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Suraj Kumar Sahu

Abstract Children Stories Inspirational

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Suraj Kumar Sahu

Abstract Children Stories Inspirational

राजा मौखिक नंद

राजा मौखिक नंद

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राजकुमार मौखिक नंद अपने माँ बाप के इकलौते पुत्र थे। उम्र चालीस वर्ष, चौड़ी छाती, ऊंचा कद, ताकत, शेर से लड़ जाने की। मगर नही था तो घमंड। किसी के साथ भी उनका उठना बैठना एक आम जन की तरह होता। उनकी सुरक्षा में जो सैनिक होते वो दूर से राजकुमार की सुरक्षा का ध्यान रखते। प्रजा के प्रति स्वभाव बहुत नम्र था। जरूरत पड़ने पर स्वयं मदद करने पहुँच जाते। लोगों के बीच जाकर समय व्यतित करना, उनकी बातें सुनना, सुख दुःख में शामिल होना उनका पेशा था। जितना प्रजा की चिंता राजकुमार को थी, उतनी प्रजा को राजकुमार की। 

"आप तो राजकुमार हैं, आपको इस तरह हमारे बीच नहीं रहना चाहिए हुजुर। आपकी जान को खतरा हो सकता हैं।" कोई कह भी दे तो उनका जवाब 

"देखों भाई, मृत्यु के भय से कोई जीव छिप नहीं सकता। जिस दिन जाने की बारी आई, चले जायेगे। कम से कम मरते वक्त तसल्ली तो होगी की कुछ करके मरे।"

इसके आगें किसी की मजाल जो बोल सके। प्रजा स्वयं हिम्मत नहीं जुटाती। जबकि उनकी बात का राजकुमार कभी बुरा नहीं मानें। 

एकलौते पुत्र थे, भविष्य के होने वाले राजा। आज नहीं तो कल उनके पिता की मृत्यु होने पर राज्य की कमान उनके हाथ आना हैं। अभी पिता के जीवित रहते गद्दी की ओर उनका ध्यान नही गया। जाता भी कैसे, एक पिता के द्वारा दिये गये नेक संस्कार उन्हें भलाई के रास्ते चलने को प्रेरित कर रहे हैं। शादी आज से बीस साल पहले हो चुकी, आज सोलह साल की जवान बेटी थी, मगर गद्दी की तरफ नजर उठाकर नहीं देखे।

राजकुमार मौखिक नंद की एक कुवारी बहन थी, मालती। उम्र लगभग बाईस वर्ष, गोरा बदन, उँचा कद, लम्बें बाल, आँखे इतनी खूबसूरत कोई देखे तो डूब ही जाये, मगर राजकुमारी किसी के नजर में आती नही। वह अपने भाई से अट्टू स्नेह रखती। राजकुमार भी अपनी बहन के लिए उतना ही प्यार स्नेह रखते। कोई ऐसा मौका नहीं आया जब भाई बहन में किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ हो। 

राज्य परिवार सुखी और सम्पन्न तो था ही, राज्य की प्रजा भी खुशहाल थी। धन धान्य की कोई कमी नहीं, व्यापार खूब फल फूल रहा हैं। लोग अपने व्यापार का सौदा करने दूसरे राज्य से भी आते। जो भी लेन देन होता उस पर जनता का हक जनता को मिलता। साल में दो बार लगान वसूल की जाती, जो जिस लायक उससे उसी मुल्य का लगान लिया जाता। किसी से कोई जबरदस्ती नहीं की जाती। लोगों के लिए मजदूरी का काम साल भर खुला रहता जिससे कमाई का जरिया बना हुआ था। 

राज्य की सैन्य शक्ति भी मजबूत, कई खतरनाक योध्दा शामिल थे। यही कारण था राजा को वर्षों से युध्द करने की जरूरत नही पड़ी। कई राज्य स्वेच्छा से विलय होना चाहा तो हो गये, वरना राज्य विस्तार के बारे में ख्याल भी नहीं आया। न ही किसी अन्य राज्य के द्वारा उनपर आक्रमण किया गया। राज्य सुखी और सम्पन्नता से चारों और कीर्तिमान था। हर दूसरे राज्य में उनकी चर्चा होती। 

