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Suraj Kumar Sahu

Abstract

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Suraj Kumar Sahu

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ईमानदारी का मशवरा

ईमानदारी का मशवरा

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राधे और धरम गाँव के बहुत ईमानदार व्यक्ति हैं। जिनके ईमानदारी के चर्चें चारों ओर फैला हैं। आज तक दोनों न तो कभी झूठ बोला और न बेईमानी की। उनके पास जो हैं सब मेहनत और ईमानदारी के कमाई का। दोनों अपने बीस वर्ष की उम्र से दूध बेचने का जो व्यवसाय किये आज उसे ईमानदारी से चला रहे हैं। उनके अलावा गाँव के अन्य व्यक्ति वही व्यवसाय किये मगर उनकी बेईमानी साफ झलक गई। उन्होंने तमाम उम्र जिंदगी ईमानदारी से जीये। आज दोनों पच्चास वर्ष के हो गए। भगवान की कृपा से व्यवसाय में आज तक घाटा नहीं हुआ। दोनों के एक एक पुत्र थे। जिनकी उम्र दस वर्ष होगी। गाँव के लोगों कि उम्मीद जिस तरह राधे और धरम अपनी ईमानदारी दिखाई उसी तरह उनके बेटे निभाये। कहते है न जैसे जिसके माँ बाप, वैसे बच्चे। 

राधे के लड़के में पिता के गुण तो दिख रहे हैं। किंतु धरम के लड़के में कहीं तक नहीं। ऐसा नहीं कि धरम को इस बात का भनक नहीं। वह बच्चें को खुद की तरह बनाने में असफल हो चुका था। इस बात कि चिंता उसे दिन रात परेशान कर रही थी। अब तो दिमाग में यही डर था लोग मजाक उड़ायेंगे उसका। एक दिन राधे और धरम की जब मुलाकात हुई तो धरम ने कहा-

"भाई राधे, हमारा जीवन तो ईमानदारी और सत्य में बीता मगर मेरी चिंता मेरे बेटे पर हैं। उस पर पता नहीं किसकी संगति का असर हो गया। जो झूठ बोलता हैं। वह अक्सर अपनी बात से लोगों को बेवकूफ बनाता है। इस तरह से मेरी क्या इज्जत होगी, जो मैंने तेरी संगति में बनाया।"

राधे ने उसे समझाने की कोशिश किया-

"बुरा मत मानना धरम भाई, मेरे ख्याल से तुम अपनी ईमानदारी की छाप शायद अपने बेटे पर नहीं छोड़ पायें। तुम कितने भी ईमानदार हो लेकिन यदि घर का सदस्य भी तुम्हारी तरह ईमानदार हो तभी बच्चे को अपनी तरह बना सकते हो। तुम अपने बच्चे से झूठ नहीं बोलते, कोई लालच नही देते तो क्या हुआ, परिवार के अन्य लोग, वो कैसा व्यवहार करते हैं? ये भी देखना चाहिए।"

धरम ने राधे के बात का विरोध किया यह कहकर कि-

"मेरे परिवार में मेरे अलावा और कौन हैं, मेरी पत्नी या फिर वह बेटा। वह जरूर कही न कही बाहर से सीख रहा हैं,और हमने ध्यान नही दिया।"

राधे ने पुनः समझाया-

"बच्चा बाहर से ज्यादा घर से सिखता हैं भाई, अपने माँ बाप से सिखता हैं। तब तो जरूर उस पर तुम्हारी पत्नी का असर हो रहा होगा धरम भाई।"

धरम हैं जो उसकी बात मानने को तैयार नहीं-

"तू क्या मजाक करता है। तुझे पता होना चाहिए, जब मैं झूठ कपट पसंद नहीं करता तो मेरी पत्नी भला कैसे बच्चे को झूठ बोलना सिखा सकती हैं। जिस तरह मैं और तुम इस क्षेत्र के ईमानदार माने जाते है, अपनी पत्नी भी उससे कम नहीं होगी।"

राधे ने अपनी बात पूरी किया यह कहकर कि-

"देख मैं अपनी या तेरी पत्नी को सही या गलत साबित करने के लिए कुछ भी नहीं कह रहा हूँ। यदि तू मेरी बात मानना है तो आपस में बैठ कर बात कर लो। सच्चाई सामने आ जायेगी।"

राधे की बात धरम को जम नहीं रही थी, फिर भी पत्नी से एक बार बैठ कर बात करने में क्या जाता हैं सोच कर उसके लिए तैयार हो गया। शाम को जब घर गया तो पत्नी से बात करना किया। पत्नी को पता चला खुद के बेटे के बिगड़ने का इल्जाम राधे ने दिया तो वह आग बबूला हो गई। उसको यह बात सहन नहीं हुई। रात कैसे करके गुजारी सुबह वह गाँव के मुखिया के पास चली गई। 

"मलिक मुझे इंसाफ़ दो, मुझे इंसाफ़ दो मलिक। एक माँ होकर अपने बच्चें को मैं भला क्यों गलत रास्ते में जाने के लिए प्रेरित करूँ। मेरे पर इल्जाम लगाने वाले को इसका दण्ड मिलना चाहिए। "

मुखिया को कुछ पता नहीं था। उधर पूरे गाँव में शोर हो गया कि धरम की पत्नी किसी की शिकायत लेकर मुखिया के घर गई हैं। इतना सुनने को क्या मिल गया, पूरा गाँव भीड़ जोडकर इक्कठा हो गया। भनक नहीं लगी तो राधे और धरम को। दोनों को नहीं पता बात इतनी बिगड़ जायेगी। मुखिया ने ठण्ड दिमाग से जब मामले को पूछा तो धरम की पत्नी ने कहा-

