरण पकड़ लिए। कमला जो अब असमर्थ होकर, बस अंतिम साँस ही गिन रहा था, उसे कोई उम्मीद नहीं थी जीने की। उसे मन ही मन बहुत पछतावा हो रहा था। मुरारी पण्डित भी उसकी तरफ गौर से देख रहे थे। मन में ख्याल आया
"मैं अपने पुर्वानुमान से किसी का भविष्य तो बता सकता हूँ, मगर मरते हुए व्यक्ति को बचा नहीं सकता। ऐसे ही किसी को व्यापार में घाटा, लाभ बता सकता हूँ, मगर उसे रोक या बढ़ा नहीं सकता। फिर ऐसी विद्या किस काम की। इससे अच्छा तो लोगों को ईश्वर के अनुसार ही चलने देना चाहिए। लोगों की न जाने कितनी उम्मीद होगी, मगर मेरे पुर्वानुमान से वह बदल तो नहीं जाएगी। क्यों न मुझे यह सब छोड़ देना चाहिए"
फिर क्या था, उस दिन कमला अपना प्राण त्यागा और मुरारी पण्डित अपने पुर्वानुमान की विद्या। अब वह किसी को कुछ नहीं बताने का ठान लियें। एक तरफ कमला की चिता जल रही थी तो एक तरफ मुरारी पंडित के पुर्वानुमान की विद्या।
