न्याय की किताब
न्याय की किताब
बात पुराने जमाने की हैं। उस वक्त घनघोर जंगल के बीच मानव यदा कदा ही बसता था। तब जानवरों की तादाद ज्यादा थी। इंसान नहीं बल्कि जानवर राज्य करते थे। मानव अपनी जिंदगी जंगल के किनारे गुजारता तो जानवर जंगल के बीच में। उनका सामना कभी कभार ही होता, या शिकार की खोज में मानव जंगल के बीच पहुँच जाता। तब जानवर और इंसान दोनों को एक दूसरे से डर लगता।
ऐसे ही एक और घनघोर जंगल था। जहाँ ऊंचे ऊंचे पेड़, कटीली झाडियाँ, ऊंचे नीचे पहाड़ और गहरी गहरी खाईया थी। जहाँ अलग अलग बिरदारी के जानवरों का परिवार रहता था। तरह तरह के जानवर जंगल में विचरण करते और अपना व परिवार का पेट पालते। उस वक्त उन्हें सिर्फ इस बात का डर रहता कही वो अपने से ताकतवर जानवर का शिकार न हो जाये।
वैसे उस जंगल का राजा शेर था। जिसको राज्य गद्दी विरासत में मिली थी। हट्टा- कट्टा, ताकत का ऐसा धनी कि उसके सामने किसी के आने की हिम्मत नहीं होती। वह ऐसा राजा नहीं था जो अन्य जानवरों का सिर्फ खून चूसता हो। पूरे जंगल राज्य के लिए प्रतापी और न्यायप्रिय राजा था। जिसे पुरखो के द्वारा न्याय की किताब मिली हुई थी। वह दूसरे जानवर पर हो रहे अत्याचार पर उसी किताब की मदद से न्याय करता। खुद तो बेवजह किसी जानवर को सताया नहीं और न ही दूसरे जानवर को तंग करने देता। अपनी भूख मिटाने के लिए किसी जानवर का शिकार करता। जिसकी छूट जंगल के अन्य जानवरों से मिली थी। मगर, मजाल हैं कोई दूसरे क्षेत्र का जानवर इस इलाके में किसी जानवर को तंग करें। उसका नाम ही काफी था। नुखीलें दांत, मजबूत पंजा और बड़े बड़े नाखून, तेज तर्रार आँखें से जिस किसी को निहार ले खौफ खाकर सामने वाला मर ही जाये।
ऐसे राजा के राज्य में प्रजा बहुत खुश थी। राजा के न्याय से आज तक कोई दुखी नही हुआ। जो भी फरियाद लेकर आया, राजा की जय जयकार करके गया। आखिर उस न्याय की किताब का कमाल ही कुछ और था। राजा उस न्याय की किताब को बहुत सम्भल कर रखता। कहते हैं जिसके पास वह किताब चली गई उसे राजा बनने से कोई नहीं रोक सकता।
उस समय जानवरों की तरह गधा भी अपनी बिरादरी के साथ जंगल में रहता। वह आज की तरह माल ढोने के लिए उपयोग में नहीं आता था। न ही उसे कोई पालता। वह तो मजे से जंगल में अन्य जानवरों की तरह झुण्ड में रहता और जंगली घांस खाता। उसी बिरादरी में एक परिवार की पहुँच उस वक्त जंगल के राजा शेर तक थी। दोस्ती के साथ गधा का वह परिवार शेर की सेवक के रूप में प्रसिद्ध था। इस बात का अहंकार जंगल के अन्य गधे बिरादरी को था। तब राजा के साथ शियार नहीं गधा परिवार का मलिक रहता। गुफा से पड़ी हड्डी हटानी हो या फिर राजा के साथ जंगल की सैर करना, गधा जाता। राजा भी उसे हमेशा अपने साथ रखता। जंगल की सारी गुप्त बातें राजा को उस गधे से ही मिलती। आखिर उसने अपने गुप्तचर जो छोड़ रखे है।
गधे के बिरादरी वाले जानवरों को काफी खुशी थी कि उनका मलिक राजा के इतने करीब है। वो दूसरें जानवर को हमेशा यहीं बताते जंगल में भविष्य का राजा वह गधा होगा। उनमें से बहुत गधे अपना राजा मान भी चुके थे। साथ ही दूसरे जानवरों के बीच यह बात फैलाते उसको सभी अपना राजा माने। राजा मानने के लिए दबाव डालते। कभी डराकर तो कभी धमकाकर, देखते ही देखते आसपास के जानवर भी उस गधा को भविष्य का राजा मानने लगे।
जब कभी गधा की इच्छा अपने बिरादरी वालों से मिलने की होती तो उसके आने पर धूम धाम से स्वागत होता। बहुत से ऐसे जानवर थे जो उसके भोजन के लिए अपना भोजन त्याग देते, ताकि मलिक को खुश रख सके। यह देख गधा को खुशी का ठिकाना नहीं रहता। बिरादरी वालों से मिलने पर सारी सच्चाई समझ में आई। आखिर वह गधा ही था, जब माल पुआ खाने को मिल रहा है तो क्यों न लाभ उठाना चाहिए। उसके अंदर यह बात घर कर गई कि सचमुच में इस जंगल के भविष्य का राजा वह ही है। जल्द ही उसके मन में लालच जाग गया। वह खुद तो कुछ नहीं करता बल्कि जो भोजन उसे मिलता खुद खाता साथ में अपने बिरादरी वालों को भी खिलाता।