राजकुमार मौखिक नंद अपनी बहन को अब डोली में बैठते देखना चाहते थे। उम्र जो हो चुकीं थी। हुआ भी यही मगर सभी का दिल टूट गया। उन्हें मालूम हुआ बहन से उनका सेनापति प्रेम करता है। मन ही मन बहन मालती भी सेनापति को दिल दे चुकी थी। महल में बिना किसी को भनक लगे वो एक दूसरे से मिलते जुलते रहे। यह प्रेम इतना फलीभूत हो गया कि कोई बीच में रोकने टोकने की कोशिश करता हैं तो सिर्फ बदनामी होती। फायदा इसी में था कि हँसी खुशी से इस रिश्ते को कबूल कर लिया जाए, और जल्द से जल्द विवाह के बंधन में बांध दिया जाए। 

तब तय हुआ एक राजकुमारी का ब्याह सेनापति से हुई, यह खबर इस राज्य से बाहर नहीं जानी चाहिए। राजा प्रसन्न मन से जनता के बीच जाकर घोषणा किये कि वो अपनी राजकुमारी का ब्याह सेनापति सोम कुंवर से कर रहे हैं। 

जल्द ही महल को सजाया गया और शादी सम्पन्न कर दी गई। 

मालती तो खुशी खुशी सेनापति सोम कुंवर के साथ अपने पिता के दिये दहेज के महल में चली गई मगर राजा साहब को यह बात अंदर से खल गई। मन में मलाल था बेटी की शादी किसी राजकुमार से नहीं कर सके। यह बात किसी से ज्यादा दिन तक छुपी नहीं रही। एक दिन उनकी सांसे चलना बंद हुई और वो स्वर्ग सिधार गये, तब राजा के रूप में गद्दी पर राजकुमार मौखिक नंद को बैठाया गया। 

लगभग तीन साल बाद राज्य महल में एक खबर दबी आग की तरह हर लोगों के कानों में फैल गई। राजा मौखिक नंद के बेटी का प्रेम प्रसंग उसी सेनापति सोम कुंवर से चलने की। जिसने भी सुना अपने कान दबा लिया, मगर कितने दिन? इस बात से अंजान था तो राजा और उसकी पत्नी। जब राजकुमारी मालती उसकी पत्नी बन चुकी तो फिर राजकुमारी कीर्ति पर उसकी नजर क्यों? क्या राजकुमारी कीर्ति भी सोम कुंवर से प्रेम करती हैं? किसी को नहीं मालूम। 

बात की तहकीकात की गई, पता चला राजकुमारी कीर्ति को पता भी नहीं, सोम कुंवर एकतरफा प्रेम कर रहा है।राज्य महल में उसने झूठी खबर फैलाया। वह कुछ और चाहता था। उसने किसी से कह दिया राजकुमारी कीर्ति से दूसरा विवाह करने वाला हैं तो यह खबर आग की तरह फैल गई। 

राजकुमारी मालती को बात पता चली, आखिर कितने दिन तक कोई अंजान रहता। उसका पति भाई की बेटी से दूसरी शादी करने वाला है तो उसने राजा मौखिक नंद से बताई। सुनकर राजा मौखिक नंद आग बबूला हो गया। मगर अपनी बहन की खुशियों के खातिर ऐसा कुछ नहीं किया कि उसके दिल को चोट पहुँचे।

उसकी बहन ने कहा-

"सोच क्या रहे हैं भैया? ऐसे दुष्ट व्यक्ति को मार देना चाहिए या इस राज्य से ही निकाल देना चाहिए। मुझे नहीं रहना ऐसे मर्द के साथ जो पत्नी के रहते किसी गैर औरत की तरफ नजर डाले। कीर्ति फिर भी हमारी बच्ची हैं, रिश्ते में ऐसी घिनौनी सोच समाज को तार तार कर देगी। मैं चाहती हूँ आप उसे कड़ी से कड़ी सजा दे।"