"राधे, जो बड़े ईमानदार बनकर घूम रहा है, वह हमारा परिवार में आग लगा रहा है। उसने मेरे पति से कहा कि मैं अपने बच्चें को बुरा बना रही हूँ।"

फिर क्या था, मुखिया के सामने राधे व धरम दोनों को बुलाया गया। दोनों ने मुखिया के सामने अपने अपने बयान दिये। यह जानने के बाद मुखिया ने तय किया कि राधे ने जो कहा इस बात का सबूत दे तो माना जायेगा कि उसकी कोई गलती नही, वरना एक परिवार के तोड़ने का इल्जाम उसे काबुल करना होगा। 

राधे ईमानदारी के मशवरा के चक्कर में आज पड़ चुका था। मरता क्या न करता, उसने सोचने के बाद धरम के पत्नी के ऊपर लगाये इल्जाम को सबूत देने का फैसला किया। उसने सभी से कहा- 

"ठीक हैं किंतु भाभी जी मेरे सवाल का सही सही जवाब दे तो मैं साबित कर दूँगा। तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो पायेगा।"

धरम की पत्नी जवाब देने के लिए मान गई। 

राधे ने पूछा-

"भाभी जी जब धरम भैया घर पर नहीं होते, और आपका बच्चा बार बार उनके बारे में पूछता था, रोता था, तो आप क्या करती थी? "

धरम की पत्नी ने थोड़ा देर सोची फिर कही-

"मैं उससे कहती थी कि अभी उसके पापा उसके लिए कोई खिलौना लेने गये हैं या मिठाई लेने गये हैं।"

राधे ने पुनः सवाल किया-

"ठीक हैं जब आपका बच्चा किसी चीज के लिए लेने के लिए जिद करता था, और उस वक्त वह चीज आपके पास नहीं हो, या उसे देने से बच्चे से नुकसान होने की सम्भावना हो, तब आप क्या करती थी?"

धरम की पत्नी ने थोड़ा फिर सोची और जवाब दी-

"तब मैं उसे बहला फुसलाकर कहती थी कि वह पापा देंगे। या फिर उससे छिपाकर कहती बाबा ले गया।"

राधे ने पुनः पूछा-

"अकेले में जब वह आपको तंग करता था, तब आप उसे क्या कहकर डराती थी?"

धरम की पत्नी ने बताया-

"वह कहती थी कि मेरी बात मान जाये, वरना भूत या जानवर आकर उसे पकड़ ले जाएगा।"

राधे एक एक करके जवाब मिलते ही सवाल करता गया। उसने एक और सवाल किया-

"आप बच्चे को कब कब मारती थी?"

धरम के पत्नी का जवाब था, वह जब जब गलती करता था। 

अंत में उसने वही सारे सवाल अपनी पत्नी से किया तो उसके जवाब कुछ और आये। मुखिया समझ चुका था कि राधे गलत नहीं हैं। पर आज का फैसला जनता करने वाली थी। राधे ने सभी से कहा- 

"देखा मिल गया न जवाब, भाभी जी अब आप बताईये, क्या धरम भाई घर आने पर कुछ लाते थे? या वो चीज जो आपने अपने बच्चे से कहा। आप बताइये, जो चीज बाबा ले ही नहीं गया उसे बच्चे से क्यों कहा आपने। एक छोटे बच्चे की गलती आप उसे मारकर ही अहसास करायेंगी कि उसने गलती किया।"

धरम की पत्नी के पास जवाब ही नहीं था तो क्या कहती। उसने सफाई में सिर्फ इतना ही कहा-

"ऐसा मैं अकेले थोड़ी करती हूँ, और भी तो हैं जो ऐसा करते हैं। पूछ लीजिये पूरी सभा से। " 

औरत थी, आँख से आँसू बह निकले, कोई कुछ समझ पता तब तक वह जोर जोर से रोने लगी। ईमानदारी का मशवरा आज बहुत मंहगा पड़ा। कुछ औरत उसे चुप कराने में लग गई। तब तक राधे ने पुन: कहा-

"भाभी जी, मेरा उद्देश्य आपको पीड़ा देना बिलकुल नही हैं। मैं बस धरम जैसे व्यक्ति के पुछने पर एक मशवरा दिया। उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। जैसा आपने कहा मैं अकेले ही थोड़ी हूँ, लेकिन एक ईमानदार व्यक्ति का बच्चा गलत आचरण धरण किया, मैं बस उससे अवगत कराया। आप क्या जो भी लोग सभी अपने बच्चे के साथ यहीं करते हैं। परिणाम बच्चा बचपन से सिखता हैं उसे क्या करना हैं। इसलिए आप मुझे क्षमा करे। हमें अपने बच्चें को यदि बचपन से ही ईमानदारी सीखना हैं तो ईमानदारी के साथ ही पेश आना होगा, जैसे अभी आप आई। आपने कोई गलती नही की, बच्चे के जिद के आगे वह सब आपने की। किंतु वह बच्चा था उसने वो चीज सीख गया। क्योंकि कोई भी बच्चा कुछ खुद से नहीं सीखता, वह अपने आस पड़ोस के गतिविधियों से सीखता हैं।"

फिर क्या था पूरी सभा में राधे के लिए ताली बज उठी। धरम कि पत्नी के साथ अन्य लोग मान गए कि अपने बच्चें का भविष्य वो खुद हैं। माता पिता के आचरण से तय हो जाता हैं कि बच्चा क्या सीख रहा है। अपनी भूल के लिए धरम की पत्नी सभी से माफी मांगी और अपनी गलती स्वीकार कर ली। 


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