आते जाते अन्य जानवर सलाम करते, कभी दावत पर बुलाते। इस तरह से अपने क्षेत्र का एक राजा ही बन बैठा। शेर की सभा से निपट कर वह फौरन अपने क्षेत्र में पहुँच जाता। अपनी यश कीर्ति को देखकर मग्न हो जाता।
बीते कुछ दिन बाद वह गधा अपने बिरादरी के अलावा भी अन्य जानवरों को भाने लगा। तब उसके मन में विचार आया, शेर से राजा का पद छीनकर स्वयं राजा बनाने का। यह बात उसने अपने चाहने वालों को बताई। वह किस तरह राजा बन सकता है। न्याय की किताब चुराकर पूरे जंगल में मार्च करके बताऐगा कि न्याय की किताब में क्या लिखा हैं। शेर उनका किस तरह हक छीनकर सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए राजा बना हैं। जब न्याय की किताब उसके हाथ में अन्य जानवर देखेंगे तो स्वयं राजा मान लेगें।
फिर क्या था, मौका पाते ही गधा ने न्याय की किताब पर हाथ फेर दिया। जब तक शेर को न्याय की किताब चोरी के बारें में मालूम हुआ, तब तक गधा अपने चाहने वालों के साथ जंगल में मार्च करके खुद को राजा मानने का दबाव देने लगा। जिसके पास न्याय की किताब होगी राजा वही होगा। जंगल का यह नियम था, इसलिए देखते ही देखते उस गधे के पीछे सैकड़ों भीड़ जुट गईं। अब तो गधे को खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जल्द ही उसके राजा बनने का सपना पूरा होता दिखाई दिया। राजा का गुफा और राज्य की गद्दी सब उसे मिलने वाली थी। तमाम जानवरों की भीड़ लेकर वह राजा शेर के गुफा के सामने पहुँचा। उसके पास न्याय की किताब देख राजा गुस्से से लाल पीले हो गये। मगर इतने जानवरों की भीड़ देख चुपचाप रहे।
गधा ने कहा-
"शेर साहब अब अपना पद छोड़ दीजिये, क्योंकि ये जो पीछे भीड़ देख रहे हो, सब मुझे अपना राजा मानते हैं। अब आपकी जगह यहाँ नहीं कही और हैं। यहाँ तो मैं रहूँगा।"
राजा शेर ने कुछ सोचा और गधा से कहा-
"ठीक है यदि ये जानवर तुझे राजा मान लिये तो कोई बात नहीं, मैं यह जगह छोड़कर चला जाता हूँ। लेकिन क्यों न अपना पद मैं स्वयं तुम्हें सौंप दूँ। ऊपर आओ, अपना पद ग्रहण करो।"
गधा जो अभी जानवरों के बीच उनके ऊपर बैठा था उछल कर राजा के गुफा के अंदर गया। उसे अकेले पाकर शेर एक पंजा मारा तो चारों खाने चित हो गया। पंजे के नीचे दबोच कर जो दहाड़ा, सभी जानवर डर से तीतर बीतर होने लगे। राजा शेर ने सभी से कहा-
"खबरदार कोई इधर उधर गया तो। इस गधे के जैसे और कौन कौन हैं जो खुद को राजा के काबिल समझते हैं। जो भी हो सामने आये।"
किसी की हिम्मत ही नहीं हुई। तब शेर उस गधे से कहा-
"तू मेरे साथ रह कर विश्वासघात किया। आखिर न्याय की किताब चुराने की तेरी हिम्मत कैसे हुई। तू मेरे साथ ही नहीं इन जानवरों के साथ भी धोखा करके बहुत गलती की। मैं चाहूँ तो तुझे अभी कच्चा चबा जाऊँ, लेकिन सभा के समय मैं किसी जानवर का शिकार नहीं करता, इसलिए तुझे छोड़ रहा हूँ। यदि सभा के बाद तू और तेरे बिरदारी का एक भी जानवर जंगल में दिखा तो जिंदा नहीं बचेंगे। भलाई इसी में हैं कि जंगल छोड़कर चले जाना। न्याय की किताब में राजा के साथ विश्वासघात करने वाले के लिए यही सजा लिखी हैं।"
राजा शेर के पंजे से छूट कर गधा डर के मारे चुपचाप अपने बिरादरी वाले जानवर के साथ जंगल छोड़ दिया। शेर का पंजा लगने से उसके दिमाग की नस फट गई और तब से वह मंद बुद्धि का हो गया। उसके बाद तो भविष्य में आने वाली पीढ़ी भी मंद बुद्धि निकलने लगी। उस घटना के बाद अन्य गधों का जंगल में वापस जाने की कभी हिम्मत नहीं हुई।