बहन की बात से सुनकर राजा मौखिक नंद के दिल को कुछ तसल्ली हुई। सेनापति सोम कुंवर अपने योजना पर सफल होता उसके पहले उसे सभा बीच बुलाया गया। उससे हाँ और न में जवाब पूछा गया तो उसने साफ इंकार कर दिया। मगर इस बात के गवाह मौजूद थे। जिनके माध्यम से यह खबर फैलाई गई थी। गवाहों को देखकर सेनापति को स्वीकार करना ही पड़ा, कि उसका दिल जवान राजकुमारी कीर्ति को देखकर फिसल गया।

उसने सारे रिश्ते नाते को भूलकर जो सोचा वह समाज के लिए कलंक था। गलत नही कर सका तो राज्य से जीवन भर के लिए बाहर रहने की सजा दी गई। पत्नी मालती उसी दिन त्याग चुकी जिस दिन उसे सबकुछ मालूम हुआ। इसलिए उसे अकेले ही इस राज्य से बाहर जाना पड़ा।  

इस बात की खबर राज्य महल के बाहर किसी को कानों कान नहीं हुई। कुछ दिन बाद राज्य का दूसरा सेनापति नियुक्त किया गया। उसी समय दूर देश का राजा राज्य पर हमला कर दिया।  उसकी विशाल सेना युध्द भूमि में आकर ललकार रही थी। नया सेनापति इतना काबिल नहीं था कि वह किसी ताकतवर राजा के सेना का सामना कर सके, उसके अंदर हिम्मत जरूर थी। तब राजा मौखिक नंद स्वयं मुकाबले के लिए तैयार हुआ। पिता जी के तीस साल राज्य में उन्हें कोई युद्ध करने की आवश्यकता नहीं पड़ी, इसलिए आज उनका शरीर काँप रहा था। मगर करते क्या? दुश्मन अपनी सेना लेकर सामने खड़ा था। युद्ध में जाने से पहले माँ का आशीर्वाद लेने गये तो माँ समझ गई। 

"क्यों, क्या हुआ मेरे लाल को? हार का डर सता रहा है। मैंने एक शेर का जन्म दिया है। मुझे यकीन हैं मेरा यह शेर दुश्मन को धूल चटा देगा। मैं तेरे जीत की स्वागत में पूजा की थाली सजा कर रखूंगी।"

"पता नहीं क्यों, आज मुझे युद्ध करने की जरूरत पड़ी माँ? जबकि पिताजी तो कोई युध्द नहीं लड़े।"

"किसी पर हद से ज्यादा विश्वास कर लेना, हमारे लिए खतरनाक साबित हुआ। उस सोम कुंवर पर ज्यादा यकीन किया जिसके वजह से यह सब हुआ। भूल मत बेटे, अच्छाई पर बुराई की जीत कभी नहीं हुई।"

"तू इतने यकीन से कैसे कह सकती हैं, सोम कुंवर की वजह से युध्द हो रहा है। अगर ऐसा हैं तो मैं जी जान लगा दूँगा। उसे दिखा दूँगा कि मेरी सेना उसके जाने से कमजोर नहीं हुई।"

वह अपने माँ के सिर पर हाथ रखकर प्रण किया। उसकी माँ ने कहा

"दुष्ट आदमी जरूरत से ज्यादा सम्मान पाकर सिर में बैठने को सोचता हैं। सोम कुंवर तेरी बहन से शादी करके राजगद्दी पर अधिकार चाहता था, मगर तेरे रहते सम्भव तो हुआ नहीं। इसलिए रिश्ते को ताक पे रखकर उसने तेरे बेटी से प्रेमजाल में फंसाने की खबर उड़ाई, ताकी बदनामी के डर से तुम उसका विवाह कीर्ति से कर दो। उसे तो उसी दिन राज्य से बाहर फेंक देना चाहिए था जिस दिन तेरी बहन को अपने प्रेम जाल में फंसाया। आज मेरे पति की मौत नहीं होती और बेटी का घर न उजड़ता। खैर उसकी मौत प्रतीक्षा कर रही हैं, जा और उसे एक ही वार में मारना।"

राजा मौखिक नंद अपने माँ को वचन देकर युद्ध भूमि के लिए निकल गया। जहाँ सोम कुंवर दुश्मन के साथ बैठा दिखाई दिया। दुश्मन की सेना यहाँ की सेना से दुगनी थी। सोम कुंवर ने ललकारा 

"तू क्या अपनी तुच्छ सेना लेकर आया है। तुझे तो जान बचाकर भाग जाना चाहिए। क्यों अपनी मौत का बुलावा देने युध्द भूमि में आया हैं। जा अभी भी मौका है भाग जा। "

"यह तो युध्द का परिणाम बताएगा, दुष्ट सोम कुँवर, अच्छा होता मैं तेरा सर सभा में कलम कर देता। अब युध्द छेड़ चुका तो वह काम यही कर दूंगा।" 

"इस तुच्छ सेना के भरोसे, हमारी विशाल सेना के साथ युद्ध करने की सोच रहा हैं मौखिक नंद।"

उसने कहा और जोर से हँसा। वह हाथी पर सवार था। 

राजा मौखिक नंद दांत पीसकर रह गया। उसने मुठ्ठी बांधी और जवाब दिया- 

"मेरी ताकतवर सेना यदि तुझे तुच्छ लग रही है तो ये तेरी भूल हैं।"

सोम कुंवर पुनः जोर से हंसा। 

"तेरी.... तेरी यह सेना, वो भी ताकतवर? हाहाहाहाहा...., क्या तू भूल गया मैं इसी सेना का सेनापति था, जिसे तूने अपमान करके भगा दिया। अंदर से कितनी मजबूत हैं , यह मुझे खूब पता हैं। अरे! जिसने कोई युद्ध ही नहीं किया हो उसके अंदर कौन सी ताकत बची होगी। देख तेरी आँखों के सामने कैसे हमारी विशाल सेना एक पल में धूल चटाती हैं। तू युद्ध से भागने का रास्ता खोज लेना। भाग गया तो जान बच जाएगीे।"

वह और जोर से हंसता। उसकी हँसी युध्द भूमि में गुँज रही थी। तभी मौखिक नंद के समर्थन में आसपास से कई राज्य के राजा अपनी सेना के साथ दुश्मन से युद्ध करने पहुँच गये। बिना बुलाये मिले समर्थन को देख राजा मौखिक नंद सभी का कृतज्ञता प्रकट की, और युद्ध प्रारंभ दिया। देखते ही देखते दुश्मन की विशाल ताकतवर सेना सिमट कर रह गई। युद्ध पूरे दिन भी नहीं चला और राजा मौखिक नंद सोम कुंवर का सिर धड़ से अलग कर दिया। बची बाकी सेना इधर उधर भाग गई। युद्ध समाप्त हुआ। आस पड़ोस के राजा मौखिक नंद को जीत की बधाई देकर अपने राज्य  चले गए। राजा मौखिक नंद युद्ध जीत कर अपने राज्य महल में आया। उसकी माँ पूजा की थाली लेकर आरती उतार कर आशीर्वाद दी। 

राजा मौखिक नंद अपनी बहन से नजर नहीं मिला रहा था। उसकी बहन पास आई और गले से लिपट कर खुशी से रोते हुए बोली-

"आप मेरे सबसे प्यारे भैया हैं। गलती करने वाला कभी नहीं बख्शा जाता। सोम कुंवर धोखेबाज था, उसने मुझ से, आपसे और इस राज्य से ही नहीं बल्की पूरे इंसानियत से विश्वास घात किया, इसलिए उसकी मौत हुई। मैं बहुत खुश हूँ उसके मरने से। जिसे रिश्ते की कद्र न हो उसे समाज में जीने का कोई हक नहीं।"

मौखिक नंद बहन की बात सुनकर उसके सिर को सहलाते हुए माँ की बात को स्मरण करता रहा। आज पूरे राज्य में जीत का जश्न मनाया गया। 


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